जैमिनी ज्योतिष अध्याय २
जैमिनी ज्योतिष अध्याय २ के इस भाग में कारकों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है।
जैमिनी ज्योतिष अध्याय २
Jaimini Astrology chapter 2
जैमिनी ज्योतिष दूसरा अध्याय
जैमिनी ज्योतिष
पिछले पाठ में आपने जैमिनी दशा में उपयोग में आने वाले कारकों के बारे में जानकारी हासिल की है। कारकों का निर्धारण करना आपको आ गया होगा। जिस प्रकार पराशरी सिद्धांतों में प्रत्येक भाव का अपना महत्व होता है। उसी प्रकार जैमिनी ज्योतिष में कारकों का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। इन कारकों का विस्तार पूर्वक वर्णन निम्न प्रकार से है :-
जैमिनी ज्योतिष अध्याय २
(1)आत्मकारक Atmakaraka
यह तो आपको पता लग गया है कि जिस
ग्रह के अंश सबसे अधिक होते हैं वह ग्रह कुण्डली में आत्मकारक की उपाधि पाता है।
इस ग्रह का संबंध लग्न से जोड़ा गया है। जिस प्रकार लग्न से व्यक्ति के व्यक्तित्व
के बारे में पूर्ण जानकारी मिलती है, ठीक उसी प्रकार आत्मकारक के द्वारा व्यक्ति
के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हासिल होती है। व्यक्ति का मानसिक स्तर,
बुद्धि का विकास, आंतरिक तथा बाह्य रुपरेखा,
व्यक्ति के सुख-दु:ख आदि के बारे में पता चलता है। व्यक्ति के
स्वभाव के बारे में जानकारी भी आत्मकारक से ही मिलती है। आत्मकारक पर यदि किन्हीं
ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो व्यक्ति उन ग्रहों के कारकत्वों से भी प्रभावित होता
है।
(2)अमात्यकारक Amatyakaraka
अमात्यकारक ग्रह का संबंध मुख्यतया
व्यवसाय के रुप में जोड़ा जाता है। इसके अतिरिक्त अमात्यकारक का संबंध धन तथा
शिक्षा से भी माना गया है। यदि कुण्डली में आत्मकारक पीड़ित है तो व्यक्ति को इन
तीनों क्षेत्र से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। यदि आत्मकारक बली
है तब व्यक्ति को जीवन में कठिनाइयों का सामना कम करना होगा और वह जीवन में
निरन्तर तरक्की करता रहेगा। अमात्यकारक कुण्डली में द्वित्तीय भाव,
पंचम भाव, नवम भाव तथा दशम भाव का कारक ग्रह
माना गया है। द्वित्तीय भाव से कुटुम्ब, पंचम से शि़क्षा तथा
लक्ष्मी स्थान, नवम भाव से भाग्य, दशम
से व्यवसाय का स्वरुप देखा जाता है। नवम भाव से दूर देश की यात्राएं भी देखी जाती
हैं। दशम भाव से प्रभुता तथा राजसत्ता का आंकलन भी किया जाता है। अमात्यकारक की
कुण्डली में स्थिति से इन सभी क्षेत्रों पर प्रकाश डाला जाता है। आत्मकारक के बली
होने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। निर्बल होने से शुभ फलों में कटौती होती
है।
(3)भ्रातृकारक Bhratrikaraka
भ्रातृकारक ग्रह कुण्डली के तीसरे
तथा एकादश भाव का प्रतिनिधित्व करता है। कुछ विद्वानों के मतानुसार भ्रातृकारक
ग्रह नवम भाव का भी प्रतिनिधित्व करता है। इसके पीछे यही धारणा हो सकती है कि नवम भाव से पिता का विश्लेषण किया जाता है।
इसलिए भ्रातृकारक ग्रह को पिता की स्थिति के आंकलन के लिए आंका जाता है। तीसरे भाव
से छोटे बहन-भाई, यात्राएँ, लेखन कार्य, कला, साहस तथा
पराक्रम, संचार-कौशलता, कला से संबंधित
कार्य, व्यक्ति के शौक आदि विश्लेषण किया जाता है। एकादश भाव
से जीवन में मिलने वाले सभी प्रकार के लाभ, बडे़ बहन-भाई,
प्रोमोशन अथवा तरक्की आदि का पता चलता है। नवम भाव से पिता, धार्मिक संस्कार, लम्बी तथा धार्मिक यात्राएँ आदि का
आंकलन किया जाता है। इस प्रकार भ्रातृकारक ग्रह से उपरोक्त क्षेत्रों से संबंधित
बातों का विश्लेषण किया जाता है।
(4)मातृकारक Maitrikarka
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है
यह ग्रह माता के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कराता है। माता के स्वरुप तथा
आर्थिक स्थिति का आंकलन इस ग्रह के द्वारा पता चलता है। मातृकारक ग्रह कुण्डली में
चतुर्थ भाव का प्रतिनिधित्व करता है। चतुर्थ भाव से आरम्भिक शिक्षा के बारे में
जानकारी हासिल होती है। आरम्भिक शिक्षा का
स्तर कैसा होगा इसकी जानकारी मिलती है। इसके अतिरिक्त मकान तथा वाहन सुख का आंकलन
भी इस भाव से किया जाता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि मातृकारक ग्रह माता,
आरम्भिक शिक्षा, मकान तथा भूमि, वाहन सुख का कारक ग्रह है। कुण्डली में मातृकारक ग्रह बली अवस्था में होने
से शुभ होता है। यदि यह ग्रह पीड़ित होता है तब उपरोक्त फलों में कमी आती है।
(5)पुत्रकारक Putrakaraka
जैमिनी कारकों में पाँचवें स्थान पर
पुत्रकारक ग्रह आता है। इसका स्थान मातृकारक के बाद आता है। जिस ग्रह के अंश
मातृकारक से कम होते हैं वह ग्रह पुत्रकारक कहलाता है। यह ग्रह कुण्डली में
पाँचवें भाव का प्रतिनिधित्व करता है। पाँचवें भाव से शिक्षा,
संतान, मंत्रों का ज्ञान, मंत्रीत्व आदि का आंकलन किया जाता है। नवम भाव, पंचम
से पंचम भाव है। इस प्रकार पुत्रकारक नवम भाव के कारकत्वों का भी प्रतिनिधित्व
करता है क्योंकि नवम भाव आने वाले कर्मों का ज्ञान कराता है।पंचम भाव, जिन-जिन बातों का कारक है, जैमिनी में उन बातों का
आंकलन पुत्रकारक ग्रह से किया जाता है। यदि पुत्रकारक ग्रह कुण्डली में पीड़ित है
और अशुभ ग्रहों के प्रभाव में है तब व्यक्ति विशेष को उसकी शि़क्षा तथा संतान
प्राप्ति में बाधा का सामना करना पड़ सकता है।
(6)ज्ञातिकारक Gyatikarka
कुण्डली में जिस ग्रह को ज्ञातिकारक
ग्रह का दर्जा मिलता है वह ग्रह कुण्डली के छठे भाव,
आठवें भाव तथा बारहवें भाव का प्रतिनिधित्व करता है। छठे भाव से हर
प्रकार के शत्रु, कोर्ट-केस, प्रतिस्पर्धा,
ऋण, हर प्रकार की प्रतियोगिताएँ, दुर्घटनाएँ, चोट, बीमारी आदि
को देखा जाता है। आठवें भाव से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की विघ्न तथा बाधाएँ
देखी जाती है। आठवें भाव से आयु, लम्बे समय तक चलने वाली
बीमारी तथा षडयंत्र का आंकलन भी किया जाता है। विरासत में मिलने वाली सम्पत्ति तथा
सभी प्रकार के शोध कार्य भी आठवें भाव से देखे जाते हैं। बारहवें भाव से खर्चे,
शैय्या-सुख, जेल का आंकलन किया जाता है। इस
भाव से विदेश, विदेशी संबंध, आध्यात्मिक
ज्ञान का आंकलन भी किया जाता है। कुण्डली में उपरोक्त सभी बातों का आंकलन
ज्ञातिकारक से देखा जाता है। जिस भाव से ज्ञातिकारक का संबंध बन रहा है उस भाव से
संबंधित फलों में कमी आ सकती है। जैसे कुण्डली में ज्ञातिकारक का संबंध लग्न अथवा
आत्मकारक से बन रहा है तो व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों का सामना करते
रहना पड़ सकता है।
(7)दाराकारक Darakaraka
कुण्डली में जिस ग्रह के सबसे कम
अंश होते हैं उसे दाराकारक की उपाधि मिलती है। दाराकारक सप्तम भाव के कारकत्वों का
प्रतिनिधित्व करता है। सप्तम भाव से मुख्य रुप से जीवनसाथी का आंकलन किया जाता है। इसके अतिरिक्त सभी प्रकार
की साझेदारी, विदेश यात्रा,
सभी प्रकार के व्यापार का विश्लेषण सातवें भाव से किया जाता है।
जनता में व्यक्ति की लोकप्रियता का विश्लेषण भी सातवें भाव से किया जाता है।
जीवनसाथी के स्वभाव आदि के बारे में भी इस भाव से आंकलन किया जाता है। इस प्रकार
सातवें भाव से संबंधित उपरोक्त सभी बातों का आंकलन दाराकारक ग्रह के द्वारा किया
जाता है। कुण्डली में दाराकारक ग्रह यदि पीड़ित अवस्था में है तब सातवें भाव से
संबंधित बातों में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
जैमिनी ज्योतिष अध्याय २
अभी आपने जैमिनी चर दशा के सभी
सातों कारकों के बारे में जानकारी हासिल कर ली है। ऊपर आपने कई जगह पर
"पीड़ित" शब्द का उपयोग देखा होगा। यहाँ किसी भी कारक के पीड़ित होने से
यह अभिप्राय है कि यदि कोई कारक ज्ञातिकारक अथवा भ्रातृकारक अथवा राहु/केतु अक्ष
पर स्थित है तब वह कारक पीड़ित माना जाता है। जब किसी कारक के साथ राहु अथवा केतु
स्थित हों तब वह कारक राहु/केतु अक्ष पर माना जाता है। यदि कोई शुभ कारक पीड़ित हो
जाता है तब उसके फलों में कमी अथवा संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। शुभ फलों
की प्राप्ति के लिए कारकों का शुभ अवस्था में स्थित होना आवश्यक है।
आगे जारी- जैमिनी ज्योतिष अध्याय 3
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