जैमिनी ज्योतिष अध्याय १
जैमिनी ज्योतिष अध्याय १ के इस भाग में जैमिनी चर दशा में जैमिनी कारक का वर्णन किया गया है।
जैमिनी ज्योतिष अध्याय १
Jaimini Astrology chapter
1
जैमिनी ज्योतिष प्रथम अध्याय
जैमिनी ज्योतिष
ज्योतिष के संसार में दो महर्षियों की महान देन रही है। महर्षि पराशर तथा महर्षि जैमिनी । महर्षि पराशर ने वैदिक ज्योतिष से लोगों को परिचित कराया तो जैमिनी ज्योतिष महर्षि जैमिनी की देन है। इन्होंने लगभग 11,00 सूत्रों में पूरा फल कथन सरल तथा स्पष्ट शब्दों में कह दिया है। यह सभी सूत्र व्यवहारिकता की कसौटी पर खरे उतरे हैं। जो सरल नियम, सिद्धांत तथा पद्धतियाँ इस ग्रँथ में मिलती हैं वह अन्य किसी ग्रँथ में नहीं पाई जाती हैं।
जैमिनी ज्योतिष आधारभूत सिद्धांत
General
Principles
जैमिनी ज्योतिष,
पराशरी पद्धति से एकदम भिन्न है। पराशरी ज्योतिष में दशाक्रम
नक्षत्रों के आधार पर होता है। जैमिनी ज्योतिष में नक्षत्रों का कोई महत्व नहीं
होता है। इस पद्धति में केवल राशियों के आधार पर सारा ज्योतिष आधारित होता है।
जैमिनी में भी एक से अधिक कई दशाओं का उल्लेख मिलता है। जिनमें चर दशा, स्थिर दशा, मण्डूक दशा, नवांश
दशा आदि का प्रयोग मुख्य रुप से किया जाता है। इनमें से भी चर दशा का प्रयोग सबसे
अधिक किया जाता है। आपको आगे के पाठों में सबसे पहले चर दशा से अवगत कराया जाएगा ।
चर दशा, जैमिनी पद्धति की प्रमुख दशा है ।
इस दशा में आपको क्रम से जैमिनी
कारक, स्थिर कारक, राशियों की दृष्टियाँ, राशियों का दशाक्रम, दशाक्रम की अवधि, जैमिनी योग, कारकाँश
लग्न, पद अथवा आरूढ़ लग्न, उप-पद लग्न
आदि के विषयों के बारे में विस्तार से तथा सरल तरीके से समझाने का प्रयास किया
जाएगा ।
जैमिनी चर दशा में जैमिनी कारक
Jaimini
Karaka in Jaimini Char Dasha
भचक्र में राहु/केतु को मिलाकर कुल
नौ ग्रह पाए जाते हैं । जैमिनी ज्योतिष में राहु/केतु को छोड़कर अन्य सभी सातों
ग्रहों को उनके अंश, कला तथा विकला के
आधार पर अवरोही क्रम में लिखा जाता है । इस प्रकार सात कारक हमें प्राप्त होते हैं
।
1. जैमिनी ज्योतिष में सभी ग्रहों के अंश, कला तथा
विकला आदि की गणना भली-भाँति कर लेनी चाहिए।
2. सभी सातों ग्रहों को उनके अंशों के आधार अवरोही क्रम में लिखें(घटते हुए
क्रम में लिखें) लिखकर एक तालिका बना लें । यदि किसी ग्रह के अंश तथा कला बराबर है
तब आपको ग्रह का मान विकला तक देखकर निर्णय करना चाहिए कि कौन-सा ग्रह किस क्रम
में आएगा ।
3. सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को तालिका में सबसे ऊपर लिख देना चाहिए । उसके
बाद उससे कम अंश वाले ग्रह को लिखना चाहिए और इसी प्रकार अन्य सभी ग्रहों को भी
क्रम से लिखें ।
4. सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को आत्मकारक कहा जाता है ।
5. उसके बाद वाले ग्रह को अमात्यकारक कहते हैं ।
6. अमात्यकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह भ्रातृकारक कहलाता है ।
7. भ्रातृकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह मातृकारक कहलाता है ।
8. मातृकारक के बाद वाले ग्रह को पुत्रकारक कहते हैं ।
9. पुत्रकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह ज्ञातिकारक कहलाता है ।
10. सबसे कम अंश वाला ग्रह दाराकारक कहलाता है ।
• आपको समझाने के लिए हम एक उदाहरण कुण्डली बना रहें हैं ।
जन्म विवरण है :-
• जन्म तिथि - 04/03/1977
• जन्म समय – 07:54 AM
• जन्म स्थान - Durg
इस कुण्डली में ग्रहों के कारक
अंशों के अनुसार इस प्रकार बन रहे हैं ।
• सूर्य़ उदाहरण कुण्डली में 19 अंश-52 कला-19 विकला का है ।
• चन्द्रमा उदाहरण कुण्डली में 29 अंश-06 कला-14 विकला का है ।
• मंगल उदाहरण कुण्डली में 23 अंश-59 कला-42 विकला का है ।
• बुध उदाहरण कुण्डली में 09 अंश-31 कला-04 विकला का है ।
• गुरु उदाहरण कुण्डली में 01 अंश-12 कला-48 विकला का है ।
• शुक्र उदाहरण कुण्डली में 28 अंश-20 कला-59 विकला का है ।
• शनि उदाहरण कुण्डली में 17 अंश-45 कला-42 विकला का है ।
उपरोक्त अंशों के आधार पर ग्रहों को
अवरोही क्रम(घटते हुए क्रम में) में लिखें । आपको निम्न प्रकार से एक तालिका
प्राप्त हो जाएगी ।
• आत्मकारक - चन्द्रमा
• अमात्यकारक - शुक्र
• भ्रातृकारक - मंगल
• मातृकारक - सूर्य
• पुत्रकारक - शनि
• ज्ञातिकारक - बुध
• दाराकारक – बृहस्पति
Meaning
• अंश - डिग्री(Degree)
• कला - मिनट(Minute)
• विकला -
सेकण्ड(Second)
आगे जारी- जैमिनी ज्योतिष अध्याय 2
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