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- कालिका पुराण अध्याय १०
- कालिका पुराण अध्याय ९
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- कालिका पुराण अध्याय ८
- कालिका पुराण अध्याय ७
- काली स्तुति
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- काली स्तुति
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- कालिका पुराण
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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
कुण्डलिनी सहस्रनाम स्तोत्र
रुद्रयामल तंत्र पटल ३६ में भगवती
कुण्डली देवी के अष्टोत्तर सहस्रनामस्तोत्र का निरूपण है। अष्टोत्तर सहस्रनाम जप
के बाद कवच का पाठ कर अपनी रक्षा करनी चाहिए।(१७१--१७५)।
इस कुण्डलिनी सहस्रनाम के जप से और कवच के पाठ से करोड़ों जन्मों के पापों का नाश
हो जाता है।
श्रीकुण्डलिनीसहस्रनामस्तोत्रम्
रुद्रयामल तंत्र पटल ३६
Rudrayamal Tantra Patal 36
रुद्रयामल तंत्र छत्तीसवाँ पटल
रुद्रयामल तंत्र षट्त्रिंशः पटल:
रूद्रयामल तंत्र शास्त्र
अथ षट्त्रिंशः पटल:
श्रीआनन्दभैरवी उवाच
अथ कान्त प्रवक्ष्यामि
कुण्डलीचेतनादिकम् ।
सहस्रनामसकल कुण्डलिन्याः प्रियं
सुखम् ॥ १ ॥
अष्टोत्तरं महापुण्यं साक्षात्
सिद्धिप्रदायकम् ।
तव प्रेमवशेनैव कथयामि शृणुष्व तत्
॥ २ ॥
श्रीआनन्दभैरवी ने कहा—
हे कान्त ! इसके अनन्तर कुण्डलिनी को चेतन करने के लिए महापुण्यदायक
कुण्डलिनी का अष्टोत्तरसहस्र नाम कहती हूँ, जो साधक को प्रिय
सुख देने वाला तथा साक्षात् सिद्धि देने वाला है उसे आपके प्रेम वश कहती हूँ,
सुनिए । १-२ ॥
विना यजनयोगेन विना ध्यानेन यत्फलम्
।
तत्फलं लभते सद्यो विद्यायाः सुकृपा
भवेत् ॥ ३ ॥
या विद्या भुवनेशानी
त्रैलोक्यपरिपूजिता ।
सा देवी कुण्डली माता त्रैलोक्यं
पाति सर्वदा ॥ ४ ॥
यदि महाविद्या की कृपा हो जावे तो
यजन के बिना अथवा ध्यान के बिना ही वह सारा फल शीघ्र प्राप्त हो जाता है।
त्रैलोक्य में सबसे परिपूजित जो भुवनेश्वरी महाविद्या हैं,वही कुण्डलिनी माता हैं जो सर्वदा त्रिलोक की रक्षा करती हैं ।। ३-४ ॥
तस्या नाम सहस्राणि अष्टोत्तरशतानि
च ।
श्रवणात्पठनान्मन्त्री महाभक्तो
भवेदिह ॥ ५ ॥
ऐहिके स भवेन्नाथ जीवन्मुक्तो
महाबली ॥ ६ ॥
उस कुण्डली के ११०८ नामों के पठन से
अथवा सुनने से मन्त्रवेत्ता महाभक्त हो जाता है और हे जगन्नाथ ! वह इसी लोक में
महाबली एवं जीवन्मुक्त हो जाता है ।। ५-६ ।।
कुण्डलिनी सहस्रनाम स्तोत्र विनियोग
अस्य
श्रीमन्महाकुण्डलीसाष्टोत्तरसहस्रनामस्तोत्रस्य ब्रह्मर्षिर्जगतीच्छन्दो भगवती
श्रीमन्महाकुण्डलीदेवता सर्वयोगसमृद्धिसिद्धार्थे विनियोगः॥
इस स्तोत्र के ब्रह्मा ऋषि,
जगती छन्द तथा भगवती श्रीमन्महाकुण्डली देवता हैं । सर्वयोग समृद्धि
के लिए यह विनियुक्त है। फिर साधक हाथ में जल लेकर 'अस्य
श्री' से आरम्भ कर ....... सिद्धयर्थे जपे विनियोगः
पर्यन्त वाक्य पढ़कर उस जल को पृथ्वी पर गिरा देवे ।। ५-६ ॥
॥ श्रीकुण्डलिनी सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥
कुलेश्वरी कुलानन्दा कुलीना
कुलकुण्डली ।
श्रीमन्महाकुण्डली च कुलकन्या
कुलप्रिया ॥ ७ ॥
कुलक्षेत्रस्थिता कौली
कुलीनार्थप्रकाशिनी ।
कुलाख्या कुलमार्गस्था
कुलशास्त्रार्थपातिनी ॥ ८ ॥
कुलज्ञा कुलयोग्या च
कुलपुष्पप्रकाशिनी ।
कुलीना च कुलाध्यक्षा
कुलचन्दनलेपिता ॥ ९ ॥
कुलरूपा कुलोद्भूता
कुलकुण्डलिवासिनी ।
कुलाभिन्ना कुलोत्पन्ना
कुलाचारविनोदिनी ॥ १० ॥
कुलवृक्षसमुद्भूता कुलमाला कुलप्रभा
।
कुलज्ञा कुलमध्यस्था कुलकङ्कणशोभिता
॥ ११ ॥
सहस्त्रनाम प्रारम्भ –
१. कुलेश्वरी, कुलानन्दा, कुलीना, कुलकुण्डली, श्रीमन्महा-
कुण्डली, कुलकन्या, कुलप्रिया, कुलक्षेत्रस्थिता, कौली, कुलीनार्थप्रकाशिनी
(१०), कुलाख्या, कुलमार्गस्था, कुलशास्वार्थपातिनी, कुलज्ञा, कुलयोग्या,
कुलपुष्पप्रकाशिनी, कुलीना, कुला- ध्यक्षा, कुलचन्दनलेपिता, कुलरूपा, कुलोद्भूता, कुलकुण्डलिवासिनी,
कुलाभिन्ना, कुलोत्पन्ना, कुलाचारविनोदिनी, कुलवृक्ष-समुद्भूता, कुलमाला, कुलप्रभा, कुलशा,
कुलमध्यस्था, कुलकङ्कणशोभिता ।। ७-११ ॥
कुलोत्तरा कौलपूजा कुलालापा
कुलक्रिया ।
कुलभेदा कुलप्राणा कुलदेवी
कुलस्तुतिः ॥ १२ ॥
कौलिका कालिका काल्या कलिभिन्ना
कलाकला ।
कलिकल्मषहन्त्री च कलिदोषविनाशिनी ॥
१३ ॥
कङ्काली केवलानन्दा कालज्ञा
कालधारिणी ।
कौतुकी कौमुदी केका काका
काकलयान्तरा ॥ १४ ॥
कोमलाङ्गी करालास्या कन्दपूज्या च
कोमला ।
कैशोरी काकपुच्छस्था कम्बलासनवासिनी
॥ १५ ॥
कैकेयीपूजिता कोला कोलपुत्री
कपिध्वजा ।
कमला कमलाक्षी च कम्बलाश्वतरप्रिया
॥ १६ ॥
कुलोत्तरा,
कौलपूजा, कुलालापा, कुलक्रिया,
कुलभेदा, कुलप्राणा, कुलदेवी,
कुलस्तुति, कौलिका, कालिका,
काल्या, कलिभिन्ना, कलाकला,
कलिकल्मषहन्त्री, कलिदोष- विनाशिनी, कङ्काली, केवलानन्दा, कालज्ञा
(५०), कालधारिणी, कौतुकी, कौमुदी, केका, काका, काकलयान्तरा, कोमलाङ्गी, करालास्या,
कन्दपूज्या, कोमला, कैशोरी,
काकपुच्छस्था, कम्बलासनवासिनी, कैकेयीपूजिता, कोला, कोलपुत्री,
कपिध्वजा, कमला, कमलाक्षी,
कम्बलाश्वतरप्रिया ।। १२-१६ ।।
कलिकाभङ्गदोषस्था कालज्ञा
कालकुण्डली ।
काव्यदा कविता वाणी
कालसन्दर्भभेदिनी ॥ १७ ॥
कुमारी करुणाकारा कुरुसैन्यविनाशिनी
।
कान्ता कुलगता कामा कामिनी
कामनाशिनी ॥ १८ ॥
कामोद्भवा कामकन्या केवला कालघातिनी
।
कैलासशिखरारूढा कैलासपतिसेविता ॥ १९
॥
कैलासनाथनमिता केयूरहारमण्डिता ।
कन्दर्पा कठिनानन्दा कुलगा
कीचकृत्यहा ॥ २० ॥
कालिकाभङ्गदोषस्था (७०),
कालज्ञा, कालकुण्डली, काव्यदा,
कविता वाणी, काल- सन्दर्भभेदिनी, कुमारी, करुणाकारा, कुरुसैन्यविनाशिनी,
कान्ता (८०), कुलगता, कामा,
कामिनी, कामनाशिनी, कामोद्भवा,
कामकन्या, केवला, कालघातिनी,
कैलासशिखरारूढा, कैलासपतिसेविता (९०), कैलासनाथनमिता, केयूरहारमण्डिता, कन्दर्पा, कठिनानन्दा, कुलगा
कीचकृत्यहा ।। १७-२० ॥
कमलास्या कठोरा च कीटरूपा कटिस्थिता
।
कन्देश्वरी कन्दरूपा कोलिका
कन्दवासिनी ॥ २१ ॥
कूटस्था कूटभक्षा च कालकूटविनाशिनी
।
कामाख्या कमला काम्या
कामराजतनूद्भवा ॥ २२ ॥
कामरूपधरा कम्रा कमनीया कविप्रिया ।
कञ्जानना कञ्जहस्ता
कञ्जपत्रायतेक्षणा ॥ २३ ॥
काकिनी कामरूपस्था कामरूपप्रकाशिनी
।
कोलाविध्वंसिनी कङ्का
कलङ्कार्ककलङ्किनी ॥ २४ ॥
कमलास्या,
कठोरा कीटरूपा, कटिस्थिता, (१००) कन्देश्वरी, कन्दरूपा, कोलिका,
कन्दवासिनी, कूटस्था, कूटभक्षा,
कालकूटविनाशिनी, कामाख्या, कमला, काम्या, कामराजतनूद्भवा,
कामरूपधरा, कर्मा, कमनीया,
कविप्रिया, कञ्जानना, कञ्जहस्ता,
कञ्जपत्रायतेक्षणा, काकिनी, कामरूपस्था, कामरूपप्रकाशिनी, कोलाविध्वंसिनी,
कडूा, कलङ्कार्ककलङ्किनी ॥ २१-२४ ।।
महाकुलनदी कर्णा कर्णकाण्डविमोहिनी
।
काण्डस्था काण्डकरुणा कर्मकस्था
कुटुम्बिनी ॥ २५ ॥
कमलाभा भवा कल्ला करुणा करुणामयी ।
करुणेशी कराकर्त्री कर्तृहस्ता
कलोदया ॥ २६ ॥
कारुण्यसागरोद्भूता कारुण्यसिन्धुवासिनी
।
कार्त्तिकेशी कार्त्तिकस्था
कार्त्तिकप्राणपालनी ॥ २७ ॥
करुणानिधिपूज्या च करणीया क्रिया
कला ।
कल्पस्था कल्पनिलया कल्पातीता च
कल्पिता ॥ २८ ॥
महाकुलनदी,
कर्णा कर्णकाण्डविमोहिनी, काण्डस्था, काण्डकरुणा, कर्मकस्था, कुटुम्बिनी,
कमलाभा, भवा, कल्ला,
करुणा, करुणामयी, करुणेशी,
करा, कर्त्री, कर्तृहस्ता,
कलोदया ( २४०), कारुण्यसागरोद्भूता, कारुण्यसिन्धुवासिनी, कार्तिकेशी, कार्तिकस्था, कार्तिकाप्राणपालनी, करुणानिधिपूज्या करणीया, क्रिया, कला, कल्पस्था, कल्पनिलया,
कल्पातीता, कल्पिता ।। २५-२८ ।।
कुलया कुलविज्ञाना कर्षिणी
कालरात्रिका ।
कैवल्यदा कोकरस्था कलमञ्जीररञ्जनी ॥
२९ ॥
कलयन्ती कालजिह्वा किङ्करासनकारिणी
।
कुमुदा कुशलानन्दा कौशल्याकाशवासिनी
॥ ३० ॥
कसापहासहन्त्री च कैवल्यगुणसम्भवा ।
एकाकिनी अर्करूपा कुवला कर्कटस्थिता
॥ ३१ ॥
कर्कोटका कोष्ठरूपा
कूटवह्निकरस्थिता ।
कूजन्ती मधुरध्वानं कामयन्ती
सुलक्षणम् ॥ ३२ ॥
कुलया,
कुलविज्ञाना, कर्षिणी, कालरात्रिका,
कैवल्यदा, कोकरस्था, कलमञ्जीररञ्जनी,
कलयन्ती, कालजिह्वा, किङ्करासनकारिणी,
कुमुदा, कुशलानन्दा, कौशल्याकाशवासिनी,
कसापहासहन्त्री, कैवल्यगुणसंभवा, एकाकिनी, अर्करूपा, कुवला,
कर्कटस्थिता, कर्कोटका, कोष्ठरूपा,
कूटवनिकरस्थिता, मधुरध्वानं, कूजन्ती, सुलक्षणं कामयन्ती ।। २९-३२ ॥
केतकी कुसुमानन्दा
केतकीपुण्यमण्डिता ।
कर्पूरपूररुचिरा कर्पूरभक्षणप्रिया
॥ ३३ ॥
कपालपात्रहस्ता च कपालचन्द्रधारिणी
।
कामधेनुस्वरूपा च कामधेनुः
क्रियान्विता ॥ ३४ ॥
कश्यपी काश्यपा कुन्ती केशान्ता
केशमोहिनी ।
कालकर्त्री कूपकर्त्री कुलपा
कामचारिणी ॥ ३५ ॥
कुङ्कुमाभा कज्जलस्था कमिता
कोपघातिनी ।
केलिस्था केलिकलिता कोपना
कर्पटस्थिता ॥ ३६ ॥
केतकी कुसुमानन्दा,
केतकीपुण्यमण्डिता, कर्पूरपूररुचिरा, कर्पूरभक्षणप्रिया, कपाल- पात्रहस्ता, कपालचन्द्रधारिणी, कामधेनुस्वरूपा
कामधेनुक्रियान्विता, कश्यपी, काश्यपा,
कुन्ती, केशान्ता, केशमोहिनी,
कालकर्त्री, कूपकर्त्री, कुलपा, कामचारिणी, कुकुमाभा,
कज्जलस्था, कमिता, कोपघातिनी,
केलिस्था, केलिकलिता, कोपना,
कर्पटस्थिता ।। ३३-३६ ॥
कलातीता कालविद्या
कालात्मपुरुषोद्भवा ।
कष्टस्थारे कष्टकुष्ठस्था कुष्ठहा
कष्टहा कुशा ॥ ३७ ॥
कालिका स्फुटकर्त्री च काम्बोजा
कामला कुला ।
कुलाख्या काककुष्ठ कर्मस्था
कूर्ममध्यगा ॥ ३८ ॥
कुण्डलाकारचक्रस्था कुण्डगोलोद्भवा
कफा ।
कपित्थाग्रवसाकाशा कपित्थरोधकारिणी
॥ ३९ ॥
काहोड़ी काहड़ा काड़ा कङ्कला
भाषकारिणी ।
कनका कनकाभा च कनकाद्रिनिवासिनी ॥
४० ॥
कलातीता,
कालविद्या, कालात्मपुरुषोद्भवा, कष्टस्था, कष्टकुष्ठस्था, कुष्ठहा,
कष्टहा, कुशा, कालिका,
स्फुटकर्त्री, काम्बोजा, कामला, कुला, कुशलाख्या,
काककुष्ठा, कर्मस्था, कूर्ममध्यगा,
कुण्डलाकारचक्रस्था, कुण्डगोलोद्भवा, कफा, कपित्थाग्रवसा, काशा,
कपित्थरोधकारिणी, काहोड़ी, काहड़ा, काड़ा कङ्कला, भाषकारिणी,
कनका कनकाभा, कनकाद्रिनिवासिनी ॥ ३७-४० ॥
कार्पासयज्ञसूत्रस्था
कूटब्रह्मार्थसाधिनी ।
कलञ्जभक्षिणी क्रूरा क्रोधपुञ्जा
कपिस्थिता ॥ ४१ ॥
कपाली साधनरता कनिष्ठाकाशवासिनी ।
कुञ्जरेशी कुञ्जरस्था कुञ्जरा
कुञ्जरागतिः॥ ४२ ॥
कुञ्जस्था कुञ्जरमणी
कुञ्जमन्दिरवासिनी ।
कुपिता कोपशून्या च
कोपाकोपविवर्जिता ॥ ४३ ॥
कपिञ्जलस्था कापिञ्जा
कपिञ्जलतरूद्भवा ।
कुन्तीप्रेमकथाविष्टा
कुन्तीमानसपूजिता ॥ ४४ ॥
कार्पासयज्ञसूत्रस्था,
कूटब्रह्मार्थसाधिनी, कलञ्जभक्षिणी, क्रूरा, क्रोधपुञ्जा, कपिस्थिता,
कपाली, साधनरता, कनिष्ठा,
काशवासिनी, कुञ्जरेशी, कुञ्जरस्था,
कुञ्जरा, कुञ्जरागति, कुञ्जस्था,
कुञ्जरमणी, कुञ्जमन्दिरवासिनी, कुपिता, कोपशून्या, कोपा,
कोपविवर्जिता, कपिञ्जलस्था, कापिञ्जा, कपिञ्जलतरूद्भवा, कुन्तीप्रेमकथाविष्टा,
कुन्तीमानसपूजिता।।४१-४४।।
कुन्तला कुन्तहस्ता च
कुलकुन्तललोहिनी ।
कान्ताङ्घ्रिसेविका कान्तकुशला
कोशलावती ॥ ४५ ॥
केशिहन्त्री ककुत्स्था च
ककुत्स्थवनवासिनी ।
कैलासशिखरानन्दा कैलासगिरिपूजिता ॥
४६ ॥
कीलालनिर्मलाकारा(?)
कीलालमुग्धकारिणी ।
कुतुना कुट्टही कुट्ठा कूटना मोदकारिणी
॥ ४७ ॥
क्रोङ्कारी क्रौरी काशी
कुहुशब्दस्था किरातिनी ।
कूजन्ती सर्ववचनं कारयन्ती
कृताकृतम् ॥ ४८ ॥
कुन्तला,
कुन्तहस्ता, कुलकुन्तलमोहिनी, कान्ताङ्घ्रिसेविका, कान्तकुशला, कोशलावती, केशिहन्त्री, ककुत्स्था,
ककुत्स्थवनवासिनी, कैलासशिखरानन्दा, कैलासगिरिपूजिता, कीलाल- निर्मलाकारा, कीलालमुग्धकारिणी, कुठुना, कुट्टही
कुट्ठा, कूटना, मोदकारिणी, क्रौकारी, क्रौकरी, काशी
कुहुशब्दस्था, किरातिनी, सर्ववचन,
कूजन्ती, कृताकृत कारयन्ती ॥ ४५-४८ ॥
कृपानिधिस्वरूपा च कृपासागरवासिनी ।
केवलानन्दनिरता केवलानन्दकारिणी ॥
४९ ॥
कृमिला कृमिदोषघ्नी कृपा
कपटकुट्टिता ।
कृशाङ्गी क्रमभङ्गस्था किङ्करस्था
कटस्थिता ॥ ५० ॥
कामरूपा कान्तरता कामरूपस्य
सिद्धिदा ।
कामरूपपीठदेवी कामरूपाङ्कुजा कुजा ॥
५१ ॥
कामरूपा कामविद्या कामरूपादिकालिका
।
कामरूपकला काम्या कामरूपकुलेश्वरी ॥
५२ ॥
कृपानिधिस्वरूपा,
कृपासागरवासिनी, केवलानन्दनिरता, केवलानन्दकारिणी, कृमिला, कृमिदोषघ्नीकृपा,
कपटकुट्टिता, कृशाङ्गी, क्रमभङ्गस्था,
किङ्करस्था, कटिस्थिता, कामरूपा,
कान्तरता, कामरूपस्य सिद्धिदा, कामरूपपीठदेवी, कामरूपाङकुजा, कुजा,
कामरूपा, काम- विद्या, कामरूपा,
आदिकालिका, कामरूपकला, काम्या,
कामरूप, कुलेश्वरी ।। ४९-५२ ।।
कामरूपजनानन्दा कामरूपकुशाग्रधीः ।
कामरूपकराकाशा कामरूपतरुस्थिता ॥ ५३
॥
कामात्मजा कामकला कामरूपविहारिणी ।
कामशास्त्रार्थमध्यस्था
कामरूपक्रियाकला ॥ ५४ ॥
कामरूपमहाकाली कामरूपयशोमयी ।
कामरूपपरमानन्दा कामरूपादिकामिनी ॥
५५ ॥
कूलमूला कामरूपपद्ममध्यनिवासिनी ।
कृताञ्जलिप्रिया कृत्या
कृत्यादेवीस्थिता कटा ॥ ५६ ॥
कामरूपजनानन्दा,
कामरूपकुशाग्रधी, कामरूपकराकाशा, कामरूपतरुस्थिता, कामात्मजा, कामकला,
कामरूपविहारिणी, कामशास्वार्थमध्यस्था,
कामरूपक्रिया, कला, कामरूपमहाकाली,
कामरूपयशोमयी, कामरूपपरमानन्दा, कामरूपादिकामिनी, कूलमूला कामरूपपद्ममध्यनिवासिनी,
कृताञ्जलिप्रिया, कृत्या, कृत्यादेवीस्थिता कटा ।। ५३-५६ ॥
कटका काटका कोटिकटिघण्टविनोदिनी ।
कटिस्थूलतरा काष्ठा
कात्यायनसुसिद्धिदा ॥ ५७ ॥
कात्यायनी काचलस्था कामचन्द्रानना
कथा ।
काश्मीरदेशनिरता काश्मीरी
कृषिकर्मजा ॥ ५८ ॥
कृषिकर्मस्थिता कौर्मा
कूर्मपृष्ठनिवासिनी ।
कालघण्टा नादरता कलमञ्जीरमोहिनी ॥
५९ ॥
कलयन्ती शत्रुवर्गान् क्रोधयन्ती
गुणागुणम् ।
कामयन्ती सर्वकामं काशयन्ती
जगत्त्रयम् ॥ ६० ॥
कटका, काटका, कोटि कटिघण्टविनोदिनी, कटिस्थूलतरा,
काष्ठा, कात्यायन- सुसिद्धिदा, कात्यायनी, काचलस्था, कामचन्द्रानना,
कथा, काश्मीरदेशनिरता, काश्मीरी,
कृषिकर्मजा, कृषिकर्मस्थिता, कौर्मा, कूर्मपृष्ठनिवासिनी, कालघण्टा,
नादरता, कलमञ्जीर- मोहिनी, शत्रुवर्गान् कलयन्ती, गुणागुणं क्रोधयन्ती, सर्वकामं कामयन्ती, जगत्रय काशयन्ती ।। ५७-६० ॥
कौलकन्या कालकन्या कौलकालकुलेश्वरी
।
कौलमन्दिरसंस्था च कुलधर्मविडम्बिनी
॥ ६१ ॥
कुलधर्मरताकारा कुलधर्मविनाशिनी ।
कुलधर्मपण्डिता च कुलधर्मसमृद्धिदा
॥ ६२ ॥
कौलभोगमोक्षदा च कौलभोगेन्द्रयोगिनी
।
कौलकर्मा नवकुला श्वेतचम्पकमालिनी ॥
६३ ॥
कुलपुष्पमाल्याकान्ता कुलपुष्पभवोद्भवा
।
कौलकोलाहलकरा कौलकर्मप्रिया परा ॥
६४ ॥
कौलकन्या,
कालकन्या, कौलकालकुलेश्वरी, कौलमन्दिरसंस्था, कुलधर्मविडम्बिनी, कुलधर्मरताकारा, कुलधर्मविनाशिनी, कुलधर्मपण्डिता, कुलधर्मसमृद्धिदा, कौलभोगमोक्षदा, कौलभोगेन्द्रयोगिनी, कौलकर्मा, नवकुला, श्वेतचम्पकमालिनी,
कुलपुष्पमाल्याक्रान्ता, कुलपुष्प- भवोद्भवा,
कौलकोलाहलकरा, कौलकर्मप्रिया, परा ।। ६१-६४ ॥
काशीस्थिता काशकन्या काशी चक्षुः
प्रिया कुथा ।
काष्ठासनप्रिया काका काकपक्षकपालिका
॥ ६५ ॥
कपालरसभोज्या च कपालनवमालिनी ।
कपालस्था च कापाली कपालसिद्धिदायिनी
॥ ६६ ॥
कपाला कुलकर्त्री च कपालशिखरस्थिता
।
कथना कृपणश्रीदा कृपी कृपणसेविता ॥
६७ ॥
कर्महन्त्री कर्मगता
कर्माकर्मविवर्जिता ।
कर्मसिद्धिरता कामी
कर्मज्ञाननिवासिनी ॥ ६८ ॥
कर्मधर्मसुशीला च कर्मधर्मवशङ्करी ।
कनकाब्जसुनिर्माणमहासिंहासनस्थिता ॥
६९ ॥
कनकग्रन्थिमाल्याढ्या
कनकग्रन्थिभेदिनी ।
कनकोद्भवकन्या च कनकाम्भोजवासिनी ॥
७० ॥
काशीस्थिता,
काशकन्या, काशी, चक्षुप्रिया,
कुथा, काष्ठासनप्रिया, काका,
काकपक्ष- कपालिका, कपालरसभोज्या, कपालनवमालिनी, कपालस्था, कापाली,
कपालसिद्धिदायिनी, कपाला, कुलकर्त्री, कपालशिखरस्थिता, कथना,
कृपणश्रीदा, कृपी कृपणसेविता, कर्महन्त्री, कर्मगता, कर्माकर्मविवर्जिता,
कर्मसिद्धिरता, कामी, कर्मज्ञाननिवासिनी,
कर्मधर्मसुशीला, कर्मधर्मवशङ्करी, कनकाब्जसुनिर्माण महासिंहासनस्थिता, कनकग्रन्थिमाल्याढ्या,
कनकग्रन्थि- भेदिनी, कनकोद्भवकन्या, कनकाम्भोजवासिनी ।। ६५-७० ।।
कालकूटादिकूटस्था
किटिशब्दान्तरस्थिता ।
कङ्कपक्षिनादमुखा कामधेनूद्भवा कला
॥ ७१ ॥
कङ्कणाभा धरा क कर्द्दमा
कर्द्दमस्थिता ।
कर्द्दमस्थजलाच्छन्ना
कर्द्दमस्थजनप्रिया ॥ ७२ ॥
कमठस्था कार्मुकस्था कम्रस्था
कंसनाशिनी ।
कंसप्रिया कंसहंत्री
कंसाज्ञानकरालिनी ॥ ७३ ॥
काञ्चनाभा काञ्चनदा कामदाक्रमदा कदा
।
कान्तभिन्ना कान्तचिन्ता
कमलासनवासिनी ॥ ७४ ॥
कालकूटादिकूटस्था,
किटिशब्दान्तरस्थिता, कङ्कपक्षिनादमुखा,
कामधेनुद्भवा, कला, कङ्कणाभा,
धरा, कट्ट, कर्दमा,
कर्दमस्थिता, कर्दमस्थजलाच्छन्ना, कर्दमस्थजनप्रिया, कमठस्था कार्मुकस्था, कमस्था, कंसनाशिनी, कंसप्रिया,
कंसहत्री, कंसाज्ञानकरालिनी, काञ्चनाभा, काञ्चनदा, कामदा,
क्रमदा, कदा, कान्तभिन्ना,
कान्तचिन्ता, कमलासनवासिनी ।। ७१-७४ ।।
कमलासनसिद्धिस्था कमलासनदेवता ।
कुत्सिता कुत्सितरता कुत्सा
शापविवर्जिता ॥ ७५ ॥
कुपुत्ररक्षिका कुल्ला
कुपुत्रमानसापहा ।
कुजरक्षकरी कौजी कुब्जाख्या
कुब्जविग्रहा ॥ ७६ ॥
कुनखी कूपदीक्षुस्था कुकरी कुधनी
कुदा ।
कुप्रिया कोकिलानन्दा कोकिला
कामदायिनी ॥ ७७ ॥
कुकामिना कुबुद्धिस्था कूर्पवाहन मोहिनी
।
कुलका कुललोकस्था कुशासनसुसिद्धिदा
॥ ७८ ॥
कमलासनसिद्धिस्था,
कमलासनदेवता, कुत्सिता, कुत्सितरता,
कुत्सा, शापविवर्जिता, कुपुत्ररक्षिका,
कुल्ला, कुपुत्रमानसापहा, कुजरक्षकरी, कौजी, कुब्जाख्या,
कुब्जविग्रहा, कुनखी, कूपदीक्षुस्था,
कुकरी, कुधनी, कुदा,
कुप्रिया, कोकिलानन्दा, कोकिला,
कामदायिनी, कुकामिना, कुबुद्धिस्था,
कूर्पवाहनमोहिनी, कुलका, कुललाकस्था, कुशासन सुसिद्धिदा ।। ७५-७८ ॥
कौशिकी देवता कस्या
कन्नादनादसुप्रिया ।
कुसौष्ठवा कुमित्रस्था
कुमित्रशत्रुघातिनी ॥ ७९ ॥
कुज्ञाननिकरा कुस्था कुजिस्था
कर्जदायिनी ।
ककर्जा ककरिणी कर्जवद्धविमोहिनी ॥
८० ॥
कर्जशोधनकर्त्री च कालास्त्रधारिणी
सदा ।
कुगतिः कालसुगतिः कलिबुद्धिविनाशिनी
॥ ८१ ॥
कलिकालफलोत्पन्ना कलिपावनकारिणी ।
कलिपापहरा काली
कलिसिद्धिसुसूक्ष्मदा ॥ ८२ ॥
कौशिकीदेवता,
कस्या, कन्नादनादसुप्रिया, कुसौष्ठवा, कुमित्रस्था, कुमित्रशत्रुघातिनी,
कुज्ञाननिकरा, कुस्था, कुजिस्था,
कर्जदायिनी, ककर्जा, कर्जकरिणी,
कर्जवद्धविमोहिनी, कर्जशोधनकर्त्री, कालास्वधारिणी, कुगति, कालसुगति,
कलिबुद्धिविनाशिनी, कलिकाल- फलोत्पन्ना,
कलिपावनकारिणी, कलिपापहरा, काली, कलिसिद्धिसुसूक्ष्मदा।।७९-८२।।
कालिदासवाक्यगता कालिदाससुसिद्धिदा
।
कलिशिक्षा कालशिक्षा
कन्दशिक्षापरायणा ॥ ८३ ॥
कमनीयभावरता कमनीयसुभक्तिदा ।
करकाजनरूपा च कक्षावादकरा करा ॥ ८४
॥
कञ्चुवर्णा काकवर्णा क्रोष्टुरूपा
कषामला ।
क्रोष्ट्रनादरता कीता कातरा
कातरप्रिया ॥ ८५ ॥
कातरस्था कातराज्ञा कातरानन्दकारिणी
।
काशमर्द्दतरूद्भूता
काशमर्द्दविभक्षिणी ॥ ८६ ॥
कालिदासवाक्यगता,
कालिदाससुसिद्धिदा, कलिशिक्षा, कालशिक्षा, कन्दशिक्षा- परायणा कमनीयभावरता, कमनीयसुभक्तिदा, करकाजनरूपा, कक्षावादकरा,
करा, कञ्चुवर्णा, काकवर्णा,
क्रोष्टरूपा, कषामला, क्रोष्टनादरता,
कीता, कातरा, कातरप्रिया,
कातरस्था कातराज्ञा, कातरानन्दकारिणी, काशमर्दतरूद्भूता, काशमर्दविभक्षिणी ।। ८३-८६ ।
कष्टहानिः कष्टदात्री
कष्टलोकविरक्तिदा ।
कायागता कायसिद्धिः
कायानन्दप्रकाशिनी ॥ ८७ ॥
कायगन्धहरा कुम्भा कायकुम्भा कठोरिणी
।
कठोरतरुसंस्था च कठोरलोकनाशिनी ॥ ८८
॥
कुमार्गस्थापिता कुप्रा
कार्पासतरुसम्भवा ।
कार्पासवृक्षसूत्रस्था कुवर्गस्था
करोत्तरा ॥ ८९ ॥
कर्णाटकर्णसम्भूता कार्णाटी
कर्णपूजिता ।
कर्णास्त्ररक्षिका कर्णा कर्णहा
कर्णकुण्डला ॥ ९० ॥
कष्टहानि,
कष्टदात्री, कष्टलोकविरक्तिदा, कायागता, कायसिद्धि कायानन्दप्रकाशिनी, कायगन्धहरा, कुम्भा, कायकुम्भा,
कठोरिणी, कठोरतरुसंस्था, कठोरलोकनाशिनी, कुमार्ग स्थापिता, कुप्रा, कार्पासतरुसंभवा, कार्पासवृक्षसूत्रस्था,
कुवर्गस्था, करोत्तरा, कर्णाटकर्णसंभूता,
कार्णाटी, कर्णपूजिता, कर्णास्त्ररक्षिका,
कर्णा, कर्णहा, कर्णकुण्डला
॥। ८७-९० ॥
कुन्तलादेशनमिता कुटुम्बा
कुम्भकारिका ।
कर्णासरासना कृष्टा
कृष्णहस्ताम्बुजार्जिता ॥ ९१ ॥
कृष्णाङ्गी कृष्णदेहस्था कुदेशस्था
कुमङ्गला ।
क्रूरकर्मस्थिता कोरा किरात
कुलकामिनी ॥ ९२ ॥
कालवारिप्रिया कामा
काव्यवाक्यप्रिया क्रुधा ।
कञ्जलता कौमुदी च कुज्योत्स्ना
कलनप्रिया ॥ ९३ ॥
कलना सर्वभूतानां कपित्थवनवासिनी ।
कटुनिम्बस्थिता काख्या कवर्गाख्या
कवर्गिका ॥ ९४ ॥
कुन्तलादेशनमिता,
कुटुम्बा, कुम्भकारिका, कर्णासरासना,
कृष्टा, कृष्णहस्ताम्बुजार्जिता, कृष्णाङ्गी, कृष्णदेहस्था, कुदेशस्था,
कुमङ्गला, क्रूरकर्मस्थिता, कोरा किरातकुलकामिनी, कालवारिप्रिया, कामा, काव्यवाक्यप्रिया, क्रुधा,
कञ्जलता, कौमुदा, कुज्योत्सना,
कलनप्रिया, सर्वभूतानां कलना, कपित्थवनवासिनी, कटुनिम्बस्थिता, काख्या, कवर्गाख्या, कवर्गिका
।। ९१- ९४ ॥
किरातच्छेदिनी कार्या
कार्याकार्यविवर्जिता ।
कात्यायनादिकल्पस्था
कात्यायनसुखोदया ॥ ९५ ॥
कुक्षेत्रस्था कुलाविघ्ना
करणादिप्रवेशिनी ।
काङ्काली किङ्कला काला किलिता
सर्वकामिनी ॥ ९६ ॥
कीलितापेक्षिता कूटा
कूटकुङ्कुमचर्चिता ।
कुङ्कुमागन्धनिलया कुटुम्बभवनस्थिता
॥ ९७ ॥
कुकृपा करणानन्दा कवितारसमोहिनी ।
काव्यशास्त्रानन्दरता काव्यपूज्या
कवीश्वरी ॥ ९८ ॥
किरातच्छेदिनीकार्या,
कार्याकार्यविवर्जिता, कात्यायनादिकल्पस्था,
कात्यायन- सुखोदया, कुक्षेत्रस्था, कुलविघ्ना, करणादिप्रवेशिनी, काङ्काली,
किङ्कला, काला, किलिता,
सर्वकामिनी, कीलितापेक्षिता, कूटा, कूटकुंकुंमचर्चिता, कुंकुमागन्धनिलया,
कुटुम्बभवन- स्थिता, कुकृपा, करणानन्दा, कवितारसमोहिनी, काव्यशास्वानन्दरता,
काव्यपूज्या, कवीश्वरी ।। ९५-९८ ।।
कटकादिहस्तिरथहयदुन्दुभिशब्दिनी ।
कितवा क्रूरधूर्तस्था
केकाशब्दनिवासिनी ॥ ९९ ॥
कें केवलाम्बिता केता
केतकीपुष्पमोहिनी ।
कैं कैवल्यगुणोद्वास्या
कैवल्यधनदायिनी ॥ १०० ॥
करी धनीन्द्रजननी
काक्षताक्षकलङ्किनी ।
कुडुवान्ता कान्तिशान्ताकांक्षा
पारमहंस्यगा ॥ १०१ ॥
कर्त्री चित्ता कान्तवित्ता कृषणा
कृषिभोजिनी ।
कुङ्कुमाशक्तहृदया केयूरहारमालिनी ॥
१०२ ॥
कटकादिहस्तिरथहयदुन्दुभिशब्दिनी,
कितवा क्रूरधूर्तस्था, केकाशब्दनिवासिनी,
के केवलाम्बिता, केता केतकीपुष्पमोहिनी के
कैवल्यगुणोद्वास्या, कैवल्यधनदायिनी करी, धनीन्द्रजननी, काक्षताक्षकलङ्किनी, कुडुवान्ता, कान्तिशान्ता, कांक्षापारमहंस्यगा,
कर्त्री, चित्ता, कान्तवित्ता,
कृषणा, कृषिभोजिनी, कुकुमाशक्तहृदया,
केयूरहारमालिनी ।। ९९-१०२ ।।
कीश्वरी केशवा कुम्भा कैशोरजनपूजिता
।
कलिकामध्यनिरता कोकिलस्वरगामिनी ॥
१०३ ॥
कुरदेहहरा कुम्बा कुडुम्बा
कुरभेदिनी ।
कुण्डलीश्वरसंवादा कुण्डलीश्वरमध्यगा
॥ १०४ ॥
कालसूक्ष्मा कालज्ञा कालहारकरी कहा
।
कहलस्था कलहस्था कलहा कलहाङ्करी ॥
१०५ ॥
कुरङ्गी श्रीकुरङ्गस्था कोरङ्गी
कुण्डलापहा ।
कुकलङ्की कृष्णबुद्धिः कृष्णा
ध्याननिवासिनी ॥ १०६ ॥
कीश्वरी,
केशवा, कुम्भा, कैशोरजनपूजिता,
कलिकामध्यनिरता, कोकिलस्वरगामिनी, कुरदेहहरा, कुम्बा, कुडुम्बा,
कुरभेदिनी, कुण्डलीश्वर संवादा, कुण्डलीश्वरमध्यगा, काल- सूक्ष्मा, कालयज्ञा, कालहारकरी, कहा,
कहलस्था, कलहस्था, कलहा,
कलहाङ्करी, कुरङ्गी, श्रीकुरङ्गस्था,
कोरङ्गी, कुण्डलापा, कुकलङ्की,
कृष्णबुद्धि, कृष्णाध्याननिवासिनी ॥ १०३-१०६ ॥
कुतवा काष्ठवलता कृतार्थकरणी कुसी ।
कलनकस्था कस्वरस्था कलिका दोषभङ्गजा
॥ १०७ ॥
कुसुमाकारकमला कुसुमस्रग्विभूषणा ।
किञ्जल्का कैतवार्कशा कमनीयजलोदया ॥
१०८ ॥
ककारकूटसर्वाङ्गी ककाराम्बरमालिनी ।
कालभेदकरा काटा कर्पवासा ककुत्स्थला
॥ १०९ ॥
कुवासा कबरी कर्वा कूसवी कुरुपालनी
।
कुरुपृष्ठा कुरुश्रेष्ठा कुरूणां
ज्ञाननाशिनी ॥ ११० ॥
कुतवा,
काष्ठवलता, कृतार्थकरणी, कुसी, कलनकस्था, कस्वरस्था,
कलिका दोषभङ्गजा, कुसुमाकारकमला, कुसुमस्रग्विभूषणा, किञ्जल्का, कैतवार्कशा, कमनीयजलोदया, ककारकूटसर्वांगी,
ककाराम्बरमालिनी, कालभेदकरा, काटा, कर्पवासा, ककुत्स्थला,
कुवासा, कबरी, कर्ता,
कूसवी, कुरुपालनी, कुरुपृष्ठा,
कुरुश्रेष्ठा, कुरूणां ज्ञाननाशिनी ॥ १०७-११०
॥
कुतूहलरता कान्ता कुव्याप्ता
कष्टबन्धना ।
कषायणतरुस्था च कषायणरसोद्भवा ॥ १११
॥
कतिविद्या कुष्ठदात्री
कुष्ठिशोकविसर्जनी ।
काष्ठासनगता कार्याश्रया का
श्रयकौलिका ॥ ११२ ॥
कालिका कालिसन्त्रस्ता
कौलिकध्यानवासिनी ।
क्लृप्तस्था क्लृप्तजननी
क्लृप्तच्छन्ना कलिध्वजा ॥ ११३ ॥
केशवा केशवानन्दा केश्यादिदानवापहा
।
केशवाङ्गजकन्या च केशवाङ्गजमोहिनी ॥
११४ ॥
किशोरार्चनयोग्या च किशोरदेवदेवता ।
कान्तीकरणी कुत्या कपटा प्रियघातिनी
॥ ११५ ॥
कुतूहलरता,
कान्ता, कुव्याप्ता, कष्टबन्धना,
कषायणतरुस्था, कषायणरसोद्भवा, कतिविद्या, कुष्ठदात्री, कुष्ठिशोकविसर्जिनी,
काष्ठासनगता, कार्याश्रया, काश्रया, कौलिका, कालिका,
कालिसन्त्रस्ता, कौलिकध्यानवासिनी, क्लृप्तस्था, क्लृप्तजननी, क्लृप्तछन्ना,
कलिध्वजा, केशवा, केशवानन्दा,
केश्यादिदानवापहा, केशवाङ्गजकन्या, केशवाङ्गजमोहिनी, किशोरार्चनयोग्या, किशोरदेवदेवता, कान्तश्रीकरणी, कुत्या, कपटाप्रियघातिनी ॥ १११- ११५ ॥
कुकामजनिता कौञ्चा कौञ्चस्था कौञ्चवासिनी
।
कूपस्था कूपबुद्धिस्था कूपमाला
मनोरमा ॥ ११६ ॥
कूपपुष्पाश्रया कान्तिः
क्रमदाक्रमदाक्रमा ।
कुविक्रमा कुक्रमस्था
कुण्डलीकुण्डदेवता ॥ ११७ ॥
कौण्डिल्यनगरोद्भूता
कौण्डिल्यगोत्रपूजिता ।
कपिराजस्थिता कापी कपिबुद्धिबलोदया
॥ ११८ ॥
कपिध्यानपरा मुख्या कुव्यवस्था
कुसाक्षिदा ।
कुमध्यस्था कुकल्पा च
कुलपङ्क्तिप्रकाशिनी ॥ ११९ ॥
कुलभ्रमरहस्था कुलभ्रमरनादिनी ।
कुलासङ्गा कुलाक्षी च कुलमत्ता
कुलानिला ॥१२०॥
कुकामजनिता,
कौञ्चा, कौञ्चस्था, कौञ्चवासिनी,
कूपस्था, कूपबुद्धिस्था, कूपमाला, मनोरमा, कूपपुष्पाश्रया,
कान्ति, क्रमदा, अक्रमदा,
क्रमा, कुविक्रमा, कुक्रमस्था,
कुण्डली, कुण्डदेवता, कौण्डिल्यनगरोद्भूता,
कौण्डिल्यगोत्रपूजिता, कपिराजस्थिता, कापी, कपिबुद्धिबलोदया, कपिध्यानपरा
मुख्या, कुव्यवस्था, कुसाक्षिदा,
कुमध्यस्था, कुकल्पा, कुलपंक्तिप्रकाशिनी,
कुलभ्रमरदेहस्था, कुलभ्रमरनादिनी, कुलासङ्गा, कुलाक्षी, कुलमत्ता,
कुलानिला ।। ११६- १२० ॥
कलिचिन्हा कालचिन्हा कण्ठचिन्हा कवीन्द्रजा
।
करीन्द्रा कमलेशश्री:
कोटिकन्दर्पदर्पहा ॥ १२१ ॥
कोटितेजोमयी कोटया कोटीरपद्ममालिनी
।
कोटीरमोहिनी कोटि कोटिकोटिविषूद्भवा
॥ १२२ ॥
कोटिसूर्यसमानास्या कोटिकालानलोपमा
।
कोटीरहारललिता कोटिपर्वतधारिणी ॥
१२३ ॥
कुचयुग्मधरा देवी कुचकामप्रकाशिनी ।
कुचानन्दा कुचाच्छन्ना
कुचकाठिन्यकारिणी ॥ १२४ ॥
कुचयुग्ममोहनस्था कुचमायातुरा कुचा
।
कुचयौवनसम्मोह कुचमर्द्दनसौख्यदा ॥
१२५ ॥
कलिचिन्हा,
कालचिन्हा, कण्ठचिन्हा, कवीन्द्रजा,
करीन्द्रा, कमलेशश्री: कोटिकन्दर्पदर्पहा,
कोटितेजोमयी, कोट्या, कोटीरपद्ममालिनी,
कोटीरमोहिनी, कोटि कोटि- कोटिविधूद्भवा,
कोटिसूर्यसमानास्या, कोटिकालानलोपमा, कोटीरहारललिता, कोटि- पर्वतधारिणी, कुचयुग्मधरादेवी, कुचकामप्रकाशिनी, कुचानन्दा, कुचाच्छन्ना, कुचकाठिन्यकारिणी,
कुचयुग्ममोहनस्था, कुचमायातुरा, कुचा, कुचयौवनसम्मोहा, कुचमर्दनसौख्यदा
।। १२१-१२५ ।।
काचस्था काचदेहा च काचपूरनिवासिनी ।
काचग्रस्था काचवर्णा
कीचकप्राणनाशिनी ॥ १२६ ॥
कमला लोचनप्रेमा कोमलाक्षी
मनुप्रिया ।
कमलाक्षी कमलजा कमलास्या करालजा ॥
१२७ ॥
कमलाङ्घ्रिद्वया काम्या कराख्या
करमालिनी ।
करपद्मधरा कन्दा
कन्दबुद्धिप्रदायिनी ॥ १२८ ॥
काचस्था,
काचदेहा, काचपूरनिवासिनी, काचग्रस्था, काचवर्णा, कीचकप्राण-
नाशिनी, कमललोचनप्रेमा, कोमलाक्षी,
मनुप्रिया, कमलाक्षी, कमलजा,
कमलास्या, करालजा, कमलाङ्घिद्वया,
काम्या, कराख्या, करमालिनी,
करपद्मधरा, कन्दा, कन्दबुद्धि-
प्रदायिनी ।। १२६-१२८ ।।
कमलोद्भवपुत्री च कमला पुत्रकामिनी
।
किरन्ती किरणाच्छन्ना
किरणप्राणवासिनी ॥ १२९ ॥
काव्यप्रदा काव्यचित्ता काव्यसारप्रकाशिनी
।
कलाम्बा कल्पजननी कल्पभेदासनस्थिता
॥ १३० ॥
कालेच्छा कालसारस्था कालमारणघातिनी
।
किरणक्रमदीपस्था कर्मस्था
क्रमदीपिका ॥ १३१ ॥
काललक्ष्मीः कालचण्डा
कुलचण्डेश्वरप्रिया ।
काकिनीशक्तिदेहस्था कितवा
किन्तकारिणी ॥ १३२ ॥
करञ्चा कञ्चुका क्रौञ्चा काकचञ्चुपुटस्थिता
।
काकाख्या काकशब्दस्था
कालाग्निदहनार्थिका ॥ १३३ ॥
कुचक्षनिलया कुत्रा कुपुत्रा
क्रतुरक्षिका ।
कनकप्रतिभाकारा करबन्धाकृतिस्थिता ॥
१३४ ॥
कमलोद्भवपुत्री,
कमला, पुत्रकामिनी, किरन्ती,
किरणाच्छन्ना, किरणप्राणवासिनी, काव्यप्रदा, काव्यचित्ता, काव्यसारप्रकाशिनी,
कलाम्बा, कल्पजननी, कल्पभेदासनस्थिता
कालेच्छा, कालसारस्था, कालमारणघातिनी,
किरणक्रमदीपस्था, कर्मस्था, क्रमदीपिका, काललक्ष्मी, कालचण्डा,
कुलचण्डेश्वरप्रिया, काकिनीशक्तिदेहस्था,
कितवा, किन्तकारिणी, करञ्चा,
कञ्चुका, क्रौञ्चा, काकचञ्चुपुटस्थिता,
काकाख्या, काकशब्दस्था, कालाग्नि-
दहनार्थिका कुचक्षनिलया, कुत्रा, कुपुत्रा,
क्रतुरक्षिका, कनकप्रतिभाकारा, करबन्धा- कृतिस्थिता ।। १२९-१३४।।
कृतिरूपा कृतिप्राणा कृतिक्रोध
निवारिणी ।
कुक्षिरक्षाकरा कुक्षा
कुक्षिब्रह्माण्डधारिणी ॥ १३५ ॥
कुक्षिदेवस्थिता कुक्षिः
क्रियादक्षा क्रियातुरा ।
क्रियानिष्ठा क्रियानन्दा
क्रतुकर्मा क्रियाप्रिया ॥ १३६ ॥
कुशलासवसंशक्ता कुशारिप्राणवल्लभा ।
कुशारिवृक्षमदिरा काशीराजवशोद्यमा ॥
१३७ ॥
काशीराजगृहस्था च
कर्णभ्रातृगृहस्थिता ।
कर्णाभरणभूषाढ्या कण्ठभूषा च कण्ठिका
॥ १३८ ॥
कण्ठस्थानगता कण्ठा
कण्ठपद्यनिवासिनी ।
कण्ठप्रकाशकरिणी कण्ठमाणिक्यमालिनी
॥ १३९ ॥
कण्ठपद्मसिद्धिकरी कण्ठाकाशनिवासिनी
।
कण्ठपद्मसाकिनीस्था कण्ठषोडशपत्रिका
॥ १४० ॥
कृष्णाजिनधरा विद्या
कृष्णाजिनसुवाससी ।
कुतकस्था कुखेलस्था
कुण्डवालङ्कृताकृता ॥ १४१ ॥
कलगीता कालघजा कलभङ्गपरायणा ।
कालीचन्द्रा कला काव्या कुचस्था
कुचलप्रदा ॥ १४२ ॥
कुचौरघातिनी कच्छा कच्छादस्था
कजातना ।
कञ्जाछदमुखी का कञ्जतुण्डा कजीवली ॥
१४३ ॥
कामराभासुरवाद्यस्था
कियदुहुंकारनादिनी ।
कणादयज्ञसूत्रस्था
कीलालयज्ञसञ्ज्ञका ॥ १४४ ॥
कृतिरूपा,
कृतिप्राणा, कृति, क्रोधनिवारिणी,
कुक्षिरक्षाकरा, कुक्षा, कुक्षिब्रह्माण्डधारिणी, कुक्षिदेवस्थिता, कुक्षि, क्रियादक्षा, क्रियातुरा,
क्रियानिष्ठा, क्रियानन्दा, क्रतुकर्मा, क्रियाप्रिया, कुशलासवसंशक्ता,
कुशारिप्राणवल्लभा कुशारिवृक्षमदिरा, काशीराजवशोद्यमा,
काशीराज- गृहस्था, कर्णभ्रातृगृहस्थिता,
कर्णाभरणभूषाढ्या, कण्ठभूषा, कण्ठिका, कण्ठस्थानगता, कण्ठा,
कण्ठपद्मनिवासिनी, कण्ठप्रकाशकरिणी, कण्ठमाणिक्यमालिनी, कण्ठपद्मसिद्धिकरी, कण्ठाकाशनिवासिनी, कण्ठपद्मसाकिनीस्था, कण्ठषोडशपत्रिका कृष्णाजिनधरा, विद्या, कृष्णाजिनसुवाससी, कुतकस्था, कुखेलस्था,
कुण्डवालंकृता, कृता, कलगीता
कालघजा, कलभङ्गपरायणा, कालीचन्द्रा,
कला, काव्या, कुचस्था,
कुचलप्रदा, कुचौरघातिनी, कच्छा, कच्छादस्था, कजातना,
कञ्जाछदमुखी, कञ्जा कञ्जतुण्डा, कजीवली, कामराभासुरवाद्यस्था, कियदहुंकारनादिनी,
कणादयज्ञसूत्रस्था, कीलालयज्ञसंज्ञका ।।
१३५-१४४ ।।
कटुहासा कपाटस्था कटधूमनिवासिनी ।
कटिनादघोरतरा कुट्टला पाटलिप्रिया ॥
१४५ ॥
कामचाराब्जनेत्रा च
कामचोद्गारसंक्रमा ।
काष्ठपर्वतसंदाहा कुष्ठाकुष्ठ
निवारिणी ॥ १४६ ॥
कहोडमन्त्रसिद्धस्था काहला
डिण्डिमप्रिया ।
कुलडिण्डिमवाद्यस्था
कामडामरसिद्धिदा ॥ १४७ ॥
कुलामरवध्यस्था कुलकेकानिनादिनी ।
कोजागरढोलनादा कास्यवीररणस्थिता ॥
१४८ ॥
कटुहासा,
कपाटस्था, कटधूमनिवासिनी, कटिनादघोरतरा, कुट्टला, पाटलिप्रिया,
कामचाराब्जनेत्रा, कामचोद्गारसंक्रमा, काष्ठपर्वतसंदाहा कुष्ठा, कुष्ठनिवारिणी, कोडमन्त्र- सिद्धिस्था, काहला, डिण्डिमप्रिया, कुलडिण्डिमवाद्यस्था, कामडामरसिद्धिदा, कुलामरवध्यस्था, कुलकेकानिनादिनी, कोजागरढोलनादा, कास्यवीररणस्थिता ।। १४५- १४८ ।।
कालादिकरणच्छिद्रा करुणानिधिवत्सला
।
क्रतुश्रीदा कृतार्थश्रीः कालतारा
कुलोत्तरा ॥ १४९ ॥
कथापूज्या कथानन्दा कथना कथनप्रिया
।
कार्थचिन्ता कार्थविद्या
काममिथ्यापवादिनी ॥ १५० ॥
कदम्बपुष्पसङ्काशा कदम्बपुष्पमालिनी
।
कादम्बरी पानतुष्टा कायदम्भा
कदोद्यमा ॥ १५१ ॥
कुकुलेपत्रमध्यस्था कुलाधारा
धरप्रिया ।
कुलदेवशरीरार्धा कुलधामा कलाधरा ॥
१५२ ॥
कामरागा भूषणाढ्या कामिनीरगुणप्रिया
।
कुलीना नागहस्ता च कुलीननागवाहिनी ॥
१५३ ॥
कामपूरस्थिता कोपा कपाली बकुलोद्भवा
।
कारागारजनापाल्या कारागारप्रपालिनी
॥ १५४ ॥
क्रियाशक्ति: कालपङ्क्ति:
कार्णपङ्क्तिः कफोदया ।
कामफुल्लारविन्दस्था कामरूपफलाफला ॥
१५५ ॥
कालादिकरणच्छिद्रा,
करुणानिधिवत्सला क्रतुश्रीदा, कृतार्थश्री,
कालतारा, कुलोत्तरा, कथापूज्या
कथानन्दा कथना, कथनप्रिया, कार्यचिन्ता,
कार्यविद्या, काममिथ्यापवादिनी, कदम्बपुष्पसङ्काशा, कदम्बपुष्पमालिनी, कादम्बरी, पानतुष्टा, कायदम्भा,
कदोद्यमा, कुकुलेपत्रमध्यस्था, कुलाधारा, धरप्रिया, कुलदेवशरीरार्धा,
कुलधामा, कलाधरा, कामरागा.
भूषणाढ्या, कामिनीरगुणप्रिया, कुलीना,
नागहस्ता, कुलीननागवाहिनी, कामपूरस्थिता, कोपा, कपाली,
बकुलोद्भवा, कारागारजनापाल्या, कारागारप्रपालिनी, क्रियाशक्तिः, कालपंक्ति, कार्णपंक्ति, कफोदया,
कामफुल्लारविन्दस्था, कामरूपफलाफला ।। १४९-१५५
॥
कायफला कायफेणा कान्ता नाडीफलीश्वरा
।
कमफेरुगता गौरी कायवाणी कुवीरगा ॥
१५६ ॥
कबरी मणिबन्धस्था कावेरीतीर्थसङ्गमा
।
कामभीतिहरा कान्ता कामवाकुभ्रमातुरा
॥ १५७ ॥
कविभावहरा भामा कमनीयभयापहा ।
कामगर्भदेवमाता कामकल्पलतामरा ॥ १५८
॥
कमठप्रियमांसादा कमठा मर्कटप्रिया ।
किमाकारा किमाधारा कुम्भकारमनस्थिता
॥ १५९ ॥
कायफला,
कायफेणा, कान्ता, नाडीफलीश्वरा,
कमफेरूगता, गौरी, कायवाणी,
कुवीरगा, कबरीमणिबन्धस्था, कावेरीतीर्थसङ्गमा कामभीतिहराकान्ता, कामवाकुभ्रमातुरा,
कविभावहरा, भामा, कमनीयभयापहा,
कामगर्भदेवमाता, कामकल्पलतामरा, कमठप्रियमांसादा कमठा मर्कटप्रिया, किमाकारा,
किमाधारा कुम्भकारमनस्थिता ॥१५६- १५९ ॥
काम्ययज्ञस्थिता चण्डा
काम्ययज्ञोपवीतिका ।
कामयागसिद्धिकरी काममैथुनयामिनी ॥ १६०
॥
कामाख्या यमलाशस्था कालयामा
कुयोगिनी ।
कुरुयागहतायोग्या कुरुमांसविभक्षिणी
॥ १६१ ॥
कुरुरक्तप्रियाकारी किङ्करप्रियकारिणी
।
कर्त्रीश्वरी कारणात्मा कविभक्षा
कविप्रिया ॥ १६२ ॥
कविशत्रुप्रष्ठलग्ना
कैलासोपवनस्थिता ।
कलित्रिधा त्रिसिद्धिस्था कलित्रिदिनसिद्धिदा
॥ १६३ ॥
काम्ययज्ञस्थिता,
चण्डा, कामयज्ञोपवीतिका, कामयागसिद्धिकरी, काममैथुनयामिनी, कामाख्या, यमलाशस्था, कालयामा,
कुयोगिनी, कुरुयागहतायोग्या, कुरुमांसविभक्षिणी, कुरु- रक्तप्रियाकारी
किङ्करप्रियकारिणी, कर्जीश्वरी, कारणात्मा,
कविभक्षा, कविप्रिया, कविशत्रु-
प्रष्ठलग्ना, कैलासोपवनस्थिता, कलित्रिधा,
त्रिसिद्धिस्था कलित्रिदिनसिद्धिदा ॥ १६०- १६३ ।।
कलङ्करहिता काली कलिकल्मषकामदा ।
कुलपुष्परङ्ग सूत्रमणिग्रन्थिसुशोभना
॥ १६४ ॥
कम्बोजवङ्गदेशस्था कुलवासुकिरक्षिका
।
कुलशास्त्रक्रिया शान्तिः कुलशान्तिः
कुलेश्वरी ॥ १६५ ॥
कुशलप्रतिभा काशी कुलषट्चक्रभेदिनी
।
कुलषट्पद्ममध्यस्था
कुलषट्पद्मदीपिनी ॥ १६६ ॥
कृष्णमार्जारकोलस्था
कृष्णमार्जारषष्ठिका ।
कुलमार्जारकुपिता कुलमार्जारषोडशी ॥
१६७ ॥
कालान्तकवलोत्पन्ना कपिलान्तकघातिनी
।
कलहासा कालहश्री कलहार्था कलामला ॥
१६८ ॥
कलङ्करहिता काली कलिकल्मषकामदा
कुलपुष्परङ्ग सूत्रमणिग्रन्थिसुशोभना, कम्बोजवङ्ग-
देशस्था, कुलवासुकिरक्षिका, कुलशास्त्रक्रिया,
शान्ति, कुलशान्ति, कुलेश्वरी,
कुशलप्रतिभा, काशी कुलषट्चक्रभेदिनी, कुलषट्पद्ममध्यस्था, कुलषट्पद्मदीपिनी, कृष्णमार्जार कोलस्था, कृष्णमार्जीरषष्ठिका, कुलमार्जीर कुपिता, कुलमार्जीरषोडशी, कालान्तकवलोत्पन्ना, कपिलान्तक घातिनी, कलहासा, कालस्त्री, कलहार्था,
कलामला ।। १६४-१६८ ।।
कक्षपपक्षरक्षा च
कुक्षेत्रपक्षसंक्षया ।
काक्षरक्षासाक्षिणी च
महामोक्षप्रतिष्ठिता ॥ १६९ ॥
अर्ककोटिशतच्छाया
आन्वीक्षिकिकरार्चिता ।
कावेरीतीरभूमिस्था
आग्नेयार्कास्त्रधारिणी ॥ १७० ॥
कक्षपपक्षरक्षा,
कुक्षेत्रपक्षसंक्षया, काक्षरक्षासाक्षिणी,
महामोक्षप्रतिष्ठिता, अर्ककोटि- शतच्छाया,
आन्वीक्षिकिकरार्चिता, कावेरीतीरभूमिस्था,
आग्नेयार्कास्वधारिणी ।। १६९-१७० ।।
श्रीकुण्डलिनी सहस्रनाम कवच स्तोत्रम्
इं किं श्रीं कामकमला पातु
कैलासरक्षिणी ।
मम श्री ई बीजरूपा पातु काली
शिरस्थलम् ॥ १७१ ॥
कवच-
ईं किं श्रीं कामकमला कैलासरक्षिणी (महालक्ष्मी) (श्री पार्वती ) मेरी रक्षा करें।
श्रीं ईं बीजरूपा काली हमारे शिरः स्थल की रक्षा करें ।। १७१ ।।
उरुस्थलाब्जं सकलं तमोल्का पातु
कालिका ।
ऊडुम्बन्यर्करमणी उष्ट्रोग्रा
कुलमातृका ॥ १७२ ॥
कृतापेक्षा कृतिमती कुङ्कारी
किंलिपिस्थिता ।
कुंदीर्घस्वरा क्लृप्ता च कें
कैलासकरार्चिका ॥ १७३ ॥
कैशोरी कैं करी कैं के बीजाख्या
नेत्रयुग्मकम् ।
तमोल्का,
कालिका मेरे हृदयस्थलरूप कमल की रक्षा करें। ऊडुम्बनी, अर्करमणी, उष्ट्रोग्रा, कुलमातृका,
कृतापेक्षा, कृतिमती, कुंकारी
किं, लिपिस्थिता, कुंदीर्घस्वरा,
क्लृप्ता, कें कैलास करार्चिका, कैंकरी कैं कें बीज वाली कैशोरी मेरे दोनों नेत्रों की रक्षा करें ॥। १७२
- १७४ ।।
कोमा मतङ्गयजिता कौशल्यादि कुमारिका
॥ १७४ ॥
पातु मे कर्णयुग्मन्तु क्रौं क्रौं
जीवकरालिनी ।
गण्डयुग्मं सदा पातु कुण्डली
अङ्कवासिनी ॥ १७५ ॥
कोमा, मतङ्गयजिता, कौशल्यादि, कुमारिका
और क्रौं क्रौं जीवकरालिनी मेरे दोनों कानों की रक्षा करें तथा अङ्कवासिनी
कुण्डलिनी मेरे दोनों गण्डस्थलों की रक्षा करें ॥ १७५ ॥
अर्ककोटिशताभासा अक्षराक्षरमालिनी ।
आशुतोषकरी हस्ता कुलदेवी निरञ्जना ॥
१७६ ॥
करोड़ों सूर्य के समान भासित होने
वाली,
अक्षराक्षरमालिनी, आशुतोषकरी, कुलदेवी निरञ्जना मेरे हाथों की रक्षा करें ।। १७६ ।।
पातु मे कुलपुष्पाढ्या पृष्ठदेशं
सुकृत्तमा ।
कुमारी कामनापूर्णा पार्श्वदेशं
सदावतु ॥ १७७ ॥
देवी कामाख्यका देवी पातु
प्रत्यङ्गिरा कटिम् ।
कटिस्थदेवता पातु लिङ्गमूलं सदा मम
॥ १७८ ॥
सुकृत्तमा और कुलपुष्पाढ्या मेरे
पृष्ठदेश की रक्षा करें । कामनापूर्ण करने वाली कुमारी मेरे पार्श्वदेश की सदैव
रक्षा करें। कामाख्यका देवी और प्रत्यङ्गिरा देवी कटिभाग की रक्षा करें तथा कटिस्थ
देवता मेरे लिङ्गमूल की सदा रक्षा करें ।। १७७-१७८ ।।
गुह्यदेशं काकिनी मे लिङ्गाधः
कुलसिंहिका ।
कुलनागेश्वरी पातु
नितम्बदेशमुत्तमम् ॥ १७९ ॥
कङ्कालमालिनी देवी मे पातु
चारुमूलकम् ।
जंघायुग्मं सदा पातु कीर्तिः
चक्रापहारिणी ॥ १८० ॥
काकिनी मेरे गुह्यदेश की तथा
कुलसिंहिका मेरे लिङ्ग के अधोभाग की रक्षा करें। कुलनागेश्वरी मेरे उत्तम
नितम्बदेश की रक्षा करें। कङ्काल मालिनी देवी मेरे चारुमूल की रक्षा करें ।
चक्रापहारिणी कीर्ति देवी मेरे दोनों जाँघो की रक्षा करें ।। १७९-१८० ।।
पादयुग्मं पाकसंस्था पाकशासनरक्षिका
।
कुलालचक्रभ्रमरा पातु
पादाङ्गुलीर्मम ॥ १८१ ॥
नखाग्राणि दशविधा तथा हस्तद्वयस्य च
।
विंशरूपा कालनाक्षा सर्वदा
परिरक्षतु ॥ १८२ ॥
पाकशासनरक्षिका और पाकसंस्था मेरे
दोनों पैरों की तथा कुलालचक्रभ्रमरा मेरे पादांगुली की रक्षा करें। दशविद्या मेरे
नखाग्रभागों की तथा विंशरूपा कालनाक्षा मेरे दोनों हाथों की सदैव रक्षा करें ।।
१८१-१८२ ।।
कुलच्छत्राधाररूपा कुलमण्डलगोपिता ।
कुलकुण्डलिनी माता कुलपण्डितमण्डिता
॥ १८३ ॥
काकाननी काकतुण्डी काकायुः
प्रखरार्कजा ।
काकज्वरा काकजित्वा काकाजिज्ञा
सनस्थिता ॥ १८४ ॥
कपिध्वजा कपिक्रोशा कपिबाला
हिकस्वरा ।
कालकाञ्ची विंशतिस्था सदा
विंशनखाग्रहम् ॥ १८५ ॥
कुलच्छत्रा,
आधाररूपा, कुलमण्डलगोपिता, कुलकुण्डलिनी माता, कुलपण्डित- मण्डिता, काकाननी, काकतुण्डी, काकायुः,
प्रखरार्कजा, काकज्वरा, काकजिह्वा,
काकजिज्ञा, आसनस्थिता, कपिध्वजा,
कपिक्रोशा, कपिबाला, अहिकस्वरा,
कालकाञ्ची तथा विशतिस्था, सर्वदा बीस नखग्रहों
की रक्षा करें ।। १८३-१८५ ।।
पातु देवी कालरूपा कलिकालफलालया ।
वाते वा पर्वते वापि शून्यागारे
चतुष्पथे ॥ १८६ ॥
कुलेन्द्रसमयाचारा कुलाचारजनप्रिया
।
कुलपर्वतसंस्था च कुलकैलासवासिनी ॥
१८७ ॥
महादावानले पातु कुमार्गे
कुत्सितग्रहे ।
राज्ञोऽप्रिये राजवश्ये
महाशत्रुविनाशने ॥ १८८ ॥
कलिकाल में फलों को देने वाली
कालरूपा देवी आँधी, पर्वत, निर्जन स्थान तथा चतुष्पथ में हमारी रक्षा करें। कुलेन्द्र समयाचारा,
कुलाचारजनप्रिया, कुलपर्वतसंस्था, कुलकैलासवासिनी, महादावानल में कुमार्ग में बुरे
ग्रहों की दशा में, राजा के अप्रिय में और राजा की परवशता
में तथा महाशत्रु के विनाश कार्य में मेरी रक्षा करें ।। १८६-१८८ ।।
कलिकालमहालक्ष्मी: क्रियालक्ष्मीः
कुलाम्बरा ।
कलीन्द्रकीलिता कीला
कीलालस्वर्गवासिनी ॥ १८९ ॥
दशदिक्षु सदा पातु इन्द्रादिदशलोकपा
।
नवच्छिन्ने सदा पातु
सूर्यादिकनवग्रहा ॥ १९० ॥
कलिकाल महालक्ष्मी क्रियालक्ष्मी,
कुलाम्बरा, कालीन्द्रकीलिता, कीला कीलालस्वर्ग वासिनी तथा इन्द्रादि दश लोकपाल दशों दिशाओं में हमारी
रक्षा करें। नवच्छिन्न में सूर्यादिक नव ग्रह सर्वदा रक्षा करें ।। १८९-१९० ।।
पातु मां कुलमांसाढ्या
कुलपद्मनिवासिनी ।
कुलद्रव्यप्रिया मध्या षोडशी भुवनेश्वरी
॥ १९१ ॥
विद्यावादे विवादे च मत्तकाले
महाभये ।
दुर्भिक्षादिभये चैव
व्याधिसङ्करपीडिते ॥ ९९२ ॥
कालीकुल्ला कपाली च कामाख्या
कामचारिणी ।
सदा मां कुलसंसर्गे पातु कौले
सुसङ्गता ॥ १९३ ॥
सर्वत्र सर्वदेशे च कुलरूपा सदावतु
।
कुलमांसाढ्या,
कुलपद्मनिवासिनी, कुलद्रव्य प्रिया, मध्या षोडशी भुवनेश्वरी मेरी रक्षा करें । विद्या के बाद (शास्त्रार्थ)
में विवाद में उन्मत्त से पाला पड़ने पर महामय उपस्थित होने पर दुर्भिक्षादि भय के
काल में तथा अनेक व्याधियों के साकर्य से पीडित होने पर कालीकुल्ला, कपाली, कामाख्या, कामचारिणी
मेरी रक्षा करें। कुल (कुण्डलिनी) के संसर्ग में कौल (शाक्तों) में सुसङ्गता मेरी
रक्षा करें । सर्वत्र सभी देशों में कुलरूपा हमारी रक्षा करें ॥। १९१-१९४ ।।
इत्येतत् कथितं नाथ मातुः
प्रसादहेतुना ॥ १९४ ॥
अष्टोत्तरशतं नाम सहस्रं
कुण्डलीप्रियम् ।
कुलकुण्डलिनीदेव्याः
सर्वमन्त्रसिद्धये ॥ १९५ ॥
हे नाथ ! मैने श्री माता की कृपा से
कुण्डली प्रिय ११०८ नामों को कहा है। कुलकुण्डलिनी के ये नाम सभी मन्त्रों की
सिद्धि देने के लिए है ।। १९४-१९५ ।।
सर्वदेवमनूनाञ्च चैतन्याय सुसिद्धये
।
अणिमाद्यष्टसिद्ध्यर्थं साधकानां
हिताय च ॥ १९६ ॥
सभी देवों के मन्त्रों को चैतन्य
करने के लिए, सम्यक् सिद्धि प्रदान करने के
लिए, अणिमादि अष्टसिद्धि के लिए तथा साधकों का हित करने के
लिए इन्हें हमने कहा है ॥ १९६ ॥
ब्राह्मणाय प्रदातव्यं
कुलद्रव्यपराय च ।
अकुलीनेऽब्राह्मणे च न देयः कुण्डलीस्तवः
।
प्रवृत्ते कुण्डलीचक्रे सर्वे वर्णा
द्विजातयः ॥ १९७ ॥
ये ११०८ नाम ब्राह्मण को अथवा
कुलद्रव्य निष्ठा रखने वालों को ही देना चाहिए। जो कुलमार्ग में निष्ठा न रखता हो
तथा ब्राह्मण योनि में जन्म लेने वाला न हो, उसे
यह कुण्डलीस्तव कदापि प्रदान नहीं करना चाहिए। कुण्डली चक्र के प्रवृत्त
होने पर सभी वर्ण द्विजाति हैं ॥ १९७ ॥
निवृत्ते भैरवीचक्रे सर्वे वर्णाः
पृथक्-पृथक् ।
कुलीनाय प्रदातव्यं साधकाय विशेषतः
॥ १९८ ॥
दानादेव हि सिद्धिः
स्यान्ममाज्ञाबलहेतुना ।
मम क्रियायां यस्तिष्ठेत्स मे
पुत्रो न संशयः ॥ १९९ ॥
भैरवी चक्र के निवृत्त हो जाने पर
सभी वर्ण अलग अलग हैं। यह कुण्डली स्तव विशेष कर कुलीन साधक को ही देना चाहिए।
मेरी आज्ञा के प्रताप से इस स्तोत्र के देने मात्र से भी सिद्धि हो जाती है। जो
मेरी अर्चना पूजा में निरन्तर लगा रहे वह मेरा पुत्र है,
इसमें संशय नहीं ।। १९८-१९९ ।।
आयाति मम पदं जीवन्मुक्तः स वासवः ।
आसवेन समांसेन कुलवह्नौ महानिशि ॥
२०० ॥
नाम प्रत्येकमुच्चार्य जुहुयात्
कायसिद्धये ।
पञ्चाचाररतो भूत्त्वा ऊर्ध्वरेता
भवेद्यतिः ॥ २०१ ॥
मेरी क्रिया में संलग्न साधक मेरा
पद प्राप्त करता है। वह जीवन्मुक्त है और समस्त वसुओं का पति है। मांसयुक्त आसव से
अर्द्धरात्रि में साधक कामनासिद्धि के लिए मेरे प्रत्येक नाम का उच्चारण कर आहुति
प्रदान करें और पञ्चाचार में सर्वदा निरत रहे तो वह ऊर्ध्वरेता सन्यासी हो जाता है
।। २००-२०१ ॥
संवत्सरान्मम स्थाने आयाति नात्र
संशयः ।
ऐहिके कायसिद्धिः स्यात् दैहिके
सर्वसिद्धिदः ॥ २०२ ॥
वह एक संवत्सर के भीतर मेरा स्थान
प्राप्त कर लेता है इसमें संशय नहीं। इस लोक में उसे कामसिद्धि हो जाती है। दैहिक
सिद्धि होने पर वह स्वयं सभी सिद्धियाँ प्रदान करता है ॥ २०२ ॥
वशी भूत्त्वा त्रिमार्गस्थाः स्वर्गभूतलवासिनः
।
अस्य भृत्याः प्रभवन्ति
इन्द्रादिलोकपालकाः ॥ २०३ ॥
स एव योगी परमो यस्यार्थेऽयं
सुनिश्चलः ।
स एव खेचरो भक्तो नारदादिशुकोपमः ॥
२०४ ॥
स्वर्ग एवं भूतल में रहने वाले
तीनों वर्ण उसके वशवर्ती होकर भृत्य बन जाते हैं और इसी के प्रभाव से इन्द्र आदि लोकपालों
का भी जन्म होता है। जो इस स्तव के अर्थ में सुनिश्चत है,
वही सर्वोत्कृष्ट योगी है। वही आकाशगामी मेरा भक्त है तथा नारदादि
शुकदेव के समान मेरा भक्त है ।। २०३-२०४ ॥
यो लोकः प्रजपत्येवं स शिवो न च
मानुषः ।
स समाधिगतो नित्यो ध्यानस्थो
योगिवल्लभः ॥ २०५ ॥
जो इस अष्टोत्तरसहस्र नाम वाले स्तव
का पाठ करता है वह मनुष्य नहीं साक्षात् शिव है। वही समाधि में लीन रहने वाला
ध्यान परायण योगिवल्लभ है ।। २०५ ।।
चतुर्व्यूहगतो देवः सहसा नात्र
संशयः ।
यः प्रधारयते भक्त्या कण्ठे वा
मस्तके भुजे ॥ २०६ ॥
स भवेत् कालिकापुत्रो विद्यानाथः
स्वयंभुवि ।
धनेशः पुत्रवान् योगी यतीशः सर्वगो
भवेत् ॥ २०७ ॥
वामा वामकरे धृत्त्वा
सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ॥ २०८ ॥
वह चतुर्व्यूह में सहसा पहुँचने
वाला देवता है इसमें संशय नहीं है। जो साधक इस सहस्रनामस्तव को भक्ति पूर्वक गले
में,
मस्तक में या भुजा में धारण करता है वह कालिका का पुत्र बन
जाता है । स्वयं विद्या का अधिपति, धनाधिपति, पुत्रावान् योगी यतीश तथा सर्वज्ञ बन जाता है । स्त्री अपने बायें हाथ में
धारण करने से सभी सिद्धियों की ईश्वरी बन जाती है ।। २०६- २०८ ॥
यदि पठति मनुष्यो मानुषी वा महत्या
सकलधनजनेशी पुत्रिणी जीववत्सा ।
कुलपतिरिह लोके स्वर्गमोक्षैकहेतुः
स भवति भवनाथो योगिनीवल्लभेशः ॥ २०९
॥
यदि महामहिमेश्वरी भगवती के इस
स्तोत्र का मनुष्य पाठ करे अथवा मानुषी स्त्री पाठ करे तो वह सब प्रकार से धनजन की
ईश्वरी,
पुत्रिणी तथा जीवितपुत्र की माता बनी रहती है,
मनुष्य इस लोक में अपने कुल का प्रधान, स्वर्ग के मुक्ति का
अधिकारी, योगिनियों का प्रिय तथा संसार का ईश्वर बन
जाता है ।। २०९ ॥
पठति य इह नित्यं भक्तिभावेन मर्त्यो
हरणमपि करोति प्राणविप्राणयोगः ।
स्तवनपठनपुण्यं कोटिजन्माघनाशं
कथितुमपि न शक्तोऽहं महामांसभक्षा ॥
२१० ॥
जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस लोक में
अष्टोत्तरसहस्र नाम स्तव का पाठ करता है, अथवा
प्राणवायु एवं अपान वायु से युक्त रहकर इस स्तोत्र को पढ़ने का पुण्य करता है,
उसके करोड़ों जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं तो महामांस (
मनुष्य का मांस) भक्षण करने वाली हूँ, फिर किस प्रकार इस
स्तोत्र के पाठ का पुण्य कह सकती हूँ ।। २१० ॥
॥ इति श्रीरुद्रयामले उत्तरतन्त्रे
महातन्त्रोद्दीपने सिद्धमन्त्रप्रकरणे षट्चक्रप्रकाशे भैरवीभैरवसंवादे
महाकुलकुण्डलिनी अष्टोत्तरसहस्रनामस्तवकवचं नाम षट्त्रिंशत्तमः पटलः ॥ ३६ ॥
॥ श्रीरुद्रयामल के उत्तरतन्त्र के
महातन्त्रोद्दीपन में सिद्धमन्त्र के प्रकरण में षट्चक्रप्रकाश में भैरवीभैरव
संवाद में महाकुण्डलिनी अष्टोत्तरसहस्र-नामस्तव तथा कवच नामक छत्तीसवें पटल की डा०
सुधाकर मालवीय कृत हिन्दी व्याख्या पूर्ण हुई ॥ ३६ ॥
आगे जारी............रूद्रयामल तन्त्र पटल 37
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