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त्रिपुरा रहस्य

त्रिपुरा रहस्य

हरित के पुत्र हरितायन द्वारा रचित त्रिपुरा रहस्य को हरितायन संहिता भी कहा जाता है। इसमें १२०००  श्लोक हैं, जिन्हें तीन खंडों में विभाजित किया गया है।

त्रिपुरा रहस्य

त्रिपुरा रहस्यम्

शक्ति के तीन पुर हैं--स्थूल, सूक्ष्म और कारण । इनका उत्पादन, पालन आदि करनेवाली महाशक्ति इन्हीं तीनों पुरों में रहती है, जिससे वह "त्रिपुरा " कहलाती है। उस महाशक्ति "त्रिपुरा भगवती का ही यह प्रभाव है कि जगत् के समस्त पदार्थ तीन तीन रूपों में ही विभक्त हैं। उत्पादक, पालक और संहारक त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश माने गये हैं । लोक भी तीन हैं-भूमि, अन्तरिक्ष और स्वर्ग । इन लोकों के नियामक देवता भी तीन हैं- अग्नि, वायु और आदित्य । वेद भी तीन माने गये हैं ऋक्, यजुः और साम । हमारे जीवों के शरीर भी तीन हैं स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर । स्थूल शरीर तो प्रत्यक्ष ही है। इसके ही स्थूल पदार्थों का निरूपण न्याय आदि शास्त्र करते हैं, किन्तु, यह स्थूल शरीर सर्वथा जड है । इसका परिचालन करनेवाला सूक्ष्म शरीर है, जिसमें पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेंद्रि प्राण तथा मन और बुद्धि ये सत्रह तत्त्व माने जाते हैं। इसका निरूपण सांख्य ने विस्तार से किया है। स्थूल शरीरों के नष्ट हो जाने पर भी सूक्ष्म शरीर बना रहता है । भिन्न भिन्न शरीरों और भिन्न भिन्न लोकों में यही सूक्ष्म शरीर जाता है और आता है । किन्तु, महाप्रलय में यह भी नष्ट हो जाता है। ऐसी स्थिति में तब प्रश्न उठता है कि ज्ञान और कर्म के संस्कार किसके आधार पर रहते हैं। यदि संस्कार न रहें, तो आगे होनेवाली सृष्टि में प्राणियों के जन्म और कर्म का कौन नियामक होगा ? अतः वेदान्त दर्शन शरीर का भी आधारभूत एक कारण शरीर मानता है । वह कारण शरीर वासनात्मक है । वह हमारी सुषुप्ति दशा में भी अपना काम करता है और महाप्रलय में भी बना रहता है । वह उसी दिन निवृत्त होता है, जिस दिन भगवती महाशक्ति की कृपा से जीव को मोक्ष प्राप्त होता है, इसलिये उसे 'अनादि- सान्त' कहते हैं । आगम शास्त्र में तो कारणशरीर से पहले के भी शरीरों का वर्णन आता है । वह कहता है । कारण शरीर तक तो भाषा की सृष्टि है; किंतु इससे आगे का महाकारण शरीर या बेन्दव शरीर बिन्दुरूपा महा- माया से बना है । गुरुजन जब शिष्य को शिक्षा देते हैं, तब इसी 'बैन्दव' शरीर को जागरित करते हैं । इसी शरीर के द्वारा उपासना की सिद्धि होती है । फिर, मुक्तिदशा में एक 'चिद्रूप कैवल्य शरीर' माना गया। उस मुक्ति के आगे भी उपासक जब उपास्य इष्टदेव की कृपा से अपने अपने इष्टदेव की नित्यलीला में प्रवेश करता है तब एक 'हंसदेह' - स्वरूप देह प्राप्त होती है । इसी को आगमशास्त्र जीवन की अन्तिम सफलता मानता है और यही उसका परम पुरुषार्थ है । आगमशास्त्र के अनुसार यह केवल भक्ति से प्राप्य है । ज्ञान से प्राप्त होनेवाला मोक्ष उसके यहाँ परम पुरुषार्थ नहीं माना जाता ।

त्रिपुरा रहस्य

उपर्युक्त 'महाकारण शरीर', 'वैन्दव शरीर' और 'विद्रूप केवल्य शरीर'- ये तीन अलौकिक शरीर हैं। किन्तु लोकव्यवहार में तो स्थूल सूक्ष्म और कारण ये तीन शरीर आते हैं । इसीलिये अवस्थायें भी तीन होती हैं- जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति । जाग्रत अवस्था का 'स्थूल शरीर' से सम्बन्ध है, स्वप्नावस्था का 'सूक्ष्मशरीर' से और सुषुप्ति अवस्था का 'कारणशरीर' से । इन सभी शरीरों और अवस्थाओं से छुटकारा पाने का उपाय बतलाने वाले वेद भी तीन हैं; यह पहले बताया जा चुका है। इन वेदों का सार रूप 'प्रणव' हैं, उसकी मात्रायें भी तीन ही हैं। इस प्रकार तीन का क्रम सर्वत्र चलता है। यही त्रयी 'त्रिपुरा' की व्यापकता की सूचना हमें देती रहती है। इस 'त्रिपुरा' का वर्णन करनेवाला 'त्रिपुरा रहस्य' आगम ग्रन्थ है। इसके भी तीन खण्ड हैं- माहात्म्यखण्ड, ज्ञानखण्ड और चर्याखण्ड । प्रथम में त्रिपुरा भगवती के अवतारों का वर्णन है । अवतारों के द्वारा उसका माहात्म्य बताया गया है। द्वितीय ज्ञानखण्ड में परतत्त्वरूपा भगवती का स्वरूप उपलक्षित किया गया है। फिर, तृतीय चर्याखण्ड में उपासना की विधि वर्णित है । चर्याखण्ड तो अभी कहीं प्राप्त ही नहीं हुआ । केवल अभी दो खण्ड ही इसके प्राप्त हैं।

त्रिपुरा रहस्य

Triupura Rahasya

इस ग्रन्थ के प्रवक्ता मेधा या सुमेधा ऋषि हैं। उन्होंने परशुराम से विद्या प्राप्त की । परशुराम ने दत्तात्रेय से, दत्तात्रेय ने ब्रह्मा से, ब्रह्मा ने विष्णु से और विष्णु ने शिव से यह विद्या प्राप्त की।

त्रिपुरा रहस्य माहात्म्यखण्ड

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