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अपीतकुचांबा स्तोत्र

अपीतकुचांबा स्तोत्र

श्री अप्पय्यदीक्षित द्वारा रचित अपीतकुचांबा स्तोत्र का पाठ बुखार और अन्य शारीरिक पीड़ा को कम करने के लिए तथा देवी के प्रति भक्ति व्यक्त करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

अपीतकुचांबा स्तोत्र

अपीतकुचाम्बा स्तोत्रम्

"अपीतकुचे" का अर्थ है "बिना स्तनपान कराए" अथवा "अम्ब" का अर्थ माँ है, और "अपीतकुचे" का अर्थ है पीत कुचे वाली ("पीतकुचे" पीले वस्त्रवाली) या पीली त्वचा वाली देवी है। यह अपीतकुचांबा नामक देवी को संदर्भित करता है। इस स्तोत्र में भक्त देवी की विनती करता है कि "अम्ब" (माँ) मैं, पीले वस्त्रों वाली, तुझे स्मरण करता हूँ"।

अपीतकुचाम्बा स्तोत्रं

Apitakuchamba stotra

अपीतकुचाम्बास्तवः

अपीतकुचांबा स्तोत्र

आनन्दसिन्धुलहरीममृतांशुमौले-

        रासेविनाममृत-निर्मित-वर्तिमक्ष्णोः ।

        आनन्दवल्लिविततेरमृतार्द्रगुच्छं

        अम्ब स्मराम्यहमपीतकुचे वपुस्ते ॥ १॥

जिनके चरण अमृत से बनी हुई और अत्यंत सुंदर है, जो आनंद और शीतलता प्रदान करती हैं। हे पीले वस्त्रों वाली अम्बे माँ! मैं आपकी उस आनंद रूपी वल्ली (लता) के अमृत से भीगे हुए गुच्छे (गुच्छों) को स्मरण करता हूँ, जो अमृत से पूर्ण हैं।

        निर्निद्र-कोकनद-कोमलकान्तमम्ब-

        नित्यं सुधानिकरवर्षि पदं त्वदीयम् ।

        मूर्छाकरज्वररुजा मम तापितस्य

        मूर्ध्नि क्षणं सकृदपीतकुचे निधेहि ॥ २॥

जिनके चरण खिले हुए कमल की तरह कोमल और सुंदर हैं और जो नित्य ही अमृत (सुधा) की वर्षा करते हैं। हे माँ! मैं ज्वर और अन्य मूर्च्छा उत्पन्न करने वाले रोगों से पीड़ित हूँ। मेरे सिर को क्षण भर के लिए अपने अपितुकुच (अमृत) के वस्त्र से ढक दीजिए, जिससे मुझे राहत मिल सके।

        शीतांशुकोटि सुषमाशिशिरैः कटाक्षैः

        अव्याजभूतकरुणारसपूरपूर्णैः ।

        कर्पूरधूलिमिव दिक्षु समाकिरद्भिः

        अम्ब क्षणं स्नपय मामरुणाद्रिमान्ये ॥ ३॥

जो करोड़ों चन्द्रमा के समान सुंदर और शीतल हैं, जिनका कटाक्ष अव्यक्त/स्वाभाविक करुणा रस से पूर्ण है, कपूर के धूल की तरह दिशाओं में फैले हुए हैं, ऐसे अपने करुणापूर्ण कटाक्षों से हे माँ (अम्ब), मुझे क्षण भर के लिए स्नान कराओ।

        आविर्भव क्षणमपीतकुचे पुरस्तात्

        अम्ब ज्वरेण महता मम तापितस्य ।

        येन त्वदङ्घ्रिरुचिजाल-सुधाप्रवाहे

        मग्नस्तदैव तनुतापममुं त्यजेयम् ॥ ४॥

हे माँ (अम्ब), मैं ज्वर से अत्यंत पीड़ित हूँ। अपितुकुच वस्त्र के साथ मेरे सामने क्षण भर के लिए प्रकट हो जाओ। जो तुम्हारे चरणों के रस-जाल के अमृत के प्रवाह में मैं उसमें लीन हो जाऊँगा और फिर इस शरीर की पीड़ा दूर हो जायेगा।

        नानाविधैर्नलिन-जातलिपिप्रकॢप्तैः

        आनीतमूर्छमधिकं क्षुभितैर्ज्वराद्यैः ।

        आश्वासय क्षणमपीतकुचे कराग्र-

        क्रीडाकनत्कनकहल्लकसौरभेण ॥ ५॥

विभिन्न प्रकार के कमल-निर्मित अक्षरों से लिखी हुई जो धतूरा जैसी लगती है, मेरे ज्वर और अन्य व्याधियों से युक्त मन को, हे अपीतकुचाम्बा, अपने कमल के समान पवित्र मुख के अग्रभाग से निकलने वाली सुगंध से, एक क्षण के लिए भी आश्वस्त करें।

        कण्ठे विषं विषमुचो भुजगाः कपर्दे

        पार्श्वे च भूतपतयः प्रमथाश्च भीमाः ।

        शोणाचलेशमुपसृत्य भजेत को वा

        न स्यात्तवाम्ब सविधे यदि सन्निधानम् ॥ ६ ॥

जिनके पास विषैले सर्प, डरावने भूत और शिव के गण रहते हैं, और शोणाचल पर्वत पर जिनके समीप साक्षात् शिवजी स्थित रहते हैं, ऐसी दिव्य शक्ति के अतिरिक्त भक्त को किसी अन्य शक्ति या आश्रय की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि उनके सान्निध्य में ही सब कुछ प्राप्त हो जाता है, उसे अवश्य ही शांति मिलती है।

        शक्तिर्जगज्जननपालन-भञ्जनेषु

        भोगेषु दिव्यमहिषी तरुणेन्दुमौलेः ।

        सिद्धिः करप्रणयिनी तव सन्निधानं

        यन्नासि तस्य तदपीतकुचे न जाने ॥ ७॥

हे सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करनेवाली, भगवान चंद्रमौलि (शिव) प्रिया, दिव्य महिमा शक्ति वाली हे अपीतकुचाम्बा! सिद्धि उसी स्थान पर है जहाँ आपकी उपस्थिति है, यह समझ से परे है।

        त्वं साक्षिणी प्रलयभैरवताण्डवानां

        त्वं शेषिणी सहरिधातृ चराचराणाम् ।

        त्वं मोचिनी सकलसंसृतिजालकानां

        त्वां ब्रह्मसंविदमपीतकुचे नमामि ॥ ८॥

आप प्रलय की साक्षी हैं, सभी चर और अचर प्राणियों की सृजक हैं, आप सभी सांसारिक भौतिक मोहजालों से मुक्तिदाता हैं, आप ब्रह्म-चेतना हैं, हे देवी अपीतकुचांबा मैं आपको प्रणाम करता हूँ।

॥ श्री अप्पय्यदीक्षितेन्द्रैः कृतः अपीतकुचाम्बास्तवः सम्पूर्णः ॥ 

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