श्रीनन्दनन्दनस्तोत्र
श्रीकृष्ण साक्षात् परात्पर ब्रह्म
है ऐसा जानकर दुर्वासा मुनि ने 'श्रीनन्दनन्दनस्तोत्र' से श्रीनन्दनन्दन को हाथ जोडकर कहा-
श्रीनन्दनन्दन स्तोत्रम्
श्रीकृष्णस्तुतिः
श्रीमुनिरुवाच -
बालं नवीनशतपत्रविशालनेत्रं
बिम्बाधरं सजलमेघरुचिं मनोज्ञम् ।
मन्दस्मितं मधुरसुन्दरमन्दयानं
श्रीनन्दनन्दनमहं मनसा नमामि ॥ १॥
मञ्जीरनूपुररणन्नवरत्नकाञ्ची
श्रीहारकेसरिनखप्रतियन्त्रसङ्घम् ।
दृष्ट्याऽऽर्तिहारिमषिबिन्दुविराजमानं
वन्दे कलिन्दतनुजातटबालकेलिम् ॥ २॥
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखोपरि
कुञ्चिताग्राः
केशा नवीनघननीलनिभाः स्फुरन्ति ।
राजन्त आनतशिरःकुमुदस्य यस्य
नन्दात्मजाय सबलाय नमो नमस्ते ॥ ३॥
श्रीनन्दनन्दनस्तोत्रं प्रातरुत्थाय
यः पठेत् ।
तन्नेत्रगोचरो याति सानन्दं
नन्दनन्दनः ॥ ४॥
इति गर्गसंहितायां गोलोकखण्डे
विंशाध्यायान्तर्गता दुर्वससा कृता श्रीकृष्णस्तुतिः समाप्त ।
श्रीनन्दनन्दन स्तोत्रम् भावार्थ सहित
दुर्वासामुनिरुवाच -
बालं नवीनशतपत्रविशालनेत्रं
बिम्बाधरं सजलमेघरुचिं मनोज्ञम् ।
मन्दस्मितं मधुरसुन्दरमन्दयानं
श्रीनन्दनन्दनमहं मनसा नमामि ॥ १॥
श्रीमुनि बोले –जिनके नेत्र नूतन
विकसित शतदल कमल के समान विशाल है, अधर बिम्बाफल की अरुणिमा को तिरस्कृत करनेवाले
हैं तथा श्रीसम्पन्न अङ्ग सजल जलधर की श्याम-मनोहर कार्ति को छीने लेते हैं,
जिनके मुख पर मन्द मुसकान को दिव्य छटा छा रही है तथा जो सुन्दर
मधुर मन्दगति से चल रहे हैं, उन बाल्यावस्था से विकसित
मनोज्ञ श्रीनन्दनन्दन को मैं मन से प्रणाम करता हूँ ॥ २४ ॥
मञ्जीरनूपुररणन्नवरत्नकाञ्ची
श्रीहारकेसरिनखप्रतियन्त्रसङ्घम् ।
दृष्ट्याऽऽर्तिहारिमषिबिन्दुविराजमानं
वन्दे कलिन्दतनुजातटबालकेलिम् ॥ २॥
जिनके चरणों में मञ्जीर और नूपुर
झंकृत हो रहे हैं और कटि में खनखनाती हुई नूतन रत्ननिर्मित काञ्ची(करधनी) शोभा दे
रही है, जो बघनखा से युक्त यन्त्र समुदाय तथा सुन्दर कण्ठहार से सुशोभित हैं,
जिनके भालदेश में दृष्टिजनित पीड़ा हर लेनेवाली कज्जल की बिंदी शोभा
दे रही है तथा जो कलिन्दनन्दिनी के तट पर बालोचित क्रीड़ा में संलग्न हैं, उन श्रीहरि की मैं वन्दना करता हूँ ॥ २५॥
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखोपरि
कुञ्चिताग्राः केशा नवीनघननीलनिभाः स्फुरन्ति ।
राजन्त आनतशिरःकुमुदस्य यस्य
नन्दात्मजाय सबलाय नमो नमस्ते ॥ ३॥
जिनके पूर्णचन्द्रोपम सुन्दर मुख पर
नूतन नीलघन की श्याम प्रभा को तिरस्कृत करनेवाले घुंघराले काले केश चमक रहे हैं तथा
जिनका मस्तकरूपी कुमुद कुछ झुका हुआ है, उन आप नन्दनन्दन श्रीकृष्ण तथा आपके अग्रज
श्रीवळराम को मेरा बारंबार नमस्कार है ॥ २६ ॥
श्रीनन्दनन्दनस्तोत्रं प्रातरुत्थाय
यः पठेत् ।
तन्नेत्रगोचरो याति सानन्दं
नन्दनन्दनः ॥ ४॥
जो प्रातःकाल उठकर इस 'श्रीनन्दनन्दनस्तोत्र' का पाठ करता है, उसके नेत्रों
के समक्ष श्रीनन्दनन्दन सानन्द प्रकट होते हैं ॥ २७ ॥
इति श्रीगगंसंहितायां गोलोकखण्डे नारदबहुळाश्वसंबादे भगवज्जन्मवर्णनं दुर्वाससो मायादशं श्रीनंदनंदनस्तोत्रवर्णनं नाम विंशोऽध्यायः ॥ २० ॥
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