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कर्मकाण्ड

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चतुर्वेद ध्यान

चतुर्वेद ध्यान

चतुर्वेद ध्यान-'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है जानना अतः वेद का शाब्दिक अर्थ है 'ज्ञान'। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं।

'चतुर्वेद'

ऋग्वेद - सबसे प्राचीन तथा प्रथम वेद जिसमें मन्त्रों की संख्या 10462,मंडल की संख्या 10 तथा सूक्त की संख्या 1028 है। ऐसा भी माना जाता है कि इस वेद में सभी मंत्रों के अक्षरों की कुल संख्या 432000 है। इसका मूल विषय ज्ञान है। विभिन्न देवताओं का वर्णन है तथा ईश्वर की स्तुति आदि।

यजुर्वेद - इसमें कार्य (क्रिया) व यज्ञ (समर्पण) की प्रक्रिया के लिये 1975 गद्यात्मक मन्त्र हैं। इसमें बलिदान विधि का भी वर्णन है।

सामवेद - इस वेद का प्रमुख विषय उपासना है। संगीत में लगे शूर को गाने के लिये 1875 संगीतमय मंत्र।

अथर्ववेद - इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 कवितामयी मन्त्र हैं।

वेदों को अपौरुषेय (जिसे किसी पुरुष के द्वारा न किया जा सकता हो, (अर्थात् ईश्वर कृत) माना जाता है। यह ज्ञान विराटपुरुष से वा कारणब्रह्म से श्रुति परम्परा के माध्यम से सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने प्राप्त किया माना जाता है। यह भी मान्यता है कि परमात्मा ने सबसे पहले चार महर्षियों जिनके अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नाम थे; के आत्माओं में क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान दिया, उन महर्षियों ने फिर यह ज्ञान ब्रह्मा को दिया। इन्हें श्रुति भी कहते हैं जिसका अर्थ है 'सुना हुआ ज्ञान'। क्योंकि इन्हें सुनकर के लिखा गया था।

चतुर्वेद ध्यान

चतुर्वेद ध्यान

ऋग्वेद - ध्यान

ऋग्वेदः श्वेतवर्णः स्याद् द्विभुजो रासभाननः ।

अक्षमालायुतः सौम्यः प्रीतश्चाध्ययनोद्यतः ॥

भगवान् ऋग्वेद श्वेत वर्णवाले हैं। उनकी दो भुजाएँ हैं और मुखाकृति गर्दभ के समान है। वे अक्षमाला से समन्वित, सौम्य स्वभाववाले, प्रसन्न रहनेवाले तथा सदा अध्ययन में निरत रहनेवाले हैं।

यजुर्वेद-ध्यान

अजास्यः पीतवर्णः स्याद्यजुर्वेदोऽक्षसूत्रधृक् ।

वामे कुलिशपाणिस्तु भूतिदो मङ्गलप्रदः॥

भगवान् यजुर्वेद बकरे के समान मुखवाले, पीतवर्णवाले तथा अक्षमाला धारण करनेवाले हैं। वे अपने बायें हाथ में वज्र धारण किये हैं। वे सभी प्रकार का ऐश्वर्य तथा मंगल प्रदान करनेवाले हैं।

सामवेद-ध्यान

नीलोत्पलदलाभासः सामवेदो हयाननः।

अक्षमालान्वितो दक्षे वामे कम्बुधरः स्मृतः ॥

जो नीलकमलदल के समान कान्तिवाले हैं, अश्व के समान मुखवाले हैं तथा जो अपने दाहिने हाथ में अक्षमाला लिये हुए हैं और बायें हाथ में शंख धारण किये हैं, वे सामवेद भगवान् कहे गये हैं।

अथर्ववेद- ध्यान

अथर्वणाभिधो वेदो धवलो मर्कटाननः ।

अक्षसूत्रं च खट्वाङ्गं बिभ्राणो यजनप्रियः ॥

जो उज्ज्वल वर्णवाले तथा बन्दर के समान मुखवाले हैं, जिन्होंने अक्षमाला और खट्वांग धारण किया है, जिन्हें यजनकर्म अत्यन्त प्रिय है, वे अथर्वण नाम के वेद भगवान् कहे गये हैं।

इतिःचतुर्वेद ध्यान 

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