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- गीत गोविन्द सर्ग ७ अष्टपदी १४ हरिरमितचम्पकशेखर
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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
सीता चालीसा आरती
जनकनन्दनी माता सीता की चालीसा व आरती का पाठ जो कोई भी प्रातःकाल करता है, उसे प्रभु चरणों में स्थान मिलता है तथा निधियों की प्राप्ति होती है ।
सीता चालीसा
आरती
सीता चालीसा
Sita Chalisa
॥ दोहा ॥
बन्दौ चरण
सरोज निज जनक लली सुख धाम ।
राम प्रिय
किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥
कीरति गाथा जो
पढ़ें सुधरैं सगरे काम ।
मन मंदिर बासा
करें दुःख भंजन सिया राम ॥
॥ चौपाई ॥
राम प्रिया
रघुपति रघुराई, बैदेही की कीरत गाई ।
चरण कमल
बन्दों सिर नाई, सिय सुरसरि सब पाप नसाई ।
जनक दुलारी
राघव प्यारी, भरत लखन शत्रुहन वारी ।
दिव्या धरा
सों उपजी सीता, मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ।
सिया रूप भायो
मनवा अति, रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ।
भारी शिव धनुष
खींचै जोई, सिय जयमाल साजिहैं सोई ।
भूपति नरपति
रावण संगा, नाहिं करि सके शिव धनु भंगा ।
जनक निराश भए
लखि कारन, जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन ।
यह सुन
विश्वामित्र मुस्काए, राम लखन मुनि सीस नवाए ।
आज्ञा पाई उठे
रघुराई, इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ।
जनक सुता गौरी
सिर नावा, राम रूप उनके हिय भावा ।
मारत पलक राम
कर धनु लै, खंड खंड करि पटकिन भूपै ।
जय जयकार हुई
अति भारी, आनन्दित भए सबैं नर नारी ।
सिय चली जयमाल
सम्हाले, मुदित होय ग्रीवा में डाले ।
मंगल बाज बजे
चहुँ ओरा, परे राम संग सिया के फेरा ।
लौटी बारात
अवधपुर आई, तीनों मातु करैं नोराई ।
कैकेई कनक भवन
सिय दीन्हा, मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा ।
कौशल्या सूत
भेंट दियो सिय, हरख अपार हुए सीता हिय ।
सब विधि बांटी
बधाई, राजतिलक कई युक्ति सुनाई ।
मंद मती मंथरा
अडाइन, राम न भरत राजपद पाइन ।
कैकेई कोप भवन
मा गइली, वचन पति सों अपनेई गहिली ।
चौदह बरस कोप
बनवासा, भरत राजपद देहि दिलासा ।
आज्ञा मानि
चले रघुराई, संग जानकी लक्षमन भाई ।
सिय श्री राम
पथ पथ भटकैं, मृग मारीचि देखि मन अटकै ।
राम गए माया
मृग मारन, रावण साधु बन्यो सिय कारन ।
भिक्षा कै मिस
लै सिय भाग्यो, लंका जाई डरावन लाग्यो ।
राम वियोग सों
सिय अकुलानी, रावण सों कही कर्कश बानी ।
हनुमान प्रभु
लाए अंगूठी, सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ।
अष्ठसिद्धि
नवनिधि वर पावा, महावीर सिय शीश नवावा ।
सेतु बाँधी
प्रभु लंका जीती, भक्त विभीषण सों करि प्रीती ।
चढ़ि विमान सिय
रघुपति आए, भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ।
अवध नरेश पाई
राघव से, सिय महारानी देखि हिय हुलसे ।
रजक बोल सुनी
सिय वन भेजी, लखनलाल प्रभु बात सहेजी ।
बाल्मीक मुनि
आश्रय दीन्यो, लव-कुश जन्म वहाँ पै लीन्हो ।
विविध भाँती
गुण शिक्षा दीन्हीं, दोनुह रामचरित रट लीन्ही ।
लरिकल कै सुनि
सुमधुर बानी, रामसिया सुत दुई पहिचानी ।
भूलमानि सिय
वापस लाए, राम जानकी सबहि सुहाए ।
सती
प्रमाणिकता केहि कारन, बसुंधरा सिय के हिय धारन ।
अवनि सुता
अवनी मां सोई, राम जानकी यही विधि खोई ।
पतिव्रता
मर्यादित माता, सीता सती नवावों माथा ।
॥ दोहा ॥
जनकसुता
अवनिधिया राम प्रिया लव-कुश मात ।
चरणकमल जेहि
उन बसै सीता सुमिरै प्रात ॥
सीता चालीसा
आरती
सीता माता की आरती
Sita Mata Ki Aarti
आरती श्री जनक
दुलारी की ।
सीता जी रघुवर
प्यारी की ॥
जगत जननी जग
की विस्तारिणी,
नित्य सत्य
साकेत विहारिणी ।
परम दयामयी
दिनोधारिणी,
सीता मैया
भक्तन हितकारी की ॥
आरती श्री जनक
दुलारी की ।
सीता जी रघुवर
प्यारी की ॥
सती श्रोमणि
पति हित कारिणी,
पति सेवा
वित्त वन वन चारिणी ।
पति हित पति
वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म
मूर्ति धरी की ॥
आरती श्री जनक
दुलारी की ।
सीता जी रघुवर
प्यारी की ॥
विमल कीर्ति
सब लोकन छाई,
नाम लेत पवन
मति आई ।
सुमीरात काटत
कष्ट दुख दाई,
शरणागत जन भय
हरी की ॥
आरती श्री जनक
दुलारी की ।
सीता जी रघुवर
प्यारी की ॥
इतिश्री सीता चालीसा आरती ॥
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