विजया एकादशी
इससे पूर्व आपने एकादशी व्रत कथा
में माघमास के शुक्ल पक्ष में जया एकादशी व्रत कथा पढ़ा। अब पढेंगे की- फाल्गुन मास
में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को विजया कहते हैं। विजया एकादशी अपने
नामानुसार विजय प्रादन करने वाली है। भयंकर शत्रुओं से जब आप घिरे हों और पराजय
सामने खड़ी हो उस विकट स्थिति में विजया नामक एकादशी आपको विजय दिलाने की क्षमता
रखता है। प्राचीन काल में कई राजे महाराजे
इस व्रत के प्रभाव से अपनी निश्चित हार को जीत में बदल चुके हैं। इस महाव्रत के
विषय में पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में अति सुन्दर वर्णन मिलता है।
विजया एकादशी व्रत कथा
धर्मराज युधिष्ठिर बोले - हे
जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या
है?
कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले हे राजन् - फाल्गुन
मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से
मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया
एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक
समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास
के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए।
ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद!
विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी
की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती
है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास
हो गया,
तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी सहित पंचवटी में निवास करने लगे।
वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी
तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए।
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु
के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ
आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में
जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की मित्रता का
वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।
श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना सहित
सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र से
किनारे पहुँचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर
लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।
श्री लक्ष्मण ने कहा हे पुराण
पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम
के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके
पास जाकर इसका उपाय पूछिए। लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी
वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए।
मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण
किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ?
रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहाँ आया हूँ
और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का
कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।
वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम!
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय
होगी,
साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।
हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को
सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचन्द्र जी ने तब उक्त
तिथि के आने पर अपनी सेना समेत मुनिवर के बताये विधान के अनुसार एकादशी का व्रत
रखा और सागर पर पुल का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की। राम और रावण का युद्ध हुआ
जिसमें रावण मारा गया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई।
विजया एकादशी व्रत कथा की महिमा
अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य
विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, दोनों लोकों
में उसकी अवश्य विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो
कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय
यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
हे युधिष्ठिर विजया एकादशी की जो
कथा है वह मैंने तुमसे कहा अब इस व्रत का जो विधान है वह तुम मुझसे सुनो। श्री
रामचन्द्र जी ने जिस विधि से विजया एकादशी का व्रत किया उसी विधि से विजया एकादशी
का व्रत करना चाहिए। दशमी के दिन एक वेदी बनाकर उस पर सप्तधान रखें फिर अपने
सामर्थ्य के अनुसार स्वर्ण, रजत, ताम्बा अथवा मिट्टी का कलश बनाकर उस पर स्थापित करें। एकदशी के दिन उस कलश
में पंचपल्लव रखकर श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से प्रभु का पूजन करें। व्रती पूरे दिन भगवान की कथा का पाठ
एवं श्रवण करें और रात्रि में कलश के सामने बैठकर जागरण करे। द्वादशी के दिन कलश
को योग्य ब्राह्मण अथवा पंडित को दान कर दें।
शेष जारी....आगे पढ़े- आमलकी एकादशी व्रत कथा
0 Comments