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अग्निपुराण अध्याय १९१

अग्निपुराण अध्याय १९१                   

अग्निपुराण अध्याय १९१ में त्रयोदशी तिथि के व्रत का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय १९१

अग्निपुराणम् एकनवत्यधिकशततमोऽध्यायः

Agni puran chapter 191                 

अग्निपुराण एक सौ इक्यानबेवाँ अध्याय

अग्निपुराणम्/अध्यायः १९१                   

अग्निपुराणम् अध्यायः १९१ – त्रयोदशीव्रतानि

अथ एकनवत्यधिकशततमोऽध्यायः

अग्निरुवाच

त्रयोदशीव्रतानीह सर्वदानि वदामि ते ।

अनङ्गेन कृतामादौ वक्ष्येऽनङ्गत्रयोदशीं ॥०१॥

त्रयोदश्यां मार्गशीर्षे शुक्लेऽनङ्गं हरं यजेत् ।

मधु सम्प्राशयेद्रात्रौ घृतहोमस्तिलाक्षतैः ॥०२॥

पौषे योगेश्वरं प्रार्च्य चन्दनाशी कृताहुतिः ।

महेश्वरं मौक्तिकाशी माघेऽभ्यर्च्य दिवं व्रजेत् ॥०३॥

काकोलं प्राश्य नीरं तु फाल्गुने पूजयेद्व्रती ।

कर्पूराशी स्वरूपं च चैत्रे सौभाग्यवान् भवेत् ॥०४॥

महारूपन्तु वैशाखे यजेज्जातीफलाश्यपि ।

लवङ्गाशी ज्यैष्ठदिने प्रद्युम्नं पूजयेद्व्रती ॥०५॥

तिलोदाशी तथाषाढे उमाभर्तारमर्चयेत् ।

श्रावणे गन्धतोयाशी पूजयेच्छूलपाणिनं ॥०६॥

सद्योजातं भाद्रपदे प्राशिता गुरुमर्चयेत् ।

सुवर्णवारि संप्राश्य आश्विने त्रिदशाधिपम् ॥०७॥

विश्वेश्वरं कार्त्तिके तु मदनाशी यजेद्व्रती ।

शिवं हैमन्तु वर्षान्ते सञ्च्छाद्याम्रदलेन तु ॥०८॥

वस्त्रेण पूजयित्वा तु दद्याद्विप्राय गान्तथा ।

शयनञ्छत्रकलशान् पादुका रसभाजनम् ॥०९॥

अग्निदेव कहते हैं- अब मैं त्रयोदशी तिथि के व्रत कहता हूँ, जो सब कुछ देनेवाले हैं। पहले मैं 'अनङ्गत्रयोदशी' के विषय में बतलाता हूँ। पूर्वकाल में अनङ्ग (कामदेव) - ने इसका व्रत किया था। मार्गशीर्ष शुक्ला त्रयोदशी को कामदेवस्वरूप 'हर' की पूजा करे। रात्रि में मधु का भोजन करे तथा तिल और अक्षत मिश्रित घृत का होम करे। पौष में 'योगेश्वर 'का पूजन एवं होम करके चन्दन का प्राशन करे। माघ में 'महेश्वर' की अर्चना करके मौक्तिक (रास्ना नामक पौधे के) जल का आहार करे। इससे मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करता है। व्रत करनेवाला फाल्गुन में 'वीरभद्र' का पूजन करके कङ्कोल का प्राशन करे। चैत्र में 'सुरूप' नामक शिव की अर्चना करके कर्पूर का आहार करनेवाला मनुष्य सौभाग्ययुक्त होता है। वैशाख में 'महारूप' की पूजा करके जायफल का भोजन करे। व्रत करनेवाला मनुष्य ज्येष्ठ मास में 'प्रद्युम्न' का पूजन करे और लौंग चबाकर रहे। आषाढ़ में 'उमापति' की अर्चना करके तिलमिश्रित जल का पान करे। श्रावण में 'शूलपाणि' का पूजन करके सुगन्धित जल का पान करे। भाद्रपद में अगुरु का प्राशन करे और 'सद्योजात' का पूजन करे। आश्विन में 'त्रिदशाधिप शंकर' के पूजनपूर्वक स्वर्णजल का पान करे। व्रती पुरुष कार्तिक में 'विश्वेश्वर' की अर्चना के अनन्तर लवण का भक्षण करे। इस प्रकार वर्ष के समाप्त होने पर स्वर्णनिर्मित शिवलिङ्ग को आम के पत्तों और वस्त्र से ढककर ब्राह्मण को सत्कारपूर्वक दान दे। साथ ही गौ, शय्या, छत्र, कलश, पादुका तथा रसपूर्ण पात्र भी दे ॥ १-९॥

त्रयोदश्यां सिते चैत्रे रतिप्रीतियुतं स्मरन् ।

अशोकाख्यं नगं लिख्य सिन्दूररजनीमुखैः ॥१०॥

अव्धं यजेत्तु कामार्थी कामत्रयोदशीव्रतम् ॥११॥

चैत्र शुक्लपक्ष को त्रयोदशी को सिन्दूर और काजल से अशोकवृक्ष को अङ्कित करके उसके नीचे रति और प्रीति (काम की पत्नियों) से युक्त कामदेव का स्मरण करे। इस प्रकार कामनायुक्त साधक एक वर्षतक कामदेव का पूजन करे। यह 'कामत्रयोदशी व्रत' कहलाता है । १०-११ ॥

इत्याग्नेये महापुराणे त्रयोदशी व्रतानि नामैकनवत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'त्रयोदशी के व्रत का वर्णन' नामक एक सौ इक्यानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ१९१॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 192

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