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महेश्वर स्तोत्र

महेश्वर स्तोत्र

नारदपुराण के अध्याय ९१ श्लोक २१७ से २३० में वर्णित यह महेश्वर स्तोत्र समस्त पापों का नाश करने वाला, शिव के सानिध्य को देने वाला और समस्त रहस्यों को प्रकाशित करने वाला है ।

महेश्वर स्तोत्र

महेश्वर स्तोत्रम्

Maheshvar stotra

महेश्वर स्तोत्रं

श्रीबृहन्नारदीयपुराणम्/ पूर्वार्धः/ तृतीयपादे/अध्यायः९१

श्री महेश्वर स्तोत्र

श्रृणु नारद वक्ष्यामि दिव्यं माहेश्वरं स्तवम् ।। २१७ ।।

यस्य पाठेन पूजायां सिद्ध्यंति मनवोऽखिलाः ।। २१८ ।।

नारद ! अब मैं महेश्वर के दिव्य स्तोत्र को बता रहा है, जिसका पूजा के समय पाठ करने से सकल मन्त्र सिद्ध हो जाते हैं—

धराम्ब्वग्निमरुव्द्योममखेशेंद्वर्कमूर्तये ।

सर्वभूतान्तरस्थाय शंकराय नमो नमः ।। २१९ ।।

पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि, इन्द्र, चन्द्र, तथा सूर्य रूपी शंकर को नमस्कार है। सकल प्राणियों में वास करने वाले शिव को नमस्कार है।

श्रुत्यंतकृतवासाय श्रुतये श्रुतिजन्मने ।

अतींद्रियाय महसे शाश्वताय नमो नमः ।। २२० ।।

श्रुतियों के अन्त में वास करने वाले श्रुतिरूप, श्रुतिजन्मा, इन्द्रियों से परे, तेजोरूप, शाश्वत शम्भु को नमस्कार हैं।

स्थूलसूक्ष्मविभागाभ्यामनिर्देश्याय शंभवे ।

भवाय भवसंभूतदुःखहन्त्रे नमो नमः ।। २२१ ।।

स्थुल तथा सूक्ष्म विभाग से अनिर्देश्य, सांसारिक दुःख का हरण करने वाले भवरूप शिव को नमस्कार है ।

तर्कमार्गातिदूराय तपसां फलदायिने ।

चतुर्वर्गवदान्याय सर्वज्ञाय नमो नमः ।। २२२ ।।

तर्कमार्ग से अत्यन्त दूर रहने वाले, तपस्या के फल देने वाले, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त कराने वाले सर्वज्ञ शिव को नमस्कार है ।

आदिमध्यांतशून्याय निरस्ताशेषभीतये ।

योगिध्येयाय महते निर्गुणाय नमो नमः ।। २२३ ।।

आदि, मध्य और अन्त से रहित समस्त प्रकार के भयों से शून्य, योगियों के ध्यान करने योग्य, निर्गुण, महान्, शंकर को नमस्कार है।

विश्वात्मने विविक्ताय विलसच्चंद्रमौलये ।

कंदर्प्पदर्प्पनाशाय कालहंत्रे नमो नमः ।। २२४ ।।

विश्वात्मा एकान्तप्रिय, चन्द्रमा से सुशोभित ललाट वाले, कंदर्प के दर्प का दलन करने वाले, कालनाशन शिव को नमस्कार है।

विषाशनाय विहरद्वृषस्कंधमुपेयुषे ।

सरिद्दामसमाबद्धकपदार्य नमो नमः ।। २२५ ।।

विष भक्षण करने वाले, विहरणशील वृषभ के कन्धे पर बैठने वाले, गंगा रूपी रस्सी से आवद्ध जटा वाले शंकर को नमस्कार हैं।

शुद्धाय शुद्धभावा शुद्धानामंतरात्मने ।

पुरांतकाय पूर्णाय पुण्यनाम्नो नमो नमः ।। २२६ ।।

शुद्ध रूप, शुद्ध भाव वाले, शुद्ध व्यक्तियों के अन्तरात्मा, पुरांतक पूर्ण तथा पुण्यनामा शिव को नमस्कार है ।

भक्ताय निजभक्तानां भुक्तिमुक्तिप्रदायिने ।

विवाससे निवासाय विश्वेषां पतये नमः ।। २२७ ।।

भक्त, अपने भक्तों को भुक्ति-मुक्ति देने वाले दिगम्बर, विश्वपति शिव को नमस्कार है।

त्रिमूर्तिमूलभूताय त्रिनेत्राय त्रिशूलिने ।

त्रिधाम्ने धामरूपाय जन्मदाय नमो नमः ।। २२८ ।।

त्रिमूर्तियों के मूलभूत, त्रिनेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले तीनों धाम वाले, धामरूप, जन्मदाता शिव को नमस्कार है।

देवासुरशिरोरत्नकिरीटारुणितांघ्रये ।

कांताय निजकांतायै दत्तार्द्धाय नमो नमः ।। २२९ ।।

देव तथा असुरों के मस्तक स्थित मूकटों के रत्नों से अरुणित चरण वाले, कमनीय रूप वाले, निज कांता को अर्धशरीर प्रदान करने वाले शिव को नमस्कार है ।

एतत्स्तोत्रं महेशस्य प्रोक्तं सर्वाघनाशनम् ।

शिवसान्निध्यदं विप्र सर्पतंत्रप्रकाशकम् ।। २३० ।।

विप्र! महेश का यह स्तोत्र समस्त पापों का नाश करने वाला, शिव के सानिध्य को देने वाला और समस्त रहस्यों को प्रकाशित करने वाला है ।

इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पूर्वभागे बृहदुपाख्याने तृतीयपादे महेशमन्त्रकथनं नामैकनवतितमोऽध्यायः ।। ९१ ।।

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