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कुलार्णव तन्त्र

कुलार्णव तन्त्र

कुलार्णव तन्त्र, कौलाचार से सम्बन्धित प्रसिद्ध तांत्रिक ग्रन्थ है। कुलार्णव का शाब्दिक अर्थ है- कुल का सागर। इसकी रचना ११वीं से १५वीं शती में हुई थी। इसमें शिव-पार्वती के संवाद के रूप में १७ अध्याय हैं जिन्हें उल्लास कहा जाता है। यह ग्रंथ आंतरिक ज्ञान, गुरु भक्ति, और तांत्रिक साधनाओं पर केंद्रित है, जिसमें दर्शन, कर्तव्य, और अनुष्ठान जैसे चक्रपूजा और पंच-मकार शामिल हैं।

कुलार्णव तन्त्र

कुलार्णवतन्त्र

Kularnav Tantra

कुलार्णवतन्त्रम्

कुलार्णव तन्त्र के प्रतिपाद्य विषय –

कुलार्णव तन्त्र के प्रथम उल्लास में जीवस्थितिकथन है ।

कुलार्णव तन्त्र द्वितीय उल्लास में कुलमाहात्म्यकथन,

कुलार्णव तन्त्र तृतीय उल्लास में श्रीप्रासादपरामन्त्रकथन,

कुलार्णव तन्त्र चतुर्थ उल्लास में महाषोढान्यासकथन,

कुलार्णव तन्त्र पञ्चम उल्लास में कुलमाहात्म्यकथन,

कुलार्णव तन्त्र षष्ठ उल्लास में द्रव्यसंस्कारविधान,

कुलार्णव तन्त्र सप्तम उल्लास में बटुकशक्त्यादिपूजाविधान,

कुलार्णव तन्त्र अष्टम उल्लास में तत्वत्रितयपानादिभेदकथन,

कुलार्णव तन्त्र नवम उल्लास में योगसंस्थापनकथन,

कुलार्णव तन्त्र दशम उल्लास में विशेषदिवसार्चनविधान,

कुलार्णव तन्त्र एकादश उल्लास में कुलाचारकथन,

कुलार्णव तन्त्र द्वादश उल्लास में श्रीपादुकाकथन,

कुलार्णव तन्त्र त्रयोदश उल्लास में गुरुशिष्यलक्षण,

कुलार्णव तन्त्र चतुर्दश उल्लास में गुरुशिष्यपरीक्षाकथन,

कुलार्णव तन्त्र पञ्चदश उल्लास में पुरश्चरणादिविधान,

कुलार्णव तन्त्र षोडश उल्लास में काम्यकर्मविधान तथा

कुलार्णव तन्त्र सप्तदश उल्लास में गुरु आदि शब्दों की परिभाषा का विधान है ।

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