Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2024
(491)
-
▼
April
(27)
- अग्निपुराण अध्याय १२०
- अग्निपुराण अध्याय ११९
- श्रीदेवीरहस्य पटल १२
- श्रीदेवीरहस्य पटल ११
- अग्निपुराण अध्याय ११८
- अग्निपुराण अध्याय ११७
- अग्निपुराण अध्याय ११६
- अग्निपुराण अध्याय ११५
- अग्निपुराण अध्याय ११४
- अन्नपूर्णा कवच
- अन्नपूर्णा स्तोत्र
- भक्तामर स्तोत्र
- श्रीदेवीरहस्य पटल १०
- श्रीदेवीरहस्य पटल ९
- श्रीदेवीरहस्य पटल ८
- अग्निपुराण अध्याय ११३
- अग्निपुराण अध्याय ११२
- अग्निपुराण अध्याय १११
- श्रीदेवीरहस्य पटल ७
- श्रीदेवीरहस्य पटल ६
- अग्निपुराण अध्याय ११०
- अग्निपुराण अध्याय १०९
- अग्निपुराण अध्याय १०८
- अग्निपुराण अध्याय १०७
- अग्निपुराण अध्याय १०६
- अग्निपुराण अध्याय १०५
- मनुस्मृति अध्याय ५
-
▼
April
(27)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
अन्नपूर्णा स्तोत्र
इस अन्नपूर्णा स्तोत्र का नित्य पाठ
करने से जीवन में सदा अन्न धन की कभी कमी नहीं होती है।
अन्नपूर्णा स्तोत्रम्
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्य
रत्नाकरी
निर्धूताखिल घोर पावनकरी प्रत्यक्ष
माहेश्वरी ।
प्रालेयाचल वंश पावनकरी
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी
मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ १ ॥
आप नित्य आनन्द प्रदान करनेवाली हैं,
वर तथा अभय देनेवाली हैं, सौन्दर्यरूपी रत्नों
की खान हैं, भक्तों के सम्पूर्ण पापों को नष्ट करके उन्हें
पवित्र कर देनेवाली हैं, साक्षात् माहेश्वरी के रूप में
प्रतिष्ठित हैं, [पार्वती के रूप में जन्म लेकर] आपने हिमालय
वंश को पावन कर दिया है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी (स्वामिनी)
हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती
अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।
नाना रत्न विचित्र भूषणकरि हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहार विलम्बमान विलसत्-वक्षोज
कुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरु वासिता रुचिकरी
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी
मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ २ ॥
आप अनेकविध रत्नों के विचित्र आभूषण
धारण करनेवाली हैं, आप स्वर्ण-वस्त्रों
से शोभा पानेवाली हैं, आपके वक्ष स्थल का मध्यभाग मुक्ताहार
से सुशोभित हो रहा है, आपके श्री अंग केशर और अगर से सुवासित
हैं, आप काशीपुर की अधीश्वरी हैं, अपनी
कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं,
आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान
करें।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मैक्य
निष्ठाकरी
चन्द्रार्कानल भासमान लहरी
त्रैलोक्य रक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यकरी तपः फलकरी
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी
मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ३ ॥
आप योगीजन को योग का आनन्द प्रदान
करती हैं,
शत्रुओं का नाश करती हैं, धर्म और अर्थ के
लिये लोगों में निष्ठा उत्पन्न करती हैं, सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि की प्रभाव- तरंगों के समान कान्तिवाली हैं, तीनों लोकों की रक्षा करती हैं। अपने भक्तों को सभी प्रकार के ऐश्वर्य
प्रदान करती हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण करती हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय
देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।
कैलासाचल कन्दरालयकरी
गौरी-ह्युमाशाङ्करी
कौमारी निगमार्थ-गोचरकरी-ह्योङ्कार-बीजाक्षरी
।
मोक्षद्वार-कवाटपाटनकरी
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी
मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ४ ॥
आपने कैलास पर्वत की गुफा को अपना
निवास स्थल बना रखा है, आप गौरी, उमा, शंकरी तथा कौमारी के रूप में प्रतिष्ठित हैं,
आप वेदार्थ तत्त्व का अवबोध करानेवाली हैं, आप
'ओंकार' बीजाक्षर स्वरूपिणी हैं,
आप मोक्षमार्गक कपाट का उद्घाटन करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय
देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।
दृश्यादृश्य-विभूति-वाहनकरी
ब्रह्माण्ड-भाण्डोदरी
लीला-नाटक-सूत्र-खेलनकरी
विज्ञान-दीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनः-प्रसादनकरी
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी
मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ५ ॥
आप दृश्य तथा अदृश्य रूप अनेकविध
ऐश्वर्यरूपी वाहनों पर आसनस्थ होनेवाली हैं, आप
अनन्त ब्रह्माण्ड को अपने उदररूपी पात्र में धारण करनेवाली हैं, माया प्रपंच के (कारणभूत अज्ञान) सूत्र का भेदन करनेवाली हैं, आप विज्ञान (प्रत्यक्ष अनुभूति) - रूपी दीपक की शिखा हैं, आप भगवान विश्वनाथ मन को प्रसन्न रखनेवाली हैं, आप
काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं,
आप समस्त प्राणियों की माता है, आप भगवती
अन्नपूर्णा हैं; मुझे शिक्षा प्रदान करें ।
उर्वीसर्वजयेश्वरी जयकरी माता
कृपासागरी
वेणी-नीलसमान-कुन्तलधरी
नित्यान्न-दानेश्वरी ।
साक्षान्मोक्षकरी सदा शुभकरी
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी
मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ६ ॥
आप पृथ्वी तल पर स्थित सभी
प्राणियों की ईश्वरी (स्वामिनी) हैं, आप
ऐश्वर्यशालिनी हैं, सभी जीवों में मातृभाव से विराजती हैं,
अन्न से भण्डार को परिपूर्ण रखनेवाली देवी हैं, आप नील वर्ण की वेणी के समान लहराते केश-पाशवाली हैं, आप निरन्तर अन्नदान में लगी रहती हैं। समस्त प्राणियोंको आनन्द प्रदान
करनेवाली हैं। सर्वदा भक्तजनों का मंगल करनेवाली हैं, आप
काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपना आश्रय देनेवाले हैं, आप समस्त प्राणियों के माता हैं,
आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान
करें।
आदिक्षान्त-समस्तवर्णनकरी
शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरा त्रिपुरेश्वरी त्रिनयनि
विश्वेश्वरी शर्वरी ।
स्वर्गद्वार-कपाट-पाटनकरी
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी
मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ७ ॥
आप 'अ' से 'क्ष' पर्यन्त समस्त वर्णमाला व्याप्त हैं, आप भगवान शिव के
तीनों भावों (सत्त्व, रज, तम) को
प्रादुर्भूत करनेवाली आप केसर के समान आभावाली हैं, आप
स्वर्गीय, पाताल गंगा तथा भागीरथी - इन तीन जल - राशियों
स्वामिनी हैं, आप गंगा, यमुना तथा
सरस्वती - इन तीनों नदियों की लहरों के रूप में विद्यमान हैं। आप विभिन्न रूपों
में नित्य अभिव्यक्त होनेवाली हैं, आप रात्रिस्वरूपा हैं,
आप अभिलाषी भक्त जनों की कामनाएँ पूर्ण करनेवाली हैं, लोगों का अभ्युदय करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की
अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती
अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।
देवी सर्वविचित्र-रत्नरुचिता
दाक्षायिणी सुन्दरी
वामा-स्वादुपयोधरा प्रियकरी
सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी
मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ८ ॥
आप सभी प्रकार के अद्भुत
रत्नाभूषणों से सजी हुई देवी के रूप में शोभा पाती हैं,
आप दक्ष की सुन्दर पुत्री हैं, आप माता के रूप
में अपने वाम तथा स्वादमय पयोधर से [भक्त शिशुओं का] प्रिय सम्पादन करनेवाली हैं,
आप सौभाग्य की माहेश्वरी हैं, आप भक्तों की
अभिलाषा पूर्ण करनेवाली और सदा उनका कल्याण करनेवाली हैं, आप
काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं,
आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती
अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।
चन्द्रार्कानल-कोटिकोटि-सदृशी
चन्द्रांशु-बिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्नि-समान-कुण्डल-धरी
चन्द्रार्क-वर्णेश्वरी ।
माला-पुस्तक-पाशसाङ्कुशधरी
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी
मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ९ ॥
आप कोटि-कोटि चन्द्र-सूर्य-अग्नि के
समान जाज्वल्यमान प्रतीत होती हैं, आप
चन्द्र किरणों के समान [शीतल] तथा बिम्बाफल के समान रक्त-वर्णक अधरोष्ठवाली हैं,
चन्द्र-सूर्य तथा अग्नि के समान प्रकाशमान केश धारण करनेवाली हैं,
आप चन्द्रमा तथा सूर्य के समान देदीप्यमान वर्णवाली ईश्वरी आपने
अपने हाथों में माला, पुस्तक, पाश तथा
अंकुश धारण कर रखा है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त
प्राणियों की माता हैं; आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।
क्षत्रत्राणकरी महाभयकरी माता
कृपासागरी
सर्वानन्दकरी सदा शिवकरी
विश्वेश्वरी श्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी
काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ १० ॥
आप घोर संकट की स्थिति में अपने
भक्तों की रक्षा करती है, भक्तों को महान्
अभय प्रदान करती हैं। आप मातृस्वरूपा हैं, आप कृपासमुद्र हैं,
आप साक्षात् मोक्ष प्रदान करनेवाली हैं, आप
सदा कल्याण करनेवाली हैं, आप भगवान् विश्वनाथ का ऐश्वर्य
धारण करनेवाली है यज्ञ का विध्वंस करके आप दक्ष को रुलानेवाली हैं, आप रोग से मुक्त करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की
अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता है आप भवगती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।
अन्नपूर्णे सादापूर्णे
शङ्कर-प्राणवल्लभे ।
ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थं बिक्बिं
देहि च पार्वती ॥ ११ ॥
सारे वैभवों से सदा परिपूर्ण
रहनेवाली तथा भगवान् शंकर की प्राणप्रिया हे अन्नपूर्णे! हे पार्वती!! ज्ञान तथा
वैराग्य की सिद्धि के लिये मुझे भिक्षा प्रदान करें।
माता च पार्वतीदेवी पितादेवो
महेश्वरः ।
बान्धवा: शिवभक्ताश्च स्वदेशो
भुवनत्रयम् ॥ १२ ॥
भगवती पार्वती मेरी माता है,
भगवान् महेश्वर मेरे पिता हैं। सभी शिवभक्त मेरे बन्धु - बान्धव हैं
और तीनों लोक मेरा अपना ही देश है यह भावना सदा मेरे मन में बनी रहे।
इस प्रकार श्रीशंकराचार्य विरचित श्री अन्नपूर्णा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ॥
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: