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श्यामा स्तोत्र

श्यामा स्तोत्र

श्यामा स्तोत्र माँ श्यामाकाली की प्रीति करानेवाला और सभी कामनाओं को सिद्ध करानेवाला है।

श्यामा स्तोत्र

श्यामा स्तोत्रम्

दो ही रंग प्रमुख है श्वेत और श्याम। श्वेत या सफ़ेद जो सभी में समाहित हो जाता है और जो सभी को अपने में समाहित कर ले वह श्याम या काला रंग है। माँ श्यामा काली के एक-एक नाखूनों में करोड़ों-करोड़ ब्रह्माण्ड निवास करते हैं। जब भी माँ के मन में सृष्टि निर्माण का सकल्प उठता है तब इसी श्यामवर्ण से पहले देवों का सृजन होता है।

ईश्वर जब श्वेतवर्ण (रंग) धारण कर लेते हैं तो सदाशिव कहलाते हैं, जिनके लिए कहा जाता है कि-

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।

सदा वसंतं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ।।

"कपूर के समान गौर या श्वेत वर्ण वाले, जो करुणा की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं, जो समस्त सृष्टि का आधार है और जो सर्पों को हार के रूप में धारण कर रखा है, वह भगवान् शिव माता भवानी सहित मेरे हृदय में निवास करें मैं उन्हें नमस्कार करता हूँ।"

सृष्टि के कल्याण के लिए जब कभी किसी भी अवतार में श्रीहरि भगवान् विष्णु इस धरा-धाम में पदार्पण करते हैं तो मेरी माता श्यामा काली के इसी श्याम वर्ण या काले रंग का आश्रय ग्रहण करते हुए श्याम रंग को धारण करते हैं, जिनके लिए कहा जाता है कि-

श्रीरामजी

नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम ।

पाणौ महासायकचारूचापं, नमामि रामं रघुवंशनाथम ॥

"नीले कमल के समान श्याम, सुन्दर, सांवले  और कोमल अंग वाले, जिनके बाएं भाग में सीताजी विराजमान हैं और जिनके हाथों में सुंदर धनुष और बाण हैं, उन रघुवंश के स्वामी श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ।"

नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम ।

लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥

"भगवान के नीले कमल, नीलमणि और नीले (जलयुक्त) मेघ के समान (कोमल, प्रकाशमय और सरस) श्यामवर्ण शरीर की शोभा देखकर करोड़ों कामदेव भी लजा जाते हैं।"

श्रीकृष्ण

नीलोत्पलदलश्याम पद्मगर्भारुणेक्षण ।

पीतांबरपरीधान लसत्कौस्तुभभूषण ॥

"हे नीलोत्पल (नीले कमल) के समान श्याम वर्ण वाले, कमल के गर्भ के समान लालिमा लिए हुए नेत्रों वाले, पीतांबर (पीला वस्त्र) पहने हुए, और कौस्तुभ मणि से सुशोभित।"

नीलवर्णं कृष्णं नवघनश्यामं, राधावल्लभं, वृन्दावनधामं ।

कंसारि मुरारि मधुसूदनं, गोपीजनवल्लभं नमामि त्वां ॥

"नीले रंग के कृष्ण, नए बादलों के समान श्याम (गहरा नीला), राधा के प्रिय, वृन्दावन के धाम, कंस और मुर दैत्य के शत्रु, मधु दैत्य का वध करने वाले, गोपियों के प्रिय भगवान श्रीकृष्ण आपको नमस्कार है।"

श्यामलं भज गोविन्दं, वृन्दावन विहारिणं ।

मुकुन्दं परमानन्दं, कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥

"मैं श्याम वर्ण वाले गोविन्द को भजता हूँ, जो वृन्दावन में विहार करते हैं, जो मुकुंद (मोक्षदाता) और परमानंद (परम आनंद) हैं, मैं उस जगद्गुरु कृष्ण को प्रणाम करता हूँ।"

भगवान विष्णु

नीलाम्बुजश्यामायलातमालनीलम्, लोकेन्द्रनीलद्युति कोमलाङ्गम् ।

पूर्णेन्द्रुकोटिप्रतिमप्रभासम्, नमामि विष्णुं भुवनैकनाथम् ॥

"जिनका रंग नीले कमल और तमाल वृक्ष के समान गहरा नीला है, जो लोकेन्द्रनील (कीमती नीलम) के समान कांतिमान और कोमल अंगों वाले हैं और जिनका प्रकाश करोड़ों पूर्ण चंद्रमाओं के समान है, जो इस ब्रह्मांड के एकमात्र स्वामी हैं, मैं उस भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूं।"

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

वन्दे विष्णुं भवभ्यहरं सर्वलोकैकनाथम्  ॥

"जो शान्ताकार (शांत आकार के), सर्प पर शयन करने वाले, नाभि में कमल धारण करने वाले, देवताओं के स्वामी, विश्व के आधार, आकाश(श्याम) के समान, मेघ (श्यामवर्ण) के रंग वाले, सुंदर अंगों वाले, लक्ष्मी के पति, कमल नयन वाले, योगियों द्वारा ध्यान से प्राप्त होने वाले, सांसारिक भय को दूर करने वाले और सभी लोकों के स्वामी भगवान विष्णु को मैं नमस्कार करता हूं।"

श्यामा स्तोत्रं

इस श्याम रंग की विशेषताओं को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता है। 

यह "श्याम" से ही शब्द "श्यामा" बना है, जिसका अर्थ "काली", "गहरी" या "श्याम वर्ण" होता है, श्यामा का एक और अर्थ "रात्रि" या "अंधेरा" भी है, जिसका अर्थ काला या गहरा रंग है। जो सुंदरता और गहनता का प्रतीक है।

माँ श्यामा जब लीला स्वरूप धारण करती हैं तब यही प्रिया-प्रियतम कहलाती हैं । माता जब पुरुष रूप धारण करती हैं तब इसी श्याम रंग का आश्रय ग्रहण कर श्याम कहलाते हैं और मेरी माँ स्वयं गौर वर्ण होकर श्यामा कहलाती हैं । अर्थात् "श्यामा-श्याम" में कोई भेद नहीं है।

महाकाल संहिता के अनुसार-

स्त्रीणां त्रैलोक्यजातानां कामोन्मादैकहेतवे।

वंशीधरं कृष्णदेहं द्वापरे संचकार ह ।।

माता काली ही तीनों लोकों की प्रमदाओं के कामोन्माद के प्रशमन हेतु द्वापर में मुरलीधर श्रीकृष्ण के रुप में अवतरीत हुई हैं।

श्रीश्यामा स्तोत्रम्

श्यामवर्णां श्यामाकालीं, मुण्डमालाविभूषिताम् ।

त्रिनेत्रां करुणापूर्णां, स्मरामि भावनाशिनीम् ॥१॥

मैं श्यामवर्णा, मुण्डमालाधारी, करुणामयी त्रिनेत्रा श्यामाकाली का ध्यान करता हूँ, जो समस्त दुर्बुद्धियों और पापों का नाश करती हैं।

चन्द्रार्धकृतशेखरां, रक्तनेत्रां भयप्रदाम् ।

दक्षिणे वरदां देवीं, वामे शक्तिधारिणीम् ॥२॥

जिनके सिर पर अर्धचंद्र और आंखें लाल है, जो भयभीत करने वाली हैं। दाहिने हाथ में वरद मुद्रा (वरदान देने वाली) और बाएं हाथ में शक्ति (शस्त्र या ऊर्जा) धारण किए हुए हैं।

रक्ताम्बरां च रुधिरस्नातां, नीलोत्पलदलप्रभाम् ।

शवाधिशायिनीं देवीं, जगन्मातरमीश्वरम् ॥३॥

जो जगत् जननी ईश्वरी रक्त से सने लाल वस्त्र धारण करती हैं, नील कमल जैसी आभा वाली और शव के आसन पर स्थित हैं।

श्रीकृष्णशापविमुक्तां तां, सौम्यरूपां भवापहाम् ।

गुप्तविद्याविनोदिनीं, नतां मे शरणं गताम् ॥४॥

जो श्रीकृष्ण की लीला-शक्ति से सौम्य रूप में प्रकट होकर सारे भव-सागर से मुक्त करती हैं, जो गुप्त विद्याओं में रमण करती हैं मैं उन श्री श्यामाकाली की शरण लेता हूँ।

नमस्ते कालिके दुर्गे, श्यामे रुधिरपानिनि ।

प्रसीद करुणामूर्ते, तारिण्याऽघं निवारय ॥५॥

हे कालिका, दुर्गा, श्यामा, रक्तपान करने वाली, करुणामूर्ति, प्रसन्न हो, कृपा करो और मेरे सारे पापों का नाश करो, आपको नमस्कार है।

श्यामा स्तोत्र फलश्रुति:  

इदं श्यामा स्तवं पुण्यं, ध्यानयुक्तं मनोहरम् ।

पठन् भक्त्याऽह्निशः स्तुत्वा, लभते श्यामपदं ध्रुवम् ॥६॥

यह श्यामा स्तोत्र ध्यानयुक्त, पुण्यदायक और मोक्षप्रद है। जो इसे श्रद्धा से पढ़ता है, वह अंततः देवी श्यामाकाली के चरणों को प्राप्त अवश्य ही करता है।

इति श्रीश्यामा स्तोत्रं सम्पूर्णं ॥

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