बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय २
बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय २
में राशियों के स्वरूप का वर्णन हुआ है।
बृहत्पाराशर होराशास्त्र अध्याय २
Vrihat Parashar hora shastra chapter 2
बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् द्वितीयोऽध्यायः
अथ बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् द्वितीयः
भाषा-टीकासहितं
बृहत् पाराशर होरा शास्त्र तीसरा अध्याय
अथ राशिप्रभेदाध्यायः
मैत्रेय उवाच-
यदव्यक्तात्मको विष्णुः कालरूपो
जर्नादनः ।
तस्याङ्गानि निबोध त्वं
क्रमान्मेषादि राशयः ।। १ ।।
मैत्रेय जी बोले- जो व्यक्त (प्रकट
रूप) विष्णु काल (समय) रूपी. जनार्दन हैं, उनके
अंगों का ज्ञान क्रम से मेषादि राशियों द्वारा बताइये ।। १ ।।
पराशर उवाच-
अहोरात्र्याद्यन्तलोपाद्धोरेतिं
प्रोच्यते बुधैः ।
तस्य हि ज्ञानमात्रेण जातकर्म फलं
वदेत् ॥ २ ॥
पराशर जी बोले- अहोरात्र शब्द के
आदिम वर्ण 'अ' और
अन्तिम वर्ण 'त्र' का लोप हो जाने से
होरा शब्द होता है, जिसका ज्ञान होने से जातक के शुभ-अशुभ फल
का ज्ञान होता है ।।२।।
मेषो वृषश्च मिथुनः
कर्कसिंहकुमारिकाः ।
तुलालिधनुषो नक्रकुम्भमीनास्ततः
परम् ।।३ ॥
मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन ये बारह राशियाँ हैं । । ३ । ।
शीर्षाननौ तथा बाहू
हृत्क्रोडकटिवस्तयः ।
गुरुजानुयुग्मे वै युगले जङ्घके तथा
।।४॥
जन्मलग्न से उक्त बारह राशियाँ क्रम
से शिर,
मुख, दोनों भुजायें, हृदय,
पेट, कटि, बस्ति
(नाभिलिंग के मध्यभाग को बस्ति कहते हैं), गुह्यस्थान
(स्त्री-पुरुष के चिह्न), उरु, दोनों
जानु, जंघे हैं ॥। ४ ॥
चरणौ द्वौ तथा लग्नात् ज्ञेयाः
शीर्षादयः क्रमात् ।
चरस्थिरद्विस्वभावाः क्रूराक्रूरौ
नरस्त्रियौ । । ५ ।।
दोनों चरण कालपुरुष के अंग में हैं।
मेषादि राशियों की क्रम से चर, स्थिर,
द्विस्वभाव तथा क्रूर, शुभ और पुरुष स्त्री
संज्ञायें हैं ।।५।।
पित्तानिलस्त्रिधा त्वैक्यं
श्लेष्मिकाश्च क्रियादयः ।
रक्तवर्णो
बृहद्गात्रश्चतुष्पाद्वात्रिविक्रमी ।।६।।
पित्त,
वायु, पित्त वायु कफ तीनों मिले हुए, और कफ प्रकृति है मेष राशि का लाल वर्ण, बड़ी शरीर,
चार पैर, रात में बलवान् हैं । । ६ । ।
अथ मेषराशिस्वरूपम्-
पूर्ववासी नृपज्ञातिः शैलचारी
रजोगुणी ।
पृष्ठोदयी पावकी च मेषराशिः
कुजाधिपः ।। ७ ।
पूर्व दिशा,
क्षत्रिय वर्ण, पर्वतीय प्रदेश में घुमनेवाली,
रजोगुणी, पृष्ठोदयी अग्निराशि है और इसके
स्वामी मंगल हैं । ।७।।
अथ वृषराशिस्वरूपम्-
श्वेतः शुक्राधिपो दीर्घः चतुष्पाच्छ्र्वरी
बली ।
याम्येट् ग्राम्यो वणिग्भूमिः
स्त्री पृष्ठोदयो वृषः । ॥८॥
वृष राशि का श्वेत (सफेद) वर्ण,
लम्बी शरीर, चार पैर, रात्रिबली,
दक्षिण दिशा, ग्रामवासी, वैश्यवर्ण, भूमिप्रिय, पृष्ठोदयी
है और शुक्र इसके स्वामी हैं ।।८।।
अथ मिथुन राशिस्वरूपम्-
शीर्षोदयी नृमिथुनं सगदं च सवीणकम्
।
प्रत्यक्स्वामी द्विपाद्रात्रिबली
ग्राम्याग्रगोऽनिली ।।९।।
समगात्रो हरिद्वर्णो मिथुनाख्यो
बुधाधिपः ।
मिथुन राशि शीर्षोदय,
पुरुष-स्त्री, पुरुष गदा को लिए और स्त्री
वीणा को लिए हुए, पश्चिम दिशा का स्वामी, द्विपद, रात्रिबली, ग्राम में
रहनेवाला, वायु प्रकृति है । समान (चौखूटी) शरीर, हरे रंग की है और बुध इसके स्वामी हैं।।९अ।।
अथ कर्कराशिस्वरूपम्-
पाटलो वनचारी च ब्राह्मणो निशि
वीर्यवान् । । १० । ।
बहुपटुतरः स्थौल्यतनुः सत्त्वगुणी
बली ।
पृष्ठोदयी कर्कराशिर्मृगाङ्को
ऽधिपतिः स्मृतः । । ११ । ।
कर्क राशि का पाटल (थोड़ा लाल और
सफेद मिला हुआ) वर्ण, वनचारी, ब्राह्मण वर्ण, रात में बली है । अत्यन्त विद्वान्,
स्थूल शरीर, जल में रहने वाली, पृष्ठोदयी राशि है और चन्द्रमा इसके स्वामी हैं ।। १०- ११ ।।
अथ सिंहराशिस्वरूपम् -
सिंहः सूर्याधिपः सत्त्वी
चतुष्पात्क्षत्रियो बली ।
शीर्षोदयी बृहद्गात्रः पाण्डुः
पूर्वेद्युवीर्यवान् ।। १२ ।।
सिंह राशि सतोगुणी,
चतुष्पाद, क्षत्रिय वर्ण, बलवान्, शीर्षोदयी राशि, लम्बी
शरीर, पांडुवर्ण, पूर्वदिशा का स्वामी,
दिन में बली है और सूर्य इसके स्वामी हैं ।। १२ ।।
अथ कन्याराशिस्वरूपम्-
पार्वतीयाथ कन्याख्या
राशिर्दिनबलान्विता ।
शीर्षोदया च मध्याङ्गा
द्विपाद्याम्यचरा स्मृता ।। १३ ।।
कन्या राशि पर्वत में विशेष
रुचिवाली,
दिवाबली, शीर्षोदयराशि, मध्यम
शरीर, द्विपद, दक्षिण दिशा में
रहनेवाली, वैश्यवर्ण है । । १३ ।।
ससस्यदहना वैश्या चित्रवर्णा
प्रभञ्जिनी ।
कुमारी तमसायुक्ता बालभावा बुधाधिपः
।। १४॥
धान को भूजती हुई,
चित्र वर्ण (छींट) के वस्त्र को पहने हुई कन्या तमोगुण से युक्त
बालभाव वाली है और बुध इसके स्वामी हैं । । १४ ।।
अथ तुलाराशिस्वरूपम्-
शीर्षोदयी धुवीर्याढ्यस्तथा शूद्रो रजोगुणी
।
शुक्रोऽधिपो पश्चिमेश तुलो
मध्यतनुर्द्विपात् ।। १५ ।।
तुलाराशि शीर्षोदयी,
दिवाबली, शूद्रवर्ण, रजोगुणी,
पश्चिम दिशा की स्वामी, मध्यम शरीरवाली है और
शुक्र स्वामी हैं ।। १५ ।।
अथ वृश्चिक राशिस्वरूपम्-
शीर्षोदयोऽथ स्वल्पाङ्गो
बहुपाद्ब्राह्मणो बली ।
सौम्यस्थो दिनवीर्याढ्यः पिशङ्गो
जलभूचरः ।। १६ ।।
रोमस्वाढ्योऽतितीक्ष्णाङ्गो
वृश्चिकश्च कुजाधिपः ।
वृश्चिक राशि- शीर्षोदय राशि,
छोटा शरीर, अनेक चरण, ब्राह्मण
वर्ण, उत्तर दिशा में बली, दिवाबली,
धुम्रवर्ण जलीय भूमि पर चलने वाली है । रोम से युक्त शरीर, अत्यन्त तीखे अंगोवाली है और भौम स्वामी हैं ।। १६अ ।।
अथ धनुराशिस्वरूपम्—
अश्वजङ्घो त्वथ धनुर्गुरू स्वामी च
सात्त्विकः ।।१७।।
पिङ्गलो निशि वीर्याढ्यः पावकः
क्षत्रियो द्विपाद् ।
आदावन्ते चतुष्पाद् समगात्रो
धनुर्धरः । । १८ ।।
धनु राशि घोड़े का जंघा है,
सात्त्विक राशि है । पिंगल वर्ण, रात्रिबली,
अग्निराशि, क्षत्रिय वर्ण, पूर्वार्ध द्विपद और उत्तरार्ध चतुष्पद, समान शरीर,
धनुष को लिये हुए है ।। १७- १८ ।।
पूर्वस्थो वसुधाचारी
तेजवान्पृष्ठतोद्गमी ।
पूर्वदिशा का स्वामी,
भूमि पर रहने वाली, तेजस्वी, पृष्ठोदयी है और गुरु इसके स्वामी हैं ।
अथ मकरराशिस्वरूपम्-
मन्दाधिपस्तमी भौमी याम्येट् च निशि
वीर्यवान् ।। १९ ।।
पृष्ठोदयी बृहद्गात्रः मकरो जलभूचरः
।
आदौ चतुष्पादन्ते च द्विपदो जलगो
मतः ।। २० ।।
मकर राशि तमोगुणी,
भूतत्व, दक्षिण दिशा का स्वामी, रात्रिबली है । पृष्ठोदयी, बड़ा शरीर, जलीय भूमि में चलनेवाली, पूर्वार्ध चतुष्पद और
उत्तरार्ध द्विपद, जल में रहने वाली है और शनि स्वामी हैं ।।१९-२०
।।
अथ कुम्भराशिस्वरूपम्—
कुम्भः कुम्भी नरो बभ्रुः
वर्णमध्यतनुर्द्विपात् ।
ध्रुवीय जलमध्यस्थो वातशीर्षोदयी
तमः ।। २१ ।।
शूद्रः पश्चिमदेशस्य स्वामी
दैवाकरिः स्मृतः ।
कुम्भ राशि - घड़ा लिये हुए,
पुरुष नेवले के रंग के जैसा (भूरा) वर्ण, मध्यम
शरीर, द्विपद, दिवाबली, जल में रहने वाली (जलचर), वायु प्रकृति, शीर्षोदयी तम प्रकृति है । शूद्रवर्ण, पश्चिम देश वा
दिशा का स्वामी है और शनि स्वामी हैं ।। २१अ ।।
अथ मीनराशिस्वरूपम् -
मीनौ पुच्छास्य संलग्नी
मीनराशिर्दिवाबली ।। २२ ।।
जली सत्त्वगुणाढ्यश्च स्वस्थो जलचरो
द्विजः ।
अपदो मध्यदेही च सौम्यस्थो
ह्युभयोदयी ।। २३ ।।
मीनराशि - दो मछलियों में एक का मुख
दूसरे की पूँछ में लगा हुआ स्वरूप, दिन
में बली हैं । जलचर, सतोगुणी, ब्राह्मण
वर्ण, चरण हीन, मध्यम शरीर, उत्तर दिशा का स्वामी, उभयोदयी है ।। २२- २३ ।।
सुराचार्याधिपश्चास्य राशीनां गदितं
मया ।
त्रिंशद्भागात्मकः
स्थूलसूक्ष्माकरफलाय च ।। २४ ।।
गुरु स्वामी हैं । इस प्रकार मैंने
३० अंश के राशियों का स्वरूप कहा, इनके स्थूल और
सूक्ष्म फल ग्रन्थों में कहे हुए हैं ।। २४ ।।
इति पाराशरहोरायां पूर्वखण्डे
सुबोधिन्यां राशिस्वरूपाध्यायः द्वितीयः ।।२।।
आगे जारी............. बृहत्पाराशरहोराशास्त्र अध्याय 3
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