Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2020
(162)
-
▼
September
(27)
- ॥ श्री भगवती स्तोत्रम् ॥
- देवीसूक्तम् Devi Suktam
- महिषासुर मर्दिनि स्तोत्र
- दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् Durgashtottara Shat...
- नवदुर्गा – सिद्धिदात्री Siddhidatri
- नवदुर्गा – महागौरी Mahagouri
- नवदुर्गा – कालरात्रि Kalaratri
- श्रीदेव्यथर्वशीर्षम्
- माँ दुर्गा के 32 नाम स्तोत्र
- सप्तश्लोकी दुर्गा
- सिद्ध कुंजिका स्तोत्र
- डी पी कर्मकांड भाग१४- सर्वतोभद्र मंडल Sarvatobhadr...
- नवदुर्गा – कात्यायनी Katyayani
- नवदुर्गा – स्कन्दमाता Skandamata
- डी पी कर्मकांड भाग- १३ चौसठ योगनी पूजन chousath yo...
- डी पी कर्मकांड भाग- १२ षोडशमातृकापूजन shodasha mat...
- डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृतमातृका पूजन Saptaghr...
- नवदुर्गा – कुष्मांडा kushmanda
- विश्वकर्मा पूजन पद्धति Vishvakarma pujan paddhati
- श्री विश्वकर्मा चालीसा व विश्वकर्माष्टकम्
- श्री विश्वकर्मा कथा shri Vishvakarma katha
- श्राद्ध व तर्पण
- पितृस्त्रोत PITRI STOTRA
- नवदुर्गा - चंद्रघंटा chandraghanta
- नवदुर्गा - ब्रह्मचारिणी Brahmacharini
- नवदुर्गा - शैलपुत्री Shailaputri
- नवरात्रि व्रत कथा Navratri vrat katha
-
▼
September
(27)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
नवदुर्गा - ब्रह्मचारिणी Brahmacharini
नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के नौ रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं , जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। नवरात्र में द्वितीय दिवस नवदुर्गा का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी का पूजन किया जाता है।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥
ब्रह्म+
चारिणी= ब्रह्मचारिणी । ब्रह्म अर्थात तप या तपस्या और चारिणी अर्थात आचरण करने
वाली । ब्रह्मचारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली।
पुराणों
में कथा आता है कि- हिमालय की पुत्री ने नारदजी
के उपदेश से भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। कठिन तपस्या
के कारण ही इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है । इन्होंने खुले आकाश के नीचे
वर्षा और धूप के विकट कष्ट सहते हुए एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और
सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं। इसके बाद तीन हज़ार वर्ष तक केवल ज़मीन पर
टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर फिर कई हज़ार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार रहकर भगवान
शंकर की आराधना करती रहीं। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया । इस
कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया था। देवता,
ॠषि,
सिद्धगण,
मुनि सभी
ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या की सराहना करने लगे। अन्त में ब्रह्मा जी ने प्रसन्न
होकर ब्रह्मचारिणी से कहा- हे देवी ! मैं तुम्हारे इस कठोर तपस्या से अति प्रसन्न
हूँ। आज तक किसी ने इस प्रकार की ऐसी कठोर तपस्या नहीं की । तुम्हारी सारे मनोरथ पूर्ण
होगी और भगवान शिव तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे । अब तुम तपस्या छोड़ घर लौट
जाओ।
ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत दिव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला
एवं बाएँ हाथ में कमण्डल है।
नवरात्र में
व्रत रहकर माता का पूजन श्रद्धा भाव के साथ किया जाता है। ब्रह्मचारिणी पूजन के
लिए आचमन, गौरी-गणेश, नवग्रह, मातृका व कलश स्थापना आदि के बाद माताजी की मूर्ति का पूजन करें । सबसे
पहले लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और उसके ऊपर मां ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या
चित्र स्थापित करें । तत्पश्चात् षोडशोपचार
विधि से पुजा करें ।
माँ दुर्गा का
यह स्वरूप भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप,
त्याग,
वैराग्य,
सदाचार व संयम
की वृद्धि होती है। सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है। इनकी उपासना से साधक
का स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होता है।
माता ब्रह्मचारिणी का पूजन, ध्यान, स्तोत्र, कवच आदि इस प्रकार है-
नवदुर्गा - ब्रह्मचारिणी Brahmacharini Dhyan
ध्यान
वन्दे वांछित
लाभाय चन्द्रार्घकृत शेखराम् ।
जपमाला
कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम् ॥
गौरवर्णा
स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम ।
धवल परिधाना
ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम् ॥
परम वंदना
पल्लवराधरां कांत कपोला पीन ।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥
नवदुर्गा - ब्रह्मचारिणी Brahmacharini stotra
स्तोत्र
तपश्चारिणी
त्वंहि तापत्रय निवारणीम् ।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी
प्रणमाम्यहम् ॥
शंकरप्रिया
त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी ।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम् ॥
नवदुर्गा - ब्रह्मचारिणी Brahmacharini Kavacham
कवच
त्रिपुरा में
हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी ।
अर्पण सदापातु
नेत्रो, अर्धरी च कपोलो ॥
पंचदशी कण्ठे
पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी ॥
षोडशी सदापातु
नाभो गृहो च पादयो ।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी ।
नवदुर्गा - ब्रह्मचारिणी Brahmacharini Aarti
आरती
जय अंबे
ब्रह्माचारिणी माता । जय चतुरानन प्रिय सुख दाता ।
ब्रह्मा जी के
मन भाती हो । ज्ञान सभी को सिखलाती हो ।
ब्रह्मा मंत्र
है जाप तुम्हारा । जिसको जपे सकल संसारा ।
जय गायत्री
वेद की माता । जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता ।
कमी कोई रहने
न पाए । कोई भी दुख सहने न पाए ।
उसकी विरति
रहे ठिकाने । जो तेरी महिमा को जाने ।
रुद्राक्ष की
माला ले कर । जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर ।
आलस छोड़ करे
गुणगाना । मां तुम उसको सुख पहुंचाना ।
ब्रह्माचारिणी
तेरो नाम । पूर्ण करो सब मेरे काम ।
भक्त तेरे
चरणों का पुजारी । रखना लाज मेरी महतारी ।
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: