केतु चालीसा
श्री केतु चालीसा,
केतु ग्रह को समर्पित एक भक्ति गीत है, जिसमें
उनकी महिमा, गुण, और कृपा का उल्लेख
किया गया है। इसमें 40 छंद होते हैं, जो संकटों को हराने और
शांति व समृद्धि प्रदान करने वाले देवता केतु की प्रार्थना करते हैं। केतु देव को सर्पाकार
छाया ग्रह कहा जाता है। वे ग्रहों में विशिष्ट और संकटों को दूर करने वाले देवता
हैं। उनकी कृपा से जीवन के सभी प्रकार के कष्ट समाप्त हो जाते हैं। केतु देव को
मोक्ष के दाता कहे गए हैं । वे भौतिक और आध्यात्मिक समस्याओं को हल करने में सहायक
माने जाते हैं।
केतु चालीसा का पाठ करने के क्या
लाभ हैं?
श्री केतु चालीसा और उनकी पूजा
संकटों से मुक्ति, मानसिक शांति,
और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। उनके मंत्रों और
उपायों का पालन करके जीवन में संतुलन, सुख, और समृद्धि पाई जा सकती है।
केतु चालीसा का पाठ किस दिन और किस
समय करना सबसे शुभ माना जाता है?
केतु देव की पूजा विधि को सही ढंग
से अपनाने से उनके अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है और उनकी कृपा प्राप्त की जा
सकती है। केतु चालीसा का पाठ काले अथवा स्वच्छ वस्त्र पहनकर और काले कंबल के आसन
में बैठकर सूर्योदय से पहले शनिवार या बुधवार से प्रारंभ करना सर्वोत्तम है। चालीसा
का पाठ करने से पूर्व केतु देव का पूजन करें। पूजा स्थल को स्वच्छ करें और केतु
देव का चित्र या यंत्र स्थापित करें। सरसों के तेल का लोहे का दीपक जला केतु देव
का ध्यान कर पूजन प्रारंभ करें। काले तिल, नीले और काले फूल, काला वस्त्र, केसर,
चंदन, गुड़, और
नारियल अर्पित करें। गुड़, उड़द और काले चने का भोग लगाएं।
संभव हो तो
केतु बीज मंत्र:
"ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे
नमः।"
अथवा
केतु गायत्री मंत्र:
"ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोमस
शरीराय धीमहि तन्नः केतु प्रचोदयात।"
अथवा
"ॐ कें केतवे नमः" मंत्र
का 108 बार जाप करें। श्रद्धा और भक्ति से केतु चालीसा का पाठ करें और काले तिल तथा
गुड़ का हवन करें। गरीबों को गुड़,सरसों का तेल, काले तिल,
लोहे के बर्तन, और काले वस्त्र का दान करें।
गाय को गुड़ और रोटी खिलाएं।
श्री केतु चालीसा
Ketu Chalisa
केतुचालीसा
॥ दोहा ॥
नमो नमो श्री केतु सुखकारी ।
कष्ट हरो संताप हमारे ॥
जयति जयति श्री केतु महराजा ।
भव बंधन से सबको त्राजा ॥
॥ चौपाई ॥
जयति जयति केतु देव दयाला ।
सदा भक्तन के संकट हारा ॥
केतु देव छाया ग्रह जाने ।
सभी ग्रहों का दोष मिटाने ॥
सिर कटा पर धड़ ना छोड़ा ।
अमृत पान किया संत मोड़ा ॥
राहु केतु संग्राम मचाया ।
देवताओं को भी डराया ॥
भानु ग्रास चंद्र को धाया ।
सभी ग्रहों पर प्रभाव दिखाया ॥
केतु ग्रह दुष्ट नरक सँसारा ।
सभी संकटों को दूर भगानेवाला ॥
केतु देव की महिमा भारी ।
सभी ग्रहों में केतु न्यारे ॥
केतु ग्रह का प्रभाव हटावे ।
सभी जनों को सुख दिलावे ॥
कालसर्प दोष भी टारे ।
केतु चालीसा जो जन गावे ॥
केतु ग्रह के मंत्र जपे जो ।
जीवन में सब सुख पावे सो ॥
शत्रु से जो भयभीत होवे ।
केतु देव का ध्यान धरावे ॥
केतु देव की शरण जो आवे ।
सभी कष्टों से मुक्ति पावे ॥
केतु देव का ध्यान लगावे ।
जीवन में सुख शांति पावे ॥
केतु देव का यश गावे ।
सभी संकट दूर भगावे ॥
भक्ति भाव से केतु देव को ।
जो भी भक्त सुमिरे मन में ॥
सभी संकट,
कष्ट मिटावे ।
केतु देव कृपा बरसावे ॥
केतु देव की शरण जो आवे ।
जीवन में सभी सुख पावे ॥
केतु देव का यश गावे ।
सभी संकट दूर भगावे ॥
कृपा दृष्टि केतु देव की ।
जो भी भक्त मन में ध्यावे ॥
केतु देव के चरणों में ।
सभी भक्त शीश नवावे ॥
केतु देव की महिमा न्यारी ।
सभी ग्रहों में केतु भारी ॥
सर्पाकार केतु देव का ।
जो भी भक्त सुमिरे मन में ॥
केतु ग्रह का दोष मिटावे ।
सभी जनों को सुख दिलावे ॥
कृपा दृष्टि केतु देव की ।
सभी भक्तों को सुख पावे ॥
केतु देव का ध्यान धरावे ।
जीवन में सुख शांति पावे ॥
केतु देव का यश गावे ।
सभी संकट दूर भगावे ॥
भानु चंद्र जो केतु ग्रसे ।
सभी ग्रहों पर केतु बसे ॥
केतु देव की महिमा न्यारी ।
सभी ग्रहों में केतु भारी ॥
सर्पाकार केतु देव का ।
जो भी भक्त सुमिरे मन में ॥
केतु ग्रह का दोष मिटावे ।
सभी जनों को सुख दिलावे ॥
भानु चंद्र जो केतु ग्रसे ।
सभी ग्रहों पर केतु बसे ॥
केतु देव की महिमा न्यारी ।
सभी ग्रहों में केतु भारी ॥
सर्पाकार केतु देव का ।
जो भी भक्त सुमिरे मन में ॥
केतु ग्रह का दोष मिटावे ।
सभी जनों को सुख दिलावे ॥
भानु चंद्र जो केतु ग्रसे ।
सभी ग्रहों पर केतु बसे ॥
केतु देव की महिमा न्यारी ।
सभी ग्रहों में केतु भारी ॥
सर्पाकार केतु देव का ।
जो भी भक्त सुमिरे मन में ॥
॥ दोहा ॥
नमो नमो श्री केतु सुखकारी ।
कष्ट हरो संताप हमारे ॥
जयति जयति श्री केतु महराजा ।
भव बंधन से सबको त्राजा ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥
राहु केतु की आरती
राहु व केतु की कोई विशिष्ट आरती नहीं
है, लेकिन नवग्रह की आरती से ही राहु
व केतु की आरती की जाती है, यहाँ पाठकों के लाभार्थ राहु व केतु
की संयुक्त आरती दिया जा रहा है।
॥राहु केतु की आरती॥
आरती राहु केतु तुम्हारी
छवि उत्तम सूरत अति प्यारी
आरती राहु केतु तुम्हारी ॥
स्वर भानु सिर धड़ यह नामा
कोटि कोटि हे देव प्रणामा ॥
पूजे ध्यावे हो सुखकारी
कटे अमंगल विपदा भारी ॥
आरती राहु केतु तुम्हारी
छवि उत्तम सूरत अति प्यारी ॥
सूर्य चंद्र से नहीं याराना
ग्रहण लगाया सब जग जाना ॥
सभी दिशाओं के तुम स्वामी
एक नहीं तुम बहु आयामी
कष्ट सदा भक्तन तुम टारी ॥
आरती राहु केतु तुम्हारी
छवि सूरत अति प्यारी ॥
नवग्रह में है नाम तुम्हारा
सुमिरी सुमिरी सुमिरत संसारा ॥
रथ अरुढ़ भ्रमण प्रभु किन्हा
आठ श्वान है रथी नगीना
प्रभु सुदृष्टि अति मंगलकारी ॥
आरती राहु केतु तुम्हारी
छवि उत्तम सूरत अति प्यारी ॥
राहु केतु लोक तुम्हारा
छाया ग्रह जाने संसारा ॥
भाला मूसल कर अति सोहे
बरबस ही सबका मन मोहे
पत्नी नाम कराली न्यारी ॥
आरती राहु केतु तुम्हारी
छवि उत्तम सूरत अति प्यारी ॥
विप्रचित पिता सिंहका माता
नाम लेत धन वैभव आता ॥
राहु केतु जो गुण गाए
उसका स्वा कुटुंब हरसाए
देव लेहु सुधि अब की बारी ॥
आरती राहु केतु तुम्हारी
छवि सूरत अति प्यारी॥
खुद वशिष्ठ प्रभु आरती गावा
पुष्प दीप नैवेद्य चढ़ावा ॥
माया मोक्ष प्रदायक स्वामी
बार-बार है तुम्हें नमामी
धन संपदा असीमित सारी॥
आरती राहु केतु तुम्हारी
छवि उत्तम सूरत अति प्यारी ॥
श्री राहु केतु देव आरती समाप्त ।।
श्री केतु चालीसा व आरती समाप्त ।।

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