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शिव शंकर स्तोत्र

शिव शंकर स्तोत्र 

शिव शंकर स्तोत्र एक भक्त की हृदयगर्भ प्रार्थना है, जिसमें वह मृत्यु, भय, पाप, मोह, दुःख और संसार-सागर से उबारने के लिए भगवान शिव से गुहार लगाता है।

शिव शंकर स्तोत्र

श्री शिव शंकर स्तोत्रम् 

इस स्तोत्र का प्रत्येक श्लोक शिव को "हर शंकर शिव शंकर" कहकर पुकारता है, और कहता है

"हर मे हर दुरितम्" हे भोलेनाथमेरे समस्त पापों, कष्टों और दोषों का हरण कीजिए।"

शिव शंकर स्तोत्रम् 

Shiv shankar stotra

शिव शंकर स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित

अतिभीषणकटुभाषणयमकिंकरपटली-

कृतताडनपरिपीडनमरणागतसमये ।

उमया सह मम चेतसि यमशासन निवसन्

हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ १॥

जब मृत्यु के समय यमराज के भयंकर, कटु वचन बोलने वाले दूत मुझे पीड़ा देने आएँ- हे शिव! उस समय आप माँ पार्वती सहित मेरे चित्त में निवास करें, और मेरे समस्त पापों का नाश करें।

असदिन्द्रियविषयोदयसुखसात्कृतसुकृतेः

परदूषणपरिमोक्षण कृतपातकविकृतेः ।

शमनाननभवकानननिरतेर्भव शरणं

हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ २॥

जो मेरी इन्द्रियों के विषयों में डूबे रहने से उत्पन्न पाप और दूसरों की निंदा से मलिन हुए हैं- हे शम (ध्यान) के मुख वाले, हे महाकाल! कृपा कर मुझे शरण दें और मेरे पाप हर लें।

विषयाभिधबडिशायुधपिशितायितसुखतो

मकरायितगतिसंसृतिकृतसाहसविपदम् ।

परमालय परिपालय परितापितमनिशं

हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ३॥

भोग-विषयों की मछली पकड़ने वाली काँटेदार डोरी के समान यह संसार मुझे पीड़ित कर रहा है। हे परम आश्रयदाता! मुझे रात्रि-दिन की जलन और भय से बचाइए।

दयिता मम दुहिता मम जननी मम जनको मम

कल्पितमतिसन्ततिमरुभूमिषु निरतम् ।

गिरिजासख जनितासुखवसतिं कुरु सुखिनं

हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ४॥

मेरी पत्नी, पुत्री, माता-पिता और भ्रमित बुद्धि- सब संसार की मरुभूमि में तड़प रहे हैं। हे गिरिजापति! कृपा कर हमें सुखपूर्ण जीवन और शांति प्रदान करें।

जनिनाशन मृतिमोचन शिवपूजननिरतेः

अभितोऽदृशमिदमीदृशमहमावह इति हा ।

गजकच्छपजनितश्रम विमलीकुरु सुमतिं

हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ५॥

मैं जन्म और मृत्यु के बंधन में फंसा हूँ, शिवपूजन में लीन होने पर भी मन भ्रमित है। हे गजराज व कच्छप के सहारे संसार का बोझ उठाने वाले प्रभो! मेरी बुद्धि को शुद्ध कीजिए।

त्वयि तिष्ठति सकलस्थितिकरुणात्मनि हृदये

वसुमार्गणकृपणेक्षणमनसा शिवविमुखम् ।

अकृताह्निकमसुपोषकमवताद् गिरिसुतया

हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ६॥

हे दयामय शिव! आप तो हृदय में ही स्थित हैं, पर मैं अज्ञानवश आपको खोजता फिरता हूँ। मैं ना तो पूजा करता हूँ, ना जप-स्मरण करता हूँ- फिर भी कृपा करके माँ पार्वती सहित मेरी रक्षा कीजिए।

पितरावतिसुखदाविति शिशुना कृतहृदयौ

शिवया हृतभयके हृदि जनितं तव सुकृतम् ।

इति मे शिव हृदयं भव भवतात् तव दयया

हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ७॥

जिस प्रकार एक शिशु अपने माता-पिता को हृदय से बुलाता है, वैसे ही मैं आपको पुकारता हूँ। हे कृपालु! माँ पार्वती के साथ मेरी अंतरात्मा में सद्कर्म और शिवभक्ति का संचार कीजिए।

शरणागतभरणाश्रितकरुणामृतजलधे

शरणं तव चरणौ शिव मम संसृतिवसतेः ।

परिचिन्मय जगदामयभिषजे नतिरवतात्

हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ८॥

हे शरणागतों के रक्षक, करुणामृत के सागर शिव! मैं आपके चरणों की शरण में हूँ। आप ही संसाररूपी रोग का एकमात्र दिव्य वैद्य हैं-  कृपया मेरी पीड़ा हर लें।

विविधाधिभिरतिभीतिभिरकृताधिकसुकृतं

शतकोटिषु नरकादिषु हतपातकविवशम् ।

मृड मामव सुकृती भव शिवया सह कृपया

हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ९॥

भिन्न-भिन्न दुःख, भय और पापों से ग्रस्त मैं, नरक के योग्य बन चुका हूँ। हे कृपालु शिव! आप कृपा करके माँ पार्वती सहित मेरी रक्षा करें।

कलिनाशन गरलाशन कमलासनविनुत

कमलापतिनयनार्चित करुणाकृतिचरण ।

करुणाकर मुनिसेवित भवसागरहरण

हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ १०॥

हे कलियुग का नाश करने वाले, गरलपान करने वाले, ब्रह्मा-विष्णु द्वारा पूजित शिव! आपके चरण करुणा का स्रोत हैं, मुनियों द्वारा सेवित हैं कृपा कर भवसागर से उबारिए।

विजितेन्द्रियविबुधार्चितविमलाम्बुजचरण

भवनाशन भयनाशन भजिताङ्गितहृदय ।

फणिभूषण मुनिवेषण मदनान्तक शरणं

शिव शङ्कर शिव शङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ११॥

आपके चरण कमल पवित्र हैं, ऋषियों द्वारा पूजित हैं, भय और जन्म का नाश करने वाले हैं। हे नागभूषणधारी, मदन को जीतने वाले शिव! कृपा कर मुझे अपने चरणों की शरण में लें।

त्रिपुरान्तक त्रिदशेश्वर त्रिगुणात्मक शम्भो

वृषवाहन विषदूषण पतितोद्धर शरणम् ।

कनकासन कनकाम्बर कलिनाशन शरणं

शिव शङ्कर शिव शङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ १२॥

हे त्रिपुरासुर संहारक! त्रिदेवों के स्वामी, त्रिगुणमयी सृष्टि के पालक शिव! हे वृषध्वज, विष को पान करने वाले, पतितों को तारने वाले प्रभो! कृपा कर मेरी शरण स्वीकारें।

समापन प्रार्थना:

"हे शिवशंकर! यदा यदा भ्रान्ता अस्मि,

यदा मम जीवने मृत्युः, शोकः,

अपराधबोधः, दुःखदः भविष्यः च वर्तते

त्वं मम आश्रयः, मम आश्रयः।

तव 'हर' रूपं मम सर्वाणि

पापानि, भयानि, दुःखानि च हरतु

एषा मम प्रार्थना अस्ति"॥

"हे शिव शंकर! जब-जब मैं भ्रमित होऊँ, जब जीवन में मृत्यु, दुःख, दोष और दुखद भविष्य सामने हो

आप ही मेरी शरण हैं, मेरा संबल हैं।

आपके 'हर' स्वरूप से मेरा हर पाप, भय और दुख हर लें यही मेरी प्रार्थना है।"

इतिश्री शिव शंकर स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥

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