अगस्त्य संहिता अध्याय ९
अगस्त्य संहिता के इस अध्याय ९ में इस
अध्याय में श्रीराम के यन्त्र का विस्तृत विवेचन है तथा मालामन्त्रोद्धार वर्णित
है। यहाँ मालामन्त्र इस प्रकार है- ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवते रघुनन्दनाय
रक्षोघ्नविशदाय मधुर प्रसन्नवदनाय अमिततेजसे बलाय रामाय विष्णवे नमः । इसे
चिन्तामणि- मंत्र भी कहा गया है। इस मालामन्त्र तथा 'श्री सीतायै नमः' इस सीता मन्त्र से विलसित यन्त्र
पर श्रीराम की पूजा करके उसे धारण करने से दारिद्र्यदुःखनाश, सन्तान प्राप्ति, ऐश्वर्य, विद्या,
रोगशान्ति आदि अनेक सांसारिक उद्देश्यों की प्राप्ति कही गयी है।
दूसरे द्वारा किए गये अभिचार को रोकने में इसे 'वज्रपञ्जर'
की संज्ञा दी गयी है।
अगस्त्यसंहिता अध्याय ९
Agastya samhita chapter 9
अगस्त्य संहिता नवम अध्याय
अगस्त्य संहिता
अगस्त्यसंहिता नौवाँ अध्याय
अथ नवमोऽध्यायः
सुतीक्ष्ण उवाच
किं तन्मन्त्रं वद ब्रह्मन्
स्वरूपन्तस्य चानघ ।
कैर्मन्त्रैर्वा कथं कुत्र लेख्यः
किं तेन वा भवेत् ।।१।।
हे ब्रह्मन् ! मुनि अगस्त्य ! वह
मन्त्र क्या है? इसका स्वरूप क्या है ? किस मन्त्र से किस प्रकार और किस स्थान पर उपासना करनी चाहिए तथा अंकित
करने योग्य यन्त्र कैसा है, यह सब हमें बतलायें ।
सुतीक्ष्ण उवाच
किं तद्यन्त्रं वद ब्रह्मन् स्वरूपं
चास्य चानघ ।
कैर्मन्त्रैर्वा कथं कुत्र जाप्यं
किं तेन वा भवेत् ।।२।।
सुतीक्ष्ण बोले- हे मुनि अगस्त्य !
वह यन्त्र क्या है, इसका स्वरूप क्या
है और किन मन्त्रों से कैसे कहाँ जप करना चाहिए और उसका क्या फल मिलेगा ?
अगस्त्य उवाच
मनोरथकराण्यत्र नियम्यन्ते तपोधन ।
कामक्रोधादिदोषोत्थदीर्घदुः खनियन्त्रणात्
।।३।।
यन्त्रमित्याहुरेतस्मिन् रामः
प्रीणाति पूजितः ।
यन्त्रं मन्त्रमयं प्राहुर्देवता
मन्त्ररूपिणी ।।४।।
अगस्त्य बोले- यहाँ में मनोरथ पूरा
करनेवाले यन्त्रों की विधि बतलाता हूँ । काम, क्रोध
आदि दोषों से उत्पन्न दुःखों को नियन्त्रित करने के कारण इसे यन्त्र कहा जाता है।
इस पर पूजित श्रीराम प्रसन्न होते हैं । मन्त्र से युक्त यन्त्र होता है, जिसमे मन्त्र स्वरूप देवता स्वयं होते हैं।
यन्त्रेणापूजितो रामः सहसा न
प्रसीदति ।
श्रीरामः पूजितो नित्यं सीतया सह
यन्त्रितः ।।५।।
यदिष्टं तत्करोत्येव तत्तन्मन्त्रवरादृते
।
यन्त्र के विना पूजित राम शीघ्र
प्रसन्न नहीं होते हैं । किन्तु श्री सीता के साथ यन्त्र पर निर्दिष्ट श्रीराम
पूजित होकर उस मन्त्रराज के विना भी इष्ट सिद्धि करते हैं ।
शरीरमिव जीवस्य रामस्य मनुरुच्यते
।।६।।
यन्त्रे मन्त्रं समाराध्य यदभीष्टं
तदाप्नुयात् ।
यन्त्रे मन्त्रं समाराध्य प्रसादयति
राघवम् ।।७।।
जैसे जीव का आश्रय शरीर होता है,
उसी प्रकार श्रीराम मन्त्र में विराजमान होते हैं । यन्त्र पर
मन्त्र की आराधना करने से कामना की पूर्ति होती है तथा श्रीराम प्रसन्न होते हैं।
सर्वेषामपि मन्त्राणां यन्त्रे पूजा
प्रशस्यते ।
यन्त्रस्वरूपं वक्ष्यामि ब्रह्मा
प्राह यथा पुरा ।।८।।
सभी मन्त्रों की पूजा यन्त्र पर
प्रशस्त मानी जाती है। ब्रह्मा ने जिस प्रकार प्राचीन काल में कहा था वैसा ही मैं
भी कहता हूँ ।
आदौ षट्कोणमुद्धत्य ततो वृत्तं लिखेन्मुने
।
दलानि विलिखेदष्टौ ततः
स्याच्चतुरस्रकम् ।।९।।
सबसे पहले षट्कोण लिखकर तब वृत्त
लिखना चाहिए। इसके बाद आठ दल लिखकर चतुरस्र (वर्ग) बनाना चाहिए।
सर्वलक्षणसम्पन्नं व्यक्तं
सर्वमनोहरम् ।
तदन्तरेऽपि सुव्यक्तं साध्याख्या
कर्मगर्भितम् ।।१०।।
सभी लक्षणों से युक्त,
स्पष्ट और सुन्दर यन्त्र लिखकर उसके मध्य में स्पष्ट अक्षरो में
अभीष्ट वस्तु और कर्म लिखना चाहिए ।
तद्बीजं विलिखेद् भूयस्तत्
क्रोडीकृतमन्मथम् ।
ततस्तु पञ्चबीजानि
पुनरावर्तयेन्मुने ।।११।।
पुनर्दशाक्षरेणैव तदेव परिवेष्टयेत्
।
तब बीज मन्त्र के दोनों ओर कामबीज
(क्लीं) लिखें। इसके बाद पाँचो बीजाक्षर फिर दुहराएँ । पुनः दशाक्षर मन्त्र से
वेष्टित करें।
षडङ्गान्यग्निकोणादि
कोणेष्ववक्रमाल्लिखेत् ।।१२।।
तथा कोणकपोलेषु ह्रीं श्रीं च
विलिखेन्मुने ।
हुं बीजं प्रतिकोणाग्रं केसराग्रेषु
च स्वरान् ।।१३।।
फिर अग्निकोण से प्रारम्भ कर कोणों
में विपरीत क्रम से षडङ्गों को लिखें और कोणों के दोनों ओर 'ह्रीं' और 'श्रीं' लिखें। प्रत्येक कोण के अग्रभाग में 'हुं' बीज लिखें और केसर के अग्रभागों में स्वरों को लिखें।
मालामन्त्रस्य वर्णाः स्युः
चत्वारिंशच्च पञ्च च ।
वर्णाः सप्तदलेष्वेव षट् षट्
पञ्चाप्टमेदले ।।१४।।
पूर्वतो वेष्टयेत् काद्यैः तत्सर्वं
च तपोधन ।
बीजद्वयं च विलिखेत् नरसिंहवराहयोः
।।१५।।
दिग्विदिक्ष्वपि पूर्वस्मात् भूगृहे
चतुरस्रके ।
यन्त्रेस्मिन् सम्यगाराध्य भुक्तिं
मुक्तिं च विन्दति ।।१६।।
मालामन्त्र में पैंतालीस वर्ण होते
हैं,
जिनमें सात दलों में छः छः वर्ण लिखें और आठवें में पाँच वर्ण लिखें
। पूर्व से 'क' आदि से सबको वेष्टित
करें और वराह एवं नरसिंह के बीज (क्षौं) चारो दिशाओं एवं चारो कोणों में वर्गाकर
भूपुर पर लिखें। इस यन्त्र पर आराधना कर भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
यद्वा मध्ये लिखेत्तारं षट्सु
कोणेष्वपि क्रमात् ।
मूलमन्त्राक्षराण्येव सन्धिष्वग्रं
च मान्मथम् ।।१७।।
मायां गण्डेषु किंजल्के स्वराणां
लेखने मतम् ।
मन्त्रेषु पूर्ववन्मालामन्त्रो
लेख्यः क्रमेण हि ।।१८।।
दशाक्षरेण संवेष्ट्य कादीनि
व्यञ्जनानि च ।
दिग्विदिक्षु लिखेद् बीजे
नारसिंहवराहयोः ।।१९।।
अथवा मध्य में तथा छः कोणों में
क्रम से तार (ऊँ कार) लिखें। इसके बाद मूल मन्त्र के अक्षर कोण की सन्धियों पर
लिखकर उसके आगे कामबीज (क्लीं) लिखें। कोणों के दोनों बगल में तिरछी रेखा पर माया
बीज (ह्रीं) तथा केसर पर स्वर लिखें। पूर्व की तरह मालामन्त्र दलों पर लिखकर
दशाक्षरी मन्त्र से संवेष्टित कर 'क'
आदि व्यञ्जन लिखें तथा दिशा और उसके कोणों में नरसिंह (क्ष्रौं) और
वराह के बीज (ह्रौं) लिखें।
एतद्यन्त्रान्तरं चात्र साङ्गावरणमर्चयेत्
।
सौवर्णे राजते भूर्जे
लिखित्वार्चनमाचरेत् ।।२०।।
इस यन्त्र अथवा दूसरे यन्त्र की
पूजा अंगों एवं आवरण के साथ करें। इस यन्त्र को सोना,
चांदी या भूर्जपत्र पर लिखकर पूजा प्रारम्भ करें।
जानकीवल्लभाय स्वाहा क्षौ हं
विनिर्दिशेत् ।
दशाक्षरो वराहस्य नृसिंहस्य मनुः
स्मृतः ।।२१।।
"हुं जानकीवल्लभाय स्वाहा
क्षौं हं" यह नृसिंह और वराह का दशाक्षर मन्त्र है।
ह्रीं श्रीं क्लीं चन्नमो ब्रूयात्
ततो भगवते पदम् ।
रघुनन्दनायेति पदं रक्षोघ्नविशदाय च
।।२२।।
मधुरेति प्रसन्नेति वदनाय पदं वदेत्
।
विशेषणं पञ्चमं च ब्रूयादम्रिततेजसे
।।२३।।
ततो बलाय रामाय विष्णवे नम इत्यपि ।
ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवते
रघुनन्दनाय रक्षोघ्नविशदाय मधुर प्रसन्नवदनाय अमिततेजसे बलाय रामाय विष्णवे नमः।
मालामन्त्र का स्वरूप - "ह्रीं
श्रीं क्लीं ॐ नमः' बोलें। इसके बाद 'भगवते' यह शब्द बोलें। इसके बाद 'रघुनन्दनाय' यह शब्द, फिर 'रक्षोघ्नविशदाय' भी बोलें। तब 'मधुर' 'प्रसन्न' और 'वदनाय' बोलें। तब विशेष रूप से पाँचवाँ पद 'अमिततेजसे' यह बोलें। तब 'बलाय'
'रामाय' और 'विष्णवे नमः'
यह भी बोलें। इस प्रकार मन्त्र का ऐसा स्वरूप होगा- ह्रीं श्रीं
क्लीं नमो भगवते रघुनन्दनाय रक्षोघ्नविशदाय मधुर प्रसन्नवदनाय अमिततेजसे बलाय
रामाय विष्णवे नमः ।
मालामन्त्रोऽयमुद्दिष्टो नृणां
चिन्तामणिः स्मृतः ।
ॐ श्रीं सीतायै वह्निजाया तु
सीतामन्त्र उदाहृतः ।।२४।।
यह मालामन्त्र कहा जाता है जो
साधकों के लिए 'चिन्तामणि के रूप स्मरण किया
जाता है। 'ॐ श्रीं सीतायै' के साथ
वह्निजाया (स्वाहा ) लगाकर सीतामन्त्र है।
यन्त्रेऽस्मिन् राममाराध्य साङ्गावरणमादरात्
।
आराध्य गुलिकीकृत्य धारयेद्यन्त्रमन्वहम्
।।२५।।
इस यन्त्र पर आदरपूर्वक अंग-पूजा और
आवरण पूजा के साथ श्रीराम की आराधना कर इस यन्त्र को मोड़कर गोल बनाकर प्रतिदिन
धारण करना चाहिए।
दारिद्र्यदुःखशमनं पुत्रपौत्रप्रदन्तथा
।
ऐश्वर्यकृद् वश्यकरं शत्रुसंहारकारकम्
।।२६।।
विद्याप्रदं सौख्यकरं रोगशोकनिवारणम्
।।२७।।
पराभिचारकृत्येषु वज्रपञ्जरमुच्यते ।
किं मन्त्रं बहुनोक्तेन सर्वसिद्धिप्रदं
मुने ।।२८।।
यह यन्त्र दारिद्र्य और दुःख का शमन
करता है;
पुत्र और पौत्र प्रदान करनेवाला है, ऐश्वर्य
देता है, सबको वश में ला देता है शत्रुओं का संहार करता है ।
यह विद्या देनेवाला, सुख देनेवाला, रोग
और शोक को हटानेवाला है। दूसरे पर अभिचार कर्मों में 'वज्रपंजर'
कहलाता है। अनेक बार मन्त्र जपने से क्या लाभ? यह यन्त्र ही सभी सिद्धियों को प्रदान करनेवाला है ।
इत्यगस्त्यसंहितायां
यन्त्रविधिर्नाम नवमोऽध्यायः ।।9।।
आगे जारी- अगस्त्य संहिता अध्याय 10
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