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कर्मकाण्ड

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शैव रामायण अध्याय ५

शैव रामायण अध्याय ५ 

शैव रामायण के अध्याय  ५ में सहस्रकण्ठ के अश्व न लौटाने पर हनुमान द्वारा सहस्रकण्ठ को मारने, उसके किरीटों को बिखेरने एवं अन्य राक्षसों से युद्धवृत्तान्त वर्णित है ।

शैवरामायण अध्याय ५

शैव रामायण पाँचवाँ अध्याय

Shaiv Ramayan chapter 5

शैवरामायणम् पञ्चमोऽध्यायः

शैवरामायण पञ्चम अध्याय

शैवरामायण अध्याय ५ 

श्रीशङ्कर उवाच

अथोवाच सहस्रास्यो हनूमन्तमिदं वचः ।

रामः कः को भवानद्य कुत आयासि वानरः ।। १ ।।

भगवान् शङ्कर ने कहा - इसके बाद सहस्रकण्ठ ने हनुमान से कहना प्रारम्भ किया कि राम कौन हैं? आप कौन हैं? हे वानर कहाँ से आये हो ॥ १ ॥

अत्र किं तिष्ठसे मूढ न मोक्ष्ये तुरगं क्वचित् ।

निवेदय त्वं गच्छाद्य तस्मै रामाय मद्वचः ।।२।।

हे मूर्ख ! तुम यहाँ क्यों ठहरे हो ? तुम किसी भी प्रकार घोड़े को नहीं छुड़ा सकते ? यहाँ से जाकर उस राम से तुम मेरे वचनों को निवेदित करो ॥२॥

इत्युक्त्वा राक्षसानाह गृह्यतामेष दुर्मतिः ।

इत्युक्तं तद्वचः श्रुत्वा शुकरूपं विसृज्य सः ।। ३ ।।

ऐसा कहकर उसने राक्षसों से कहा कि इस दुष्ट बुद्धिवाले वानर को पकड़ लो। उसके ऐसे वचनों को सुन करके उस शुक ने अपना शुक रूप छोड़कर वानर रूप में (हनुमान) आ गये ॥ ३ ॥

खेचरः कपिरूपेण न्यपतत् तस्य मूर्द्धसु ।

पातयित्वा किरीटानि भूषणानि विकीर्य सः ।। ४ ।।

बाद में वही शुक रूप से वानर रूप में आकर उन-उन राक्षसों के शिर पर (गिरे) प्रहार किया, उनके मुकुटों को गिरा दिया और अन्य आभूषणों को (तोड़-तोड़कर) फैला दिया ॥४॥

उत्पाट्य स्तम्भमेकं तं ताडयामास मारुतिः ।

एतस्मिन्नन्तरे दैत्या लोहिताक्षादयः कपिम् ।। ५ ।।

मुद्गरैः परिघैस्तीक्ष्णै शूलैः कुन्तैः परश्वधैः ।

बाणैः सन्ताडयामासुः सहस्रग्रीवचोदिताः ।। ६ ॥

तदनन्तर उस मारुतिनन्दन ने महल का एक स्तम्भ (खम्भा) उखाड़ लिया और उस सहस्रकण्ठ को मारा। इसी बीच सहस्रगीव (सहस्रकण्ठ) के द्वारा निर्दिष्ट लोहिताक्ष आदि सभी राक्षस कपि(हनुमान) पर मुद्गर, परिध, तीक्ष्ण शूल, कुन्त, फरसा, बाण आदि से वध हेतु प्रहार किया ।।५-६ ॥

हनूमानपि बालेन ताडयामास राक्षसान् ।

ततो हनूमान् उधृ (द्धृ) त्य रामसन्निधिमाययौ ।।७।।

हनुमान ने भी बलपूर्वक उन सभी राक्षसों को मारा। उसके बाद वहाँ से निकलकर वह राम के समीप आये ॥७॥

नमस्कृत्वाथ रामाय सहस्रग्रीवभाषितम् ।

न्यवेदयत् स तत्सर्वं श्रुत्वा रामो महाबलः ।।८।।

सुग्रीवपुरमाहूय बलं वानरराक्षसौ ।

विभीषणमथामन्त्र्य ह्युवाच रघुसत्तमः ।।९।।

राम को अभिवादन करके हनुमान ने सहस्रकण्ठ के द्वारा कही गयी सम्पूर्ण बातों को राम से निवेदित किया, वह सब सुनकर महाबलशाली राम ने सुग्रीवपुर में वानर, राक्षस एवं सम्पूर्ण सेना को बुलाकर विभीषण के साथ मन्त्रणा करके, भगवान राम बोले ।।८-९।।

गच्छन्तु वानराः सर्वे युद्धाय सह राक्षसैः ।

इत्युक्तास्ते कपिश्रेष्ठाः प्राप्नुयुस्तत्पुरीं ततः ।। १० ।।

राक्षसों के साथ युद्ध करने के लिए सभी वानर जायें, राम के ऐसा कहने पर सभी श्रेष्ठ (योद्धा) वानर चित्रवती पुरी पहुँच गये ॥ १० ॥

शृङ्गारण्यारुह्य कपयः प्राकारानवतीर्य च ।

सिंहनादं ततश्चक्रुः सुग्रीवप्रमुखास्तदा ।। ११ ।।

सभी वानर उस नगरी के महलों की चोटियों पर चढ़ गये, महलों पर विखर गये तथा सुग्रीव आदि प्रमुख योद्धाओं ने सिंहनाद किया ॥ ११ ॥

सहस्रकण्ठानुचरा निर्ययुर्नगरात् ततः ।

गजवाजिरथारूढाः सहस्रग्रीवचोदिताः ।।१२।।

इसके बाद सहस्रकण्ठ के द्वारा निर्दिष्ट उसके सेनानी हाथी, घोड़े एवं रथों पर आरूढ़ (सवार) होकर चित्रवतीपुरी के बाहर निकले ॥१२॥

सिंहनादं प्रकुर्वाणास्तस्थुर्युद्धाभिकांक्षिणः ।

दृष्ट्वाङ्गदः समायातान् सुग्रीवः पवनात्मजः ।। १३ ।।

गजो गवाक्षो गवयः शरभो नीलरम्भकौ ।

सुषेणजीववत्तारमैंदद्विविदधूम्रकाः ।। १४ ।।

एते चान्ये कपिश्रेष्ठाः पर्वतानपि पादपान् ।

गृहीत्वा संययुस्तत्र तदा रामप्रचोदिताः ।। १५ ।।

आहवे वानराः सर्वे युद्धं चक्रुः परस्परम् ।

ज्वालामुखेन सुग्रीवो लोहितास्येन चाङ्गदः ।। १६।।

नीलोऽपि तीक्ष्णदंष्ट्रेण रक्ताक्षेणाञ्जनीसुतः ।

पादपै पर्वताग्रैश्च जघ्नुस्ते राक्षसान् बहून् । । १७ । ।

तदनन्तर युद्ध करने के आकांक्षी योद्धाओं ने सिंहनाद किया। अंगद ने सुग्रीव और हनुमान को साथ-साथ आते हुए देखा । तब राम के कहने पर गज, गवाक्ष, गवय, शलभ, नील, रम्भक, सुषेण, जीव, वत्तार, मैंद, द्विविद, धूम्रक, आदि अन्य वानरश्रेष्ठों ने पर्वतों और वृक्षों को लेकर (उखाड़कर), सम्पूर्ण वानरों को युद्ध करने का आह्वान किया एवं राम की सेना तथा सहस्रकण्ठ की सेना का आपस में युद्ध प्रारम्भ हुआ । ज्वालामुख के साथ सुग्रीव तथा लोहिताश्व के साथ अंगद, नील के साथ तीक्ष्णदंष्ट्र, रक्ताक्ष के साथ अञ्जनीपुत्र हनुमान का युद्ध शुरू हुआ एवं उन्होंने वृक्षों एवं पर्वतों के अग्रभाग से बहुत से राक्षसों का वध कर दिया ।।१३-१७॥

राक्षसास्ते शरैस्तीक्ष्णैर्निर्जघ्नुः कपिकुञ्जरान् ।

ज्वालामुखो ववर्षाजौ सुग्रीवे शरसन्ततिः ।। १८ ।।

तानन्तरिक्षे सुग्रीवः पादपैरच्छिनत् तदा ।

ज्वालामुखं च सुग्रीवश्चरणाभ्यामताडयत् ।। १९ ।।

तस्य पादप्रहारेण ममार स हि राक्षसः ।

रक्ताक्षो मारुतिं तत्र लोहितास्योऽङ्गदं तदा ।। २० ।।

राक्षसों ने भी तीक्ष्ण बाणों से बहुत से वानरों को मार डाला । ज्वालामुख ने जहाँ अग्निवर्षा की, तो सुग्रीव ने बाणों की वर्षा की। उसके बाद सुग्रीव ने पैरों से मार-मार कर छिन्न-भिन्न कर दिया तथा ज्वालामुख को भी सुग्रीव ने अपने पैरों से मारा। उसके पाद प्रहार से वह राक्षस (ज्वालामुख) मर गया। तभी रक्ताक्ष एवं हनुमान तथा लोहितास्य और अंगद भी आपस में युद्ध करते देखे गये ।। १८-२० ।।

तीक्ष्णदंष्ट्रोऽपि नीलञ्च ववर्ष शरसन्ततिम् ।

लोहितास्यं बालिपुत्रो मुष्टिना प्रहरद् युधि ।। २१ ।।

तन्मुष्टिनैव निहतः सोऽपि देहममूमुचत् ।

हनूमानपि रक्ताक्षं वालेनावेष्ट्य खेचरः ।। २२।।

भ्रामइ (वि) त्वा पातिते स चूर्णतां समुपागमत् ।

नीलोऽपि (व) ज्र (दं) ष्ट्रस्य गृहीत्वा चरणौ तदा ।। २३ ।।

द्वेधा विभज्य तं वीरं पातयामास भूतले ।

एवं विनिहताः सर्वे राक्षसाः कपिभिः (स्त) दा ।। २४ ।।

तीक्ष्णदंष्ट्र ने नील के ऊपर बाणों की वर्षा की एवं युद्ध में लोहितास्य के ऊपर बालिपुत्र अंगद ने मुष्टियों का प्रहार किया । अंगद की मुष्टि प्रहार से वह तीक्ष्णदंष्ट्र मर गया। अर्थात् उसका शरीर पात हो गया। हनुमान ने भी रक्ताक्ष को अपनी पूँछ से लपेटकर आकाश में फेंक दिया। आकाश से घूमते हुए वह पृथ्वी पर गिरा और चूर्ण- चूर्ण हो गया। तभी नील ने भी वजदंष्ट्र के पैरों को पकड़कर, उसे दो भागों में चीर डाला और पृथ्वी पर फेंक दिया। इस प्रकार वानरों के द्वारा सभी राक्षस मार डाले गये ।। २१-२४।।

हतशेषाः समाजग्मुः सहस्रग्रीवसन्निधिम् ।

चतुर्णां राक्षसानां वै मरणं ते न्यवेदयन् ।। २५ ।।

ततः परं राक्षसपुङ्गवानां निशम्य नाशं कपिसैन्यमुख्यैः ।

सहस्रकण्ठः प्रलयानलो यथा जाज्वल्यमानः स रणाय निर्ययौ ।। २६ ।।

शेष बचे हुए राक्षस सहस्रकण्ठ के पास पहुँचे और चारों तरफ से राक्षसों की मृत्यु होने का समाचार उन्होंने निवेदित किया । इसके बाद वानर सेना के प्रमुखों के द्वारा राक्षसों के विनाश का सुनकर, राक्षसों में श्रेष्ठ सहस्रकण्ठ क्रोधित होकर प्रलयानल की भाँति युद्ध करने लिए निकला ॥२५-२६ ॥

इति श्रीशैवरामायणे पार्वतीशङ्करसंवादे सहस्रकण्ठचरिते पञ्चमोऽध्यायः ।

इस प्रकार शिवपार्वती संवाद रूप में प्राप्त शैवरामायण का सहस्रकण्ठचरित नामक पाचवाँ अध्याय समाप्त हुआ।

आगे जारी.......... शैवरामायण अध्याय 6 

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