हरिद्रा गणेश कवच
हरिद्रा गणेश कवच का नियमित पाठ
करने से विद्या-बुद्धि, धन-संपत्ति,
शीघ्र विवाह, संतान, सभी बाधाओं से मुक्ति, विजय, ख्याति और सिद्धि प्राप्त
होती है।
हरिद्रा गणेश कवचम्
Haridra Ganesh kavach
हरिद्रा गणेश कवच हिंदी भावार्थ सहित
हरिद्रागणेश कवच
हरिद्रा गणपति कवच
॥ अथ हरिद्रा गणेश कवच ॥
ईश्वर उवाच
शृणु वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं
प्रिये ।
पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते सर्व
संकटात् ॥१॥
ईश्वर ने ( माता पार्वती से ) कहा -
हे प्रिये, मैं सभी सिद्धियों को देने वाले
कवच का वर्णन करता हूँ। तुम सुनो। इसके पाठ करने -कराने वाले के सभी संकट दूर हो
जाते है।
अज्ञात्वा कवचं देवि गणेशस्य मनुं
जपेत् ।
सिद्धिर्नजायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि
॥ २॥
जो इस कवच का ज्ञान प्राप्त किये
बिना ही गणेश मंत्र का जप करता है, उसे
अनेक (करोड़ों) कल्पों में सिद्धि नहीं प्राप्त होती।
ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च
शिखोपरि ।
सम्मोदो भ्रूयुगे पातु भ्रूमध्ये च
गणाधिपः ॥ ३॥
ॐ आमोद मेरे सिर की रक्षा करें,
प्रमोद मूर्ध्दा देश की रक्षा करें, संमोद
दोनों भौंहों की रक्षा करें और गणाधिप भ्रू मध्य की रक्षा करें।
गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां
गणनायकः ।
गणक्रीडान्वितः पातु वदने
सर्वसिद्धये ॥ ४॥
गणक्रीड दोनों नेत्र,
गणनायक नासिका, गणक्रीडन्वित मुख मंडल की
रक्षा करें, जिससे मुझे सर्व सिद्धि प्राप्त हो सके।
जिह्वायां सुमुखः पातु ग्रीवायां
दुर्मुखः सदा ।
विघ्नेशो हृदये पातु विघ्ननाथश्च
वक्षसि ॥ ५॥
सुमुख मेरी जीभ की,
दुर्मुख ग्रीवा की, विन्घेश ह्रदय की और विन्घनाथ
वक्ष : स्थल की सदा रक्षा करें।
गणानां नायकः पातु बाहुयुग्मं सदा
मम ।
विघ्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च
लिङ्गके ॥ ६॥
गणनायक मेरे दोनों भुजाओं की सदा
रक्षा करें, विघ्नकर्ता मेरे उदर की और
विघ्नहर्ता लिंग की रक्षा करें।
गजवक्त्रः कटीदेशे एकदन्तो नितम्बके
।
लम्बोदरः सदा पातु गुह्यदेशे
ममारुणः ॥ ७॥
गजवक्त्र कटिप्रदेश की,
एकदन्त नितम्ब की तथा लंबोदर और अरुण मेरे गुप्तांगों की सदा रक्षा
करें।
व्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे
सदा ।
जापकः सर्वदा पातु जानुजङ्घे
गणाधिपः ॥ ८॥
हारिद्रः सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः
।
व्यालयज्ञोपवीती मेरे दोनों पैरों
की तथा जापक गणाधिप मेरे घुटनों और जांघों की रक्षा करें। गणनायक हरिद्रा गणपति
मेरे सर्वांग की सदैव रक्षा करें।
हरिद्रा गणेश कवच महात्म्य
य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य
महेश्वरि ॥ ९॥
कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम्
।
सर्वसिद्धिकरं
साक्षात्सर्वपापविमोचनम् ॥ १०॥
हे महेश्वरी,
यह सर्व सिद्ध नामक कवच सभी विघ्नों का नाशक और सर्व सिद्धि दायक
है। जो इसका नित्य पाठ करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते
हैं।
सर्वसम्पत्प्रदं
साक्षात्सर्वदुःखविमोक्षणम् ।
सर्वापत्तिप्रशमनं
सर्वशत्रुक्षयङ्करम् ॥ ११॥
यह कवच सभी सम्पत्तियों को प्रदान
करने वाला, सभी पापों से मुक्त करने वाला
और सभी शत्रुओं का नाश करने वाला है ।
ग्रहपीडा ज्वरा रोगा ये चान्ये
गुह्यकादयः ।
पठनाद्धारणादेव नाशमायन्ति
तत्क्षणात् ॥१२॥
ग्रह-पीडा,
ज्वरादि रोग और अन्य प्रेत-पिशाचादि सम्बन्धी कष्ट इसके पाठ और धारण
करने से तत्क्षण दूर हो जाते हैं ।
धनधान्यकरं देवि कवचं सुरपूजितम् ।
समं नास्ति महेशानि त्रैलोक्ये
कवचस्य च ॥१३॥
हारिद्रस्य महादेवि विघ्नराजस्य
भूतले ।
किमन्यैरसदालापैर्यत्रायुर्व्ययतामियात्
॥१४॥
हे देवि ! यह कवच देवताओं द्वारा
पूजित और धनधान्य को प्रदान करने वाला है । हे महेश्वरि ! इस हरिद्रागणपतिकवच के
समान [प्रभावकारी] इस धरातल पर अथवा त्रिलोकी में अन्य कुछ भी नहीं है । अतः अन्य
असत् वार्ता में आयु नष्ट करने से क्या लाभ है?
॥ इति श्री विश्वसारतन्त्रे हरिद्रागणेशकवचं सम्पूर्णम् ॥

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