जैमिनी ज्योतिष अध्याय ३

जैमिनी ज्योतिष अध्याय ३

जैमिनी ज्योतिष अध्याय ३ के इस भाग में स्थिर कारक और कारकाँश लग्न का वर्णन किया गया है।

जैमिनी ज्योतिष अध्याय ३

जैमिनी ज्योतिष अध्याय ३

Jaimini Astrology chapter 3

जैमिनी ज्योतिष तीसरा अध्याय                                                                  

जैमिनी ज्योतिष

जैमिनी ज्योतिष तृतीयोऽध्यायः

पिछले पाठ में आपने जैमिनी कारकों के बारे में पढ़ा था जिनका क्रम उनके अंशों के आधार पर होता है। जैमिनी ज्योतिष में कई विद्वान स्थिर कारकों का भी प्रयोग करते है। यह स्थिर कारक निम्नलिखित हैं।

(1) सूर्य तथा शुक्र में से जो ग्रह अधिक बलशाली है उसे पिता का कारक ग्रह माना जाता है।

(2) चन्द्रमा तथा शुक्र में से जो ग्रह अधिक बलवान है वह माता का कारक ग्रह माना जाता है।

(3) मंगल ग्रह छोटे भाई-बहन का कारक ग्रह माना जाता है। कई विद्वान इस ग्रह को बहनोई अथवा साला का का भी कारक ग्रह मानते हैं।

(4) बुध ग्रह चाचा-चाची, ताऊ-ताई, फूफा-बुआ, मामा-मामी और मौसा-मौसी का कारक ग्रह माना जाता है।

(5) शुक्र ग्रह जीवनसाथी का कारक ग्रह है। शनि ग्रह पुत्रों का कारक ग्रह होता है।

(6) राहु ग्रह दादा तथा नाना का कारक ग्रह माना जाता है।

(7) केतु ग्रह दादी तथा नानी का कारक ग्रह माना जाता है।

किसी भी कुण्डली का फलित करते समय जैमिनी कारक तथा स्थिर कारकों का परस्पर उपयोग करके ही फलकथन कहना चाहिए। इससे भविष्यवाणियाँ सटीक बैठती हैं।

जैमिनी ज्योतिष अध्याय ३

कारकाँश लग्न Karakansha Lagna

जैमिनी ज्योतिष में सटीक भविष्यवाणी के लिए कई प्रकार के लग्नों का उपयोग किया जाता है। उनमें से एक लग्न कारकाँश लग्न है। जन्म लग्न के अनुसार ही कारकाँश लग्न की अपनी महत्वपूर्ण योग्यता है। कारकाँश लग्न बनाने के लिए आप जन्म कुण्डली में आत्मकारक का निर्धारण करें। अब यह देखें कि नवाँश कुण्डली में आत्मकारक ग्रह किस राशि में स्थित है। माना जन्म कुण्डली में आत्मकारक ग्रह शनि है और नवाँश कुण्डली में शनि कन्या राशि में स्थित है। अब आप जन्म कुण्डली में कन्या राशि जिस भाव में आ रही है उसे चिन्हित करें। कन्या राशि जिस भाव में आ रही है, उस भाव में कारकाँश लग्न लिख दें अथवा आप KL भी लिख सकते हैं। यही कारकाँश लग्न कहलाएगा। अब आप कन्या राशि को लग्न बनाकर जन्म कुण्डली के सभी ग्रहों को स्थापित कर दें। संक्षेप में यह भी कह सकते हैं कि कारकाँश लग्न के लिए केवल यह देखा जाता है कि आत्मकारक ग्रह, नवाँश कुण्डली में जिस राशि में स्थित होता है और जन्म कुण्डली में वह राशि जिस भाव में आती है वह कारकाँश लग्न बन जाता है। कारकाँश लग्न से ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण करने से फलित में प्रगाढ़ता आती है।

आगे जारी- जैमिनी ज्योतिष अध्याय 4

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