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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
सूर्य स्तवराज
भविष्यपुराण ब्राह्मपर्व)अध्याय – १२८ में
वर्णित इस इक्कीस नाम वाला सूर्य स्तवराज से सप्ताश्ववाहन भास्कर की स्तुति करने
से नीरोग,
श्रीमान् और भयंकर शारीरिक रोग से सर्वथा मुक्ति हो जाता है
।
सूर्यस्तवराज:
Surya stavaraj
श्रीसूर्य
उवाच
साम्ब साम्ब महावाहो
शृणु जाम्बवतीसुत ।
अलं
नामसहस्रेण पठ चेमं शुभं स्तवम् ॥ ३॥
यानि गुह्यानि
नामानि पवित्राणि शुभानि च ।
तानि ते
कीर्तियिष्यामि प्रयत्नादवधारय ॥ ४ ॥
भगवान् सूर्य
ने साम्ब से कहा — ‘साम्ब ! सहस्रनाम से मेरी स्तुति करने की आवश्यकता नहीं हैं
। मैं अपने अतिशय गोपनीय, पवित्र और इक्कीस शुभ नाम को बताता हूँ । प्रयत्नपूर्वक
उन्हें ग्रहण करो, उनके पाठ करने से सहस्रनाम के पाठ का फल प्राप्त होगा ।
मेरे इक्कीस नाम इस प्रकार हैं —
सूर्य स्तवराज स्तोत्रम्
वैकर्तनो
विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः ।
लोकप्रकाशकः
श्रीमाँल्लोकचक्षुर्ग्रहेश्वरः ॥ ५ ॥
लोकसाक्षी
त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा ।
तपनस्तापनश्चैव
शुचिः सप्ताववाहनः ॥ ६ ॥
गभस्तिहस्तो
ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः ॥ ७ ॥
(१) विकर्तन (विपत्तियों को काटने तथा नष्ट करनेवाले),
(२) विवस्वान् (प्रकाश-रूप),
(३) मार्तण्ड (जिन्होंने
अण्ड में बहुत दिन निवास किया), (४) भास्कर, (५) रवि, (६) लोकप्रकाशक, (७) श्रीमान्, (८) लोकचक्षु, (९) ग्रहेश्वर, (१०) लोकसाक्षी, (११) त्रिलोकेश, (१२) कर्ता, (१३) हर्ता, (१४) तमिस्रहा (अन्धकारको नष्ट करनेवाले),
(१५) तपन,
(१६) तापन,
(१७) शुचि (पवित्रतम),
(१८) सप्ताश्ववाहन,
(१९) गभस्तिहस्त (किरणें ही
जिनके हाथस्वरूप हैं), (२०) ब्रह्मा और (२१) सर्वदेवनमस्कृत ।
सूर्य स्तवराज स्तोत्रम् महात्म्य
एकर्विशतिरित्येष
स्तव इष्टस्सदा मम ।
शरीरारोग्यदश्चैव
धनवृद्धियशस्करः ।
स्तवराज इति
ख्यातस्त्रिषु लोकेषु विश्रुतः ॥ ८ ॥
साम्ब ! ये
इक्कीस नाम मुझे अतिशय प्रिय हैं । यह स्तवराज के नामसे प्रसिद्ध है । यह स्तवराज
शरीर को नीरोग बनानेवाला, धन की वृद्धि करनेवाला और यशस्कर है एवं तीनों लोकों में
विख्यात है ।
य एतेन
महाबाहो द्वे सन्ध्येऽस्तमनोदये ।
स्तौति मां
प्रणतो भूत्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ।। ९ ॥
महाबाहो ! इन
नामों से उदय और अस्त दोनों संध्या के समय प्रणत होकर जो मेरी स्तुति करता है,
वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है ।
मानसं वाचिकं
वापि कायिकं यच्च दुष्कृतम् ।
एकजाप्येन
तत्सर्वं प्रणश्यति ममाग्रतः ॥ १०॥
मानसिक,
वाचिक और शारीरिक जो भी दुष्कृत हैं,
वे सभी एक बार मेरे सम्मुख इसका जप करने से विनष्ट हो जाते
हैं ।
एष जप्यश्च
होमश्च सन्ध्योपासनमेव च ।
बलिमन्त्रोऽर्घ्यमन्त्रोऽथ
धूपमन्त्रस्तथैव च ॥११ ॥
यही मेरे लिये
जपने योग्य तथा हवन एवं संध्योपासना है । बलिमन्त्र, अर्घ्यमन्त्र, धूपमन्त्र इत्यादि भी यही है ।
अन्नप्रदाने
स्नाने च प्रणिपाते प्रदक्षिणे ।
पूजितोऽयं महामन्त्रः सर्वपापहरः शुभः ॥ १२ ॥
अन्नप्रदान,
स्नान, नमस्कार, प्रदक्षिणा में यह महामन्त्र प्रतिष्ठित होकर सभी पापों का
हरण करनेवाला और शुभ करनेवाला है ।
इति श्रीभविष्यमहापुराणे ब्राह्मे पर्वणि सूर्यस्तवराज: ॥
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