शिवस्तोत्र असितकृत
जो असित द्वारा किये गये भगवान् शिव
के इस स्तोत्र का प्रतिदिन भक्तिभाव से पाठ करता और एक वर्ष तक नित्य हविष्य खाकर
रहता है–
उसे ज्ञानी, चिरंजीवी एवं वैष्णव पुत्र की
प्राप्ति होती है। जो धनाभाव से दुःखी हो, वह धनाढ्य और जो
मूर्ख हो, वह पण्डित हो जाता है। पत्नीहीन पुरुष को सुशीला
और पतिव्रता पत्नी प्राप्त होती है तथा वह इस लोक में सुख भोगकर अन्त में भगवान
शिव के समीप जाता है। पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने यह उत्तम स्तोत्र प्रचेता को और
प्रचेता ने अपने पुत्र असित को दिया था ।
शिवस्तोत्रम् असितकृतं
असित उवाच ।।
जगद्गुरो नमस्तुभ्यं शिवाय शिवदाय च
।
योगीन्द्राणां च योगीन्द्र गुरूणां
गुरवे नमः ।। 1 ।।
मृत्योमृर्त्युस्वरूपेण
मृत्युसंसारखण्डन ।
मृत्योरीश मृत्युबीज मृत्युञ्जय
नमोऽस्तु ते ।। 2 ।।
कालरूपं कलयतां कालकालेश कारण ।
कालादतीत कालस्य कालकाल नमोऽस्तु ते
।। 3 ।।
गुणातीत गुणाधार गुणबीज गुणात्मक ।
गुणीश गुणिनां बीज गुणिनां गुरवे
नमः ।। 4 ।।
ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मज्ञ ब्रह्मभावे
च तत्पर ।
ब्रह्मबीजस्वरूपेण ब्रह्मबीज
नमोस्तु ते ।। 5 ।।
शिवस्तोत्रम् असितकृतं फलश्रुति
इति स्तुत्वा शिवं नत्वा पुरस्तस्थौ
मुनीश्वरः ।
दीनवत्साश्रुनेत्रश्च पुलकां
चितविग्रहः ।। 6 ।।
असितेन कृतं स्तोत्रं भक्तियुक्तश्च
यः पठेत् ।
वर्षमेकं हविष्याशी शङ्करस्य
महात्मनः ।। 7 ।।
स लभेद्वै ष्णवं पुत्रं ज्ञानिनं
चिरजीविनम् ।
भवेदनाढ्यो दुःखी च मूको भवति
पण्डितः ।। 8 ।।
अभार्यो लभते भार्यां सुशीलां च
पतिव्र ताम् ।
इह लोके सुखं भुक्त्वा यात्यन्ते
शिवसन्निधिम् ।। 9 ।।
इदं स्तोत्रं पुरा दत्तं ब्रह्मणा च
प्रचेतसे ।
प्रचेतसा स्वपुत्रायासिताय
दत्तमुत्तमम् ।। 10 ।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे
श्रीकृष्णजन्मखण्डे शिवस्तोत्रम् असितकृतं सम्पूर्णः।।३० ।।
असितकृत शिवस्तोत्र भावार्थ सहित
असित उवाच ।।
जगद्गुरो नमस्तुभ्यं शिवाय शिवदाय च
।
योगीन्द्राणां च योगीन्द्र गुरूणां
गुरवे नमः ।।
असित बोले–
जगद्गुरो! आपको नमस्कार है। आप शिव हैं और शिव (कल्याण)– के दाता हैं। योगीन्द्रों के भी योगीन्द्र तथा गुरुओं के भी गुरु हैं;
आपको प्रणाम है।
मृत्योमृर्त्युस्वरूपेण
मृत्युसंसारखण्डन ।
मृत्योरीश मृत्युबीज मृत्युञ्जय
नमोऽस्तु ते ।।
मृत्यु के लिये भी मृत्युरूप होकर
जन्म-मृत्युमय संसार का खण्डन करने वाले देवता! आपको नमस्कार है। मृत्यु के ईश्वर!
मृत्यु के बीज! मृत्युंजय! आपको मेरा प्रणाम है।
कालरूपं कलयतां कालकालेश कारण ।
कालादतीत कालस्य कालकाल नमोऽस्तु ते
।।
कालगणना करने वालों के लक्ष्यभूत
कालरूप परमेश्वर! आप काल के भी काल, ईश्वर
और कारण हैं तथा काल के लिये भी कालातीत हैं। कालकाल! आपको नमस्कार है।
गुणातीत गुणाधार गुणबीज गुणात्मक ।
गुणीश गुणिनां बीज गुणिनां गुरवे
नमः ।।
गुणातीत! गुणाधार! गुणबीज!
गुणात्मक! गुणीश! और गुणियों के आदिकारण! आप समस्त गुणवानों के गुरु हैं;
आपको नमस्कार है।
ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मज्ञ ब्रह्मभावे
च तत्पर ।
ब्रह्मबीजस्वरूपेण ब्रह्मबीज
नमोस्तु ते ।।
ब्रह्मस्वरूप! ब्रह्मज्ञ!
ब्रह्मचिन्तनपरायण! आपको नमस्कार है। आप वेदों के बीजरूप हैं। इसलिये ब्रह्मबीज
कहलाते हैं; आपको मेरा प्रणाम है।
इति स्तुत्वा शिवं नत्वा पुरस्तस्थौ
मुनीश्वरः ।
दीनवत्साश्रुनेत्रश्च पुलकां
चितविग्रहः ।।
इस प्रकार स्तुति करके शिव को
प्रणाम करने के पश्चात मुनीश्वर असित उनके सामने खड़े हो गये और दीन की भाँति
नेत्रों से आँसू बहाने लगे। उनके सम्पूर्ण शरीर में रोमांच हो आया।
असितेन कृतं स्तोत्रं भक्तियुक्तश्च
यः पठेत् ।
वर्षमेकं हविष्याशी शङ्करस्य
महात्मनः ।।
जो असित द्वारा किये गये भगवान् शिव
के इस स्तोत्र का प्रतिदिन भक्तिभाव से पाठ करता और एक वर्ष तक नित्य हविष्य खाकर
रहता है।
स लभेद्वै ष्णवं पुत्रं ज्ञानिनं
चिरजीविनम् ।
भवेदनाढ्यो दुःखी च मूको भवति
पण्डितः ।।
उसे ज्ञानी,
चिरंजीवी एवं वैष्णव पुत्र की प्राप्ति होती है। जो धनाभाव से दुःखी
हो, वह धनाढ्य और जो मूर्ख हो, वह
पण्डित हो जाता है।
अभार्यो लभते भार्यां सुशीलां च
पतिव्र ताम् ।
इह लोके सुखं भुक्त्वा यात्यन्ते
शिवसन्निधिम् ।।
पत्नीहीन पुरुष को सुशीला और
पतिव्रता पत्नी प्राप्त होती है तथा वह इस लोक में सुख भोगकर अन्त में भगवान शिव
के समीप जाता है।
इदं स्तोत्रं पुरा दत्तं ब्रह्मणा च
प्रचेतसे ।
प्रचेतसा स्वपुत्रायासिताय
दत्तमुत्तमम् ।।
पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने यह
उत्तम स्तोत्र प्रचेता को दिया था और प्रचेता ने अपने पुत्र असित को।
इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्त महापुराण में श्रीकृष्णजन्मखण्डांर्गत असितकृत शिवस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ।।३० ।।
0 Comments