बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ७

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ७

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ७ में राशियों के दृष्टिभेद कथन का वर्णन हुआ है।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ७

बृहत्पाराशर होराशास्त्र अध्याय ७

Vrihat Parashar hora shastra chapter

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् सप्तमोऽध्यायः

अथ बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् सप्तम भाषा-टीकासहितं

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ७- अथ राशिदृष्टिभेदाध्यायः

मेषादीनां च राशीनां द्वादशानां पृथक् पृथक् ।

दृष्टिभेदं प्रवक्ष्यामि शृणु त्वं द्विजसत्तम । । १ ।।

हे द्विजसत्तम! मैं मेषादि १२ राशियों के दृष्टिभेद को पृथक्-पृथक् कह रहा हूँ उसे सुनो। । १ । ।

चरः स्थिरान्पश्यतिस्म स्थिरः पश्यति वै चरान् ।

उभयानुभयं विप्र पश्यतीत्ययमागमः । । २ ।।

चर राशियाँ स्थिर राशियों को, स्थिर राशियाँ चर राशियों को और द्विस्वभाव राशियों को देखती हैं, यह आगम है।।२।।

समीपराशि सन्त्यक्त्वा राशींस्त्रीननुपश्यति ।

सर्वोदाहरणं वक्ष्ये शृणु त्वं द्विजसप्तम । ॥३॥

इनमें विशेषता यह है कि समीप की राशियों को छोड़कर तीन-तीन राशियों को सभी राशियाँ देखती हैं। इनका उदाहरण मैं कह रहा हूँ ।। ३ ।।

मेषो वृषं परित्यज्य सिंहालिघटकं तथा ।

अनयैव क्रमेणैव पश्यतिस्म द्विजोत्तम ।।४।।

मेष राशि वृष राशि को छोड़कर सिंह, वृश्चिक, कुम्भ राशि को देखती हैं। इसी प्रकार क्रम से आगे की राशियाँ भी देखती हैं । ४ ॥

कर्कः सिंहं परित्यज्य वृश्चिकं च घटं वृषम् ।

तुलापि वृश्चिकं त्यक्त्वा कुम्भं सिंहं तथा वृषम् ।।५।।

कर्क राशि सिंह को छोड़कर वृश्चिक, कुंभ और वृष को; तुला राशि वृश्चिक को छोड़कर कुंभ, सिंह और वृष को ।। ५ ।।

नक्रो घटं परित्यज्य मेषं कर्क तुलां द्विज ।

सिंह: कर्कं परित्यज्य नक्रं मेषं तुलां द्विज ।।६।।

कर्क राशि सिंह को छोड़कर वृश्चिक, कुंभ, वृष को, मकर राशि कुंभ राशि को छोड़कर मेष, कर्क, तुला को ।।६।।

वृश्चिकस्तु तुलां त्यक्त्वा कर्क मेषं मृगं तथा ।

कुम्भश्च मकरं त्यक्त्वा मेषं कर्क तुलां द्विज ।।७।।

सिंह राशि कर्क राशि को छोड़कर मकर, मेष, तुला को; वृश्चिक राशि तुला को छोड़कर कर्क, मेष, मकर को; कुंभ राशि मकर राशि को छोड़कर मेष, कर्क, तुला को ।।७।।

युग्मः कन्याधनुर्मीनान् पश्यतीति द्विजोत्तम ।

कन्या धनुर्मीनयुग्मं पश्यत्येवं न संशयः ।।८।।

मिथुन राशि कन्या, धनु, मीन को; कन्या राशि धनु, मीन, मिथुन को । । ८ । ।

धनुर्झषयुग्मकन्याः पश्यति द्विजसत्तम ।

मीनो युग्माङ्गको दण्डान् पश्यति सुमते द्विज ।।९।।

धनु राशि मीन, मिथुन, कन्या को और मीन राशि मिथुन, कन्या और धनु राशि को देखती है ।। ९ ।।

सूर्यादयः क्रमेणैव पश्यन्ति च परस्परम् ।

राशित्रयं त्रयं विप्र सर्वराशिगता ग्रहाः ।। १० ।।

हे विप्र! इसी प्रकार सूर्य आदि ग्रह भी तीन-तीन राशियों के क्रम से सभी राशियों को देखते हैं ।। १० ।।

चरेषु संस्थिताः खेटाः पश्यन्ति चरसंस्थितान् ।

स्थिरेषु संस्थिताः खेटाः पश्यन्ति चरसंस्थितान्।।११।।

उभयस्यास्तु श्रान्चादिः पश्यन्त्युभयसंस्थितान् ।

निकटस्थं विना खेटा निरीक्ष्यन्ते द्विजोत्तम । । १२ ।।

चर राशि पर बैठा हुआ ग्रह स्थिर राशि पर बैठे हुए ग्रह को, स्थिर राशि पर बैठा हुआ ग्रह चर राशि पर बैठे हुए ग्रह को और द्विस्वभाव राशि पर बैठा हुआ ग्रह द्विस्वभाव राशि पर बैठे हुए ग्रह को देखता है, किन्तु निकटस्थ राशि को छोड़कर । ।११-१२ । ।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ७- दृष्टिचक्र

चक्रन्वासमहं वक्ष्ये यथावद्ब्रह्मणोदितम् ।

यस्य विज्ञानमात्रेण दृष्टिभेदः प्रकाश्यते ।।१३।।

जैसा ब्रह्माजी ने कहा है वैसा ही में दृष्टिचक्र को कह रहा हूँ, जिसके जान लोने से दृष्टिभेद समझ में आ जाता है ।। १३ ।।

पूर्वे मेषवृषो लेख्यो कर्कसिंहौ च दक्षिणे ।

तुलालिवारुणे विप्र नक्रकुम्भे तथोत्तरे । । १४ । ।

एक बार्गाकार चक्र बनाकर पूर्व आदि दिशाओं की कल्पना कर पूर्व दिशां में मेष वृष, दक्षिण में कर्क सिंह को, तुला - वृश्चिक को पश्चिम में, मकर-कुंभ को उत्तर में । । १४ । ।

अग्निकोणे तु मिथुनं नैरृत्यामङ्गनां द्विज ।

वायव्यां धनुषं लेख्यमीशान्यां च झषं लिखेद् ।। १५ ।।

मिथुन को अग्निकोण में, कन्या को नैऋत्य कोण में, वायव्य कोण में धनु को और ईशान्य कोण में मीन को लिखे ।।१५।।

चतुरस्त्रं च विन्यासं ज्ञायते द्विजसत्तम ।

वृत्ताकारं विशेषेण ब्रह्मणा चोदितं पुरा । । १६ ।

ब्रह्माजी ने विशेष कर इस चक्र को वृत्ताकार ही कहा है ।। १६ ।।

विशेष- १६ वें श्लोक के अनुसार स्पष्ट है कि राशियों की सव्यगणना ही ब्रह्मोदित है तथापि व्यवहार में ऐसा नहीं है, अतः व्यवहार के अनुकूल मीनान्त से अपसव्य गणना ही चक्र में लिखा गया है । ऊपर के १४-१५ श्लोक सव्य गणना के अनुसार ही है । शेष चक्र से स्पष्ट है।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ७- राशियों की सव्य अपसव्य गणना चक्र

इति राशिदृष्टिभेदम् ।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ७- अथ ग्रह दृष्टिचक्र

होराशास्त्रे मित्रदृष्टिः खेटानां च परस्परम् ।

त्रिदशे च त्रिकोणे च चतुरस्रे च सप्तमे  ॥ १७ ॥

होराशास्त्र में ग्रहों की भिन्न-भिन्न दृष्टियाँ कही गईं है, वो इस प्रकार हैं । ग्रह अपने स्थान से ३ ।१०, ९।५, ४।८।७ स्थान को देखती है ॥ १७ ॥

शनिर्देवगुरुर्भीमः परे च वीक्षणेऽधिकाः ।

पदार्थं त्रिपदं पूर्णं वदन्ति गणकोत्तमाः ॥ १८ ॥ 

शनिपादं त्रिकोणेषु चतुरस्रे द्विपादकम् ।

त्रिपादं सप्तमे विप्र त्रिदशे पूर्णमेव हि ॥ १९ ॥

किन्तु शनि ९ । ५ स्थान को १ चरण से, ४ ।८  स्थान को २ चरण से, सातवें को ३ चरण से और ३।१० स्थान को पूर्णादृष्टि से देखता है ।।१८-१९।।

चतुरस्त्रे गुरुः पादं सप्तमे च द्विपादकम् ।

त्रिपादं त्रिदशे विप्र पूर्णं पश्यति कोष्णभे ॥ २० ॥

गुरु अपने स्थान से ४ ।८ भाव को १ चरण से, ७ स्थान को २ चरण से, ३ ।१० को ३ चरण से और ९ । ५ स्थान को पूर्णदृष्टि से देखता है ॥२० ॥

सप्तमे पादमेकं च द्विपादं त्रिदशे द्विज ।

त्रिपादं च त्रिकोणेषु भौमः पूर्णं चतुरस्रागी ॥ २१ ॥

भौम अपने स्थान से सातवें स्थान को १ चरण से, ३।१० स्थान को २ चरण से, ९।५ स्थान को ३ चरण से और ४।८ स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है ।। २१ ।।

अन्येषां त्रिदशे पादं द्विपादं च त्रिकोणगे ।

चतुरस्त्रे त्रिपादं च पूर्णं पश्यति सप्तमे ।। २२ ।।

शेष ग्रह ३ । १० स्थान को १ चरण से, ९।५ को १ चरण से, ९।४ को २ चरण से, ४ ।८ स्थान को ३ चरण से और सातवें स्थान को पूर्णदृष्टि से देखते हैं ।। २२ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ७- ग्रहदृष्टिचक्रम्

इति दृष्टिभेदाध्यायः ।

इति पाराशरहोरायाः पूर्वखण्डे सुबोधिन्या दृष्टिभेदकं नाम चतुर्थोऽध्यायः ।

आगे जारी............. बृहत्पाराशरहोराशास्त्र अध्याय 8  

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