गिरीश स्तोत्र
यह स्तोत्र गिरीश अर्थात् पर्वतों
के ईश्वर भगवान शिव को समर्पित एक स्तुति है, जिसमें
उनके विभिन्न स्वरूपों और गुणों का वर्णन किया गया है। जैसे कि गंगाधर, त्रिनेत्र, पशुपति, महाकाल
आदि। स्तोत्र में भगवान शिव के जटाजूट, त्रिशूल, डमरू जैसे प्रतीकों का भी उल्लेख है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को
भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख, शांति
और समृद्धि आती है। यह स्तोत्र नकारात्मक शक्तियों को दूर करने और भक्तों को
आध्यात्मिक मार्ग पर ले जाने में भी सहायक होता है।
गिरीश स्तोत्र
Girish stotra
गिरीशस्तोत्रम्
गिरीश स्तोत्रम्
गिरीशस्तोत्रं
शिरोगाङ्गवासं जटाजूटभासं
मनोजादिनाशं सदादिग्विकासम् ।
हरं चाम्बिकेशं शिवेशं महेशं
शिवं चन्द्रभालं गिरीशं प्रणौमि ॥
१॥
सदाविघ्नदारं गले नागहारं
मनोजप्रहारं तनौभस्मभारम् ।
महापापहारं प्रभुं कान्तिधारं
शिवं चन्द्रभालं गिरीशं प्रणौमि ॥ २॥
शिवं विश्वनाथं प्रभुं भूतनाथं
सुरेशादिनाथं जगन्नाथनाथम् ।
रतीनाथनाशङ्करन्देवनाथं
शिवं चन्द्रभालं गिरीशं प्रणौमि ॥
३॥
धनेशादितोषं सदाशत्रुकोषं
महामोहशोषं जनान्नित्यपोषम् ।
महालोभरोषं शिवानित्यजोषं
शिवं चन्द्रभालं गिरीशं प्रणौमि ॥ ४॥
ललाटे च बालं शिवं दुष्टकालं
सदाभक्तपालं दधानङ्कपालम् ।
महाकालकालस्वरूपं करालं
शिवं चन्द्रभालं गिरीशं प्रणौमि ॥
५॥
परब्रह्मरूपं विचित्रस्वरूपं
सुराणां सुभूपं महाशान्तरूपम् ।
गिरीन्द्रात्मजा सङ्गृहीतार्धरूपं
शिवं चन्द्रभालं गिरीशं प्रणौमि ॥ ६॥
सदागङ्गपानं सुमोक्षादिदानं
स्वभक्तादिमानं प्रभुं सर्वज्ञानम्
।
डमरुं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं
शिवं चन्द्रभालं गिरीशं प्रणौमि ॥
७॥
अजिनादि गोहं रतीनाथमोहं
सदाशत्रुद्रोहं शिवं निर्विमोहम् ।
विभुं सर्वकालेश्वरं कामद्रोहं
शिवं चन्द्रभालं गिरीशं प्रणौमि ॥ ८॥
द्विजन्मानुसेवं प्रभुं देवदेवं
सदाभूतसेवं गणेशादिदेवम् ।
पतङ्गादिदेवं हिरण्यादिदेवं
शिवं चन्द्रभालं गिरीशं प्रणौमि ॥
९॥
अदेवप्रमारं शिवं सर्वसारं
नराणां विभारं गणेशादिपारम् ।
महारोषहारं ह्यलङ्कारधारं
शिवं चन्द्रभालं गिरीशं प्रणौमि ॥ १०॥
नरोयस्त्रिकाले पठेद्भक्तियुक्तः
शिवं प्राप्य सद्यस्त्रिलोके
प्रसिद्धम् ।
धनं धान्यपुत्रं कुटुम्बादियुक्तं
समासाद्यमित्रं सुमुक्तिं व्रजेत्सः
॥ ११॥
इति श्रीमिश्रकुञ्जविहारिणाकृतं गिरीशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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