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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
काली स्तुति
दक्ष प्रजापति और उसकी पत्नी वीरणी
ने उस जगदीश्वरी का दर्शन प्राप्त करके शिव, शांता,
महामाया, योगनिद्रा, जगन्मयी
माँ काली की इस प्रकार स्तुति किया था ।
दक्षप्रोक्ता कालीस्तुतिः
दक्ष उवाच -
शिवा शान्ता महामाया योगनिद्रा
जगन्मयी ।
या प्रोच्यते विष्णुमाया तां नमामि
सनातनीम् ॥ ४९॥
दक्ष प्रजापति ने कहा था-शिवा,
शान्ता, महामाया, योगनिद्रा,
जगन्मयी जो विष्णुमाया कही जाती हैं उस सनातनी देवी के लिए मैं
नमस्कार करता हूँ।
यया धाता जगत्सृष्टौ नियुक्तस्तां
पुराकरोत् ।
स्थितिञ्च विष्णुरकरोद्यन्नियोगाज्जगत्पतिः
॥ ५०॥
जिसके द्वारा धाता (ब्रह्मा) इस
जगत् की सृष्टि की स्थिति का सृजन करने के कार्य में नियुक्त किया था और पहले इस
सृष्टि की रचना उसने की थी और भगवान् विष्णु ने उस सृष्टि की स्थिति अर्थात्
हरिपालन किया था।
शम्भुरन्तं ततो देवीं त्वां नमाभि महीयसीम्
।
विकाररहितां शुद्धामप्रमेयां
प्रभावतीम् ।
प्रमाणमानमेयाख्यां प्रणमामि सुखात्मिकाम्
॥ ५१॥
जिसके वियोग से जगत् के पति शम्भु
ने अन्त अर्थात् सृष्टि का संहार किया था। उसी देवी आपको,
मैं प्रणाम करता हूँ । आप विकारों से रहित हैं, शुद्ध हैं, अप्रमेया अर्थात् प्रमाण करने के योग्य
हैं, प्रभा वाली हैं, आप प्रमाण मानमेय
नाम वाली और सुख स्वरूपिणी हैं ऐसी आपको मैं प्रणाम करता हूँ।
यस्त्वां विचिन्तयेद्देवीं
विद्याविद्यात्मिकां पराम् ।
तस्य भोग्यञ्च मुक्तिश्च सदा करतले
स्थिता ॥ ५२॥
जो पुरुष,
देवी आपका चिन्तन करें जो कि आप विद्या अविद्या के स्वरूप वाली परा
हैं उस पुरुष के सुखों का भोग्य और मुक्ति सदा ही करतल में स्थित रहा करती है ।
यस्त्वां प्रत्यक्षतो देवीं सकृत्
पश्यति पावनीम् ।
तस्यावश्यं
भवेन्मुक्तिर्विद्याविद्याप्रकाशिकाम् ॥ ५३॥
जो पुरुष आप देवी की प्रत्यक्ष रूप
से परमपावनी का एक बार भी दर्शन प्राप्त कर लेता है उस पुरुष की अवश्य ही मुक्ति
हो जाया करती है जो कि विद्या, अविद्या की
प्रकाशिका है ।
योगनिद्रे महामाये विष्णुमाये
जगन्मयि ।
या प्रमाणार्थसम्पन्ना चेतना सा
तवात्मिका ॥ ५४॥
हे योगनिद्रे ! हे महामाये! हे
जगन्मयी! हे विष्णुमाये ! जो प्रमाणार्थ सम्पन्न चेतना है वह तेरे ही स्वरूप वाली
है।
ये स्तुवन्ति
जगन्मातर्भवतीमम्बिकेति च ।
जगन्मयीति मायेति सर्वं तेषां
भविष्यति ॥ ५५॥
हे जगन्मात! जो पुरुष आपका अम्बिका
कहकर स्तवन किया करता है, जो जगन्मयी और मया
इन नामों का उच्चारण करके आपकी स्तुति किया करते हैं उनका सभी कुछ अभीष्ट सम्पन्न
हो जाया करता है ।
इति कालिकापुराणे अष्टमाध्यायान्तर्गता दक्षप्रोक्ता कालीस्तुतिः समाप्ता ।
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