संतोषी चालीसा
संतोषी माता को सुख,
समृद्धि और संतोष की देवी माना जाता है। अतः संतोषी चालीसा का नियमित
पाठ करने से भक्त के जीवन में यह गुण निश्चित ही प्राप्त होता है ।
संतोषी चालीसा का पाठ करने के क्या
लाभ हैं?
संतोषी माता के चालीसा का नियमित
पाठ से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि
और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। माता की कृपा से परिवार में प्रेम और
सौहार्द बढ़ता है, मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, पारिवारिक
तनाव धीरे-धीरे कम होने लगता है और जीवन की सभी बाधाएँ भी दूर होती हैं।
संतोषी माता चालीसा का पाठ किस दिन
और किस समय करना सबसे शुभ माना जाता है?
संतोषी माता चालीसा का पाठ करने के
लिए शुक्रवार का दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है,
क्योंकि यह दिन माता संतोषी को समर्पित है। इस दिन भक्त उपवास रखते
हैं और पूरी श्रद्धा के साथ माता की आराधना करते हैं। प्रातः स्नान करके स्वच्छ
वस्त्र धारण कर, घी का दीप जलाकर और गुड़-चने का भोग अर्पित
कर श्रीसंतोषी चालीसा पाठ करें और संतोषी माता व्रत कथा का पाठ अथवा श्रवण कर आरती
करें,प्रसाद वितरण करें।
संतोषी गायत्री मंत्र:
"ॐ संतोष्यै च विद्महे,
मंगलप्रदायै धीमहि ।
तन्नः संतोषी प्रचोदयात्।"
संतोषी माता महामंत्र:
"ॐ संतोषी देव्यै नमः।"
संतोषी माता बीजमंत्र:
"ॐ ह्रीं श्रीं संतोष्यै
स्वाहा।"
संतोषी माता
पौराणिक कथाओं के अनुसार,
गणेशजी ने अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्पन्न की और अपनी पत्नी
रिद्धि-सिद्धि की आत्म-शक्ति के साथ मिलाकर एक कन्या को जन्म दिया, जिसे संतोषी माता के नाम से जाना जाता है। चूंकि संतोषी माता का जन्म
शुक्रवार के दिन हुआ था, इसलिए उनकी पूजा और व्रत आदि
शुक्रवार के दिन ही किए जाते हैं। इन्हें खीर तथा गुड़ चने का प्रसाद चढ़ाया जाता
है। १६शुक्रवार तक संतोषी माता का व्रत रखने से भक्तजन की सभी मनोकामनाएं पूरी
होती हैं।
श्री संतोषी माता चालीसा
॥ दोहा ॥
बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि
दातार ।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से
पार ॥
भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम।
कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम॥
॥ चौपाई ॥
जय सन्तोषी मात अनूपम । शान्ति
दायिनी रूप मनोरम ॥
सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा । वेश
मनोहर ललित अनुपा ॥१॥
श्वेताम्बर रूप मनहारी । माँ
तुम्हारी छवि जग से न्यारी ॥
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन । दर्शन से
हो संकट मोचन ॥२॥
जय गणेश की सुता भवानी । रिद्धि-
सिद्धि की पुत्री ज्ञानी ॥
अगम अगोचर तुम्हरी माया । सब पर करो
कृपा की छाया ॥३॥
नाम अनेक तुम्हारे माता । अखिल विश्व
है तुमको ध्याता ॥
तुमने रूप अनेकों धारे । को कहि सके
चरित्र तुम्हारे ॥४॥
धाम अनेक कहाँ तक कहिये । सुमिरन तब
करके सुख लहिये ॥
विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी ।
कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी ॥५॥
कलकत्ते में तू ही काली । दुष्ट
नाशिनी महाकराली ॥
सम्बल पुर बहुचरा कहाती । भक्तजनों
का दुःख मिटाती ॥६॥
ज्वाला जी में ज्वाला देवी । पूजत
नित्य भक्त जन सेवी ॥
नगर बम्बई की महारानी । महा लक्ष्मी
तुम कल्याणी ॥७॥
मदुरा में मीनाक्षी तुम हो । सुख
दुख सबकी साक्षी तुम हो ॥
राजनगर में तुम जगदम्बे । बनी
भद्रकाली तुम अम्बे ॥८॥
पावागढ़ में दुर्गा माता । अखिल
विश्व तेरा यश गाता ॥
काशी पुराधीश्वरी माता । अन्नपूर्णा
नाम सुहाता ॥९॥
सर्वानन्द करो कल्याणी । तुम्हीं
शारदा अमृत वाणी ॥
तुम्हरी महिमा जल में थल में । दुःख
दारिद्र सब मेटो पल में ॥१०॥
जेते ऋषि और मुनीशा । नारद देव और
देवेशा ॥
इस जगती के नर और नारी । ध्यान धरत
हैं मात तुम्हारी ॥११॥
जापर कृपा तुम्हारी होती । वह पाता
भक्ति का मोती ॥
दुःख दारिद्र संकट मिट जाता । ध्यान
तुम्हारा जो जन ध्याता ॥१२॥
जो जन तुम्हरी महिमा गावै । ध्यान
तुम्हारा कर सुख पावै ॥
जो मन राखे शुद्ध भावना । ताकी पूरण
करो कामना ॥१३॥
कुमति निवारि सुमति की दात्री ।
जयति जयति माता जगधात्री ॥
शुक्रवार का दिवस सुहावन । जो व्रत
करे तुम्हारा पावन ॥१४॥
गुड़ छोले का भोग लगावै । कथा
तुम्हारी सुने सुनावै ॥
विधिवत पूजा करे तुम्हारी । फिर
प्रसाद पावे शुभकारी ॥१५॥
शक्ति- सामरथ हो जो धनको । दान-
दक्षिणा दे विप्रन को ॥
वे जगती के नर औ नारी । मनवांछित फल
पावें भारी ॥१६॥
जो जन शरण तुम्हारी जावे । सो निश्चय
भव से तर जावे ॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे । निश्चय
मनवांछित वर पावै ॥१७॥
सधवा पूजा करे तुम्हारी । अमर
सुहागिन हो वह नारी ॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा ।
भवसागर से उतरे पारा ॥१८॥
जयति जयति जय संकट हरणी । विघ्न
विनाशन मंगल करनी ॥
हम पर संकट है अति भारी । वेगि खबर
लो मात हमारी ॥१९॥
निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता। देह
भक्ति वर हम को माता ॥
यह चालीसा जो नित गावे । सो भवसागर
से तर जावे ॥२०॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥
सन्तोषी माता की आरती
॥ आरती श्री सन्तोषी माँ
॥
जय सन्तोषी माता,मैया जय सन्तोषी माता।
अपने सेवक जन को,सुख सम्पत्ति दाता॥
जय सन्तोषी माता॥
सुन्दर चीर सुनहरीमाँ धारण कीन्हों।
हीरा पन्ना दमके,तन श्रृंगार कीन्हों॥
जय सन्तोषी माता॥
गेरू लाल छटा छवि,बदन कमल सोहे।
मन्द हंसत करुणामयी,त्रिभुवन मन मोहे॥
जय सन्तोषी माता॥
स्वर्ण सिंहासन बैठी,चंवर ढुरें प्यारे।
धूप दीप मधुमेवा,भोग धरें न्यारे॥
जय सन्तोषी माता॥
गुड़ अरु चना परमप्रिय,तामे संतोष कियो।
सन्तोषी कहलाई,भक्तन वैभव दियो॥
जय सन्तोषी माता॥
शुक्रवार प्रिय मानत,आज दिवस सोही।
भक्त मण्डली छाई,कथा सुनत मोही॥
जय सन्तोषी माता॥
मन्दिर जगमग ज्योति,मंगल ध्वनि छाई।
विनय करें हम बालक,चरनन सिर नाई॥
जय सन्तोषी माता॥
भक्ति भावमय पूजा,अंगीकृत कीजै।
जो मन बसै हमारे,इच्छा फल दीजै॥
जय सन्तोषी माता॥
दुखी दरिद्री,
रोग,संकट मुक्त किये।
बहु धन-धान्य भरे घर,सुख सौभाग्य दिये॥
जय सन्तोषी माता॥
ध्यान धर्यो जिस जन ने,मनवांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर,घर आनन्द आयो॥
जय सन्तोषी माता॥
शरण गहे की लज्जा,राखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे,दयामयी अम्बे॥
जय सन्तोषी माता॥
सन्तोषी माता की आरती,जो कोई जन गावे।
ऋद्धि-सिद्धि,
सुख-सम्पत्ति,जी भरकर पावे॥
जय सन्तोषी माता॥
श्री सन्तोषी चालीसा व आरती समाप्त ।।

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