बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३ में ग्रहों के स्वरूप का वर्णन हुआ है। 

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३

बृहत्पाराशर होराशास्त्र अध्याय ३

Vrihat Parashar hora shastra chapter 3

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् तृतीयोऽध्यायः

अथ बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् तृतीयः भाषा-टीकासहितं

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३ ग्रहस्वरूपाध्यायः

पराशर उवाच-

कालात्मा च दिवानाथो मनः कुमुदबान्धवः ।

सत्त्वं कुजो विजानीयाद्बुधो वाणीप्रदायकः । ॥१॥

पराशरजी बोले- हे विप्र ! सूर्य कालपुरुष (उत्पन्न पुरुष) की आत्मा, चन्द्रमा मन, मंगल सत्त्व, बुध वाणी है।।१।।

देवेज्यो ज्ञानसुखदो भृगुवीर्यप्रदायकः ।

विचार्यतामिदं सर्वं छायांसूनुश्च दुःखदृः।।२।।

गुरु ज्ञान और सुख और शुक्र बल के तथा शनि दुःख के स्वामी हैं ।। २ ।।

राजानौ भानुहिमगू नेता ज्ञेयो धरात्मजः ।

बुधो राजकुमारश्च सचिवौ गुरुभार्गव । ॥३॥

ग्रहों में सूर्य और चन्द्रमा राजा, मंगल नेता, बुध राजकुमार, गुरु और शुक्र मन्त्री हैं ।। ३ ।।

प्रेष्यको रविपुत्रश्च सेना स्वर्भानुपुच्छकौ ।

एवं क्रमेण वै विप्र ! सूर्यादीनां विचिन्तयेत् ॥ ४ ॥

शनि दास और सेना राहु तथा केतु हैं। इस प्रकार सूर्यादि ग्रहों से विचार करना चाहिए ।। ४ ।।

रक्तश्यामो दिवाधीशो गौरगात्रो निशाकरः ।

अत्युच्चाङ्गो रक्तभौमो दुर्वाश्यामो बुधस्तथा । । ५ ।।

द्विजश्रेष्ठ ! सूर्य का श्यामता लिये हुए रक्तवर्ण, चन्द्रमा का गौरवर्ण, मंगल का ऊँचा शरीर रक्तवर्ण, बुध का दूर्वा के समान श्यामवर्ण है।।५।।

गौरगात्रो गुरुर्ज्ञेयः शुक्रः श्यामस्तथैव च ।

कृष्णदेहो रवेः पुत्रो ज्ञायते द्विजसत्तम ।। ६ ।।

गुरु का गौरवर्ण, शुक्र का श्याम वर्ण और शनि का काला वर्ण है ।। ६ ।।

वन्यम्बुशिखिजा विष्णुविडोजशचिका द्विज ।

सूर्यादीनां खगानाञ्च नाथाः ज्ञेया क्रमेण च ।। ७।।

सूर्य के अग्नि, चन्द्रमा के जल, भौम के स्वामि कार्त्तिक, बुध के विष्णु, गुरु के इन्द्र, शुक्र के इन्द्राणी और शनि के ब्रह्मा स्वामी हैं ।। ७ ।।

क्लीवौ द्वौ सौम्यसौरी च युवतीन्दुभृगुर्द्विज ।

नरा शेषाश्च विज्ञेया भानुभौमौ गुरुस्तथा ॥ ८ ॥

बुध और शनि ये नपुंसक, चन्द्रमा और शुक्र स्त्रीग्रह और शेष सूर्य, भौम और गुरु पुरुषग्रह हैं ।। ८ ।।

अग्निभूमिनभस्तोयवायवः क्रमतो द्विज ।

भौमादीनां ग्रहाणां च तत्त्वाश्वामी प्रकीर्त्तिताः ।।९।।

भौमादि ग्रहों में क्रम से अग्नि, भूमि, आकाश, जल, वायु ये तत्त्व हैं ।।९।।

गुरुशुक्रौ विप्रवर्णी कुजार्को क्षत्रियौ द्विज ।

शशिसौम्य वैश्यवर्णी शनिः शूद्रो द्विजोत्तम । ।१० ।।

गुरु-शुक्र का ब्राह्मण वर्ण, भौम-सूर्य का क्षत्रिय वर्ण, चन्द्रमा-बुध का वैश्य वर्ण और शनि का शूद्र वर्ण है ।। १० ।।

चन्द्रसूर्यगुरुसौम्या भृग्वारशनयो द्विज ! ।

सत्त्वं रजस्तम इति स्वभावो ज्ञायते क्रमात् ।।११ ।।

चन्द्र, सूर्य, गुरु इनका सतोगुणी स्वभाव, बुध-शुक्र का रजोगुणी स्वभाव और भौम-शनि का तमोगुणी स्वभाव है।।११।।

मधुपिङ्गलदृक्सूर्यश्चतुरस्रः शुचिर्द्विज ।

पित्तप्रकृतिको श्रीमान्पुमानल्पकचो द्विज ।।१२ ।।

सूर्य- मधु के सदृश पीले नेत्रोंवाला, चौखुटी शरीर, स्वच्छ कान्ति वाला, पित्त प्रकृति, दर्शनीय, पुरुषग्रह, थोड़े बालों से युक्त स्वरूपवाला है ।।१२।।

बहु वातकफः प्राज्ञश्चन्द्रो वृत्ततनुर्द्विज ! ।

शुभदृक् मधुवाक्यश्च चञ्चलो मदनातुरः ।। १३ ।।

चन्द्रमा - वायु और कफ से युक्त प्रकृति, बुद्धिमान्, गोल शरीर, सुन्दरनेत्र, मीठे वचन बोलनेवाला, चंचल और कामी है ।। १३ ।।

क्रूररक्तेक्षणो भौमश्चपलोदारमूर्त्तिकः ।

पित्तप्रकृतिकः क्रोधी कृशमध्यतनुर्द्विज ।। १४ ।।

भौम- क्रूर स्वभाव, रक्तवर्ण की दृष्टि, चपल, उदार स्वभाव, पित्त प्रकृति, क्रोधी, पतली मध्यम कद की शरीरवाला है ।। १४ ।।

वपुः श्रेष्ठो श्लिष्टवाक्य ह्यतिहास्यरुचिर्बुधः ।

पित्तवान्कफवान्विप्र मारुतप्रकृतिकस्तथा ।। १५ ।।

बुध- अच्छी शरीर, तोतली बोली वाला, अत्यंत हँसी करनेवाला, पित्त- कफ- वायु से युक्त प्रकृतिवाला है।।१५।।

बृहद्गात्रो गुरुश्चैव पिङ्गलो मूर्धजेक्षणः ।

कफप्रकृतिको धीमान् सर्वशास्त्रविशारदः । । १६ ।।

गुरु-लम्बी शरीर, पीले शिर के केश और दृष्टि वाला, कफ प्रकृति, बुद्धिमान्, सभी शास्त्रों का जाननेवाला है ।। १६ ।।

सुखी कान्तवपुः श्रेष्ठ सुलोचनो भृगोः सुतः ।

काव्यकर्त्ता कफाधिक्यानिलात्मा वक्रमूर्धजः ।। १६ ।।

शुक्र - सुन्दर शरीर, सुखी, अच्छे सुन्दर नेत्रोंवाला, काव्य ( कविता ) करनेवाला, कफ-वायुमिश्रित प्रकृति, टेढ़े शिर के बालों वाला है ।। १७ ।।

कृशदीर्घतनुः सौरिः पिङ्गदृष्ट्यनिलात्मकः ।

स्थूलदन्तोऽलसो पङ्गु खररोमकचो द्विज ! ।।१८।।

शनि - दुर्बल लम्बी शरीर, पीले नेत्र, वायु प्रकृति, मोटे दाँत, आलसी, पंगु, रूखे रोम और बालों वाला है।।१८।।

धूम्राकारो नीलतनुर्वनस्थोऽपि भयङ्करः ।

वातप्रकृतिको धीमान् स्वर्भानुः प्रतिमः शिखी ।। १९ ।।

राहु- धुएँ के सदृश वर्ण, नीले रंग की शरीर, जंगल में रहनेवाला, भयंकर, वायु प्रकृति और बुद्धिमान् है । केतु का भी स्वरूप राहु के समान ही है ।। १९ ।।

अस्थिरक्तस्तथा मज्जा त्वक्वसावीर्यस्नायवः ।

तासामीशा क्रमेणोक्ता ज्ञेयाः सूर्यादयो द्विजाः ।। २० ।।

सूर्य आदि क्रम से अस्थि (हड्डी), रक्त, मज्जा, त्वक् (चर्म), वसा, वीर्य, स्नायु (नस) इनके स्वामी हैं ।। २० ।।

देवालयं जलं वनी क्रीडादीनां तथैव च ।

कोशशय्या ह्युत्कराणामीशाः सूर्यादयः क्रमात् ।। २१ ।।

एवं सूर्य आदि ग्रहों के क्रम से देवालय, जलाशय, अग्निस्थान, क्रीडास्थान, कोश (खजाना), शय्यास्थान, ऊसर भूमि ये स्थान हैं ।। २१ ।।

अयनक्षणवासर्तुमासपक्षसमा द्विज ! ।

सूर्यादीनां क्रमाज्ज्ञेया निर्विशङ्कं द्विजोत्तम ।। २२ ।।

सूर्य आदि ग्रह क्रम से अयन, क्षण (मुहूर्त), वासर (दिन), ऋतु, मास, पक्ष, वर्ष के स्वामी हैं ।। २२ ।।

कटुलवणतिक्तमिश्रमधुरोकषायकाः ।

क्रमेण सर्वे विज्ञेया सूर्यादीनां द्विजोत्तम ।। २३ ।।

सूर्य आदि ग्रहों के क्रम से कटु, लवण, तीता मिश्रित, मधुर, खट्टा, 'और कसैला ये रस हैं ।। २३ ।।

बुधेज्यो बलिनौ पूर्वे रविभौमौ च दक्षिणे ।

वारुणे: सूर्यपुत्रश्च सितचन्द्रौ तथोत्तरे ।। २४ ।।

बुध-गुरु पूर्वदिशा (लग्न में) में, सूर्य-भौम दक्षिण दिशा ( दशम) में, शनि. पश्चिम (सप्तम) में, शुक्र-चन्द्रमा उत्तर (चतुर्थ) में बली होते हैं।। २४ ।।

निशायां बलिनश्चन्द्रकुजसौरा भवन्ति हि ।

सर्वदा ज्ञो बली ज्ञेयो दिनशेषा द्विजोत्तम ।। २५ । ।

चन्द्रमा भौम, शनि ये रात में बली, बुध दिन-रात्रि दोनों में और शेष सूर्य, गुरु, शुक्र दिन में बली होते हैं ।।२५।।

कृष्णे च बलिनः क्रूराः सौम्याः वीर्ययुताः सिते ।

सौम्यायने सौम्यखेटो बली याम्यायनेऽपरः । । २६ ।।

कृष्णपक्ष में पापग्रह और शुक्लपक्ष में शुभग्रह बली होते हैं। उत्तरायण शुभग्रह और दक्षिणायन में पापग्रह बली होते हैं ।। २६ । ।

स्वदिवससमहोरामासपैः कालवीर्यकम् ।

शकुवुगुशुचराद्या वृद्धितो वीर्यवन्तराः । । २७।।

जो ग्रह जिस दिन का, वर्ष का, होरा का और मास का स्वामी होता है वह अपने दिन, वर्ष, होरा, मास में बली होता है। शनि भौम, बुध, गुरु, शुक्र, चंद्र और सूर्य यथोत्तर बली होते हैं। अर्थात् शनि से भौम, भौम से बुध, बुध से गुरु, गुरु से शुक्र, शुक्र से चन्द्रमा और चन्द्र से सूर्य बली होता है ।। २७ ।।.

स्थूलान् जनयति सूर्यो दुर्भगान् सूर्यपुत्रकः ।

क्षीरोपेतांस्तथा चन्द्रः कण्टकाद्यान्थरासुतः।। २८ ।।

स्थूल वृक्षों का कारक सूर्य है, दुष्ट वृक्षों का कारक शनि, दूधवाले वृक्षों का चन्द्रमा, काँटेवाले वृक्षों का भौम है ।।२८।।

गुरुज्ञौ सफलान्विप्र पुष्पवृक्षान्भृगोः सुतः ।

नीरसान्सूर्यपुत्रश्च एवं ज्ञेया खगाः द्विज । । २९ । ।

फूलवाले वृक्षों का गुरु-बुध, फूल के वृक्षों का शुक्र और नीरस वृक्षों का शनि कारक है । । २९ ।।

राहुश्चाण्डालजातिश्च केतुर्जात्यन्तरस्तथा ।

शिखिस्वर्भानुमन्दानां वल्मीकस्थानमुच्यते । । ३० ।।

राहु की चांडाल जाति और केतु वर्णशंकर जाति का है। केतु, राहु और शनि का वल्मीक (विमौट) स्थान है।।३०।।

चित्रकथा फणीन्द्रस्य केतोरिच्छद्रयुतो द्विज ।

सीसं राहोनीलमणिः केतोर्ज्ञेयो द्विजोत्तम । ॥३१ ॥

अनेक रंग के कपड़ों से कथरी (गुदरी) राहु का और केतु का छेदों से युक्त वस्त्र है। राहु का शीशा और केतु का नीलमणि धातु है ।। ३१ ।।

गुरोः पीताम्बरं विप्र ! भृगोः क्षौमं तथैव च ।

रक्तक्षौमं भास्करस्य इन्दोः क्षौमं सितं द्विज ! ।। ३२ ।।

गुरु का पीताम्बर, शुक्र का रेशमी वस्त्र, सूर्य का लाल रंग का, चन्द्रमा का श्वेत रेशमी वस्त्र है ।। ३२ ।।

बुधस्य तु कृष्णक्षौमं रक्तवस्त्रं कुजस्य च।

वस्त्रं चित्रं शनेर्विप्र ! पट्ट्वस्त्रं तथैव च ।। ३३॥

बुध का काले रंग, भौम का लाल रंग का वस्त्र और शनि का चित्रवर्ण पट्ट्वस्त्र है।।३३।।

भृगोऋतुवसन्तश्च कुजभान्वोश्च ग्रीष्मकः ।

चन्द्रस्य वर्षा विज्ञेया शरच्चैव तथा विदः ।। ३४ ।।

शुक्र की वसन्तऋतु, भौम और रवि की ग्रीष्मऋतु, चन्द्रमा की वर्षाऋतु, बुध की शरदऋतु है ।। ३४ ।।

हेमन्तोऽपि गुरोर्ज्ञेयः शनेस्तु शिशिरो द्विज ! ।

अष्टौ मासाश्च स्वर्भानोः केतोर्मासत्रयं द्विज ! ।। ३५ ।।

गुरु की हेमन्त ऋतु और शनि की शिशिर ऋतु है। राहु का ८ मास और केतु का ३ मास है । । ३५ ।।

राह्वारपङ्गुचन्द्राश्चं विज्ञेया धातुखेचराः ।

मूलग्रहौ सूर्यशुक्रौ अपरा जीवसंज्ञकाः ।। ३६॥

राहु, भौम और चन्द्रमा धातु के स्वामी, सूर्य-शुक्र मूल के स्वामी और शेष बुध, गुरु, केतु जीव के स्वामी हैं।।३६।।

ग्रहेषु मन्दो वृद्धोऽस्ति आयुर्वृद्धिप्रदायकः ।

नैसर्गिके बहुसमान्ददाति द्विजसत्तम ।। ३७ ।।

सभी ग्रहों में शनि वृद्ध (निर्बल) है, किन्तु निसर्ग आयु साधन करने में बहुत वर्ष को देता है ।३७ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३ ग्रह उच्च नीच

अथ ग्रहाणामुच्चनीचमाह-

अजो वृषो मृगः कन्या कुलीरझषतौलिकाः ।

सूर्यादीनां क्रमादेतास्तुङ्गसंज्ञाः प्रकीर्त्तिताः ।। ३८ ।।

दिगुणाष्टयमा भागातिथिभूतर्क्षनखासमा ।

स्वोच्चात्सप्तमभं नींचं पूर्वोक्तांशैः प्रकीर्त्तितम् ।। ३९ ।।

मेष, वृष, मकर, कन्या, कर्क, मीन, तुला राशियों में १०, , २८, १५, , २७ अंश सूर्यादि ग्रहों के उच्च होते हैं और अपनी उच्च राशि से सातवीं राशि में उतने ही अंश तक नीच होते हैं । । ३८-३९ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३-स्पष्टार्थ चक्र

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३ मूलत्रिकोण

अथ ग्रहाणां मूलत्रिकोणमाह-

विंशतिरंशाः सिंहे कोणमपरे स्वभवनमर्कस्य ।

उच्च भागत्रितयं वृषमिन्दोः शेषांशास्युस्त्रिकोणकाः ।। ४० ।।

सूर्य का सिंह राशि में २० अंश तक मूलत्रिकोण है, शेष १० अंश स्वराशि है । चन्द्रमा का वृष राशि के आरम्भ से ३ अंश तक उच्च है, इसके बाद के अंश मूलत्रिकोण हैं ।। ४० ।।

द्वादशभागा मेषे त्रिकोणमपरे स्वभं तु भौमस्य ।

उच्चफलं च कन्यायां बुधस्य तिथ्यंशकैः सदा भवेत्।।४१।।

भौम का मेष राशि में १२ अंश तथा मूलत्रिकोण है, शेष अंश स्वराशि है। बुध का कन्या राशि में १५ अंश तक उच्च, इसके बाद ५ अंश तक मूलत्रिकोण और शेष अंश स्वराशि है । । ४१ । ।

ततस्त्रिकोणजाते पंचभिरंशैः स्वराशिजं परतः ।

दशभिर्भागैर्जीवस्य त्रिकोणफलं स्वयं परं चापे । । ४२ ।।

गुरु का धनु राशि में १० अंश तक मूलत्रिकोण तथा शेष अंश स्वराशि है।।४२।।

शुक्रस्य तु तिथयोऽशास्त्रिकोणभपरे तुले स्वराशिश्च ।

शः कुम्भे नखांशास्त्रिकोणं परतस्तु स्वराशिजं ज्ञेयम् ।। ४३ ।।

तुला राशि में १५ अंश तक शुक्र का मूलत्रिकोण और शेष अंश स्वराशि है । कुम्भ राशि में २० अंश तक शनि का मूलत्रिकोण हैं तथा शेष अंश स्वराशि है ।। ४३ ।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३ नैसर्गिकमित्रशत्रु

अथ ग्रहाणां नैसर्गिकमित्रामित्रत्वमाह-

रवेः समो ज्ञः सितसूर्यपुत्रावरी परे ये सुहृदो भवन्ति ।

चन्द्रस्य नारी रविचन्द्रपुत्रौ स्मृतास्तु शेषग्रहाः समाः ।।४४ ।।

सूर्य के बुध सम, शुक्र शनि शत्रु और शेष चन्द्रमा, भौम, गुरु मित्र हैं । चन्द्रमा के कोई शत्रु नहीं हैं, सूर्य-बुध मित्र हैं और शेष ग्रह सम हैं ।। ४४ ।।

समौ सितार्थी शशिजश्च शत्रुर्मित्राणि शेषाः पृथिवीसुतस्य ।

शत्रुः शशी सूर्यसितौ च मित्रे समापरे स्युः शशिनन्दनस्य ।। ४५ ।।

भौम के शुक्र शनि सम हैं, बुध, शुक्र और शेष ग्रह मित्र हैं। बुध चन्द्रमा शत्रु, सूर्य-शुक्र मित्र और शेष ग्रह सम हैं ।। ४५ ।।

गुरोर्शसशुक्रौ रिपुसंज्ञकौ तु शनिः समोऽन्ये सुहृदो भवन्ति ।

शुक्रस्य मित्रे बुध सूर्यपुत्रौ समौ कुजार्यावितरावरीतौ ।। ४६ ।।

गुरु के बुध-शुक्र शत्रु, शनि सम और शेष ग्रह मित्र हैं। शुक्र के बुध, शनि मित्र, भौम-गुरु सम और शेष ग्रह शत्रु हैं ।।४६।।

शनेः समो वाक्पतिरिन्दुसूनु शुक्रौ च मित्रे रिपवः परेऽपि ।

ध्रुवं ग्रहाणां चतुराननेन शत्रुत्वमित्रत्वसमत्वमुक्तम् ।।४७॥

शनि के गुरु सम, बुध-शुक्र मित्र और शेष ग्रह शत्रु हैं। इस प्रकार से ब्रह्माजी ने ग्रहों के मित्र, सम, शत्रु को कहा है।।४७।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३ तात्कालिकमित्रशत्रु

अथ तात्कालिकमित्रशत्रुत्वमाह-

दशायबन्धुसहजस्वान्त्यस्थास्ते परस्परम् ।

तत्काले सुहृदो ज्ञेयः शेषस्थाने त्वमित्रकम् । ।४८ ।।

जो ग्रह जिस ग्रह से १० । ११ । ४ । ३ । २ । १२ वें स्थान में होता है वह ग्रह उस ग्रह का तात्कालिक मित्र होता है, शेष स्थानों में शत्रु होता है ।। ४८ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३ पञ्चधामैत्री

अथ पञ्चधा मैत्रीमाह-

तात्कालिके निसर्गे च मित्रत्वे त्वधिमित्रकम् ।

द्वयोर्मित्रसमत्वे च मित्रं शत्रुः शत्रुसमत्वके ।। ४९ ।।

जो ग्रह जिस ग्रह का तात्कालिक और निसर्ग में मित्र होता है, वह उस ग्रह का अधिमित्र होता है। तत्काल में मित्र और निसर्ग में सम हो तो वह मित्र होता है। तात्कालिक शत्रु और नैसर्गिक सम हो तो शत्रु होता है ।।४९।।

समौ तु शत्रुमित्रत्वे शत्रुशत्रौ त्वधिशत्रुकम् ।

एवं पञ्चप्रकाराः स्युः ग्रहाणां मित्रता बुधैः । । ५० ।।

नैसर्गिक मित्र और तात्कालिक शत्रु या नैसर्गिक शत्रु और तात्कालिक मित्र हो तो सम होता है। तात्कालिक शत्रु और नैसर्गिक सम हो तो शत्रु होता है और तात्कालिक शत्रु और नैसर्गिक शत्रु हो तो अधिशत्रु होता है । इस प्रकार ग्रहों की पाँच प्रकार क्री मैंत्री होती है ।। ५० ।।

उदाहरण

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३- नैसर्गिकमैत्रीचक्रम् जन्माङ्गम्

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३- तात्कालिकमैत्री पञ्चधामैत्रीचक्रम्

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३ ग्रहबल

अथ ग्रहाणामुच्चादिबलमाह-

स्वोच्चे शुभं बलं पूर्णं त्रिकोणे पादवर्जितम् ।

स्वर्क्षे दलं मित्रगेहे पादमात्रं प्रकीर्तितम् ।। ५१ ।।

यदि ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो सम्पूर्ण शुभ बल, अपने मूलत्रिकोण राशि में हो तो ३ चरण, अपनी राशि में हो तो आधा बल, मित्र की राशि में हो १ चरण है । । ५१ ।।

पादार्धं समभे प्रोक्तं व्यर्थं नीचास्तशत्रुभे ।

तद्वद्दुष्टबलं ब्रूयाद् व्यत्ययेन विचक्षणः ।। ५२ ।।

सम की राशि में हों तो आधा बल प्राप्त करता है । नीच अस्त और शत्रु की राशि में हो तो शून्य बल पाता है। इसके विपरीत शेष अशुभ बल पाता है ।। ५२ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३- बलचक्रम्

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३ ग्रहों का धूमादिसंज्ञा

अथ धूमाद्यप्रकाशग्रहानयनमाह-

सदा चतुर्भेः विश्वांशैः नखलिप्ताधिको रविः ।

धूमो नाम महादोषः सर्वकर्मविनाशकः । । ५३ ।।

सूर्य में ४ राशि १३ अंश २० कला जोड़ देने से धूम नाम का महादोष होता है, जो कि सभी कार्यों का विनाशक होता है ।। ५३ ।।

धूमो मण्डलतः शुद्धो व्यतीपातोऽत्र दोषदः ।

सषड्भेऽत्र व्यतीपाते परिवेषस्तु दोषदः । । ५४ ।।

धूम को १२ राशि में घटा देने से शेष व्यतीपात नाम का दोष होता है। व्यतीपात में ६ राशि जोड़ देने से परिवेष नाम का दोष होता है ।।५४ ॥

परिवेषश्युतश्चक्रादिन्द्रचापस्तु दोषदः ।

त्र्यंशोनात्यष्ट्यंशा युतश्चापः केतुग्रहो भवेत् । । ५५ ।।

परिवेष को १२ राशि में घटाने से इन्द्रचाप नामक दोष होता है । १७ अंश में अंश का तृतीयांश १० कला घटाने से शेष १६ । ४०' इन्द्रचाप में जोड़ने से केतु नाम का दोष होता है ।। ५५ ।।

एकराशियुते केतौ सूर्यः स्यात्पूर्ववत्समः ।

अप्रकाशग्रहाश्चैते दोषाः पापग्रहाः स्मृताः । । ५६ ।।

केतु में १ राशि जोड़ देने से पूर्वोक्त सूर्य के तुल्य हो जाता है। यही अप्रकाशग्रह हैं, जो कि दोषरूप पापग्रह हैं । । ५६ ।।

उदाहरण - स्पष्ट सूर्य ३ । १० । २६ । २९ इसमें ४ राशि १३ अंश २० कला जोड़ने से ८ । १ । ४६ । २० धूम ग्रह हुआ । इसको १२ राशि में घटाने  से ३ ।२८ । १३ । ४० यह व्यतीपात ग्रह हुआ । इसमें ६ राशि जोड़ने से. ९।२८।१३।४० यह परिवेष ग्रह हुआ । इसे १२ राशि में घटाने से २।१।४६।२० यह इन्द्रचाप हुआ। इसमें १६ अंश. ४० कला जोड़ने से २।१८ । २६ । २० यह केतु ग्रह हुआ। इसमें १ राशि जोड़ने से पूर्वोक्त सूर्य के तुल्य ३ ।  १८ । २६ । २० हुआ ।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३ ग्रहों का फल

अथाऽप्रकाशग्रहाणां फलमाह-

भान्विन्दुलग्नगेष्वेषु वंशायुर्ज्ञाननाशनम् ।

एषां बह्वर्कदोषाणां स्थितिः पद्मासनोदिताः । । ५७ ।।

पूर्वोक्त धूम आदि अप्रकाश ग्रह यदि सूर्य-चन्द्र लग्न से युक्त हों तो क्रम से वंश, आयु और ज्ञान का नाश करते हैं। इस प्रकार दोषकारक अप्रकाश ग्रहों की स्थिति ब्रह्मा ने कही है । । ५७ ।।

इति पाराशरहोरायां पूर्वखण्डे सुबोधिन्यां ग्रहस्वरूपाध्यायस्तृतीयः ।। ३ ।।

आगे जारी............. बृहत्पाराशरहोराशास्त्र अध्याय 4

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