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अर्धनारीश्वर स्तोत्र

अर्धनारीश्वर स्तोत्र

उपमन्यु ऋषि द्वारा रचित अर्धनारीश्वर स्तोत्र, जिसे अर्धनारीश्वराष्टकम् भी कहा जाता है, एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है, जो अर्धनारीश्वर रूप में शिव और पार्वती के संयुक्त रूप की स्तुति करता है।

अर्धनारीश्वर स्तोत्र

अर्धनारीश्वरस्तोत्र

अर्धनारीश्वर अर्थात् जो आधे पुरुष और आधी स्त्री हैं। यह स्तोत्र भगवान शिव और पार्वती के अर्धनारीश्वर रूप को समर्पित है, यह भगवान शिव और देवी पार्वती के अभेद, एकरूपता और पूर्णता का प्रतिनिधित्व करता है, जो ब्रह्मांड की रचना और संचालन के लिए आवश्यक हैं।

अर्धनारीश्वरस्तोत्रम्

Ardha Narishvar stotram

अर्धनारीश्वर अष्टकम्

अर्ध नारीश्वर स्तोत्र

अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तटित्प्रभाताम्रजटाधराय ।

निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ १॥

पार्वतीजी जो मेघ के समान श्याम वर्ण के केशों वाली हैं और भगवान शंकर जिनकी जटा विद्युत् की चमक के समान लाल है। निरीश्वरी (पुरुष रूप में) और निखिल ईश्वरी (स्त्री रूप में) अर्थात् जिन्होंने अर्धनारीश्वर स्वरूप को धारण कर रक्खा है, ऐसे शिव और (देवी) शिवाय को नमस्कार है।

प्रदीप्तरत्नोज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।

शिवप्रियायै च शिवाप्रियाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ २॥

जिनके कान में चमकते हुए रत्नों से जड़े कुंडल शोभा पा रहे हैं तथा जो फूत्कारते हुए सर्पों को शरीर पर आभूषण रूप में धारण किए हैं। जो शिव को प्रिय हैं और शिव जिन्हें प्रिय हैं, ऐसे शिव और पार्वती के संयुक्त रूप को समर्पित अर्धनारीश्वर को प्रणाम है।

मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालाङ्कितकन्धराय ।

दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ३॥

मंदार पुष्पों की माला से सुशोभित केशों वाली, कपाल माला से अंकित कन्धों वाले, दिव्य वस्त्रों और दिशाओं को वस्त्र रूप में धारण करने वाले शिव और शक्ति को प्रणाम है।

कस्तूरिकाकुङ्कुमलेपनायै श्मशानभस्मात्तविलेपनाय ।

कृतस्मरायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ४॥

पार्वतीजी कस्तूरी और कुंकुम से लेपित हैं और भगवान शंकर श्मशान की भस्म से शरीर को ढके हुए हुआ हैं। जो कृतज्ञता और विकृति दोनों के प्रतीक हैं, अर्थात् जो रचनात्मकता और विनाश, आदि के द्वैत का प्रतिनिधित्व करते हैं, ऐसे भगवान शिव और पार्वती को नमस्कार है।

पादारविन्दार्पितहंसकायै पादाब्जराजत्फणिनूपुराय ।

कलामयायै विकलामयाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ५॥

जिनके पद-कमल में हंस विराजमान हैं, जिनके पैर के कमल पर सर्प रूपी नूपुर सुशोभित है, ऐसे कलामयी और विकलामयी (शिव) भगवान् शिव और देवी शिवा को नमस्कार है।

प्रपञ्चसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय ।

समेक्षणायै विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ६॥

सृष्टि की रचना के लिए उद्यत लास्य नृत्य (लास्य नृत्य, जो पार्वती से जुड़ा है, सृजन का प्रतीक है।) करने वाले, और संहार के लिए तांडव नृत्य (तांडव नृत्य, जो शिवजी से जुड़ा है, विनाश का प्रतीक है।) करने वाले, सम और विषम दृष्टि वाले, भगवान शिव और माता पार्वती को नमस्कार है।

प्रफुल्लनीलोत्पललोचनायै विकासपङ्केरुहलोचनाय ।

जगज्जनन्यै जगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ७॥

जो खिले हुए नीले कमल के समान नेत्रों वाली तथा खिले हुए कमल के समान नेत्रों वाले हैं, ऐसे जगत की माता और जगत के एकमात्र पिता, शिव और शक्ति को प्रणाम है।

अन्तर्बहिश्चोर्ध्वमधश्च मध्ये पुरश्च पश्चाच्च विदिक्षु दिक्षु ।

सर्वं गतायै सकलं गताय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ८॥

अंदर, बाहर, ऊपर, नीचे, मध्य में, आगे, पीछे, दिशाओं में और विदिशाओं में जो सभी में व्याप्त हैं अर्थात् जो सर्वव्यापी हैं, उन शिव और पार्वती को नमस्कार है।

अर्धनारीश्वरस्तोत्रं उपमन्युकृतं त्विदम् ।

यः पठेच्छृणुयाद्वापि शिवलोके महीयते ॥ ९॥

यह अर्धनारीश्वरस्तोत्र उपमन्यु द्वारा रचा गया है। जो इसे पढ़ता अथवा सुनता है, उसे शिवलोक में स्थान प्राप्त होता है।

॥ इति उपमन्युकृतं अर्धनारीश्वराष्टकम् ॥

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