जैमिनी ज्योतिष अध्याय ६
जैमिनी ज्योतिष अध्याय ६ के इस भाग में वृश्चिक तथा कुम्भ राशि दशा की गणना किस प्रकार की जाएगी इसका वर्णन किया गया है।
जैमिनी ज्योतिष अध्याय ६
Jaimini
Astrology chapter 6
जैमिनी ज्योतिष छटवाँ अध्याय
जैमिनी
ज्योतिष
जैमिनी ज्योतिष षष्ठोऽध्यायः
पिछले अध्याय में आपको बताया गया था
कि जैमिनी चर दशा में वृश्चिक तथा कुम्भ राशि दशा की गणना बाकी अन्य राशियों से
भिन्न होती है। इन दोनों राशियों की गणना के लिए कुछ विशेष नियम निर्धारित किए गए
हैं। जो निम्नलिखित हैं :-
वृश्चिक राशि की गणना (सव्य दशा
क्रम) Calculation of Scorpio sign (Direct Dasha
Kram)
वृश्चिक राशि की दशा का क्रम सव्य
होता है।
(1) किसी भी कुण्डली का आंकलन करने
के लिए कुण्डली में मंगल तथा केतु ग्रह को चिन्हित करें कि वह कुण्डली में किस भाव
में स्थित हैं। मंगल तथा केतु ग्रह वृश्चिक राशि के स्वामी माने गए हैं। कुण्डली
में यदि मंगल ग्रह वृश्चिक राशि में स्थित है और केतु किसी अन्य राशि में है। तब
मंगल को छोड़ दें और वृश्चिक राशि से दशा वर्ष की गिनती करके केतु ग्रह तक गिनें।
जितने वर्ष प्राप्त होगें उसमें एक वर्ष घटा दें। शेष वर्ष वृश्चिक राशि के दशा
वर्ष होगें।
अथवा
(2) यदि वृश्चिक राशि में केतु
स्थित है और मंगल किसी अन्य राशि में स्थित है तब आप उपरोक्त गणना को भूल जाएँ। अब
आप केतु को अनदेखा करें। वृश्चिक राशि से मंगल ग्रह तक गिनती करें। जो दशा वर्ष
आते हैं उसमें से एक वर्ष घटा दें। शेष वर्ष वृश्चिक राशि के दशा वर्ष होगें।
अथवा
(3) यदि मंगल तथा केतु दोनों ही
ग्रह वृश्चिक राशि में स्थित हैं तब वृश्चिक राशि की पूरे बारह वर्ष की दशा होगी।
इसमें कोई संख्या घटाई नहीं जाएगी।
अथवा
(4) उपरोक्त नियमों के अतिरिक्त यदि
मंगल तथा केतु दोनों ही अलग-अलग राशियों में स्थित हैं तब यह देखें कि दोनों में
से कौन - सा ग्रह अधिक बलवान है। दोनों ग्रहों का बल देखने के लिए कुछ नियम
निर्धारित किए गए हैं।
(क) दोनों ग्रहों में से यदि एक
ग्रह के साथ ग्रह स्थित है तब वह ग्रह बलवान है। जैसे किसी कुण्डली में मंगल के
साथ एक अथवा एक से अधिक ग्रह स्थित हैं तब मंगल,
केतु से अधिक बलवान माना जाएगा। वृश्चिक राशि की दशा की गणना
वृश्चिक से आरम्भ होकर मंगल पर खत्म हो जाएगी।
(ख) यदि कुण्डली में केतु के साथ
ग्रह हैं और मंगल अकेला स्थित है तब वृश्चिक से केतु ग्रह तक गणना की जाएगी।
(ग) यदि दोनों ही ग्रहों के साथ
समान संख्या में ग्रह हैं तब जिस ग्रह के भोगाँश अधिक होगें वह ग्रह अधिक बली माना
जाएगा और वृश्चिक राशि से गणना आरम्भ करके बली ग्रह तक की जाएगी।
(घ) यदि कुण्डली में मंगल तथा केतु
दोनों ही ग्रह भिन्न राशियों में अकेले स्थित हैं तब भी उनके भोगाँशों के आधार पर
बली ग्रह का निर्णय किया जाएगा। यदि दोनों ग्रहों के अंश(Degree)
तथा कला(Minutes) समान हैं तब उनकी विकला (Seconds)
के आधार पर बली ग्रह का निर्णय किया जाएगा।
कुंभ राशि की गणना Calculation
of Aquarius sign
कुम्भ राशि की दशा गणना का क्रम
अपसव्य होता है। जिस प्रकार आपने वृश्चिक राशि की दशा की गणना का तरीका समझा है
उसी प्रकार कुम्भ राशि की गणना होती है। दोनों में केवल ग्रहों का अन्तर है। इस
गणना में शनि तथा राहु को लेगें। राशि कुम्भ होगी। कुम्भ राशि से ग्रह तक गणना
अपसव्य क्रम में होगी। कुम्भ से मकर की ओर गिनना आरम्भ करेगें।
आगे जारी- जैमिनी ज्योतिष अध्याय 7
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