अग्निपुराण अध्याय १२९

अग्निपुराण अध्याय १२९     

अग्निपुराण अध्याय १२९ में अर्घकाण्ड का प्रतिपादन का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय १२९

अग्निपुराणम् ऊनत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः

Agni puran chapter 129          

अग्निपुराण एक सौ उन्तीसवाँ अध्याय

अग्नि पुराण अध्याय १२९                           

अग्निपुराणम् अध्यायः १२९ – अर्घकाण्डम्

अथ ऊनत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः

अग्निपुराणम्/अध्यायः १२९

ईश्वर उवाच

अर्घमानं प्रवक्ष्यामि उल्कापातोऽथ भूश्चला ।

निर्घातो ग्रहणं वेशो दिशां दाहो भवेद्यदा ॥१॥

लक्षयेन्मासि मास्येवं यद्येते स्युश्च चैत्रके ।

अलङ्कारादि सङ्गृह्य षड्भिर्मासैश्चतुर्गुणम् ॥२॥

वैशाखे चाष्टमे मासि षड्गुणं सर्वसङ्ग्रहं ।

ज्यैष्ठे मासि तथाषाढे यवगोधूमधान्यकैः ॥३॥

श्रावणे घृततैलाद्यैराश्विने वस्त्रधान्यकैः ।

कार्त्तिके धान्यकैः क्रीतैर्मासे स्यान्मार्गशीर्षके ॥४॥

पुष्ये कुङ्कुमगन्धाद्यैर् लाभो धान्यैश्च माघके ।

गन्धाद्यैः फाल्गुने क्रीतैरर्घकाण्डमुदाहृतम् ॥५॥

शंकरजी कहते हैं- अब मैं वस्तुओं की मँहगी तथा सस्ती के सम्बन्ध में विचार प्रकट कर रहा हूँ। जब कभी भूतल पर उल्कापात, भूकम्प, निर्घात (वज्रापात), चन्द्र और सूर्य के ग्रहण तथा दिशाओं में अधिक गरमी का अनुभव हो तो इस बात का प्रत्येक मास में लक्ष्य करना चाहिये । यदि उपर्युक्त लक्षणों में से कोई लक्षण चैत्र में हो तो अलंकार - सामग्रियों (सोना-चाँदी आदि) का संग्रह करना चाहिये। वह छः मास के बाद चौगुने मूल्य पर बिक सकता है। यदि वैशाख में हो तो वस्त्र, धान्य, सुवर्ण, घृतादि सब पदार्थों का संग्रह करना चाहिये। वे आठवें मास में छः गुने मूल्य पर बिकते हैं। यदि ज्येष्ठ तथा आषाढ़ मास में मिले तो जौ, गेहूँ और धान्य का संग्रह करना चाहिये । यदि श्रावण में मिले तो घृत-तैलादि रस-पदार्थों का संग्रह करना चाहिये। यदि आश्विन में मिले तो वस्त्र तथा धान्य दोनों का संग्रह करना चाहिये। यदि कार्तिक में मिले तो सब प्रकार का अन्न खरीदकर रखना चाहिये। अगहन तथा पौष में यदि मिले तो कुंकुम तथा सुगन्धित पदार्थों से लाभ होता है । माघ में यदि उक्त लक्षण मिले तो धान्य से लाभ होता है। फाल्गुन में मिले तो सुगन्धित पदार्थों से लाभ होता है। लाभ की अवधि छः या आठ मास समझनी चाहिये ॥ १-५ ॥

इत्याग्नेये महापुराणे अर्घकाण्डं नाम ऊनत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'अर्धकाण्ड का प्रतिपादन' नामक एक सौ उन्तीसवां अध्याय पूरा हुआ ॥ १२९ ॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 130

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