अग्निपुराण अध्याय ३७

अग्निपुराण अध्याय ३७                

अग्निपुराण अध्याय ३७ संक्षेप से समस्त देवताओं के लिये साधारण पवित्रारोपण की विधि का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय ३७

अग्निपुराणम् अध्यायः ३७                

Agni puran chapter 37

अग्निपुराण सैंतीसवाँ अध्याय

अग्नि पुराण अध्याय ३७                

अग्निपुराणम् अध्यायः ३७ - सर्वदेवपवित्रारोपणविधिः

अथ सप्तत्रिंशोऽध्यायः

अग्निरुवाच

सङ्क्षेपात् सर्वदेवानां पवित्रारोहणं श्रृणु।

पवित्रं सर्वलक्ष्म स्यात् खरमानलगं त्व ।। १ ।।

जगद्योने समागच्छ परिवारगणैः सह।

निमन्त्रयाम्यहं प्रातर्द्दद्यान्तुभ्यं पवित्रकम् ।। २ ।।

जगत्‌सृजे नमस्तुभ्यं गृह्णीष्वेदं पवित्रकम्।

पवित्रीकरणार्थाय वर्षपूजाफलप्रदम् ।। ३ ।।

शिवदेव नमस्तुभ्यं गृह्णीष्वेदं पवित्रकम्।

मणिविद्रुममालाभिर्म्मन्दारकुसुमादिभिः ।। ४ ।।

इयं संवत्सरी पूजा तवास्तु वेदवित्पते।

सांवत्सरीमिमां पूजां सम्पाद्य विधिवन्मम ।। ५ ।।

ब्रज पवित्रकेदानीं स्वर्गलोकं विसर्ज्जितः।

सूर्य्यदेव नमस्तुभ्यं गृह्णीष्वेदं पवित्रकम् ।। ६ ।।

पवित्रीकरणार्थय वर्षपूजाफलप्रदम्।

शिवदेव नमस्तुभ्यं गृह्णोष्वेदं पवित्रकम् ।। ७ ।।

पवित्रीकरणार्थाय वर्षपूजाफलप्रदम्।

वाणेश्वर नस्तुभ्यं गृह्लीष्वेदं पवित्रकम् ।। ८ ।।

पवित्रीकरणार्थय वर्षपूजाफलप्रदम्।

शक्तिदेवि नमस्तुभ्यं गृह्णीषवेदं पवित्रकम् ।। ९ ।।

पवित्रीकरणार्थय वर्षपूजाफलप्रदम्।

अग्निदेव कहते हैंमुने! अब संक्षेप से समस्त देवताओं के लिये पवित्रारोपण की विधि सुनो। पहले जो चिह्न कहे गये हैं, उन्हीं लक्षणों से युक्त पवित्रक देवता को अर्पित किया जाता है। उसके दो भेद होते हैं 'स्वरस' और 'अनलग' । पहले निम्राङ्कित रूप से इष्टदेवता को निमन्त्रण देना चाहिये – 'जगत्के कारणभूत ब्रह्मदेव ! आप परिवार- सहित यहाँ पधारें। मैं आपको निमन्त्रित करता हूँ। कल प्रातः काल आपकी सेवा में पवित्रक अर्पित करूँगा।' फिर दूसरे दिन पूजन के पश्चात् निम्नाङ्कित प्रार्थना करके पवित्रक भेंट करे- 'संसार की सृष्टि करनेवाले आप विधाता को नमस्कार है। यह पवित्रक ग्रहण कीजिये। इसे अपने को पवित्र करने के लिये आपकी सेवा में प्रस्तुत किया गया है। यह वर्षभर की पूजा का फल देनेवाला है।' 'शिवदेव ! वेदवेत्ताओं के पालक प्रभो! आपको नमस्कार है। यह पवित्रक स्वीकार कीजिये । इसके द्वारा आपके लिये मणि, मूँगे और मन्दार- कुसुम आदि से प्रतिदिन एक वर्ष तक की जानेवाली पूजा सम्पादित हो।' 'पवित्रक! मेरी इस वार्षिक- पूजा का विधिवत् सम्पादन करके मुझसे विदा लेकर अब तुम स्वर्गलोक को पधारो।' 'सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है; यह पवित्रक लीजिये। इसे पवित्रीकरण के उद्देश्य से आपकी सेवा में अर्पित किया गया है। यह एक वर्ष की पूजा का फल देनेवाला है।' 'गणेशजी! आपको नमस्कार है; यह पवित्रक स्वीकार कीजिये। इसे पवित्रीकरण के उद्देश्य से दिया गया है। यह वर्षभर की पूजा का फल देनेवाला है।' 'शक्ति देवि! आपको नमस्कार है; यह पवित्रक लीजिये। इसे पवित्रीकरण के उद्देश्य से आपकी सेवा में भेंट किया गया है। यह वर्षभर की पूजा का फल देनेवाला है' ॥ १-९ ॥

नारायणमयं सूत्रमनिरुद्धणमयं वरम् ।। १० ।।

धनधान्यायुरारोग्यप्रदं सम्प्रददामि ते।

कामदेवमयं सूत्रं सङ्कर्षणमयं वरम् ।। ११ ।।

विद्यासन्ततिसौभाग्यप्रदं सम्प्रददामि ते।

वासुदेवमयं सूत्रं धर्म्मकामार्थमोक्षदम् ।। १२ ।।

संसारसागरोत्तारकारणं प्रददामि ते।

विश्वरूपमयं सूत्रं सर्व्वदं पापनाशनम् ।। १३ ।।

अतीतानागतकुलसमुद्दारं ददामि ते।

कनिष्ठादीनि चत्वारि मनुभिस्तु क्रमाद्ददे ।। १४ ।।

'पवित्रक का यह उत्तम सूत नारायणमय और अनिरुद्धमय है। धन-धान्य, आयु तथा 'आरोग्य को देनेवाला है, इसे मैं आपकी सेवा में दे रहा हूँ। यह श्रेष्ठ सूत प्रद्युम्नमय और संकर्षणमय है, विद्या, संतति तथा सौभाग्य को देनेवाला है। इसे मैं आपकी सेवा में अर्पित करता हूँ। यह वासुदेवमय सूत्र धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष को देनेवाला है। संसारसागर से पार लगाने का यह उत्तम साधन है, इसे आपके चरणों में चढ़ा रहा हूँ। यह विश्वरूपमय सूत्र सब कुछ देनेवाला और समस्त पापों का नाश करनेवाला है; भूतकाल के पूर्वजों और भविष्य की भावी संतानों का उद्धार करनेवाला है, इसे आपकी सेवा में प्रस्तुत करता हूँ। कनिष्ठ, मध्यम, उत्तम एवं परमोत्तम - इन चार प्रकार के पवित्रकों का मन्त्रोच्चारणपूर्वक क्रमशः दान करता हूँ ॥ १० - १४ ॥

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये सङ्क्षेपपवित्रारोहणं नाम सप्तत्रिंशोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराण में 'संक्षेपतः सर्वदेवसाधारण पवित्रारोपण' नामक सैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥३७॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 38 

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