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श्यामा स्तुति

श्यामा स्तुति

राजानक विद्याधर द्वारा रचित इस श्यामा स्तुति का नित्य पाठ करने से सभी विपत्तियों और पापों का नाश होता है और माँ कालिका उस साधक पर प्रसन्न होती है।

श्यामा स्तुति

श्रीश्यामास्तुतिः

Shyama stuti

श्यामा स्तुति

श्रीश्यामा स्तवन

श्रीश्यामा स्तुतिः

      श्री श्यामसुन्दर्यै नमः ।

ॐ नमामि कालिकादेवीम ज्ञानकालिकापहाम् ।

सर्वावभासिनीं ज्वालां ज्ञानदीप प्रज्वालिनीम् ॥ १॥

मैं ज्ञान के अंधकार को दूर करने वाली, सभी को प्रकाशित करने वाली और ज्ञान के दीपक को प्रज्वलित करने वाली देवी कालिका को प्रणाम करता हूँ।

कालिके त्वं जगन्माता कालिके त्वं जगत्पिता ।

कालिके त्वं जगबन्धुःकालिकायै नमोऽस्तु ते ॥ २॥

हे कालिके! आप ही जगत माता, जगत पिता और आप ही जगत के बंधु हो। मैं आपको सादर प्रणाम करता हूँ।

कालमेघसमानाभा काली श्री श्याम सुन्दरी ।

त्रिकाल ज्ञानजननी कालिका प्रीयतां मम ॥ ३॥

जिनका स्वरूप काल के मेघ के समान है। तीनों कालों में जो ज्ञान की जननी है, वह काली श्री श्याम सुंदरी, माँ कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

सूर्यकोटि प्रतीकाशा चन्द्रकोटि समानना ।

अग्निकोटिसमा घोरा कालिका प्रीयतां मम ॥ ४॥

जो सूर्य, चन्द्रमा और करोड़ों अग्नियों के समान तेजस्वी है , वह देवी कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

चन्द्रार्क वह्नि नयना तापत्रय विनाशिनी ।

मलत्रयापहर्त्री च कालिका प्रीयतां मम ॥ ५॥

चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं जो पीड़ा का नाश करते हैं। तीन कल्मषों को दूर करने वाली संपूर्ण सृष्टि की जननी माँ कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

चितिशक्तिः स्वतन्त्रा च पञ्चकृत्य विधायिनी ।

विश्वाकारा विश्वोत्तीर्णा कालिका प्रीयतां मम ॥ ६॥

चेतना की स्वतंत्र शक्ति और जो ब्रह्मांड के पांच मुख्य कृत्यों - सृजन, पोषण, विनाश, आवरण और अनुग्रह - को संपन्न करती हैं। ब्रह्मांड का रूप और ब्रह्मांड को पार करने वाली कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

देवपितृपथोर्मध्ये हंसावाहनचारिणी

विद्युद्रूपा सुसूक्ष्मा च कालिका प्रीयतां मम ॥ ७॥

वह देवताओं और पितरों के मार्ग के मध्य में हंस पर सवार होकर चलनेवाली, विद्युत रूपिणी, सूक्ष्म देवी काली मुझ पर प्रसन्न हों।

चिद्रसाऽऽश्यानभिन्ना च घटपटादि रूपिणी

मृत्स्वर्णजलवदेका कालिका प्रीयतां मम ॥ ८॥

जैसे दर्पण की स्वच्छत्व शक्ति से उसकी पर्याय में घटपटादि प्रकाशित होते हैं, उसी प्रकार आत्मा की स्वच्छत्व शक्ति से उपयोग में लोकालोक के आकार प्रकाशित होते हैं। ऐसी मिट्टी, स्वर्ण और जल के समान घटपटादि स्वरूपिणी देवी काली मुझ पर प्रसन्न हों।

पुरत्रयाश्रया देवी त्रिपुरा त्रिपुरान्तका

त्रिवेदज जननी विद्या कालिका प्रीयतां मम ॥ ९॥

तीनों पुरों की आश्रयिणी देवी त्रिपुरा, त्रिपुर का नाश करने वाली, तीनों वेदों की माता विद्या कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

दाक्षायणी यज्ञहर्त्री सर्वदेव भयङ्करी

गोपिताऽऽकृतिरीशानी कालिका प्रीयतां मम ॥ १०॥

दक्ष यज्ञ का नाश करने वाली और सभी देवताओं को भयभीत करने वाली, गोपनिय स्वरूपवाली दक्षायणी देवी काली मुझ पर प्रसन्न हों।

हिमाद्रितनया गौरी तपसा तोषितेश्वरी

त्रिजगज्जननी दुर्गा कालिका प्रीयतां मम ॥ ११॥

हिमालय की पुत्री गौरी, तपस्या से संतुष्ट होनेवाली देवी, तीनों लोकों की माँ दुर्गा, कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

नारायणी महालक्ष्मीः सर्वकाम प्रदायिनी

त्रिसन्ध्या वैखरी धात्री कालिका प्रीयतां मम ॥ १२॥

सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करनेवाली नारायणी, महालक्ष्मी, त्रिसंध्या, वैखरी, धात्री और कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

अरिशङ्खकृपाणासि-शूलपाशाब्जपाणिका

रक्तपात्रकरा चैव कालिका प्रीयतां मम ॥ १३॥

अरि (तलवार), शङ्ख (शंख), कृपाण (खड्ग), असि (तलवार), शूल (त्रिशूल), पाश (फंदा) और अब्ज (कमल) और रक्त से सने पात्र धारण करने वाली देवी श्यामा काली मुझ पर प्रसन्न हों।

चन्द्रार्धकृतचूडा च कपाल माल धारिणी

अट्टाट्टहासिनी भीमा कालिका प्रीयतां मम ॥ १४॥

अर्धचंद्र का मुकुट और मुंडों की माला धारण करने वाली, जोर-जोर से हंसने वाली भीमा कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

प्रेतासनसमारूढा प्रेतभूमिविहारिणी

त्रिजगदग्रासिनी घोरा कालिका प्रीयतां मम ॥ १५॥

शव के आसन पर सवार होकर मृत्युलोक में विचरण करने वाली, तीनों लोकों को भस्म करने वाली भयंकर देवी कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

महाकालस्वरूपा च महाकाल क्षयङ्करी

महारौद्री च चण्डी च कालिका प्रीयतां मम ॥ १६॥

काल का संहार करने वाली साक्षात् महाकाल स्वरूपवाली देवी महारौद्री, चण्डी और कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

त्रिकोटिदेवजननी त्रिकोटि देव नाशिनी

त्रिकोटि देवतारूपा कालिका प्रीयतां मम ॥ १७॥

सभी देवी-देवताओं की जननी (उत्पत्ति करने वाली) और सभी का नाश करने वाली, तीन कोटि देवताओं का स्वरूप वाली देवी कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

ज्वालामुखी स्वरूपा च महापातकनाशिनी

मोहान्धकारशमनी कालिका प्रीयतां मम ॥ १८॥

ज्वाला के रूप वाली, महान पापों का नाश करने वाली और मोह के अंधकार को दूर करने वाली कालिका मुझ पर प्रसन्न हों।

जयतु जयतु श्यामा कालमेघावभासा

     जयतु जयतु देवैः स्तूयमान पदांब्जा ।

जयतु जयतु योगिहृत्कजान्तर्निर्विष्टा

     जयतु जयतु माता कालिका कालहर्त्री ॥ १९॥

काले मेघ के समान रूपवाली माँ श्यामा आपकी जय हो, जय हो । देवताओं द्वारा जिनके चरणकमल की स्तुति की जानेवाली आपकी जय हो, जय हो । योगीयों के हृदय में अंतर्निहित होनेवाली आपकी जय हो, जय हो। काल का नाश करने वाली माता कालिका आपकी जय हो, जय हो ।

इति श्री श्यामायाः स्तुती राजानक-विद्याधर विरचिता शिवदाऽस्तुतराम् ।

ॐ तत्सद् ॐ ॥

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