उमा महेश्वर स्तोत्र
श्री उमा महेश्वर स्तोत्र आदि
शंकराचार्य द्वारा रचित एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विशेष स्तोत्र है। यह स्तोत्र
भगवान शिव और माता पार्वती की स्तुति में द्वादशक (१२ श्लोक) के रूप में है। शिव,
जो संहारक हैं, वे सभी प्रकार के अशुभ
प्रभावों का नाश करते हैं। पार्वती, जो सृजन की देवी हैं,
वे जीवन में सुख-समृद्धि का संचार करती हैं। इस स्तोत्र के हर श्लोक
में भक्तों को इन दोनों शक्तियों की एकता और महत्त्व समझाया गया है। इसे नित्य पाठ
करने से जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति, सौभाग्य, दीर्घायु, भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त
होते हैं। और जीवन के अंत में शिवलोक की प्राप्ति होती है।
उमामहेश्वरस्तोत्रम्
Shri Uma Maheshwara Stotra
उमा महेश्वर स्तोत्र हिन्दी भावार्थ सहित
श्रीउमामहेश्वरस्तोत्रं
श्री उमा महेश्वर स्तोत्र
॥ श्री उमामहेश्वर स्तोत्र ॥
॥ ॐ गण गणपतये नमः ॥
नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां
परस्पराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम् ।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥१॥
नवयौवनाभ्यां शिवाभ्यां (नित्यनवीन
यौवनयुक्त शिव-शिवा के लिये) परस्पर- आश्लिष्ट-वपुः - धराभ्याम् (जिन दोनों ने
एक-दूसरे को आलिङ्गन में बाँधकर एक अर्धनारीश्वर स्वरूप धारण किया हुआ है उनके
लिये) नगेन्द्रकन्या - (पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती और) वृषकेतनाभ्यां
(वृषभचिन्हित ध्वजाधारी भगवान् शंकर के लिये) नमः (नमस्कार) शङ्करपार्वतीभ्याम्
नमः नमः (शंकर और पार्वती को बारम्बार नमस्कार )
चिरयौवनयुक्त (चिर युवा),
परस्पर आलिङ्गन से युक्त अर्धनारीश्वर शरीरधारी, शिव और शिवा को मेरा नमस्कार । पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती और
वृषभध्वज शिव, शङ्कर-पार्वती को मेरा बारम्बर नमस्कार ।
यह शिव-पार्वती दोनों के संयुक्त
स्वरूप (परस्पराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम्) के लिये नमस्कारयुक्त स्तुति है ।
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै
कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिलकायै च जटाधराय
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥
कस्तूरिकाकुङ्कुमचर्चितायै
चितारजःपुञ्जविचर्चिताय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥
(जिस अर्धनारीश्वर स्वरूप में आधे
शरीर में चम्पा पुष्पों-सी गोरी पार्वती और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे
भगवान् शिव सुशोभित हो रहे हैं, जिन पार्वती गौरी के मस्तक
पर सुन्दर केशपाश हैं, और जिन शिव-शंकर ने जटाजूट धारण किया
हुआ है, उन शङ्कर-पार्वती दोनों को मेरा नमस्कार ।
भगवती भवानी के शरीर पर कस्तूरी और
कुङ्कुम का अङ्गराग लगा है, और भगवान् शङ्कर के
शरीर पर चिता भस्म है। भगवती कामदेव को जीवित करने वाली है, और
भगवान् शिव उसे भस्म करने वाले हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शङ्कर को प्रणाम
है ।)
नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां
नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम् ।
नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥२॥
सरस-उत्सवाभ्यां (आह्लादमय उत्सव
में तन्मय के लिये) नमस्कृत-अभीष्ट- वर - प्रदाभ्याम् (प्रणाम करने वालों को
इच्छित फल प्रदान करने वालों के लिये) शिवाभ्यां नमः (शिव- शिवा को प्रणाम)
नारायणेन - ( श्री नारायण द्वारा) अर्चित- (पूजित) पादुकाभ्यां (चरणपादुकाओंवाले
शिव-शिवा के लिये) शङ्करपार्वतीभ्याम् नमो नमः (शङ्कर-पार्वती को बारम्बार प्रणाम)
जो शङ्कर-पार्वती आह्लादमय उत्सव
में सदा आनंदित हैं, और नमस्कार करने
मात्र से अभीष्ट वर देनेवाले हैं, उनके लिये प्रणाम। भगवान्
श्रीनारायण द्वारा जिनकी चरण पादुकाएँ पूजी जाती हैं, उन
शिव-शिवा के लिये बारम्बार प्रणाम ।
नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां
विरिञ्चिविष्णिवन्द्रसुपूजिताभ्याम्
।
विभूतिपाटीरविलेपनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥३॥
वृषवाहनाभ्यां (बैल पर आसीन )
शिवाभ्यां नमः (शिव-शिवा को प्रणाम) विरिञ्चि-विष्णु-इन्द्र- सुपूजिताभ्यां
(ब्रह्मा,
विष्णु, इन्द्र आदि देवों से भलीभाँति पूजित )
विभूति- पाटीर-विलेपनाभ्यां (भस्म और सुगन्धित द्रव्यों के अङ्गराग से सुशोभित)
शङ्करपार्वतीभ्यां नमो नमः (शंकर-पार्वती को बारम्बार प्रणाम)
बैल पर आसीन एवं ब्रह्मा,
विष्णु, इन्द्र आदि प्रमुख देवताओं द्वारा भली
भाँति पूजित शिव - शिवा को मेरा प्रणाम। जिन्होंने भस्म और सुगन्धित द्रव्यों का
अङ्गराग लगाया हुआ है, उन शङ्कर-पार्वती को मेरा बारम्बार प्रणाम
।
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां
जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम् ।
जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥४॥
जगदीश्वराभ्यां (जो समस्त
ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं उन दोनों के लिये) जगत्पतिभ्यां (जो जगन्नाथ हैं उन
दोनों के लिये) जयविग्रहाभ्याम् (विजयरूप शरीरधारी के लिये) नमः शिवाभ्यां (शिव-
शिवा को प्रणाम) जम्भ- अरि-मुख्यैः- अभिवन्दिताभ्यां (जो जम्भ दैत्य के शत्रु
(इन्द्र) आदि देवों द्वारा अभिवन्दित हैं) शङ्कर-पार्वतीभ्यां नमो नमः
(शङ्कर-पार्वती को बारम्बार नमस्कार है)
अखिल ब्रह्माण्ड के नायक,
जगन्नाथ, विजयरूप शरीरधारी शिव-शिवा को मेरा
प्रणाम। जम्भ दैत्य के शत्रु इन्द्र आदि प्रमुख देवगण जिनका अभिनन्दन करते हैं उन
शङ्कर-पार्वती को मेरा बारम्बार प्रणाम ।
नमः शिवाभ्यां परमौषधाम्यां
पञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम् ।
प्रपञ्चसृष्टिस्थितिसंहृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥५॥
परम-औषधाभ्यां (योगियों के लिये परम औषधस्वरूप) पञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम् (पञ्चाक्षर - नमः शिवाय - मंत्र से सुशोभित) शिवाभ्यां नमः (शिव-शिवा को प्रणाम) प्रपञ्च- सृष्टि-स्थिति-—संहृताभ्याम् (इस प्रपंच-संसार की सृष्टि, स्थिति, और संहारस्वरूप) शङ्करपार्वतीभ्यां नमो नमः (शङ्कर-पार्वती को मेरा बारम्बार प्रणाम)
जो योगी जनों के लिये परम औषधस्वरूप हैं- योगियों के लिये सिद्धिदाता हैं- पञ्चाक्षर मन्त्र नमः शिवाय के तन्त्र में सुशोभित हैं, जो समस्त ब्रह्माण्ड की सृष्टि, स्थिति, और संहार के कर्ता-धर्ता हैं, उन शङ्कर-पार्वती के लिये मेरा बारम्बार प्रणाम ।
नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्या-
मत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम् ।
अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥६॥
अति सुन्दराभ्यां (अत्यन्त सुन्दर ) अत्यन्तं- आसक्त - हृद् - अम्बुजाभ्याम्) अपने भक्तों-योगिजनों के हृदय कमल में सदा निवास करनेवाले) अशेष-लोक- एक- हितङ्कराभ्यां (समस्त चराचर प्राणियों के एकमात्र हितकारी) नमः शिवाभ्यां (शिव-शिवा को मेरा प्रणाम) शङ्कर-पार्वतीभ्यां नमो नमः (शङ्कर- पार्वती को मेरा नमन - बारम्बार प्रणाम )
अत्यन्त सौन्दर्य - स्वरूप,
योगियों के हृदय कमल में सदा निवास करनेवाले शिव-शिवा को प्रणाम।
समस्त चराचर ब्रह्मण्ड के एकमात्र हितकारी भगवान् शङ्कर और भगवती पार्वती को
बारम्बार प्रणाम ।
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां
कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम् ।
कैलासशैलस्थितदेवताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥७॥
कलिनाशनाभ्यां (कलियुग के दोषों का
निवारण करने वाले) कङ्काल-कल्याण-वपु: - धराभ्याम् (मृतप्राय,
हड्डियों के कङ्काल का भी कल्याण करने के लिये शरीर धारण करने वाले)
कैलाशशैलस्थितदेवताभ्यां (कैलास पर्वत पर निवास करने वाले देव-देवी के लिये) नमो
नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् (शङ्कर-पार्वती के लिये बारम्बार नमस्कार)
जो कलियुग के सभी दोषों का नाश करने
वाले हैं,
तथा मृतप्राय अस्थिपञ्जर को भी तारक मन्त्र द्वारा परमपद प्रदान
करनेवाले हैं, उन कैलासपर्वत पर निवास करनेवाले शिव-शिवा के
लिए मेरा प्रणाम। शङ्कर- पार्वती को बारम्बार प्रणाम ।
नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्या-
मशेषलोकैकविशेषिताभ्याम् ।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसम्भृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥८॥
अशुभ- अपहाभ्यां (अशुभों को दूर
करने वाले) अशेष-लोक-एक-विशेषिताभ्याम् (समस्त लोकों में एकमात्र विशिष्ट,
अद्वितीय) नमः शिवाभ्यां (शिव-शिवा को प्रणाम) अकुण्ठिताभ्यां
(अवाधित शक्तिसम्पन्न) स्मृति- सम्भृताभ्यां (भक्तों की स्मृति सदा संग्रहीत
रखनेवाले) शङ्करपार्वतीभ्यां नमो नमः (शिव-पार्वती को मेरा बारम्बार प्रणाम)
अशुभों को दूर करने वाले,
समस्त लोकों में एकमात्र अद्वितीय (अतिविशिष्ट) शिव-शिवा को मेरा
प्रणाम। जिनकी शक्ति अवाधित है, और जो अपने भक्त योगीजनों का
सदा स्मरण रखते हैं, उन शिव-पार्वती को मेरा बारम्बार प्रणाम
।
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां
रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम् ।
राकाशशाङ्काभमुखाम्बुजाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥९॥
रथवाहनाभ्यां ( रथ पर सवार) रवि-
इन्दु - वैश्वानर (सूर्य, चन्द्र और अग्निरूपी)
लोचनाभ्याम् (तीन नेत्रों वाले) शिवाभ्यां नमः (शिव-शिवा को प्रणाम) राका -
शशङ्काभ ( पूर्णिमा के चन्द्रमा की आभा के समान) मुख-अम्बुजाभ्यां (मुखारविन्द
वाले) शङ्कर-पार्वतीभ्यां नमो नमः (शङ्कर-पार्वती को बारम्बार नमस्कार)
रथ के वाहन पर सवार,
सूर्य-चन्द्र-अग्निरूपी तीन नेत्रोंवाले शिव और शिवा को मेरा
प्रणाम। पूर्णिमा की रात (राका) के चन्द्रमा की शुभ्र आभा के समान मुखारविन्दवाले
शिव-पार्वती को मेरा बारम्बार प्रणाम।
नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां
जरामृतिभ्यां च विवर्जिताभ्याम् ।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥१०॥
जटिलन्धराभ्यां (जटाजूटधारी)
जरा-मृतिभ्यां (वृद्धावस्था और मृत्यु से) विवर्जिताभ्याम् ( रहित,
अवाधित) शिवाभ्यां नमः (शिव-शिवा को नमस्कार ) जनार्दन (विष्णु)
अब्ज - (कमल से) उद्भव - (उत्पन्न - ब्रह्मा) पूजिताभ्यां (पूजितों के लिये)
जटाजूटधारी,
वृद्धावस्था और मृत्यु से परे, शिव और पार्वती
को मेरा प्रणाम । भगवान् विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा पूजित भगवान् शङ्कर और भगवती पार्वती
को बारम्बार मेरा प्रणाम ।
नमः शिवाभ्यां विषमेक्षणाभ्यां
बिल्वच्छदामल्लिकदामभृद्भ्याम् ।
शोभावतीशान्तवतीश्वराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥११॥
विषमेक्षणाभ्यां (विषम- तीन
नेत्रवाले) बिल्वच्छदा-मल्लिक-दाम-भृद्भ्यां (बिल्वपत्र,
मालती आदि सुगंधित पुष्पों की माला धारण करनेवाले के लिये) नमः
शिवाभ्यां (शिव-पार्वती को प्रणाम) शोभावती - शान्तवती- ईश्वराभ्यां (शोभावती और
शान्तवती के स्वामी)
त्रिलोचन,
बिल्वपत्र, मालती आदि सुगंधित पुष्पों की माला
धारण करनेवाले शिव- शिवानी को मेरा प्रणाम। शोभा और शान्ति के स्वामी
शङ्कर-पार्वती को बारम्बार प्रणाम।
नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्यां
जगत्त्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम् ।
समस्त देवासुरपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥१२॥
पशुपालकाभ्यां (जीवों का पालन-पोषण
करनेवाले) जगत्त्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम् (तीनों लोकों की रक्षा का भार जिनके हृदय
में सदा रहता है) नमः शिवाभ्यां (उन शिव - शिवानी को प्रणाम )
समस्तदेवासुरपूजिताभ्यां (समस्त देव और असुरों से पूजित ) नमो नमः
शङ्करपार्वतीभ्याम् (शङ्कर-पार्वती को मेरा बारम्बार प्रणाम )
समस्त प्राणियों का पालन-पोषण करने वाले, तथा तीनों लोकों की रक्षा करने में जिनका हृदय निरन्तर लगा हुआ है उन शिव- शिवानी को मेरा प्रणाम। जिनकी सारे सुर-असुर पूजा करते हैं, उन शिव-पार्वती को मेरा बारम्बार प्रणाम ।
उमा महेश्वर स्तोत्र महात्म्य
स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीयं
भक्त्या पठेद् द्वादशकं नरो यः ।
स सर्वसौभाग्यफलानि भुङ्क्ते
शतायुरन्ते शिवलोकमेति ॥१३॥
यः नरः (जो मनुष्य ) त्रिसन्ध्यं
(प्रातःकाल, मध्याह्न और सायंकाल) द्वादशकं
(बारह श्लोकोंवाले) शिवपार्वतीयं (शिव-पार्वती के) स्तोत्रं (इस स्तोत्र को)
भक्त्या (भक्तिपूर्वक) पठेत् (पाठ करता है) स सर्वसौभाग्यफलानि (उसे सौभाग्य फलों
का ) शतायुः अन्ते (सौ वर्षों तक) शिवलोकं एति (शिवलोक को प्राप्त करता है)
जो मनुष्य बारह श्लोकों वाले इस
स्तोत्र का प्रातः काल - मध्याह्न- सायंकाल, तीनों
संध्याओं में श्रद्धा भक्तिपूर्वक पाठ करता है, वह सौ वर्ष
की आयु प्राप्त कर, अन्त में, शिवलोक
को प्राप्त होता है।
॥ इति श्री उमामहेश्वर स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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