चंद्रघंटा
चन्द्र अर्थात् मन या मस्तिस्क, ललाट या ब्रह्मांड । जिनके ललाट पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी लिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।
नवदुर्गा - चंद्रघंटा
Chandraghanta
नवदुर्गा की तृतीय शक्ति का नाम
चंद्रघंटा है। नवरात्रि के तीसरे दिन इनका पूजन किया जाता है। माँ का यह स्वरूप
शांतिदायक और कल्याणकारी है।
पिण्डजप्रवरारुढा
चण्डकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति
विश्रुता ॥
चंद्रघंटा की कथा
पौराणिक कथा ये है कि एक बार असुरों
का स्वामी महिषासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। देवताओं और असुरों के बीच लंबे
समय तक युद्ध चला। महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्त कर लिया और उसने देवराज इंद्र को युद्ध में
हराकर स्वर्गलोक पर विजय प्राप्त कर ली और स्वर्गलोक पर राज करने लगा।युद्ध में
हारने के बाद सभी देवता इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए लिए त्रिदेवों
के पास गए। देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और
अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं
और उन्हें बंधक बनाकर स्वयं
स्वर्गलोक का राजा बन गया है। और स्वर्ग
में उनके लिए स्थान नहीं है। देवताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्याचार के कारण
देवताओं को धरती पर निवास करना पड़ रहा है।यह सुनकर ब्रह्मा, विष्णुा और भगवान शंकर को अत्यधिक क्रोध आया और क्रोध के कारण तीनों के
मुख से ऊर्जा उत्पन्न होने लगी। यह ऊर्जा दसों दिशाओं में जाकर फैल गई। इसके बाद क्रोध के कारण सभी देवगणों के शरीर से
भी ऊर्जा निकली और अब सभी ऊर्जा एकसाथ जाकर मिल गई. उन ऊर्जा से देवी चंद्रघंटा का
अवतरण हुआ । देवी चंद्रघंटा को भगवान शिव ने त्रिशूल, विष्णु
जी ने चक्र प्रदान किया । इंद्र ने वज्र और एक घंटा दिया, सूर्य
ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया । इसी तरह अन्य देवताओं ने भी
माँ चंद्रघंटा को अस्त्र शस्त्र प्रदान किए। देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए
पूरी तरह से तैयार थीं। माँ अपने अस्त्र
शस्त्र लेकर महिषासुर से युद्ध करने के लिए निकल पड़ीं।माँ चंद्रघंटा का रूप इतना
विशालकाय था कि उनके इस स्वरूप को देखकर महिषासुर अत्यंत डर गया। महिषासुर ने अपने
असुरों को माँ चंद्रघंटा पर आक्रमण करने के लिए कहा। सभी दानव दल युद्ध करने के
लिए मैदान में उतर गए। माँ चंद्रघंटा ने सभी राक्षसों का संहार कर दिया। देवी ने
एक ही झटके में ही महिषासुर के सभी दानवों और राक्षसों का संहार कर दिया और अंत
में महिषासुर का भी अंत कर दिया। इस तरह माँ चंद्रघंटा ने देवताओं को असुरों से
अभयदान दिलाया और उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति कराई।
चन्द्रघंटा देवी का स्वरूप
माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और
कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र सुशोभित हो रहा है ।
इनके शरीर का रंग तपे हुए स्वर्ण के समान चमकीला है। चेहरा शांत एवं सौम्य है और
मुख पर सूर्यमंडल की आभा छिटक रही होती है। अपने इस रूप से माता देवगण,
संतों एवं भक्त जन के मन को संतोष एवं प्रसन्न प्रदान करती हैं. मां
चन्द्रघंटा का वाहन सिंह है। इनके दस हाथ हैं। दस भुजाएं और तीन आंखें हैं ,
आठ हाथों में खड्ग, तलवार, ढाल, गदा, पाश, त्रिशूल, चक्र,धनुष, भरे हुए तरकश तथा बाण आदि अस्त्र-शस्त्र हैं। इसके अलावा देवी मां अपने दो
हाथों से अपने भक्तों को आशीष भी देती हैं। इनकी मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख
रहने की होती हैं, अत: भक्तों के कष्ट का निवारण ये शीघ्र कर
देती हैं। इनका वाहन सिंह है, अत: इनका उपासक सिंह की तरह
पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इनके घंटे की भयानक ध्वनि सदा अपने भक्तों की
प्रेत-बाधादि से रक्षा करती है। दुष्टों का दमन और विनाश करने में सदैव तत्पर रहने
के बाद भी इनका स्वरूप दर्शक और अराधक के लिए अत्यंत सौम्यता एवं शान्ति से
परिपूर्ण रहता है।
चन्द्रघंटा पूजा विधि
नवरात्रि के तीसरे दिन माँ
चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान से
निवृत होकर पवित्र वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात आमचन कर व्रत संकल्प लें। अब माँ
की स्तुति निम्न मंत्र से करें-
चन्द्रघंटा स्तवन
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा
रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः॥
पिण्डजप्रवरारूढ़ा
चण्डकोपास्त्रकेर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति
विश्रुता ॥
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत
शेखरम् ।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम् ॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा
त्रिनेत्राम् ।
खंग,
गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम
कमण्डलु मांला वराभीतकराम् ॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या
नानालंकार भूषिताम् ।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम ॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत
कपोलां तुगं कुचाम् ।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि
नितम्बनीम् ॥
अब माँ चंद्रघंटा की पूजा फल,
फूल, दूर्वा, सिंदूर,
अक्षत, धूप, दीप,
अगरबत्ती आदि से करें। इन्हें हलवा और दही अति प्रिय है। अतः प्रसाद
रूप में फल और हलवा-दही अवश्य भेंट करें। तत्पश्चात आरती करें। दिन भर उपवास रखें
। इस दिन सांवली रंग की ऐसी विवाहित महिला जिसके चेहरे पर तेज हो, को बुलाकर उनका पूजन करना चाहिए। भोजन में दही और हलवा खिलाएँ। भेंट में
कलश और मंदिर की घंटी भेंट करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र में माँ चंद्रघंटा का
संबंध मंगल ग्रह से माना जाता है। इस दिन गाय के दूध का प्रसाद चढ़ाने से बड़े से
बड़े दुख से मुक्ति मिल जाती है।
चन्द्रघंटा पूजन से लाभ
चन्द्रघंटा के पूजन करने से '
मणिपुर चक्र ' जाग्रत होता है । इनकी कृपा से
साधक को अलौकिक दर्शन होते हैं, दिव्य सुगन्ध और विविध दिव्य
ध्वनियाँ सुनायी देती हैं। समस्त पाप और बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं। साधक में
वीरता-निर्भरता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होता है। उसके मुख,
नेत्र तथा सम्पूर्ण शरीर में तेज की वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य,
अलौकिक, माधुर्य का समावेश हो जाता है। माँ
चन्द्रघंटा के साधक और उपासक जहाँ भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शान्ति और सुख का
अनुभव करते हैं। ऐसे साधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का दिव्य अदृश्य
विकिरण होता है। साधक को आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है। इनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए
परम कल्याणकारी और सदगति देने वाला है। माँ चंद्रघंटा की कृपा से साधक की समस्त
बाधायें हट जाती हैं। माँ की पूजा और उपासना करने से यश, कीर्ति
और सम्मान भी प्राप्त होता है। चंद्रघंटा की पूजा करने से जातक के सभी पाप नष्ट हो
जाते हैं और जन्म-जन्म का डर समाप्त हो
जाता है और जातक निर्भय बन जाता है।
भगवती चन्द्रघन्टा का ध्यान,
स्तोत्र और कवच निम्न है -
चन्द्रघंटा ध्यान
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत
शेखरम् ।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम् ॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा
त्रिनेत्राम् ।
खंग,
गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम
कमण्डलु माला वराभीतकराम् ॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या
नानालंकार भूषिताम् ।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम ॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत
कपोलां तुगं कुचाम् ।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि
नितम्बनीम् ॥
चन्द्रघंटा स्तोत्र
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः
शुभपराम् ।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा
प्रणमाभ्यम् ॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं
मन्त्र स्वरूपणीम् ।
धनदात्री,
आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम् ॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी
ऐश्वर्यदायनीम् ।
सौभाग्यारोग्यदायिनी
चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम् ॥
चन्द्रघंटा कवच
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी
कमलानने ।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं
सर्वसिध्दिदायकम् ॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना
शापोध्दा बिना होमं ।
स्नानं शौचादि नास्ति
श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम ॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय
च
न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं
कदाचितम् ॥
चन्द्रघंटा की आरती
जय मां चन्द्रघंटा सुख धाम ।
पूर्ण कीजो मेरे काम ॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती ।
चन्द्र तेज किरणों में समांती ॥
क्रोध को शांत बनाने वाली ।
मीठे बोल सिखाने वाली ॥
मन की मालक मन भाती हो ।
चंद्रघंटा तुम वर दाती हो ॥
सुन्दर भाव को लाने वाली ।
हर संकट में बचाने वाली ॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये ।
श्रद्धा सहित तो विनय सुनाए ॥
मूर्ति चन्द्र आकार बनाए ।
शीश झुका कहे मन की बाता ॥
पूर्ण आस करो जगत दाता ।
कांचीपुर स्थान तुम्हारा ॥
कर्नाटिका में मान तुम्हारा ।
नाम तेरा रटू महारानी ॥
भक्त की रक्षा करो भवानी ।
जय मां चंद्रघंटा ।
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