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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
सूर्य स्तोत्र
जो मनुष्य
भविष्यपुराण के ब्राह्म पर्व अध्याय ७१ के इस सूर्य स्तोत्र का पाठ करता है,
वह मनोवाञ्छित फलों को प्राप्त करता है ।
सूर्य स्तोत्रम्
Surya stotram
ब्रह्मप्रोक्त सूर्यस्तोत्रम्
ब्रह्मोवाच
नामभिः
संस्तुतो देवो यैरर्कः परितुष्यति ।
तानि ते
कीर्तयाम्येष यथावदनुपूर्वशः ॥ १ ॥
ब्रह्माजी बोले – याज्ञवल्क्य ! भगवान् सूर्य जिन नामों के स्तवन से प्रसन्न होते हैं, मैं उनका वर्णन कर रहा हूँ –
नमः सूर्याय
नित्याय रवयेऽर्काय भानवे ।
भास्कराय
मतङ्गाय मार्तण्डाय विवस्वते ॥२ ॥
नित्य,
रवि, अर्क, भानु, भास्कर, मतङ्ग, मार्तण्ड तथा विवस्वान् नामों से युक्त भगवान् सूर्य को
मेरा नमस्कार है ।
अदित्यायादिदेवाय
नमस्ते रश्मिमालिने ।
दिवाकाराय
दीप्ताय अग्नये मिहिराय च ॥ ३ ॥
आदिदेव,रश्मिमाली, दिवाकर, दीप्त, अग्नि तथा मिहिर नामक भगवान् आदित्य को मेरा नमस्कार है ।
प्रभाकराय
मित्राय नमस्तेऽदितिसम्भव ।
नमो गोपतये
नित्यं दिशां च पतये नमः ॥ ४ ॥
हे अदिति के
पुत्र भगवान् सूर्य ! आप प्रभाकर, मित्र, गोपति (किरणों के स्वामी) तथा दिक्पति नाम वाले हैं,
आपको मेरा नित्य नमस्कार है ।
नमो धात्रे
विधात्रे च अर्यम्णे वरुणाय च ।
पूष्णे भगाय
मित्राय पर्जन्यायांशवे नमः ॥ ५ ॥
धाता,
विधाता अर्यमा, वरुण पूषा, भग, मित्र, पर्जन्य, अंशुमान् नाम वाले भगवान् सूर्य को मेरा प्रणाम है ।
नमो हितकृते
नित्यं धर्माय तपनाय च ।
हरये
हरिताश्वाय विश्वस्य पतये नमः ॥ ६ ॥
हितकृत (संसार
का कल्याण करनेवाले), धर्म, तपन, हरि, हरिताश्व (हरे रंग के अश्वों वाले),
विश्वपति भगवान् सूर्य को नित्य मेरा नमस्कार है ।
विष्णवे
ब्रह्मणे नित्यं त्र्यम्बकाय तथात्मने ।
नमस्ते
सप्तलोकेश नमस्ते सप्तसप्तये ॥ ७ ॥
विष्णु,
ब्रह्रा, त्र्यम्बक (शिव), आत्मस्वरूप, सप्तसप्ती, हे सप्तलोकेश ! आपको मेरा नमस्कार है ।
एकस्मै हि
नमस्तुभ्यमेकचक्ररथाय च ।
ज्योतिषां
पतये नित्यं सर्वप्राणभृते नमः ॥ ८ ॥
अद्वितीय,
एकचक्ररथ (जिनके रथ में एक ही चक्र है),
ज्योतिष्पति, हे सर्वप्राणभृत् ! (सभी प्राणियों का भरण-पोषण करनेवाले)
आपको मेरा नित्य नमस्कार है ।
हिताय
सर्वभूतानां शिवायार्तिहराय च ।
नमः
पद्मप्रबोधाय नमो वेदादिमूर्तये ॥ ९ ॥
समस्त प्राणि जगत्
का हित करनेवाले, शिव (कल्याणकारी) और आर्तिहर (दुःखविनाशी),
पद्मप्रबोध (कमलों को विकसित करनेवाले),
वेदादिमूर्ति भगवान् सूर्य को नमस्कार है ।
काधिजाय
नमस्तुभ्यं नमस्तारासुताय च ।
भीमजाय
नमस्तुभ्यं पावकाय च वै नमः ॥ १० ॥
प्रजापतियों
के स्वामी महर्षि कश्यप के पुत्र ! आपको नमस्कार है । भीमपुत्र तथा पावक नामवाले
तारासुत ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है ।
धिषणाय नमो
नित्यं नमः कृष्णाय नित्पदा ।
नमोऽस्त्वदितिपुत्राय
नमो लक्ष्याय नित्यशः ॥ ११ ॥
धिषण,
कृष्ण, अदितिपुत्र तथा लक्ष्य नामवाले भगवान् सूर्य को बार-बार
नमस्कार है ।
सूर्य स्तोत्र महात्म्य
एतान्यादित्यनामानि
मया प्रोक्तानि वै पुरा ।
आराधनाय
देवस्य सर्वकामेन सुव्रत ॥ १२॥
सायं प्रातः
शुचिर्भूत्वा यः पठेत्सुसमाहितः ।
स
प्राप्नोत्यखिलान्कामान्यथाहं प्राप्तवान्पुरा ॥ १३॥
प्रसादात्तस्य
देवस्य भास्करस्य महात्मनः ।
श्रीकामः
श्रियमाप्नोति धर्मार्थी धर्ममाप्नुयात् ॥ १४॥
आतुरो मुच्यते
रोगाद्बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
राज्यार्थी
राज्यमाप्नोति कामार्थी काममाप्नुयात् ॥ १५॥
एतज्जप्यं
रहस्यं च संध्योपासनमेव च ।
एतेन
जपमात्रेण नरः पापात्प्रमुच्यते ॥ १६॥
ब्रह्माजी ने
कहा –
याज्ञवल्क्य ! जो मनुष्य सायंकाल और प्रातःकाल इन नामों का
पवित्र होकर पाठ करता है, वह मेरे समान ही मनोवाञ्छित फलों को प्राप्त करता है । इस
नाम-स्तोत्र से सूर्य की आराधना करने पर उनके अनुग्रह से धर्म,
अर्थ, काम, आरोग्य, राज्य तथा विजय की प्राप्ति होती है । यदि मनुष्य बन्धन में
हो तो इसके पाठ से बन्धन-मुक्त हो जाता है । इसके जप करने से सभी पापों से छुटकारा
मिल जाता है । यह जो सूर्य-स्तोत्र मैंने कहा है, वह अत्यन्त रहस्यमय है ।
इति श्रीभविष्यमहापुराणे ब्राह्मे पर्वणि ब्रह्मप्रोक्त सूर्यस्तोत्रम् ॥
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