त्रैलोक्यमोहन कवच
इस त्रैलोक्यमोहन कालिका कवच का पाठ
करने से चराचर त्रैलोक्य को अवश्य ही वशीभूत किया जा सकता है, तथा इसका नित्य पाठ
करने से राज्यलाभ, पुत्रलाभ, ज्ञानलाभ, धनलाभ, कीर्तिलाभ और
जिसके द्वारा समस्त ही लाभ हो वही योग बनता है।
त्रैलोक्यमोहन कालिका कवच
Trailokya mohan kalika kavacham
त्रैलोक्यमोहन कवचम्
त्रैलोक्य मोहन कवच
जगद्वश्यकर त्रैलोक्यमोहन कवच
अस्य कालभैरवऋषिरनुष्टुप् छन्दः
श्मशानकाली देवता सर्वत्र मोहने विनियोगः॥ १५ ॥
इसके कालभैरवऋषि,
अनुष्टुप् छन्दः श्मशानकाली देवता और सर्वत्र मोहन में इसका विनियोग
है ॥ १५ ॥
"ऐं ह्रीं ह्रूं ह्र: स्वाहा
विवादेपातु मां सदा ।
क्लीं दक्षिणकालिकादेवतायै सभामध्ये
जयप्रदा ॥ १६ ॥
ह्रीं ह्रीं श्यामाङ्गि शत्रुं मारय
मारय क्रीं क्लीं
त्रैलोक्यं वशमानय ह्रीं ह्रीं
क्रीं मां रक्ष रक्ष ।
विवादे राजगेहे च द्वात्रिंशत्यक्षरा
परा ।। १७ ।।
ब्रह्मराक्षसवेतालात्सर्वतो रक्ष
मां सदा ।
कवचैर्वर्जितं यत्र तत्र मां पातु
कालिका ।
सर्वत्र रक्ष मां देवि मम
मातृस्वरूपिणी" ।। १८ ।।
त्रैलोक्यमोहन कवच महात्म्य
इत्येतत्परमं मोहं
भवद्भाग्यात्प्रकाशितम् ॥ १९ ॥
हे देवी ! तुम्हारे भाग्य से ही यह
परम मोहन प्रकाशित हुआ है ।। १९ ।।
सदा यस्तु पठेद्वापि त्रैलोक्यं
वशमानयेत् ॥ २० ॥
जो मनुष्य इसका सदा पाठ करता है,
वह तीनों लोक को वशीभूत करने में समर्थ होता है ॥ २० ॥
इदं कवचमज्ञात्वा
पूजयेद्वरिकामिनीम् ।
सर्वदा स महाव्याधिपीडितो नात्र
संशयः ।
अल्पायुः स भवेद्रोगी कथितं तव नारद
॥ २१ ॥
इस कवच को बिना जाने जो वीर कामिनी की
पूजा करता है, वह महाव्याधिग्रस्त होकर पीडित,
अल्पायु और रोगी होता है, इसमें संदेह नहीं।
हे नारद! मैंने यह तुमसे कहा ॥ २१ ॥
धारणं कवचस्यास्य भूर्जपत्रे
विशेषतः ।
समन्त्रकवचं धृत्वा इच्छासिद्धिः
प्रजायते ॥ २२ ॥
विशेषतः भोजपत्र पर लिखकर यह कवच
मन्त्रसहित धारण करने- से इष्टसिद्धि प्राप्त होती है ॥ २२ ॥
शुक्लाष्टम्यां लिखेन्मंत्री
धारयेत् स्वर्णपत्रके ।
कवचस्यास्य माहात्म्यं नालं वक्तुं
महामुने ॥ २३ ॥
मन्त्रवान् मनुष्य शुक्लाष्टमी में
इस कवच को लिख के स्वर्णपत्र में धरकर इसको धारण करे । हे महामुने ! इस कवच का
माहात्म्य अनिर्वचनीय है ॥ २३ ॥
शिखायां धारयेद्योगी फलार्थी
दक्षिणे भुजे ।
इदं कल्पद्रुमो देवि तव
स्नेहात्प्रकाशिते ।
गोपनीयं प्रयत्नेन पठनीयं महामुने ॥
२४ ॥
योगी मनुष्य शिखा में और फलार्थी
मनुष्य इसको दहिनी भुजा में धारण करै । हे देवि ! यह कल्पवृक्ष की तुल्य कवच
तुम्हारे स्नेह में प्रकाशित किया है इसको परमयत्नपूर्वक गुप्त रखकर सदा पाठ करे ॥
२४ ॥
श्रीयोगिनीतन्त्रे त्रैलोक्यमोहन कवचम् तृतीयः पटलः ॥

Jai maa kali ameya jaywant narvekar
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