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भूतशुद्धितन्त्र पटल २

भूतशुद्धितन्त्र पटल २  

भूतशुद्धितन्त्र पटल २ में मणिपूरक, अनाहत तथा सदाशिव का ध्यान का वर्णन किया गया है ।

भूतशुद्धितन्त्र पटल २

भूतशुद्धितन्त्र पटल २  

Bhoot shuddhi tantra Patal 2

भूतशुद्धितन्त्रम् द्वितीय: पटल:

भूतशुद्धितन्त्र द्वितीय पटल

भूतशुद्धितन्त्र दूसरा पटल

भूतशुद्धितन्त्रम्

अथ द्वितीय: पटलः

तदूर्ध्वं नाभिमूले तु पङ्कजं मणिपूरकम् ।

नील दशदलं शुद्धं डादिकान्ताक्षरान्वितम् ॥ 1

उसके ऊपर नाभि के मूल में तो नीले दश पत्तों वाला शुद्ध '' आदि अक्षरों से युक्त मणिपूरक नाम का कमल है।।1।।

नीलां देवीं त्रिवक्त्रां त्रिनयनलसितां दंष्ट्रिणीमुग्ररूपां

शक्तिं दधानामभयवरकरां दक्षवामक्रमेण ।

वज्रं ध्यात्वा नाभौ सुपद्मे दशदलविलसत्कर्णिके लाकिनीं ताम्

मांसाशीं गौरवर्णां भक्तोत्सुकाहृदयां विन्यसेत् साधकेन्द्रः ॥ 2

उस मणिपूरक कमल में तीन मुखों वाली तीन नेत्रों से सुशोभित तीक्ष्ण दांतों वाली उग्ररूप वाली, वज्रशक्ति को धारण करने वाली, अभय वर प्रदान करने वाली अर्थात् निडर करने वाली, दक्ष और वामक्रम से अभय वर प्रदान करने वाले हाथों वाली, दशदल सुशोभित कलियों वाले सुन्दर कमल रूप नाभि में उस लाकिनी देवी का ध्यान करके मांस खाने वाली, गौरवर्ण वाली, भक्तों के उत्सुक हृदय वाली को साधकेन्द्र के द्वारा अपने हृदय में धारण करना चाहिए ।। 2 ।।

कर्णिकायां त्रिकोणस्थ रक्ताभं वह्निबीजकम् ।

तदन्तं चैव लिङ्गं च ध्यात्वा सिद्धीश्वरो भवेत् ॥3

उस कर्णिकाओं में तीन कोणों में स्थित रक्त आभा वाले वह्निबीजक और उसके अन्त में लिंग का ध्यान करके साधक को सिद्धीश्वर हो जाना चाहिए ।। 3 ।।

बाह्योत्तरे मुखं तत्र त्रिकोणत्रयमुत्तमम् ।

हृदि पीतं द्वादशार्णं कादिठान्तार्णसंयुतम् ॥

अनाहताख्यं देवेशि ! पङ्कजं सुमनोहरम ॥4

उसका मुख बाहर उत्तर में त्रिभुजाकार तीन उत्तम त्रिकोणों से युक्त है। हृदय में बारह वर्ण क से ठ के अन्त तक पीत रंग में हैं। वे हैं-क, , , , , , , , , , , ठ ये सभी वर्ण हृदयस्थल में पीतवर्ण में स्थित हैं। भगवान् शंकर ने कहा कि हे देवेशि ! वह अनाहत नामक सुन्दर और मनोहर कमल है ।। 4 ।।

तत्र ध्यायेदिमां तां रविदलकमले कामिनीं वेदहस्तैः

पाशं शूलं वहन्तीं डमरुकमभयं धारिणीं पीतवर्णाम् ।

दध्यन्ने सक्तचित्तां... काकिनीं मत्तचित्तां पत्रार्णैः

कादिठान्तैः परिवृतवपुषां भावयेद् योगिनीं ताम् ॥5

वहाँ उस रविदल कमल वाले अनाहत नामक कमल में स्थित इस उस कामिनी काकिनी देवी का ध्यान करना चाहिए, जो देवी अनेकों सूर्यों वाले अनाहत कमल में स्थित हैं। जो देवी पाश और शूल धारण किये हुए है, हाथों में वेद है, डमरू धारण करने वाली हैं। जो पीत वर्णवाली है, जो दही और अन्न में चित्त को लगाये हुए हैं। मत्तचित्त वाली हैं। क, , , , , , , , , ञ्, , ठ इन बारह वर्णों से जिनका समस्त शरीर ढका हुआ है, ऐसी उन काकिनी योगिनी का भाव करना चाहिए ।। 5 ।।

कर्णिकायां च षट्कोणे वायुबीजयुतं महत् ।

ततः क्रोडे ईशं तदधस्त्रिकोणे बाणलिङ्गकम् ॥ 6

तन्मध्येऽष्टदलं रक्तं तत्र कल्पतरुं तथा ।

इष्टदेवासनं चारु चन्द्रार्कोपरि राजितम् ॥7

षट्कोण और कर्णिका में वायु बीजयुत (वायु के कारणरूप महान्) स्थित हैं। वही कोण ईश हैं, उसके नीचे त्रिकोण (त्रिभुज) में वाणलिङ्ग है, उसके मध्य में आठपत्तों वाला रक्तकमल है तथा वहीं पर कल्पवृक्ष स्थित है, वही चन्द्रमा और सूर्य के ऊपर 7 सुन्दर इष्ट देवासन शुभोभित हैं ।। 6-7।।

पिङ्गलाभं कण्ठदेशे विशुद्धाख्यं कलादलम् ।

षोडशस्वरसंयुक्तं पङ्कजं व्योमसंस्थितम्।

हकारं धूम्रवर्ण तु तदङ्के च सदाशिवम् ॥8

कण्ठदेश में पिङ्गला नाड़ी की आभा है और विशुद्धा नामक कलाओं का दल है। वहीं पर सोलह स्वरों अर्थात् अ, , , , , , , ऋृ, , लॄ, , , , , अं, अः से संयुक्त कमल व्योम (आकाश) में स्थित है, उस कमल की गोद में हकार (ह) इस रूप में धूम्रवर्ण के सदाशिव विराजमान हैं ।। 8 ।।

वहाँ पर जहाँ कि सोलह स्वरों से युक्त कमल आकाश (कण्ठाकाश) संस्थित है, उस कमल में ह वर्ण के रूप में सदाशिव विराजमान हैं। वहाँ पर साधकेन्द्र को शाकिनी का ध्यान करना चाहिए, उन शाकिनी देवी का ध्यान किस रूप में करना चाहिए बताते हैं।

देवीं ज्योतिःस्वरूपां त्रिनयनलसितां पञ्चवक्त्राभिरामां

हस्तैश्चापैश्च पाशं सृणिमपि दधतीं पुस्तकं ज्ञानमुद्राम् ।

ध्यायेत् कण्ठस्थपद्मे निखिलपशुजनोम्नादिनीमस्थिसंस्थां

दुग्धान्ने प्रीतियुक्तां मधुमदमुदितां शाकिनीं साधकेन्द्रः ॥9

वहाँ ज्योति स्वरूप अर्थात् अत्यन्त प्रकाश स्वरूप तीन नेत्रों से सुशोभित सुन्दर पांच मुखों वाली, जो हाथों में धनुष, पाश और बाण और पुस्तक धारण की हुई हैं तथा जिनकी ज्ञान की मुद्रा है, जो कण्ठस्थ कमल में समस्त पशुओं और मनुष्यों की हड्डियों को धारण की हुई है। दूध और अन्न में जिनकी प्रीति है, ऐसी मधु के मद से मुदित (शराब के नशे में मस्त) शाकिनी देवी का ध्यान करना चाहिए ।। 9 ।।

कर्णिकायां त्रिकोणस्थं पूर्णचन्द्रं च चिन्तयेत् ।

हेमाभबीजमारूढमाकाशं तत्र चिन्तयेत् ॥10

त्रिकोण (त्रिभुज) में स्थित कर्णिका में पूर्ण चन्द्रमा का चिन्तन करना चाहिए तथा वहीं पर हिम की आभा के बीज स्वरूप अर्थात् हेमाभ के कारण पर आरूढ आकाश का चिन्तन करना चाहिए ।।10।।

शुक्लं सुवेषचरितं ततो देवं सदाशिवम् ।

गिरिजाभिन्नदेहार्धं रौप्यहेमशरीरकम ॥11

उस आकाश के बाद वहाँ पर स्थित पार्वती संयुक्त शरीर वाले अर्थात् जिनका आधा शरीर अपना है और आधा पार्वती का है तथा जो शरीर चांदी और सोना से मिलकर बना हुआ है। ऐसे सदाशिव का ध्यान करना चाहिए ।।11।।

॥ इति श्री भूतशुद्धितन्त्रे परमरहस्ये द्वितीयः पटलः।।

।। इस प्रकार श्री भूतशुद्धितन्त्र परमरहस्य में दूसरा पटल समाप्त हुआ।।

आगे जारी..... भूतशुद्धितन्त्र पटल 3

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