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एकश्लोकी नवग्रह स्तोत्र

एकश्लोकी नवग्रह स्तोत्र

एकश्लोकी नवग्रह स्तोत्र ९ ग्रहों को समर्पित एक शक्तिशाली स्तोत्र है, और इसका जाप नवग्रहों की कृपा प्राप्त करने, उनके नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए, आयु और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। इस स्तोत्र में ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभाव का वर्णन है।

एकश्लोकी नवग्रह स्तोत्र

एकश्लोकीनवग्रहस्तोत्रम्

Ek shloki Navagrah stotra

एकश्लोकी नवग्रह स्तोत्र भावार्थ सहित

एकश्लोकीनवग्रहस्तोत्र

एक श्लोकी नवग्रह स्तोत्रं

आधारे प्रथमे सहस्रकिरणं ताराधवं स्वाश्रये

माहेयं मणिपूरके हृदि बुधं कण्ठे च वाचस्पतिम् ।

भ्रूमध्ये भृगुनन्दनं दिनमणेः पुत्रं त्रिकूटस्थले

नाडीमर्मसु राहु-केतु-गुलिकान्नित्यं नमाम्यायुषे ॥

मूलाधार चक्र शरीर के सात चक्रों में से पहला और आधारभूत चक्र है। यह रीढ़ की हड्डी के आधार में स्थित है, गुदा और जननांगों के बीच स्थित है। सहस्र किरणों से प्रकाशित सूर्य मूलाधार चक्र में, स्वाधिष्ठान चक्र शरीर में स्थित एक ऊर्जा केंद्र है। यह मूलाधार चक्र के ऊपर और नाभि के नीचे स्थित होता है। स्वाधिष्ठान चक्र में चंद्र, मणिपूरक चक्र शरीर का तीसरा ऊर्जा केंद्र है जो नाभि के पीछे स्थित होता है। मणिपूरक चक्र में मंगल, अनाहत चक्र, जिसे हृदय चक्र भी कहा जाता है, शरीर के सात चक्रों में से चौथा चक्र है। यह छाती के बीच में, हृदय के पास स्थित होता है। अनाहत चक्र में बुध और विशुद्ध चक्र शरीर का पांचवां ऊर्जा केंद्र है जो कंठ में स्थित है। विशुद्ध चक्र में गुरु, आज्ञा चक्र को मन और बुद्धि के मिलन का स्थान भी कहा जाता है इसे तीसरा नेत्र भी कहा जाता है, मानव शरीर में छठा चक्र है, जो भौंहों के बीच माथे के केंद्र में स्थित होता है। आज्ञा चक्र में शुक्र सहस्रार चक्र शरीर के सात चक्रों में से अंतिम और सबसे ऊपर का चक्र है। यह सिर के शीर्ष पर स्थित होता है और इसे "हजार पंखुड़ियों वाला कमल" या "ब्रह्मरंध्र" (ईश्वर का द्वार) भी कहा जाता है। इस सहस्रार चक्र में शनि, नाडी मर्म में स्थित राहु, केतु और गुलिका को मैं नित्य आयु के लिए नमस्कार करता हूँ।

इति एकश्लोकीनवग्रहस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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