बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ८

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ८ 

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ८ में अरिष्टाध्याय तथा अरिष्टभङ्गाध्याय का वर्णन हुआ है।  

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ८

बृहत्पाराशर होराशास्त्र अध्याय ८ 

Vrihat Parashar hora shastra chapter 8  

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् अष्टमोऽध्यायः

अथ बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् अष्टम भाषा-टीकासहितं

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ८- अथाऽरिष्टाध्यायः

चतविंशतिवर्षाणि यावद्गच्छन्ति जन्मतः ।

जन्मारिष्टं तु तावत्स्यादायुर्दायं न चिन्तयेत् ।। १ ।।

जन्म से २४ वर्ष की अवस्था तक बालारिष्ट होता है, अतः उक्त अवस्था तक बालकों के आयु की गणना नहीं करनी चाहिए ।। १ ।।

षष्ठाष्टरिष्फगश्चन्द्रः क्रूरैश्च सह वीक्षितः ।

जातस्य मृत्युदः सद्यस्त्वष्टवर्षेः शुभेक्षितः ।। २॥

इसलिए बालारिष्ट को कह रहा हूँ- जन्मलग्न से ६ । ८ । १२ भाव में चन्द्रमा हो और क्रूरग्रही से देखा जाता हो तो बालक की शीघ्र ही मृत्युं होती है । यदि चन्द्रमा को शुभग्रह देखता हो तो ८वें वर्ष में अरिष्ट होता है ।।२।।

शशिवन्मृत्युदः सौम्याश्चेद्वक्राः क्रूरवीक्षिता: ।

शिशोर्जातस्य मासेन लग्ने सौम्यविवर्जिते । । ३ । ।

यदि वक्री शुभग्रह ६।८ । १२ भाव में हों और क्रूरग्रहों से देखे जाते हों और शुभग्रह जन्म लग्न में न हों तो बालक की एक मास में मृत्यु हो जाती है ।।३।।

यस्य जन्मनिधीस्थाः स्युः सूर्यार्केन्दुकुजाभिधाः ।

तस्य त्वाशु जनित्री च भ्राता च निधनं लभेत्।।४।।

जिसके जन्मांग में ५वें स्थान में सूर्य, शनि, चन्द्रमा और मंगल हों तो उस बालक के माता और भाई की मृत्यु होती है ।। ४ ।।

पापेक्षिते युतो भौमो लग्नगो न शुभेक्षितः ।

मृत्युदस्त्वष्टमस्थोऽपि सौरेणार्केण वा पुनः ।।५।।

यदि पापग्रह से युत और पापग्रह से देखा जाता हुआ भौम जन्मलग्न में हो और शुभग्रह न देखा जाता हो तो मृत्युकारक होता है और आठवें भाव में शनि या रवि हों तो भी मृत्युकारक होते हैं ।। ५ ।।

चन्द्रसूर्यग्रहे राहुश्चन्द्रसूर्ययुतो यदि ।

शनिभौमेक्षितं लग्नं पक्षमेकं स जीवति ।।६।।

चन्द्रग्रहण या सूर्यग्रहण के समय का जन्म हो, लग्न में राहु, चन्द्रमा, सूर्य हों और शनि को भौम देखता हो तो बालक एक पक्ष (१५ दिन) तक जीता है ।। ६ ।।

कर्मस्थाने स्थितः सौरिः शत्रुस्थाने कलानिधिः ।

क्षितिजो सप्तमस्थाने समात्रा म्रियते शिशुः ।।७।।

लग्न से दशम भाव में शनि हो, छठे भाव में चन्द्रमा हो, सातवें भाव में भौम हो तो माता के साथ ही बालक की मृत्यु होती है ।।७।।

लग्ने भास्करपुत्रश्च निधने चन्द्रमा यदि ।

तृतीयस्थो यदा जीवः स याति यममन्दिरम् ।।८।।

लग्न में शनि हो, आठवें भाव में चन्द्रमा हो और तीसरे भाव में गुरु हो तो बालक की मृत्यु होती है ।।८।।

होरायां नवमे सूर्यः सप्तमस्थः शनैश्चरः।

एकादशे गुरुः शुक्रो मासमेकं स जीवति ।।९।।

अपने होरा में सूर्य नवम भाव में हो, सातवें भाव में शनि हो और ग्यारहवें भाव में गुरु-शुक्र हों तो १ मास में बालक की मृत्यु होती है । । ९ ।।

व्यये सर्वे ग्रहा नेष्टा सूर्यशुक्रेन्दुराहवः ।

विशेषांन्नाशकर्त्तारो दृष्ट्या वा भङ्गकारिणः । । १० ।।

१२वें भाव में सभी ग्रह अशुभ होते हैं, विशेषकर सूर्य, शुक्र, चन्द्रमा और राहु । इनकी दृष्टि भी हानिकर होती है।।१०।।

पापान्वितः शशी धर्मे द्यूनलग्नगतो यदि ।

शुभैरवीक्षितयुतस्तदा मृत्युप्रदः शिशोः । । ११ । ।

पापग्रह से युत चन्द्रमा ९वें या ७वें भाव में हो और शुभग्रह से दृष्ट- युत न हो तो बालक की मृत्यु होती है।।११।।

सन्ध्यायां चन्द्रहोरायां गण्डान्ते निधनाय वै ।

प्रत्येकं चन्द्रपापैश्च केन्द्रगैः स्याद्विनाशनम् । । १२ । ।

प्रातः संध्या या सायं संध्या में चन्द्रमा की होरा में जन्म हो और गडांत हो तो बालक की मृत्यु होती है । प्रत्येक केन्द्रों में पापग्रह चन्द्रमा से युत हो तो भी मृत्यु होती है । । १२ ।।

रवेस्तु मण्डलार्द्धास्तात्सायं सन्ध्या त्रिनाडिका ।

तथैवार्द्धादयात्पूर्वं प्रातः सन्ध्या त्रिनाडिका । । १३ ।।

सूर्यबिंब के आधा अस्त हो जाने के बाद ३ दंड सायं संध्या और सूर्यबिंब के आधा उदय होने के पश्चात् ३ घटी प्रातः संध्या होती है । । १३ ।।

चक्रपूर्वापरार्धेषु क्रूरसौम्येषु कीटभे ।

लग्नगे निधनं यान्ति नात्र कार्या विचारणा । । १४ ।।

'यदि सभी पापग्रह चक्र के पूर्वार्ध में हों और परार्ध में शुभग्रह हों और कीटलग्न (कर्कराशि) जन्मलग्न हो तो बालक की मृत्यु होती है।।१४।।

व्ययशत्रुगतैः क्रूरैर्मृत्युद्रव्यगतैरपिं।

पापमध्यगते लग्ने सत्यमेव मृतिं वदेत् ।। १५ ।।

यदि १२वें, छठे, ८वें और दूसरे भाव पापग्रह हों, जन्मलग्न पापग्रह के मध्य में हो तो बालक की मृत्यु होती है । । १५ ।।

लग्नसप्तमगौ पापो चन्द्रोंऽपि क्रूरसंयुतः ।

यदा त्ववीक्षितः सौम्यैः शीघ्रान्मृत्युर्भवेत्तदा । ।१६।।

यदि लग्न और सातवें भाव में पापग्रह हों और चन्द्रमा भी क्रूरग्रह से युक्त हो और शुभ ग्रहों से न देखा जाता हो तो शीघ्र ही मृत्यु होती है । । १६ ।।

क्षीणे शशिनि लग्नस्थे पापैः केन्द्राष्टसंस्थितैः ।

यो जात मृत्युमाप्नोति स विप्रेश न संशयः ।।१७।।

क्षीण चन्द्रमा लग्न में हो, केन्द्र और आठवें भाव में पापग्रह हों तो बालक की मृत्यु होती है । । १७ ।।

पापयोर्मध्यगश्चन्द्रो लग्नरन्ध्रान्त्यसप्तगः ।

अचिरान्मृत्युमाप्नोति यो जातः स शिशुस्तथा । । १८ ।।

दो पापग्रहों के मध्य में होकर चन्द्रमा लग्न, आठवें या बारहवें या सातवें भाव में हो तो बालक की मृत्युं होती है ।।१८।।

पापद्वयमध्यगे चन्द्रे लग्ने समवस्थिते ।

सप्तमष्टमेन पापेन मात्रा सह मृतः शिशुः । । १९ । ।

दो पापग्रहों के मध्य में चन्द्रमा लग्न में हो, सातवें, आठवें भाव में पापग्रह हों तो माता के साथ बालक की मृत्यु होती है । । १९ ।।

शनैश्चरार्कभौमेषु रिष्फधर्माष्टमेषु च।

शुभैरवीक्षमाणेषु यो जातो निधनं गतः ।। २० ।।

शनि, सूर्य, भौम क्रम से १२, , ८ वें भाव में हों और शुभग्रहों से न देखे जाते हों तो शीघ्र ही मृत्यु होती है ।। २० ।।

यद्वेष्काणे च यामित्रे यस्य स्याद्दारुणो ग्रहः ।

क्षीणचन्द्रो विलग्नस्थो सद्यो हरति जीवितम् ।। २१ ।।

जिसके लग्न के द्रेष्काण और सातवें भाव में पापग्रह हों और क्षीण चन्द्रमा लग्न में हो तो शीघ्र ही मृत्यु होती है । २१ । ।

आपोक्लिमस्थिताः सर्वे ग्रहाः बलविवर्जिताः ।

षण्मासं वा द्विमासं वा तस्यायुः समुदाहृतम् ।। २२ ।।

सभी ग्रह निर्बल होकर आपोक्लिम (३ । ६ । ९ । १२) भाव में हों तो ६ मास या दो मास की आयु होती है ।। २२ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ८- अथ मातृकष्टम्

चन्द्रमा यदि पापानां त्रितयेन प्रदृश्यते ।

मातृनाशो भवेत्तस्य शुभदृष्टे शुभं भवेत् ।।२३।।

यदि जन्म समय चंन्द्रमा को तीन पापग्रह देखते हों तो माता की मृत्यु होती है। शुभग्रह देखते हों तो शुभ होता है।।२३।।

राहुर्बुधः शुक्रः सौरिः सूर्यो यथास्थितः ।

यस्य मातुः भवेन्मृत्युर्मृते पितरि जायते ।। २४ ।।

धन भाव में राहु, बुध, शुक्र, शनि और सूर्य हों तो उसके पिता के मरने के बाद माता की मृत्यु होती है ।। २४ ।।

पापात्सप्तमरन्ध्रस्थे चन्द्रे पापसमन्विते ।

बलिभिः पापकैर्दृष्टे जातो भवति मातृहा ।। २५ ।।

पापग्रह से सातवें, आठवें भाव में पापग्रह से युत चन्द्रमा हो, बलवान् पापग्रहों से देखा जाता हो तो उसकी माता की मृत्यु होती है ।। २५ ।।

उच्चस्थो वाथ नीचस्थः सप्तमस्थो यदा रविः ।

मातृहीनो भवेद्बालः अजाक्षीरेण जीवति । २६ ।।

जिसके जन्म समय में लग्न में सातवें भाव में उच्चराशि में यां नीच राशि में सूर्य हो तो उसके माता की मृत्यु होती है और वह बालक बकरी के दूध से जीता है ।। २६ ।।

चन्द्राच्चतुर्थगः पापो रिपुक्षेत्रे यदा भवेत् ।

तदा मातृवधं कुर्यात्केन्द्रे यदि शुभो न चेत् । । २७ ।।

यदि अपने शत्रु की राशि का पापग्रह चन्द्रमा से चौथे हो और केन्द्र में शुभग्रह न हों तो माता की मृत्यु होती है ।। २७ ।।

द्वादशे रिपुभावे च यदा पापग्रहो भवेत् ।

तदा मातुर्वधं विन्द्याच्चतुर्थे दशमे पितुः । । २८।।

जन्मलग्न से १२ वें, छठे स्थान में पापग्रह हों तो माता का विनाश होता है। चौथे, दशवें स्थान में पापग्रह हो तो पिता की हानि होती है ।। २८ ।।

लाभे क्रूरो व्यये क्रूरो धने सौम्यस्तथैव च ।

सप्तमे भवने क्रूरः परिवारक्षयङ्करः ।। २९ ।।

लग्न और बारहवें भाव में पापग्रह हों, दूसरे भाव में शुभग्रह हों तथा सातवें भाव में क्रूरग्रह हों तो परिवार का नाश करने वाला होता है ।। २९ ।।

लग्नस्थे च गुरौ सौरी धने राहौ तृतीयगे ।

इति चेज्जन्मकाले स्यान्माता तस्य न जीवति । । ३० ।।

लग्न में गुरु और शनि हों तथा दूसरे या तीसरे भाव में राहु हो तो माता नहीं जीती है ।। ३० ।।

क्षीणचन्द्रात् त्रिकोणस्यैः पापैः सौम्यविवर्जितैः ।

माता परित्यजेद्वालं षण्मासाच्च न संशयः ।। ३१ ।।

क्षीण चन्द्रमा से त्रिकोण (९।५) में पापग्रह हों, शुभग्रह न हों तो ६ मास के अन्दर ही माता बालक को त्याग देती है।।३१।।

एकांशकस्थौ मन्दारौ यत्र कुत्र स्थितौ यदा ।

शशिकेन्द्रगतौ तौ वा द्विमातृभ्यां च जीवति ।। ३२ ।।

एक ही नवमांश में शनि और भौम हों और कहीं बैठे हों अथवा चन्द्रमा से केन्द्र में हो तो बालक दो माताओं से जीता है ।। ३२ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ८- अथ पितृकष्टम्

लग्ने सौरिर्मदे भौमः षष्ठस्थाने च चन्द्रमाः ।

इति चेज्जन्मकाले स्यात्पिता तस्य न जीवति । । ३३ ।।

यदि जन्मलग्न में शनि, सातवें स्थान में भौम और छठे स्थान में चन्द्रमा हों तो उसका पिता नहीं जीता है ।।३३।।

लग्ने जीवो धने मन्दरविभौमबुधस्तथा ।

विवाहसमये तस्य जातस्य म्रियते पिता । । ३४ ।।

लग्न में गुरु हो, दूसरे स्थान में शनि, रवि, भौम, बुध हों तो उसके विवाह के समय में पिता की मृत्यु होती है ।। ३४ ।।

सूर्यः पापेन संयुक्तः सूर्यो वा पापमध्यगः ।

सूर्यात्सप्तमगः पापस्तदा पितृवधं भवेत् ।। ३५ ।।

सूर्य पापग्रह के साथ हो अथवा पापग्रहों के मध्य में हो और सूर्य से सातवें भाव में पापग्रह हो तो पिता की मृत्यु होती है ।। ३५ ।।

सप्तमे भवने सूर्यः कर्मस्थो भूमिनन्दनः ।

राहुर्व्यये च यस्यैव पिता कष्टेन जीवति । । ३६ । ।

सातवें स्थान में सूर्य हो, दशम स्थान में भौम और बारहवें स्थान में राहु हों तो पिता कष्ट से जीता है ।।३६।।

दशमस्थो यदा भौमः शत्रुक्षेत्रसमन्वितः ।

म्रियते तस्य जातस्य पिता शीघ्रं न संशयः ।। ३७ ।।

यदि दशम स्थान में शत्रु की राशि में भौम हो तो पिता की शीघ्र ही मृत्यु होती है ।। ३७ ।।

रिपुस्थाने यदा चन्द्रो लग्नस्थाने शनैश्चरः ।

कुजश्च सप्तमस्थाने पिता तस्य न जीवति ।। ३८ ।।

यदि छठें स्थान में चन्द्रमा, लग्न में शनि और सातवें में भौम हो तो पिता नहीं जीता है । । ३८ ।।

भौमांशकस्थिते भानौ स्वपुत्रेण निरीक्षिते । 

प्राज्जन्मतो निवृत्तिः स्यान्मृत्युर्वापि शिशोः पितुः ।। ३९ ।।

भौम के नवांश में सूर्य हो और शनि से देखा जाता हो तो पिता नहीं जीता है ।। ३९ ।।

पाताले चाम्बरे पापा द्वादशे च यदा स्थितौ ।

पितरं मातरं हत्वा देशाद्देशान्तरं व्रजेत् ।। ४० ।।

चतुर्थ, दशम और बारहवें स्थान में पापग्रह हों तो माता-पिता दोनों की मृत्यु होती है ।। ४० ।।

राहुजीवौ रिपुक्षेत्रे लग्ने वाथ चतुर्थके ।

त्रयोविंशतिमे वर्षे पुत्रस्तातं न पश्यति ।। ४१ ।।

राहु, गुरु छठे, लग्न या चौथे भाव में हों तो २३वें वर्ष में पुत्र पिता को नहीं देखता है ।। ४१ ।। *

* जीव के पिताकारक सूर्य और मातृकारक चन्द्रमा होता है।

भानुः पिता च जन्तूनां चन्द्रो माता तथैव च ।

पापदृष्टियुतो भानुः पापमध्यगतोऽपि वा ।

पित्रारिष्टं विजानीयाच्छिशोर्जातस्य निश्चितम् ।।४२ ।।

यदि सूर्य पापग्रह से दृष्ट-युत होकर पापग्रह के मध्य में हो तो बालक के पिता का नाश होता है ।। ४२ ।।

भानोः षष्ठाष्टमर्क्षस्थैः पापैः सौम्यविवर्जितैः ।

चतुरागतैर्वापि पित्रारिष्टं विनिर्दिशेत् । ।४३।।

सूर्य से छठे, आठवें भाव में पापग्रह हों तो पिता की मृत्यु होती है । सूर्य से छठे, आठवें भाव में पापग्रह हों, शुभग्रह न हों या चौथे, आठवें भाव में पापग्रह हों तो पिता को अरिष्ट होता है ।। ४३ ।।

इत्यरिष्टाध्यायः ।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ८- अथारिष्टभङ्गाध्यायः

एकोऽपि ज्ञार्यशुक्राणां लग्नात्केन्द्रगतो यदि ।

अरिष्टं निखिलं हन्ति तिमिरं भास्करो यथा । । ४४ ।।

यदि बुध, गुरु, शुक्र में से एक लग्न भी केन्द्र में हो तो संपूर्ण अरिष्ट का नाश हो जाता है; जैसे सूर्य के उदय से अंधकार का नाश हो जाता है।। ४४ ।।

एक एव बली जीवो लग्नस्थो रिष्टसञ्चयः।

हन्ति पापक्षयं भक्त्या प्रणाम इव शूलिनः । । ४५ ।।

यदि केवल गुरु ही बली होकर लग्न में हो तो अरिष्ट-समूह का नाश हो जाता है, जैसे भक्तिपूर्वक शंकर को प्रणाम करने से पापसमूह नष्ट हो जाते हैं ।। ४५ ।।

एक एव विलग्नेशः केन्द्रसंस्थो बलान्वितः ।

अरिष्टं निखिलं हन्ति पिनाकी त्रिपुरं यथा ।। ४६ ।।

एक लग्नेश ही बली होकर केन्द्र में हो तो अरिष्ट का नाश होता है, जैसे शंकरजी ने त्रिपुर राक्षस का नाश किया था।।४६।।

शुक्लपक्षे क्षपाजन्म लग्ने सौम्यनिरीक्षिते ।

विपरीतं कृष्णपक्षे तथारिष्टविनाशनम् ।।४७॥

शुक्लपक्ष से रात्रि में जन्म हो और लग्न को शुभ ग्रह देखता हो तथा कृष्णपक्ष में दिन का जन्म हो और लग्न को शुभ ग्रह देखता हो तो अरिष्ट का नाश होता है ।। ४७ ।।

व्ययस्थाने यदा सूर्यस्तुला लग्ने तु जायते ।

जीवेत्स शतवर्षाणि दीर्घायुर्बालको भवेत् । ।४८।।

यदि तुला लग्न में जन्म हो और बारहवें स्थान में सूर्य हों तो बालक १०० वर्ष तक जीता है ।। ४८ ।।

गुरुभौ यदा युक्तौ गुरुदृष्टोऽथवा कुजः ।

हत्वारिष्टमशेषं च जनन्याः शुभकृद्भवेत् ।। ४९।।

गुरु-भौम एक भाव में हों अथवा गुरु से भौम देखा जाता हो तो अरिष्टों का नाश होता है और माता को सुख होता है ।। ४९ ।।

चतुर्थदशमे पापः सौम्यमध्ये यदा भवेत् ।

पितुः सौख्यकरो योगः शुभैः केन्द्रत्रिकोणगैः । । ५० ।।

शुभग्रह के मध्य में चौथे, दशम भाव में पापग्रह हों, केन्द्रत्रिकोण में शुभग्रह हों तो पिता को सुख होता है।।५०।।

लग्नाच्चतुर्थे यदि पापखेटः केन्द्रत्रिकोणे सुरराजमन्त्री ।

कुलद्वयानन्दकरो प्रसूतः दीर्घायुरारोग्यसमन्वितश्च ।। ५१ ।।

लग्न से चौथे स्थान में पापग्रह हों, केन्द्र व त्रिकोण में गुरु हों तो बालक दोनों कुलों (माता-पिता) को सुखदायक होता है ।। ५१ ।।

सौम्यान्तरगतेः पापैः शुभैः केन्द्रत्रिकोणगैः ।

सद्यो नाशयतेऽरिष्टं तद्भावोत्थफलं न तत् ।। ५२ ।।

शुभग्रह के मध्य में पापग्रह हों और शुभग्रह केन्द्रत्रिकोण में हो तो अरिष्ट का नाश होता है और उस भाव के फलों की वृद्धि होती है । । ५२ ।।

इति पाराशरहोरायां पूर्वखण्डे सुबोधिन्यामरिष्टभङ्गाध्यायः पञ्चमः।

इत्यरिष्टभङ्गाध्यायः।

आगे जारी............. बृहत्पाराशरहोराशास्त्र अध्याय 9

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