शारदा भुजंगप्रयात
आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शारदा
भुजंगप्रयात अष्टक स्तोत्र देवी शारदा या सरस्वती के लिए एक स्तुति है,
जिसमें उनके विविध रूपों, सौंदर्य और उनके दिव्य गुणों का वर्णन है।
इसके पाठ करने से भक्ति, ज्ञान और पुण्य की प्राप्ति होती है।
शारदाभुजङ्गप्रयाताष्टकम्
Sharada bhujanga prayat Ashtak
शारदा भुजंगप्रयात अष्टक स्तोत्र
शारदा भुजंग प्रयात
श्रीशारदा भुजङ्गप्रयात अष्टकं
सुवक्षोजकुम्भां सुधापूर्णकुंभां
प्रसादावलम्बां प्रपुण्यावलम्बाम् ।
सदास्येन्दुबिम्बां सदानोष्ठबिम्बां
भजे शारदाम्बामजस्रं मदम्बाम् ॥ १॥
जो कृपा और पुण्य का आधार हैं,
जिनके वक्षस्थल कलश के समान हैं, जो अमृत से
भरे हुए कलश स्वरूप हैं, जिनके मुख चन्द्रमा और होंठ बिम्ब
के समान हैं, मैं उस शारदा देवी का निरंतर स्मरण करता हूँ।
कटाक्षे दयार्द्रां करे ज्ञानमुद्रां
कलाभिर्विनिद्रां कलापैः सुभद्राम् ।
पुरस्त्रीं विनिद्रां
पुरस्तुङ्गभद्रां
भजे शारदाम्बामजस्रं मदम्बाम् ॥ २॥
जिनकी दृष्टि दया से युक्त है,
हाथों में ज्ञान मुद्रा है और जो सभी कलाओं से सुशोभित तथा सभी
कलाओं की तरह ही अव्यक्त और अनुपम है। जिनकी शक्ति और महिमा का कोई अंत नहीं है, जो
सदा जागृत रहती है, मैं उन देवी शारदा का निरंतर स्मरण करता हूँ। ।
ललामाङ्कफालां लसद्गानलोलां
स्वभक्तैकपालां यशःश्रीकपोलाम् ।
करे त्वक्षमालां कनत्प्रत्नलोलां
भजे शारदाम्बामजस्रं मदम्बाम् ॥ ३॥
जिनके ललाट पर चंद्रमा का चिह्न हैं,
जो मधुर संगीत में लीन रहने वाली, अपने भक्तों की एकमात्र रक्षक,
और यश और श्री से सुशोभित कपोलों वाली, जिनके हाथों में मणियों की
माला (अक्षमाला) है जो सदा चमकती रहती है, मैं उन देवी शारदा का निरंतर स्मरण करता
हूँ।
सुसीमन्तवेणीं दृशा निर्जितैणीं
रमत्कीरवाणीं नमद्वज्रपाणीम् ।
सुधामन्थरास्यां मुदा चिन्त्यवेणीं
भजे शारदाम्बामजस्रं मदम्बाम् ॥ ४॥
जिनकी मांग में सुंदर केश-गुच्छ
(वेणी) सजी है, जिनका सदैव चिंतन किया जाता है, जिनकी दृष्टि इतनी सुंदर है कि
उससे हिरण भी लज्जित हो जाएं, तोते के समान
मधुर वाणी वाली, अपने हाथों में वज्र धारण करनेवाली, अमृत के समान मधुर मुख वाली, ऐसी मेरी माँ शारदा का
मैं सदा आनंद से भजन करता हूँ ।
सुशान्तां सुदेहां दृगन्ते कचान्तां
लसत्सल्लताङ्गीमनन्तामचिन्त्याम् ।
स्मरेत्तापसैः सङ्गपूर्वस्थितां तां
भजे शारदाम्बामजस्रं मदम्बाम् ॥ ५॥
शांत सुंदर शरीर वाली,
आँखों के किनारे तक सुंदर केश वाली, अत्यंत पतली (लता के समान अंगों
वाली) और अनंत तथा अचिंत्य (जिसका चिंतन या वर्णन करना संभव न हो) अंगों वाली और जिनका
स्मरण ऋषियों द्वारा किया जाता है, मैं उन माँ शारदा का निरंतर स्मरण करता हूँ।
कुरङ्गे तुरङ्गे मृगेन्द्रे
खगेन्द्रे
मराले मदेभे महोक्षेऽधिरूढाम् ।
महत्यां नवम्यां सदा सामरूपां
भजे शारदाम्बामजस्रं मदम्बाम् ॥ ६॥
जो हिरण,
घोड़ा, सिंह, गरुड़,
हंस, हाथी, और वृषभ जैसे
विभिन्न पशुओं पर विराजमान हैं, जो महा नवमी तिथि पर सदा सामरूप में विद्यमान हैं।
मैं उन माता शारदा का निरंतर स्मरण करता हूँ।
ज्वलत्कान्तिवह्निं जगन्मोहनाङ्गीं
भजे मानसाम्भोजसुभ्रान्तभृङ्गीम् ।
निजस्तोत्रसङ्गीतनृत्यप्रभाङ्गीम्
भजे शारदाम्बामजस्रं मदम्बाम् ॥ ७॥
जो प्रज्ज्वलमान,
तेजवान अग्नि के समान दीप्तिमान, संसार को मोहने वाली, मन रूपी कमल
पर भँवरे की तरह विचरण करने वाली, अपने स्तोत्र के गायन और नृत्य से तेज और प्रभा
युक्त हैं, मैं उन देवी शारदा को निरंतर भजता हूँ।
भवाम्भोजनेत्राजसम्पूज्यमानां
लसन्मन्दहासप्रभावक्त्रचिह्नाम् ।
चलच्चञ्चलाचारुताटङ्ककर्णां
भजे शारदाम्बामजस्रं मदम्बाम् ॥ ८॥
जिनका चेहरा प्रसन्नतापूर्ण,
मंद मुस्कान और तेजस्वी मुख-चिह्नों से सुशोभित है, जिनके कानों में
हिलते-डुलते (चंचल) और सुन्दर कुंडल सुशोभित हैं, जो कमल की पंखुड़ियों जैसे
नेत्रों वाले भक्तों द्वारा पूजनीय हैं, ऐसी देवी माँ शारदा को मैं निरंतर भजता
हूँ।
इति
श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः
कृतौ शारदाभुजङ्गप्रयाताष्टक सम्पूर्णम् ॥

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