बालमुकुन्द अष्टक
श्री बिल्वमङ्गलठाकुर द्वारा रचित
यह बालमुकुन्द अष्टक एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान् श्री कृष्ण के बाल रूप (बाल-मुकुंद)
की विभिन्न लीला, छवि, मनोहारी दृश्य को समर्पित है। स्तोत्र में बालक कृष्ण के कई
रूपों का वर्णन है, जैसे वटपत्र पर शयन
करते हुए, माखन चुराते हुए और कालिया नाग के ऊपर नृत्य करते
हुए। इसका पाठ करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, मानसिक
शांति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। अशांति, भय
और तनाव से मुक्ति मिलती है। धन-धान्य की प्राप्ति और कीर्ति में वृद्धि होती है। सारे
कष्ट दूर होते हैं। नकारात्मक सोच और बुरे विचारों से मुक्ति मिलती है तथा सकारात्मक
ऊर्जा का संचार और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
बालमुकुन्दाष्टकम्
Balamukundashtakam
बालमुकुन्दाष्टक स्तोत्रम्
बालमुकुन्दाष्टक भावार्थ सहित
श्रीबालमुकुन्दाष्टकं
वटपत्र के पत्तों पर शयन
करते बाल मुकुंद
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे
विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटेशयानं बालं
मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ १ ॥
मैं, कमल जैसे हाथों से, कमल जैसे पैरों के अंगूठे को,
कमल जैसे मुख में डालते हुए, वट वृक्ष के
पत्ते पर सो रहे बाल मुकुंद (भगवान कृष्ण) का मन से स्मरण करता हूँ।
सर्वकल्याण अवतार
संहृत्य लोकान्वटपत्रमध्ये
शयानमाद्यन्तविहीनरूपम् ।
सर्वेश्वरं सर्वहितावतारं बालं
मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ २ ॥
मैं उस बालक मुकुंद का मन से स्मरण
करता हूँ,
जो संपूर्ण लोकों को अपने में समेटे हुए, एक
वटपत्र पर शयन कर रहे हैं, जो सभी का ईश्वर है, जो सभी के हित के लिए अवतरित हुए हैं और जो अपने आदि-अन्त रहित हैं।
कल्पवृक्ष समान बाल
मुकुंद
इन्दीवरश्यामलकोमलाङ्गं
इन्द्रादिदेवार्चितपादपद्यम् ।
संतानकल्पद्रुममाश्रितानां बालं
मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ३ ॥
सुंदर,
कोमल शरीर वाले बाल कृष्ण जिनका रंग नीले कमल (इंदीवर) जैसा है और
जिसके चरण कमलों की पूजा इंद्र और अन्य देवता करते हैं, जो शरण में आने वालों के
लिए कल्पवृक्ष के समान हैं। मैं उस बालक मुकुंद का मन से स्मरण करता हूँ।
रूप-लावण्यता
लम्बालकं लम्बितहारयष्टिं
शृङ्गारलीलाङ्कितदन्तपङ्क्तिम् ।
बिम्बाधरं चारुविशालनेत्रं बालं
मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ४॥
जिनके घुंघराले और लटकते हुए बाल
हैं, एक लंबी माला जो गले में लटक रही है, जो अपनी शरारतों और शृंगार के कारण
दांतों की पंक्ति को भी आनंदमय बना देते हैं, जिनके बिम्ब फल के समान लाल और कोमल
होंठ हैं, जिनकी आँखें बड़ी प्यारी और सुंदर हैं, मैं मन से उस बाल कृष्ण को स्मरण करता हूँ।
माखनचोर लीला
शिक्ये निधायाद्यपयोदधीनि
बहिर्गतायां व्रजनायिकायाम् ।
भुक्त्वा यथेष्टं कपटेन सुप्तं बालं
मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ५ ॥
मैं मन से उस बाल मुकुंद का स्मरण
करता हूँ,
जिसने गोपियों के बाहर जाने पर उनके लटकते हुए शिके (बर्तनों) से
तृप्ति भर माखन खाकर ऐसे दिखावा किया मानो वह सो रहा हो ।
नटवर बाल मुकुंद
कलिन्दजान्तस्थितकालियस्य
फनाग्ररङ्गे नटनप्रियन्तम् ।
तत्पुच्छहस्तं शरदिन्दुवक्रं बालं
मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ६ ॥
जो कालिन्दी (यमुना नदी) के भीतर
स्थित कालिया नाग के फन की नोक पर नृत्य कर रहे हैं और उसके (कालिया के) पूंछ को अपने
हाथ में पकड़े हुए हैं, शरद ऋतु के चंद्रमा के समान मुख वाले उन बाल-मुकुंद (बाल
कृष्ण) का मैं मन से स्मरण करता हूँ।
उलूखल लीला
उलूखले बद्धमुदारशौर्यं
उत्तुङ्गयुग्मार्जुन भङ्गलीलम् ।
उत्फुल्लपद्मायत चारुनेत्रं बालं
मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ७ ॥
जिसने ओखली (अनाज कूटने के लिए एक
बड़ा भारी पत्थर का पात्र) से बंधे होने के बावजूद बड़ी वीरता के साथ अर्जुन के दो
ऊंचे पेड़ों को तोड़ दिया था, उस पूर्ण खिले
हुए कमल के पत्तों के समान सुंदर आंखों वाले बाल मुकुंद का मैं मन से स्मरण करता
हूँ।
सच्चिदानंद रूप
आलोक्य मातुर्मुखमादरेण स्तन्यं
पिबन्तं सरसीरुहाक्षम् ।
सच्चिन्मयं देवमनन्तरूपं बालं
मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ८ ॥
मां के मुख को देखकर,
प्रेमपूर्वक स्तन्यपान करते हुए, कमल के समान
नेत्रों वाले, सच्चिदानंद रूप और अनंत रूप वाले बाल मुकुंद
का मैं मन से स्मरण करता हूँ।
॥ इति श्री बिल्वमङ्गलठाकुरविरचितम्
बालमुकुन्दाष्टकं सम्पूर्णम्॥
इस प्रकार श्री बिल्वमंगल ठाकुर द्वारा रचित बालमुकुन्दाष्टकं पूरा होता है।

Post a Comment