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विष्णुस्तोत्र

विष्णुस्तोत्र

यह पृथ्वी कृत विष्णुस्तोत्र श्रीवराहपुराण अध्याय १ श्लोक २०-२७ में वर्णित है ।

विष्णुस्तोत्र

विष्णुस्तोत्रम्

Vishnu stotra

धरणिकृतं विष्णुस्तोत्रम्

विष्णुस्तोत्र

विष्णु स्तोत्रं

धरण्युवाच ।

नमः कमलपत्राक्ष नमस्ते पीतवाससे ।

नमः सुरारिविध्वंसकारिणे परमात्मने ॥ २०॥

पृथ्वी ने कहाकमलनयन ! आपके श्रीअङ्गों में पीताम्बर फहरा रहा है, आप स्मरण करते ही भक्तों के पापों का हरण करनेवाले हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है । देवताओं के द्वेषी दैत्यों का दलन करनेवाले आप परमात्मा को नमस्कार है।

शेषपर्यङ्कशयने धृतवक्षस्थलश्रिये ।

नमस्ते सर्वदेवेश नमस्ते मोक्षकारिणे ॥ २१॥

जो शेषनाग की शय्यापर शयन करते हैं, जिनके वक्षःस्थल पर लक्ष्मी शोभा पाती हैं तथा भक्तों को मुक्ति प्रदान करना ही जिनका स्वभाव है, ऐसे सम्पूर्ण देवताओं के ईश्वर आप प्रभु को बारम्बार नमस्कार है।

नमः शार्ङ्गासिचक्राय जन्ममृत्युविवर्जित ।

नमो नाभ्युत्थितमहाकमलासनजन्मने ॥ २२॥

प्रभो! आपके हाथ में खड्ग, चक्र और शार्ङ्ग धनुष शोभा पाते हैं, आप पर जन्म एवं मृत्यु का प्रभाव नहीं पड़ता तथा आपके नाभिकमल पर ब्रह्मा का प्राकट्य हुआ है, ऐसे आप प्रभु के लिये बारम्बार नमस्कार है।

नमो विद्रुमरक्तोष्ठपाणिपल्लवशोभिने ।

शरणं त्वां प्रपन्नास्मि त्राहि नारीमनागसम् ॥२३॥

जिनके अधर और करकमल लाल विद्रुममणि के समान सुशोभित होते हैं, उन जगदीश्वर के लिये नमस्कार है। भगवन् ! मैं निरुपाय नारी आपकी शरण में आयी हूँ, मेरी रक्षा करने की कृपा करें।

पूर्णनीलाञ्जनाकारं वाराहं ते जनार्दन ।

दृष्ट्वा भीताऽस्मि भूयोऽपि जगत्त्वद्देहगोचरे

इदानीं कुरु मे नाथ दयां त्राहि महाप्रभो ॥ २४॥

जनार्दन ! सघन नील अञ्जन के समान श्यामल आपके इस वराहविग्रह को देखकर मैं भयभीत हो गयी हूँ। इसके अतिरिक्त चराचर सम्पूर्ण जगत्‌ को आपके शरीर में देखकर भी मैं पुनः भय को प्राप्त हो रही हूँ। नाथ ! अब आप मुझपर दया कीजिये । महाप्रभो ! मेरी रक्षा आपकी कृपा पर निर्भर है।

केशवः पातु मे पादौ जङ्घे नारायणो मम ।

माधवो मे कटिं पातु गोविन्दो गुह्यमेव च ॥ २५॥

भगवान् केशव मेरे पैरों की, नारायण मेरे कटिभाग की तथा माधव दोनों जङ्घाओं की रक्षा करें। भगवान् गोविन्द गुह्याङ्ग की रक्षा करें।

नाभिं विष्णुस्तु मे पातु उदरं मधुसूदनः ।

उरस्त्रिविक्रमः पातु हृदयं पातु वामनः ॥ २६॥

विष्णु मेरी नाभि की तथा मधुसूदन उदर की रक्षा करें । भगवान् वामन वक्षःस्थल एवं हृदय की रक्षा करें।

श्रीधरः पातु मे कण्ठं हृषीकशो मुखं मम ।

पद्मनाभस्तु नयने शिरो दामोदरो मम ॥ २७॥

लक्ष्मीपति भगवान् विष्णु मेरे कण्ठ की, हृषीकेश मुख की, पद्मनाभ नेत्रों की तथा दामोदर मस्तक की रक्षा करें।

इति वाराहपुराणे प्रथमाध्यायान्तर्गतं धरणिकृतं विष्णुस्तोत्रं समाप्तम् ।

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