भद्रकाली अष्टक
श्रीनारायणगुरु द्वारा रचित इस भद्रकाली अष्टक का नित्य पाठ करने से सभी मनोकामना पूर्ण होता है।
श्रीभद्रकाल्यष्टकं
Bhadrakali Ashtak
भद्रकाली अष्टकम्
भद्रकाली अष्टक हिन्दी अर्थ सहित
श्रीभद्रकाल्यष्टक
श्रीमच्छङ्करपाणिपल्लवकिरल्लोलंबमालोल्लस-
नमाललोलकलापकालकबरीभारावलीभासूरीम् ।
करुणामृत्वारिराशिलहरीपीयूषवर्षावलिं
बालांबां ललितालकामनुदिनं
श्रीभद्रकाली भजे ॥१॥
जिनकी जटाएं भगवान शंकर के
हस्तकमलों से छूकर लहराती हुई दिव्य मालाओं से सुशोभित हैं। जिनकी घुंघराली और
गहरी काली अलकें उनके सौंदर्य को और भी दैवी बना रही हैं। जो करुणा और अमृतमय
शांति की तरंगों के समान मधुर एवं कल्याणकारी हैं। मैं नित्य उस भद्रकाली की वंदना
करता हूँ।
हेलादारितदारिकासुरशिरःश्रीवीरपाणोम्मद-
श्रेणीशोणितशोणिमाधरपुती
वीतिर्सास्वादिनीम् ।
पाटीरादिसुगन्धिचूचुकतीं
शाटीकुटीरस्तनीं
घोटीवृन्दसमानधातियुधीं
श्रीभद्रकाली भजे ॥ २ ॥
जिन्होंने खेल-खेल में ही दारिका
नामक असुर का सिर काट दिया, जिनके हाथों में
असुरों के रक्त से रंजित अस्त्र सुशोभित हैं। जिनके होंठ रक्त जैसे लाल हैं और जो
युद्ध की ललकार का रस लेती हैं। जिनके स्तन सुगंधित वृक्ष की तरह सुगंधित हैं और
जो रेशमी वस्त्र से ढँके हैं। जो घोड़े के समान वेगवती सेना का नेतृत्व करती हैं।
मैं नित्य उस भद्रकाली की वंदना करता हूँ।
बालार्कायुतकोटिभासुरकिरीटामुक्तमुग्धालक-
श्रेणीनिन्दितवासिकामरुसरोजकाञ्चलोरुश्रियम्
।
वीणावादनकौशलशयशयशःश्र्यानन्दसन्दायिनी-
मम्बमम्बुजलोचननामनुदिनं
श्रीभद्रकाली भजे ॥ ३ ॥
जिनके मुकुट से बाल सूर्य के
करोड़ों प्रकाश झलकते हैं, जिनकी लहराती अलकों
की शोभा वासंती कामवायु और कमल की भी सुगंध को मात देती है। जिनकी जंघाएं (जांघें)
सोने के कमल जैसी चमकती हैं। जो वीणा-वादन में निपुण हैं, यश
एवं आनंद की साक्षात स्रोत हैं। जिनकी नेत्र कमल जैसे हैं और जिनका नाम स्मरण करने
मात्र से आनंद प्राप्त होता है। मैं नित्य उस भद्रकाली की वंदना करता हूँ।
मातङ्गश्रुतिभूषिणीं
मधुधरीवाणीसुधामोषिणीं
भ्रुविक्षेपकटाक्षवीक्षणविसर्गक्षेमसंहारिणीम्
।
मातङ्गीं महिषासुरप्रमथिनीं
माधुर्यधुर्याकर-
श्रीकारोत्तपाणिपङ्कजपुतीं
श्रीभद्रकाली भजे ॥ ४ ॥
जो मातंग शास्त्रों की भव्यता से
विभूषित हैं, जिनकी वाणी से अमृत-मधु बरसता
है। जिनकी भौंहों के उठने, कटाक्ष और दृष्टि की लहर से ही
संसार की रक्षा और संहार होता है। जो महिषासुर का वध करने वाली मातंगी देवी हैं। जिनके
करकमलों से माधुर्य (माधुर्य भाव) और श्री (सौभाग्य) की धारा बहती है। मैं उस भद्रकाली
माता की वंदना करता हूँ।
मातङ्गननभद्रलेयजननीं
मातङ्गसंगामिनीं
चेतोहरितनुच्छवीं
शफरिकाचक्षुष्मतीमम्बिकाम् ।
जृंभत्प्रौढिनीशुंभशुंभमथिनीमंभोजभूपूजितां
सम्पत्सन्नत्तिदायिनीं हृदि सदा
श्रीभद्रकाली भजे ॥ ५ ॥
जो मातंग कन्या, भद्र वंश की जननी और
मातंग नामक योद्धा की संगिनी हैं, जिनकी कांति
हृदय को मोहित कर लेती है, जिनकी आँखें शफरी (छोटी मछली) की
तरह चंचल और चमकती हैं। जिन्होंने अपने प्रचंड रूप से शुंभ-निशुंभ जैसे राक्षसों
का संहार किया। जो कमलवर्णी राजाओं (भक्तों) द्वारा पूजित हैं, और जो ऐश्वर्य व समृद्धि प्रदान करती हैं। मैं उस भद्रकाली माता की वंदना
करता हूँ।
आनन्दाकतरङ्गिणीममलहृन्नालीकहंसीमणीं
पीनोत्तुङ्गघनस्तनां
घनलसत्पाटीरपङ्कोज्ज्वलाम् ।
क्षौमावीतनितंबबिम्बरशनासुतक्वणत्किङ्किणीं
एनाङ्कांबुजभासुरस्यान्यानां
श्रीभद्रकाली भजे ॥ ६ ॥
जो आनंद की लहरों की तरह चंचला,
निर्मल हृदयवाली, कमलपुष्प पर बैठी हंसिनी के समान पवित्र और
तेजस्वी है। जिनके स्तन उन्नत, भारी और सुंदर हैं, जिनका शरीर पाटीर पुष्पों की भांति दमकता है। जिनकी कटि रेशमी वस्त्र से
आवृत्त है, कमर में स्वर्ण कंबंध और घंटिकाएं (किंकिणियाँ)
झंकार करती हैं जिनकी कान्ति चंद्रमा को भी मात देती है और जो समस्त योगियों की
चेतना में विराजमान हैं। मैं उस माँ भद्रकाली की भजन करता हूँ।
कालांभोदकलायकोमलतनुच्छयाशीतिभूतिमत्-
संख्याननान्तरितस्तननान्तरलसन्मालाकिलन्मौक्तिकाम्
।
नाभीकूपसरोजनालविलसच्छातोदरीशापदीं
दूरंकुर्वयि देवि,
घोरदुरितं श्रीभद्रकालीं भजे ॥ ७ ॥
जिनकी देह नीले कमल की भाँति कोमल
और गहरे वर्षा-घन (मेघ) के समान श्यामवर्णी है। जिनकी छाती के मध्य में विशाल
स्तनों के बीच एक रत्नमाला दमकती है, जिसकी
नाभि में कमल का आधार है और पेट सुडौल, जल तरंगों की तरह
लहराता है। हे देवी! आप मेरी समस्त घोर बाधाओं और पापों को दूर करें। मैं उस
श्रीभद्रकाली को भजता हूँ।
आत्मीयस्तनकुंभकुङकुमारजःपङ्कारुणालंकृत-
श्रीकण्ठौरसभूरिभूतिममरीकोटिर्हीरायिताम्
।
वीणापाणिसनन्दनन्दितपदमेणीविशालेक्षणां
वेणीह्रीणितकालमेघपटलीं
श्रीभद्रकाली भजे ॥ ८ ॥
जिनका वक्षस्थल अपने ही स्तनों से
छलके हुए कुंकुम की लाली से सुशोभित है,
गर्दन पर अमरत्व की रेखाएँ चमकती हैं और शरीर की आभा देवताओं के लिए भी वरेण्य है।
जिनके करकमलों में वीणा, चरण-स्पर्श से आनंद की तरंगें उठती
हैं, जिनकी आँखें विशाल और करुणापूर्ण, वेणी काले बादलों को
भी लज्जित करती है। मैं उन भद्रकाली देवी का ध्यान करता हूँ।
श्रीभद्रकाल्यष्टकं फलश्रुति:
देवीपादपयोजपूजनमिति
श्रीभद्रकाल्यष्टकं
रोगौघाघघ्ननिलयातिमिदं प्रातः
प्रगेयं पठेत् ।
श्रेयः श्रीशिवकीर्तिसम्पदमलं
सम्प्राप्य सम्पन्मयीं
श्रीदेवीमनपायिनीं गतिमयन् सोऽयं
सुखी वर्तते ॥ ९ ॥
जो भक्त इस श्रीभद्रकाल्यष्टक का
पवित्र भाव से नित्य प्रातःकाल पाठ करता है, उसे समस्त रोगों से मुक्ति, जीवन में
उत्तम सुख, शिव-पद की महिमा, कीर्ति और समृद्धि प्राप्त होती है। ऐसा व्यक्ति भगवती की कृपा से नित्य
सुखद मार्ग पर चलता है और परम शांति को प्राप्त करता है।
श्रीनारायणगुरुविरचितं श्रीभद्रकाल्यष्टकं सम्पूर्णम् ।

Post a Comment