श्रीवेंकटेश करावलंब स्तोत्र
श्रीशृंगेरी के जगद्गुरु श्री
नृसिंहभारति स्वामि द्वारा रचित श्रीवेंकटेश करावलंब स्तोत्र भगवान् श्री
श्रीनिवास (श्रीवेङ्कटेश) के प्रति एक भक्तिपूर्ण स्तुति है। जिसके नियमित पाठ
करने से ज्ञान, भक्ति प्राप्त होता है तथा पाप, ताप, रोग, संकट व निर्धनता का नाश
होता है।
श्रीवेङ्कटेश करावलम्बस्तोत्रम्
करावलम्ब का अर्थ है "हाथ का
सहारा अथवा आश्रय"। इस स्तोत्र में भक्त भगवान से जीवन के उतार-चढ़ावों में
उनका आश्रय माँगता है।
श्रीवेङ्कटेश करावलम्ब स्तोत्रम्
shri Venkatesh karavalamba stotra
श्रीवेङ्कटेशपदपङ्कजषट्पदेन स्तोत्रम्
श्रीवेङ्कटेशकरावलम्ब स्तोत्र
श्रीवेङ्कटेशकरावलम्बम्
श्रीशेषशैलसुनिकेतन दिव्यमूर्ते
नारायणाच्युत हरे नलिनायताक्ष ।
लीलाकटाक्षपरिरक्षितसर्वलोक
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ १॥
शेष पर्वत पर निवास करने वाले,
दिव्य स्वरूप वाले, नारायण, अच्युत, हरि, कमल नयन वाले, अपनी लीला-कटाक्ष दृष्टि से ही सभी
लोकों की रक्षा करने वाले हे श्रीवेंकटेश, मुझे अपने हाथ का
सहारा प्रदान करें।
ब्रह्मादिवन्दितपदाम्बुज शङ्खपाणे
श्रीमत्सुदर्शनसुशोभितदिव्यहस्त ।
कारुण्यसागर शरण्य सुपुण्यमूर्ते
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ २॥
ब्रह्मा और अन्य देवता जिनके कमल
चरणों की वंदना करते हैं। जिनके दिव्य हाथों में शंख व सुदर्शन चक्र शोभायमान है।
ऐसे करुणा के सागर, आश्रयदाता, पुण्यमूर्ति श्री वेंकटेश्वर मुझे आश्रय प्रदान
करें।
वेदान्त-वेद्य भवसागर-कर्णधार
श्रीपद्मनाभ कमलार्चितपादपद्म ।
लोकैक-पावन परात्पर पापहारिन्
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ ३॥
हे वेदान्त से जानने योग्य,
भवसागर से पार लगाने वाले, श्रीपद्मनाभ
(कमलनाभि वाले), लक्ष्मीजी से पूजित चरण वाले,
समस्त लोकों को पावन करने वाले, परात्पर और पापों
का नाश करने वाले श्री वेंकटेश, मुझे आश्रय प्रदान करें।
लक्ष्मीपते निगमलक्ष्य निजस्वरूप
कामादिदोषपरिहारक बोधदायिन् ।
दैत्यादिमर्दन जनार्दन वासुदेव
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ ४॥
काम आदि (काम,
क्रोध, मद, लोभ, मोह, ईर्ष्या) दोषों को दूर करने वाले, ज्ञान देने
वाले और असुरों को मारने वाले हे लक्ष्मीपति, जनार्दन,
वासुदेव, श्री वेंकटेश, मुझे
आश्रय प्रदान करें।
तापत्रयं हर विभो रभसान्मुरारे
संरक्ष मां करुणया सरसीरुहाक्ष ।
मच्छिष्यमित्यनुदिनं परिरक्ष विष्णो
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ ५॥
हे विष्णो,
कमल-नेत्रों वाले, विभो (सर्वव्यापी), मुरारे (मुर नामक दैत्य का वध करनेवाले), करुणासागर,
आप मेरे त्रिविधताप (तीन प्रकार के दुखों- आध्यात्मिक, आधिभौतिक
और आधिदैविक) को शीघ्र ही नष्ट करें और सदा मेरी रक्षा करें, हे भगवान श्रीवेंकटेश
मुझे आश्रय प्रदान करें।
श्रीजातरूपनवरत्नलसत्किरीट-
कस्तूरिकातिलकशोभिललाटदेश ।
राकेन्दुबिम्बवदनाम्बुज वारिजाक्ष
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ ६॥
जिनके माथे पर कस्तूरी का तिलक
सुशोभित है, मुख पूर्णिमा के चन्द्र के समान, नेत्र कमल के समान सुंदर हैं और रत्नों
से जड़े मुकुट जो श्रेष्ठ रत्नों से जगमगा रहे हैं, ऐसे भगवान् श्री वेंकटेश्वर मुझे आश्रय प्रदान करें।
वन्दारुलोक-वरदान-वचोविलास
रत्नाढ्यहारपरिशोभितकम्बुकण्ठ ।
केयूररत्न सुविभासि-दिगन्तराल
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ ७॥
जिनके वचन मधुर और मनोहर हैं,
रत्नों से जड़ित हार से सुशोभित शंख जैसी गर्दन वाले, जिनके केयूर (कंगन) रत्नों से सुशोभित हैं जो चारों दिशाओं को प्रकाशित
करते हैं। भक्तों को वरदान देने वाले भगवान् श्रीवेङ्कटेश मुझे आश्रय प्रदान करें।
दिव्याङ्गदाङ्कितभुजद्वय मङ्गलात्मन्
केयूरभूषण सुशोभितदीर्घबाहो ।
नागेन्द्र-कङ्कणकरद्वयकामदायिन्
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ ८॥
जिनके अंग दिव्य, मंगलकारी दो
भुजाएँ हैं। केयूर (कंगन) रूपी आभूषणों से शोभायमान लंबी भुजाओं वाले, नागेंद्र-कङ्कण
से सुशोभित दो हाथों वाले और भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करनेवाले भगवान् श्रीवेङ्कटेश
मुझे आश्रय प्रदान करें।
स्वामिन् जगद्धरण वारिधिमध्यमग्न
मामुद्धारय कृपया करुणापयोधे ।
लक्ष्मींश्च देहि मम धर्म समृद्धिहेतुं
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ ९॥
हे स्वामी! हे संसार को धारण करने
वाले! करुणा के सागर, कृपापुर्वक मुझे इस
संसार रूपी महासागर में डूबे हुए को बाहर निकालिए। हे श्रीवेङ्कटेश! मुझे धर्म की
समृद्धि के लिए धन (लक्ष्मी) भी दीजिए और आश्रय प्रदान करें।
दिव्याङ्गरागपरिचर्चितकोमलाङ्ग
पीताम्बरावृततनो तरुणार्क भास
सत्यांचनाभपरिधान सुपत्तुबन्ध
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ १०॥
दिव्य सुगंधित लेपों से सजा हुआ कोमल
अंग वाले,
उदीयमान सूर्य के समान भास्वर, सुनहरे पीले
वस्त्रों से अलंकृत और सुंदर पीताम्बर धारण किए हुए भगवान् श्रीवेङ्कटेश मुझे आश्रय
प्रदान करें।
रत्नाढ्यदामसुनिबद्ध-कटि-प्रदेश
माणिक्यदर्पणसुसन्निभजानुदेश ।
जङ्घाद्वयेन परिमोहितसर्वलोक
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ ११॥
रत्नों से जड़े हुए सुंदर वस्त्र से
बंधी कमर वाले, लाल माणिक्य दर्पण के समान सुंदर घुटनों वाले, अपनी दोनों जांघों
के बल से संपूर्ण लोकों को मोहित करने वाले भगवान् श्रीवेङ्कटेश मुझे आश्रय प्रदान
करें।
लोकैकपावन-सरित्परिशोभिताङ्घ्रे
त्वत्पाददर्शन दिने च ममाघमीश ।
हार्दं तमश्च सकलं लयमाप भूमन्
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ १२॥
गंगा आदि पवित्र नदियों से सुशोभित
चरणों वाले, जिन चरणों के दर्शन से सब पाप, अज्ञान और जीवन के अंधकार के मिट जाता
है, वह भगवान् श्रीवेङ्कटेश मुझे आश्रय प्रदान करें।
कामादि-वैरि-निवहोच्युत मे प्रयातः
दारिद्र्यमप्यपगतं सकलं दयालो ।
दीनं च मां समवलोक्य दयार्द्रदृष्ट्या
श्रीवेङ्कटेश मम देहि करावलम्बम् ॥ १३॥
मेरे काम,
क्रोध, मद, मोह, लोभ और ईर्ष्या जैसे छह रिपुओं (शत्रुओं) को, मेरी निर्धनता को मुझसे दूर
करो और मुझ पर अपनी करुणा भरी दृष्टि डालकर, हे दयालु प्रभु!
श्रीवेङ्कटेश मुझे आश्रय प्रदान करें।
श्रीवेङ्कटेश करावलम्बस्तोत्रम् महात्म्य
श्रीवेङ्कटेशपदपङ्कजषट्पदेन
श्रीमन्नृसिंहयतिना रचितं जगत्याम् ।
एतत्पठन्ति मनुजाः पुरुषोत्तमस्य
ते प्राप्नुवन्ति परमां पदवीं मुरारेः ॥
१४॥
श्री नृसिंहभारति स्वामी द्वारा
रचित इस स्तोत्र को जो मनुष्य पुरुषोत्तम श्रीवेङ्कटेश के कमल जैसे चरणों के
षट्पदेन को पढ़ते हैं, वे मुरारे (विष्णु)
का परम पद प्राप्त करते हैं।
॥ इति श्री शृङ्गेरि जगद्गुरुणा श्री नृसिंह भारति स्वामिना रचितं श्रीवेङ्कटेश करावलम्ब स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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