recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

सरस्वतीतन्त्र तृतीय पटल

सरस्वतीतन्त्र तृतीय पटल

आप सरस्वतीतन्त्र की सीरिज पढ़ रहे हैं जिसका की आपने प्रथम पटलद्वितीय पटल अभी तक पढ़ा।अब आगे सरस्वतीतन्त्र तृतीय पटल में माता पार्वती ने आशुतोष भगवान शिव से पूछा की प्रभु कुल्लुका कैसा है ? सेतु-महासेतु तथा निर्वाण क्या है ? आपने जितने जपांग कहे है, वे किस प्रकार के है ?

सरस्वतीतन्त्र तृतीय पटल

अथ सरस्वतीतन्त्रम् तृतीयः पटलः


देव्युवाच -

कुल्लुका कीदृशी नाथ सेतुर्वा कीदृशो भवेत् ।

कीदृशो वा महासेतुर्निर्वाणं त्वय कीदृशम् ॥ १॥

अन्यथा कथितं यन्मे कीदृश तद्वदस्व मे ॥ २॥

देवा कहती हैं -हे प्रभो कुल्लुका कैसा है ? सेतु-महासेतु तथा निर्वाण क्या है ? आपने जितने जपांग कहे है, वे किस प्रकार के है ? ॥ १-२॥

ईश्वर उवाच -

गुह्याद् गुह्यतरं देवि तव स्नेहेन कथ्यते ।

विना येन महेशानि निष्कलञ्च जपादिकम् ॥ ३॥

ईश्वर कहते हैं -हे देवी ! जिसके बिना जप प्रभृति निष्फल हो जाते हैं, उस ग्रुह्यतम ज्ञान को तुम्हारे प्रेमवश प्रकाशित करता हूं ॥ ३॥

ताराया कुल्लुका देवि महानीलसरस्वती ।

पञ्चाक्षरी कालिकाया कुल्लुका परिकीर्त्तिता ॥ ४॥

हे देवी ! महानीलसरस्वती का बीज (ह्रीं स्त्री हुँ) समस्त तारामन्त्रो का कुल्लुका है । पंचाक्षरी मन्त्र को कालिका का कुल्लुका कहते हैं ॥ ४॥

कालीकूर्चवधुर्माया फट्कारान्ता महेश्वरि ।

छिन्नायास्तु महेशानि कुल्लुकाष्टाक्षरी भवेत् ॥ ५॥

हे महेश्वरी ! काली बीज, कूर्चबीज, वधुबीज तथा मायाबीज के अन्त मे ``फट्'' लगाने से जो पंचाक्षर मन्त्र होता है, वही काली देवी का कुल्लुका कहा जाता ह । (क्रीं हुं स्त्रीं ह्रीं फट्) । हे महश्वरी ! अष्टाक्षरी मन्त्र छिन्नमस्ता देवी का कुल्लुका कहां गया है ॥ ५॥

बज्रवैरोचनीये च अन्त वर्म प्रकीर्त्तयेत् ।

सम्पत्प्रदाया : प्रथम भैरव्या: कुल्लुका भवेत् ॥ ६॥

वज्रवैरोचनीये पद के अन्त मे फट् का उच्चारण करने से यह अष्टाक्षर हो जाता हैं (वज्रवैरोचनीये फट्) । भैरवी का प्रथम बीज ही धनदा का कुल्लुका कहा गया हैं ॥ ६॥

श्रीमत्रिपुरसुन्दर्याः कुल्लुका द्वादशाक्षरी ।

वाग्भवं प्रथमं बीजं कामबीजमनन्तरम ॥ ७॥

लक्ष्मीबीजं ततः पश्चात् त्रिपुरे चेति तत् परम् ।

भगवतीति तत्पश्चात् अन्ते ठद्वयमुद्धरेत् ॥ ८॥

द्वादशाक्षर मन्त्र को त्रिपुर सुन्दरी का कुल्लुका कहते है । प्रथमतः वाग्भव तदन्तर कामबीज, तत्पश्चात् लक्ष्मीबीज, तदन्तर त्रिपुरे, तत्पश्चात् भगवति, तत्पश्चात् स्वाहा लगाने से द्वादशाक्षरी कुल्लुका होता हें जैसे ``ऐं क्लीं श्रीं त्रिपुरे भगवति ठः ठः'' ॥ ७-८॥

अथवा कामबीजञ्च कुल्लुका परिकीर्त्तिता ।

प्रासादबीजं शम्भोश्च मञ्जुधोषे षडक्षरम् ॥ ९॥

अथवा केवल कामबीज (क्लीं) हो त्रिपुरा का कुल्लुका हैं । प्रसाद बलि (हौं) शिवमन्त्र का कुल्लुका हैं । षड्क्षरमन्त्र हीं मंजुघोष मन्त्र का कुल्लुका कहा गया है -ॐ नमः शिवायः ॥ ९॥

एकार्णा भुवनेश्वर्या विष्णोः स्यादष्टवर्णकम् ।

नमो नारायणायेति प्रणवाद्या च कुल्लुका ॥ ।१०॥

एकाक्षर मंत्र (ह्रीं) भुवनेश्वरी बीज का कुल्लुका हैं । विष्णु मन्त्र का कुल्लुका हैं अष्टाक्षर मन्त्र अर्थात् ``नमो नारायणाय'' के पहले ॐ लगाये । ``ॐ नमो नारायणाय'' ॥ १०॥

मातङ्गयाः प्रथमं बीजं माया धूमावतीं प्रति ।

बालायाश्च बधूबीजं लक्ष्म्याश्च निजबीजकम् ॥ ११॥

प्रथम बीज (ॐ) मातङ्गी का कुल्लुका है एवं मायाबीज (ह्रीं) धूमावती का कुल्लुका कहा जाता हैं । बालामन्त्र का कुल्लुका है वधुबीज (स्त्रीं) तथा लक्ष्मी मन्त्र का कुल्लुका ``श्रीं'' ही हैं ॥ ११॥

सरस्वत्या वागृभवञ्च अन्नदाया अनङ्गकम् ।

अपरेषाञ्च देवानां मन्त्रमात्र प्रकीर्त्तिता ॥ १२॥

सरस्वती मन्त्र का कुल्लुका हैं ``ऐं'' । अन्नदा देवी का कुल्लुका है कामबीज (क्लीं) । अन्य देवताओं का कुल्लुका उनका अपना ही मन्त्र है ॥ १२॥

इयन्ते कथिता देवि संक्षेपात् कुल्लुका मया ।

अज्ञात्वा कुल्लुकामेतां यो जपेदधमः प्रिये ॥ १३॥

हे देवी ! मेने संक्षेप मे यह कुल्लुका कहा है । हे प्रिये ! जो अधम मनुष्य बिना कुल्लुका को जाने मन्त्र जप करते है ॥ १३॥

पञ्चत्वमाशु लभते सिद्धिहानिस्तु जायते ।

तथा जपादिकं सर्वं निष्फलं नात्र संशयः ।

तस्मात् सर्वप्रयत्नेन प्रजपेन्मूर्घ्नि कुल्लुकाम् ॥ १४॥

वे शीघ्र हो मृत्यु को प्राप्त होते है और उनकी सिद्धि नष्ट हो जाती है । उनकी जपादि समस्त साधना निष्फल होती हैं । अतः यत्नपूर्वक मस्तक के उपर मुर्द्धा मे कुल्लुका जपे ॥ १४॥

॥ इति सरस्वतोतन्त्रे तृतीयः पटलः ॥

॥ सरस्वतीतन्त्र का तृतीय पटल समाप्त ॥

शेष जारी.........आगे पढ़े- सरस्वतीतन्त्र चतुर्थ पटल

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]