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श्यामा काली स्तोत्र

श्यामा काली स्तोत्र

इस श्यामा काली स्तोत्र का नित्य पाठ करने से समस्त रोग-दोष और ऊपरीबाधा दूर हो जाता है, ग्रहपीड़ा, धनलाभ, पुत्र-पौत्र, सर्वसिद्धि और सर्वकामना प्राप्त होता है।

श्यामा काली स्तोत्र

श्री श्यामा काली महास्तोत्रम्

Shyama kali stotra

श्यामाकाली स्तोत्रम्

श्री श्यामाकाली स्तोत्रं

श्यामाकालीस्तोत्र

श्यामां त्रिनेत्रां खड्गिन्यां मुण्डमालाविभूषिताम् ।

दिगम्बरां विशालाक्षीं कालिकां प्रणमाम्यहम् ॥१॥

जो श्यामवर्णा, तीन नेत्रों वाली, खड्ग (तलवार) धारण करनेवाली, मुण्डमाला से विभूषित, दिगम्बरा, विशाल नेत्रों वाली माँ कालिका को मैं प्रणाम करता हूँ।

उग्रचारिणि काली त्वं भयानाशनकारिणी ।

मृत्युंजयप्रिया देवी त्राहि मां दुर्गतोत्तमे ॥२॥

हे उग्र रूप वाली, भय का नाश करनेवाली, मृत्युंजय भगवान् शिव की प्रिया देवी काली दुर्गति से मेरी रक्षा करो।

दंष्ट्राकरालवदना रक्तनेत्रा भयानका ।

सप्तलोकविनाशाय कल्पान्ते विकटाकृती ॥३॥

जिसके दांत भयानक और बड़े हैं, आँखें लाल और भयानक है जो सृष्टि के अंत में सभी लोकों को नष्ट करने के लिए विकटरूप में प्रकट होती हैं।

जय काली महामाये श्मशानवसने शिवे ।

भीषणरूपे कालारि रक्ष रक्ष जगदम्बिके ॥४॥

काली, महामाया, श्मशानवासिनी, शिवस्वरूपा, भयंकररूप वाली, काल की शत्रु हे माँ जगदम्बा मेरी रक्षा करो।

त्रिनेत्रधारिणीं देवीं रक्ताम्बरधरां शुभाम् ।

जटाजूटसमायुक्तां ह्यभयदां नमोऽस्तु ते ॥५॥

तीन नेत्रों वाली, लालवस्त्र धारण करनेवाली, शुभदायिनी, जटाजूटधारी और अभय देनेवाली आपको नमस्कार है।

खड्गचर्मधरां देवीं भुजाङ्गाभरणप्रियां ।

भक्तानां वरदां देवीं नतस्तेऽहं महेश्वरी ॥६॥

खड्ग और चर्म (ढाल) धारण करने वाली, सर्पों को आभूषण रूप में धारण करनेवाली और भक्तों को वर देने वाली देवी महेश्वरी मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

दिगम्बरा निराकाराऽप्याकाराव्यक्तनायकि ।

मायातीतपरेशानि नमस्ते चिद्रूपिणि ॥७॥

जो दिगम्बरा, निराकार होते हुए भी साकार रूपधारण करनेवाली वाली, माया से परे परमेश्वरी, चैतन्यस्वरूपा हैं, मैं उनको नमस्कार करता हूँ।

तव नामस्मरणेनैव दोषनाशो भवेद्ध्रुवम् ।

सर्वसिद्धिप्रदा देवी काली कांतारिणी सदा ॥८॥

हे देवी काली आपका नाम स्मरण करते ही सभी दोष नष्ट हो जाते हैं ,यह अटल सत्य है । आप सर्वसिद्धि देनेवाली, संकट से तारनेवाली हैं।

जप्ये त्वं मन्त्ररूपिणी, होमे त्वं हविरात्मिका।

पूजायां साक्षिनी देवी, ध्यानं ते मुक्तिदायिकम्॥९॥

आप जप में मन्त्रस्वरूपा, होम में आहुति, पूजन में साक्षात देवी और ध्यान द्वारा मुक्ति देनेवाली हैं।

काली करालवदना कालमुक्तिदायिनी।

शिवशक्ति समायुक्ता सर्वमंगलकारिणी॥१०॥

हे माँ काली आप करालमुखी, समय से भी परे मुक्ति देनेवाली, और संयुक्त शिव-शक्ति रूप अर्थात् अर्धनारीश्वर रूप में सर्वमंगलकारिणी हैं।

कपालमालिनी देवी चण्डमुण्डविनाशिनी ।

शक्तित्रयस्वरूपिण्यै नमो विद्ये सरस्वति ॥११॥

कपालमालिनी, चण्ड-मुण्ड का नाश करनेवाली, त्रिगुणात्मक शक्तिस्वरूपा, और ज्ञानस्वरूपा सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

भद्रकाली च महाकाली दुर्गा चण्डाशिनी तथा ।

कौशिकी च महाविद्या सर्वस्वरूपा नमोऽस्तु ते ॥१२॥

भद्रकाली, महाकाली, दुर्गा, चण्डिका, कौशिकी और महाविद्या आदि समस्त स्वरूपों की अधिष्ठात्री देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।

दुष्टनाशिनि देवि त्वं भक्तपालनकारिणी ।

वामपादस्थिताशेषं जगत्कम्पयसे सदा ॥१३॥

हे देवी आप दुष्टों का नाश करनेवाली और भक्तों की रक्षा करनेवाली हैं। अपने वाम चरण से समस्त विश्व को कंपित करती हैं।

त्रैलोक्यभयहारिण्यै कालरात्र्यै नमो नमः।

क्रीडास्मशानवासिन्यै साक्षिण्यै च महेश्वर्यै ॥१४॥

श्मशान में विचरण करनेवाली, साक्षात् महेश्वरी, त्रैलोक्य का भय हरनेवाली, कालरात्रि देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।

भूतप्रेतपिशाचानां त्रासकर्त्र्यै नमो नमः।

नानायुधधरा देवि जयन्ती विजयप्रदा ॥१५॥

भूत-प्रेत-पिशाचों को भयभीत करनेवाली, देवी को नमस्कार। अनेक आयुधों को धारण करनेवाली, जय और विजय देनेवाली देवी जयन्ती को मैं नमस्कार करता हूँ।

यस्याः स्मरणमात्रेण भक्तो मुक्तिं लभेत् ध्रुवम् ।

तां कालीं परमेशानीं नमामि सततं मुदा ॥१६॥

जिनके केवल स्मरणमात्र से ही भक्त अटल को मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं, उन परमेश्वरी काली को मैं सदा हर्षपूर्वक प्रणाम करता हूँ।

वेद-पुराण-प्रसिद्धायै, तन्त्रमार्गप्रकाशिन्यै ।

गुप्तविद्यारूपिण्यै च, नमः श्रीकालीरूपिण्यै ॥१७॥

जो देवी वेद-पुराणों में प्रसिद्ध, तांत्रिक मार्ग का प्रकाश करने वाली और जो स्वयं ही समस्त गुप्त विद्याओं का स्वरूप हैं, उन श्रीकालीरूपिणी देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।

चिन्मात्ररूपिणी त्वं हि निर्गुणा गुणमालिनी।

भक्तकल्पलता त्वं हि कामदायिनि कामिनी ॥१८॥

आप शुद्ध चैतन्यस्वरूपा, निर्गुण होकर भी गुणों से पूर्ण और भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करनेवाली कल्पलता हैं।

तव पादारविन्दं मे हृदि सदा विराजते ।

नमः कालविनाशिन्यै, चित्स्वरूपे नमो नमः॥१९॥

आपके चरणकमल सदा मेरे हृदय में विराजमान रहें, काल को नष्ट करनेवाली और चैतन्यस्वरूपा देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।

श्यामाकाली स्तोत्र फलश्रुति:  

मृत्युभीतहरं स्तोत्रं यः पठेन्नियतः शुचिः।

स कालदोषनिर्मुक्तो जीवन्मुक्तो भविष्यति ॥२०॥

जो कोई भी पवित्र होकर और नियमित रूप से मृत्यु के भय को दूर करने वाले इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह काल के दोष से मुक्त हो जाता है और जीवन में ही मुक्ति प्राप्त कर लेता है।

इति श्रीकालीस्तोत्रं सम्पूर्णं पुण्यवर्धनम् ।

यः पठेत् श्रद्धया नित्यं स याति परमां गतिम् ॥२१॥

पुण्यवर्धक श्रीकाली स्तोत्र को जो भी श्रद्धा से नित्य पढ़ता है, वह परम गति को प्राप्त करता है। इस प्रकार यह स्तोत्र संपूर्ण होता है।

इति श्रीश्यामाकाली स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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